इनकम टैक्स रिटर्न (आईटीआर) फाइल करने में सावधानी जरूरी है. आईटीआर की छोटी सी गलती भी आपके लिए बड़ी परेशानी बन सकती है.
इनकम टैक्स रिटर्न (आईटीआर) फाइल करने में सावधानी जरूरी है. आईटीआर की छोटी सी गलती भी आपके लिए बड़ी परेशानी बन सकती है. आप पर इनकम टैक्स विभाग जुर्माना लगा सकता है या आपको टैक्स नोटिस मिल सकता है.
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1. गलत आईटीआर फॉर्म में रिटर्न फाइल करना
इनकम टैक्स नियमों के मुताबिक आपको आमदनी के सभी स्रोत के बारे में जानकारी देना जरूरी है. इस हिसाब से आपको सही आईटीआर फॉर्म का इस्तेमाल करना चाहिए. अगर आप गलत आईटीआर फॉर्म में रिटर्न भरते हैं तो आपका रिटर्न डिफेक्टिव माना जायेगा और इनकम टैक्स विभाग आपसे सही फॉर्म में रिटर्न भरने के लिए कह सकता है.
The Accounts hub के Tax Advisor Jitendra Sharma ने कहा, ‘एक बार आपको इनकम टैक्स विभाग गलती सुधारने के लिए समय दे सकता है. इनकम टैक्स कानून के सेक्शन 139 (9) के तहत आपको इसके लिए 15 दिन का समय मिल सकता है. अगर आप चाहें तो एसेसिंग अधिकारी को आवेदन देकर और समय मांग सकते हैं. अगर समय-सीमा के तहत रिटर्न ठीक नहीं किया गया तो आपके रिटर्न को अवैध (इनवैलिड) करार दिया जा सकता है.’ चांडक ने कहा कि सही आईटीआर फॉर्म में रिटर्न नहीं फाइल करने के लिए आप को जुर्माने के साथ इनकम टैक्स कानून के सेक्शन 234A के तहत बकाया टैक्स देनदारी पर ब्याज भी चुकाना पड़ सकता है.
2. ब्याज से आय की जानकारी नहीं देना
पिछले वित्त वर्ष में आपको हर तरह से कमाए गए ब्याज की जानकारी आयकर विभाग को देनी चाहिए. आईटीआर फाइल करने में आपको इसका जिक्र करना चाहिए. आम तौर पर करदाता बचत खाते, फिक्स्ड डिपाजिट रेकरिंग डिपाजिट आदि के ब्याज की जानकारी इनकम टैक्स रिटर्न में नहीं देते. इसे आपको आईटीआर में अन्य स्रोत से आय मद में दिखाना होगा. डिपाजिट या रेकरिंग डिपाजिट से कमाए गए ब्याज पर पूरी तरह टैक्स लगता है. बैंक/पोस्ट ऑफिस में बचत खाते से मिले 10,000 रुपये तक के ब्याज पर आप इनकम टैक्स कानून के सेक्शन 80TTA के तहत कर छूट का दावा कर सकते हैं.
The Accounts hub के Tax Advisor Jitendra Sharma ने कहा, ‘अगर आपका किसी पोस्ट ऑफिस में बचत खाता है तो उससे मिले 3500 रुपये तक के ब्याज पर आप इनकम टैक्स कानून के सेक्शन 10 (15)(i) के तहत छूट का दावा कर सकते हैं. अगर खाता संयुक्त नाम से है तो छूट की यह रकम 7000 रुपये तक हो जाएगी. यह छूट इनकम टैक्स कानून के सेक्शन 80TTA के अलावा है.
3. आयकर रिटर्न फाइल नहीं करना
बहुत से लोग इनकम टैक्स रिटर्न ही फाइल नहीं करते. अगर आपको भी संपत्ति/शेयर/इक्विटी म्यूचुअल फंड की बिक्री से लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स हुआ है तो भले ही यह टैक्स के दायरे में नहीं आता, लेकिन आपको आईटीआर फाइल करना चाहिए. अगर आपकी कुल सालाना आमदनी इनकम टैक्स के दायरे से बाहर है और आपको LTCG से आमदनी हुई है तब भी आपको इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करना चाहिए. इनकम टैक्स कानून के सेक्शन 139(1) में हाल में ही किये गए संशोधन के बाद अगर आपकी कुल आमदनी और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स से कमाई इनकम टैक्स छूट की बेसिक सीमा को पार कर जाती है तो आपको आईटीआर फाइल करना होगा. मसलन, मान लें कि किसी वित्त वर्ष में आपकी कुल आमदनी एक लाख रुपये है. उस साल में ही आपको लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स के रूप में दो लाख रुपये की आमदनी हुई है. अब तक आपको इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने की जरूरत नहीं थी, लेकिन इनकम टैक्स कानून के नए प्रावधान के हिसाब से आपकी आमदनी 2.5 लाख रुपये की सीमा से अधिक है, इसलिए आपको आईटीआर फाइल करना चाहिए.
4. पिछले जॉब की आमदनी का जिक्र नहीं करना
अगर वित्त वर्ष के बीच में आपने जॉब बदली है तो आपको पिछली और नई, दोनों नौकरी से आमदनी का जिक्र अपने इनकम टैक्स रिटर्न में करना चाहिए. अगर आपने आईटीआर में पिछली जॉब से आमदनी का जिक्र नहीं किया तो आपके टीडीएस सर्टिफिकेट, फॉर्म 16 और फॉर्म 26AS में अंतर देखने को मिल सकता है.
The Accounts hub के Tax Advisor Jitendra Sharma ने कहा, ‘टैक्स स्टेटमेंट में यह अंतर एक करदाता के रूप में आपको भारी पड़ सकता है. आपको इनकम टैक्स विभाग से नोटिस मिल सकता है.’
5. टैक्स फ्री आमदनी का जिक्र नहीं करना
एक करदाता के रूप में आपको हर तरह की आमदनी की जानकारी आयकर विभाग को देनी है. भले ही आमदनी टैक्स से मुक्त क्यों न हो. किसी वित्त वर्ष में पीएफ पर मिले ब्याज या टैक्स फ्री बांड से आमदनी के बारे में आपको आईटीआर में जानकारी देनी चाहिए. आप इसके लिए इनकम टैक्स कानून के विभिन्न सेक्शन के तहत टैक्स में छूट हासिल कर सकते हैं.
6. सभी बैंक खाते का जिक्र नहीं करना
एसेसमेंट ईयर 2015-16 से ही एक करदाता के रूप में आपको सभी बैंक अकाउंट की जानकरी आयकर विभाग को देनी है. इससे पहले आपको इनकम टैक्स विभाग को सिर्फ एक खाते की जानकारी देनी होती थी, जिसमें आपको टैक्स रिफंड चाहिए. अब आपको सिर्फ बंद हो चुके बैंक खाते के बारे में ही इनकम टैक्स विभाग को नहीं बताना है, बाकी सभी चालू खाते के बारे में आईटीआर में जानकारी देनी है.
अब आपको सिर्फ बंद हो चुके बैंक खाते के बारे में ही इनकम टैक्स विभाग को नहीं बताना है, बाकी सभी चालू खाते के बारे में आईटीआर में जानकारी देनी है.
7. वास्तविक/अनुमानित किराया नहीं बताना
अगर आपके नाम से दो मकान हैं तो एक मकान में आप खुद रहने का दावा कर सकते हैं. दूसरा मकान अगर खाली भी पड़ा है तब भी उसके अनुमानित किराये पर आपको टैक्स चुकाना पड़ेगा. The Accounts hub के Tax Advisor Jitendra Sharma ने कहा, ‘आपकी कुल आमदनी में खाली मकान का अनुमानित किराया जोड़कर आपको उस पार टैक्स चुकाना चाहिए. अगर आपने हाउसिंग लोन लेकर दूसरा मकान खरीदा है तो आपको होम लोन के ब्याज पर टैक्स बचत का फायदा भी मिलेगा.’
8.आमदनी/टैक्स छूट में संशोधन नहीं कर पाना
अगर आपने आईटीआर फाइल करने के बाद यह देखा कि कोई गलती हो गयी है, तो आपको आईटीआर में संशोधन करना चाहिए. इस गलती को दुरुस्त करने का आपको मौका मिलता है. इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के दो साल के अंदर आप आईटीआर में संशोधन कर सकते हैं. मौजूदा एसेसमेंट ईयर से यह अवधि आईटीआर फाइल किये जाने वाले वित्त वर्ष की समाप्ति के बाद एक साल कर दी गयी है. The Accounts hub के Tax Advisor Jitendra Sharma ने कहा, ‘अगर किसी करदाता को आईटीआर फाइल करने के बाद भी कोई गलती दिख जाय तो उसे बिना देर किये उसमें संशोधन करना चाहिए. अगर आप टैक्स बचत के लिए कोई दावा करने से चूक गए या किसी खर्च पर टैक्स लाभ हासिल करने से बच गए, तब भी आपको इनकम टैक्स रिटर्न संशोधित करना चाहिए.’
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