Summary: जीएसटी अधिनियम 2017 के तहत विभिन्न विवाद उत्पन्न हुए, जिन पर उच्च न्यायालय ने महत्वपूर्ण निर्णय दिए। धारा 74 के तहत, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि कर निर्धारण के लिए सभी दस्तावेज़, जैसे विशेष अनुसंधान ब्यूरो (SIB) की रिपोर्ट, अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराई जानी चाहिए। इसी तरह, मद्रास उच्च न्यायालय ने धारा 75(4) के तहत कहा कि व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर करदाता को देना आवश्यक है, भले ही उसने इसका अनुरोध न किया हो। धारा 130 के तहत माल की जब्ती और जुर्माना लगाने की प्रक्रिया को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अनुचित बताया, क्योंकि मूल्यांकन केवल आंखों के अनुमान पर आधारित था और विधिक प्रावधानों का पालन नहीं किया गया था। इन मामलों में यह स्पष्ट हुआ कि जीएसटी के तहत कर निर्धारण धारा 73 या 74 के तहत ही किया जा सकता है। न्यायालय ने पाया कि विभाग द्वारा अपनाई गई प्रक्रियाओं में कई खामियां थीं, जैसे नोटिस की तामीली, दस्तावेज़ों की अनुपलब्धता और उचित मूल्यांकन का अभाव। इसके परिणामस्वरूप, कर निर्धारण और जुर्माने के आदेश रद्द कर दिए गए और पुनर्विचार के निर्देश दिए गए। इन निर्णयों ने जीएसटी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और कानून का पालन सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर जोर दिया है।
जीएसटी अधिनियम 2017 में न्यायिक निर्णय की समीक्षा।
यह कि वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम 2017 लागू होने से विभिन्न प्रकार के विवादों ने जन्म लिया है, जिसके संबंध में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा जारी कुछ न्यायिक निर्णय ने स्थिति स्पष्ट की है, इस लेख के माध्यम से कुछ निर्णय प्रस्तुत है-
विषय सार –
1. क्या कर निर्धारण – सीजीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 74 – धारा 74 के अंतर्गत कर निर्धारण मनमाने कारकों या धारा 62 के अंतर्गत सर्वोत्तम निर्णय आकलन पर आधारित हो सकता? या कर चोरी के विशिष्ट साक्ष्य पर आधारित होना चाहिए?
2. क्या धारा 75(4) के तहत व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर देना अनिवार्य है, भले ही करदाता ने इसका अनुरोध न किया हो?
3. क्या जीएसटी अधिनियम की धारा 130 के तहत कर निर्धारण किया जा सकता है?
4. क्या प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के पास धारा 107(11) में निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना कर(Tax) मांग बढ़ाने की शक्ति है?
5. क्या कोई कारण बताए बिना पूर्वव्यापी तिथि से पंजीकरण रद्द किया जा सकता है?
6. क्या ई-वे बिल में उल्लिखित पते से संबंधित विसंगति के लिए धारा 129 के तहत जुर्माना लगाया जा सकता है, जब- इरादा/भावना मौजूद नहीं है?
7. क्या एससीएन(SCN )में उल्लिखित आवश्यकताओं के आधार पर मांग की पुष्टि की जा सकती है?
8. क्या मृत व्यक्ति के खिलाफ जीएसटी के तहत आदेश पारित किया जा सकता है?
यह है कि उपरोक्त न्यायिक निर्णयों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है-
1. क्या कर निर्धारण – सीजीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 74 – धारा 74 के अंस निर्धारण मनमाने कारकों या धारा 62 के अंतर्गत सर्वोत्तम निर्णय आकलन पर आधारित हो सकता? कर चोरी के विशिष्ट साक्ष्य पर आधारित होना चाहिए?
A. क्या धारा 74 के तहत कार्यवाही शुरू करने के लिए विशेष अनुसंधान ब्यूरो (SIB) रिपोर्ट याचिकाकर्ता को देना अनिवार्य है?
B. क्या निर्धारण प्राधिकारी धारा 74 के तहत कर निर्धारित करते समय आय का निर्धारित की कानून के तहत जारी दिशानिर्देशों का पालन कर सकता है?
C. क्या अपीलीय प्राधिकारी को कर और जुर्माने की मात्रा निर्धारित करने के लिए कारण बताना चाहिए?
(संदर्भ डायमंड स्टील बनाम उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य रिट पिटीशन संख्या 4 2022 और 5/ 2022 निर्णय दिनांक 6 अप्रैल 2023 इलाहाबाद हाई कोर्ट)
केस के तथ्य –
यह कि याचिकाकर्ता एक साझेदारी फर्म है और जीएसटी विभाग में पंजीकृत है। याचिकाकर्ता का दावा है कि सभी आवक और जावक आपूर्ति( INWARD/ OUTWARD Supply) को विभाग के पोर्टल पर विधिवत दर्शाया गया था और उसने जीएसटीआर-1 में अपने द्वारा की गई आपूर्ति को अपलोड किया और जीएसटीआर-2ए में दर्शाए गए इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा करने के बाद, जीएसटीआर-3बी के रूप में अपना रिटर्न दाखिल किया। दाखिल किए गए रिटर्न स्वीकार कर लिए गए थे और कभी भी उन पर सवाल नहीं उठाया गया था और याचिकाकर्ता के मामले में कोई कार्यवाही शुरू नहीं की गई थी।
यह कि 31-10-2019 को याचिकाकर्ता के व्यावसायिक परिसर का निरीक्षण किया गया और एक पंचनामा तैयार किया गया जिसमें व्यावसायिक परिसर में मौजूद स्टॉक को दर्ज किया गया और जीएसटी अधिनियम की धारा 67 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए कुछ कागजात जब्त किए गए। याचिकाकर्ता का तर्क है कि तलाशी और जब्ती ज्ञापन कानून के अनुसार नहीं था।
यह कि 8-1-2021 को, प्रतिवादी संख्या 3 को जुलाई, 2017 से मार्च, 2018 की अवधि के लिए यूपीजीएसटी अधिनियम की धारा 74 के तहत एक नोटिस जारी किया। यह तर्क दिया गया है कि उक्त नोटिस में, उत्तर दाखिल करने की तिथि का उल्लेख 22-1-2021 किया गया था और व्यक्तिगत सुनवाई की तारीख और समय का भी उल्लेख 22-1-2021 किया गया था, लेकिन व्यक्तिगत सुनवाई का स्थान उल्लेख नहीं किया गया था। यह तर्क दिया गया है कि सभी नोटिसों में, विशेष अनुसंधान ब्यूरो (SIB) रिपोर्ट का संदर्भ है, जो धारा 74 के तहत नोटिस जारी करने का आधार थी, हालांकि, उक्त रिपोर्ट कभी भी याचिकाकर्ता को नहीं दी गई थी। इसके बावजूद याचिकाकर्ता ने 8-1-2021 को अपना जवाब दाखिल किया। यह विशेष रूप से आरोप लगाया गया है कि न तो कारण बताओ नोटिस जारी करने के समय और न ही सुनवाई की तारीख को याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई सबूत पेश किया गया था, यहां तक कि विशेष अनुसंधान ब्यूरो (SIB) का जवाब भी कभी पेश नहीं किया गया था, हालांकि, 3- 6-2021 को यूपीजीएसटी अधिनियम की धारा 74 के अंतर्गत एक आदेश पारित किया गया था। जिसमें याचिकाकर्ता के खिलाफ कर और जुर्माने की मांग 14,84,099.82/- रुपये निर्धारित की गई थी।
याचिकाकर्ता ने उक्त आदेश के खिलाफ विभिन्न आधारों पर अपील दायर की। अपीलीय प्राधिकारी ने अपील पर फैसला किया और आंशिक रूप से इसे स्वीकार किया। अपील स्वीकार करते हुए कहा गया कि आयकर अधिनियम के प्रावधानों के आधार पर निर्धारण प्राधिकारी द्वारा किए गए निर्धारण के तरीके को उचित नहीं ठहराया जा सकता है, हालांकि, बिना कोई आधार बताए, कर और जुर्माना 9,30,969.60/- रुपये निर्धारित किया गया। उक्त आदेश को उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई क्योंकि अपीलीय न्यायाधिकरण का गठन अभी तक नहीं किया गया है।
न्यायालय का निर्णय –
यह कि धारा 74 के तहत कार्यवाही शुरू करने के लिए सभी दस्तावेज प्रदान करना आवश्यक है। न्यायालय ने यह भी तर्क दिया कि एसआईबी रिपोर्ट मांग के आकलन के लिए प्रदान की जानी चाहिए थी। अदालत ने तर्क दिया कि प्रॉपर ऑफिसर द्वारा अपनाई गई निर्धारण पद्धति दोषपूर्ण थी। न्यायालय ने तर्क दिया कि अपीलीय प्राधिकारी का आदेश भी दोषपूर्ण था ।
अपीलीय आदेश और कर निर्धारण प्राधिकारी के आदेश को रद्द कर दिया गया । याचिकाकर्ता को अपनी जमा राशि वापस पाने के लिए एक उचित आवेदन प्रस्तुत करना होगा ।
2. क्या धारा 75(4) के तहत व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर देना अनिवार्य है, भले ही करदाता ने इसका अनुरोध न किया हो?
(संदर्भ जे लिन कंस्ट्रक्शन बनाम असिस्टेंट कमिश्नर ST FAC Writ Petition Nos. 14739, 14746, 14750, 14753 & 14755 of 2024 and W.M.P.Nos. 15983, 15984, 15986, 15987, 15989, 15990, 15993 to 15996 of 2024 June 13, 2024(मद्रास हाई कोर्ट)
केस के तथ्थ –
यह कि याचिकाकर्ता, जे-लिन कंस्ट्रक्शंस, एक सिविल कार्य ठेकेदार है। उसके परिधर के निरीक्षण के बाद, सहायक आयुक्त (एसटी) (एफएसी) ने उसे कारण बताओ नोटिस जारी किया। याचिकाकर्ता ने कारण बताओ नोटिस का जवाब दिया, लेकिन सहायक आयुक्त ने उसकी दलीलों पर विचार किए बिना आदेश जारी कर दिया। याचिकाकर्ता ने आदेश के खिलाफ सुधार याचिका दायर की, लेकिन उसे भी खारिज कर दिया गया।
यह कि न्यायालय ने कहा कि धारा 75(4) के तहत व्यक्तिगत सुनवाई न केवल तभी अनिवार्य है जब करदाता द्वारा अनुरोध किया गया हो, बल्कि तब भी जब करदाता के प्रतिकूल आदेश प्रस्तावित किया गया हो। उच्च न्यायालय ने माना कि व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर न देना एक अनिवार्य प्रावधान का उल्लंघन है, जिससे आदेश अस्थिर हो जाते हैं। इसलिए, मूल आदेशों को रद्द कर दिया गया और मामले को पुनर्विचार के लिए वापस भेज दिया गया। प्रतिवादी को निर्देश दिया गया कि वह याचिकाकर्ता को व्यक्तिगत सुनवाई सहित उचित अवसर प्रदान करे और उसके बाद नए सिरे से आदेश जारी करे।
न्यायालय का निर्णय-
यह कि मद्रास उच्च न्यायालय ने इस मामले में यह निर्णय दिया कि जीएसटी अधिनियम की धारा 75(4) के तहत, कर निर्धारण प्राधिकारी को करदाता को व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर प्रदान करना अनिवार्य है, चाहे करदाता ने इसका अनुरोध किया हो या नहीं। यदि कर निर्धारण प्राधिकारी द्वारा व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर प्रदान नहीं किया जाता है, तो उसका आदेश कानून के विरुद्ध होगा।
3. क्या जीएसटी अधिनियम की धारा 130 के तहत कर निर्धारण किया जा सकता है?
क्या केवल इस आधार पर जुर्माना लगाया जा सकता है कि माल का सत्यापन करते समय माल की मात्रा रिकॉर्ड से अधिक पाई गई?
क्या प्रतिवादी द्वारा दावा की गई नोटिस की तामीली धारा 169 के तहत आवश्यकताओं को पूरा करती है?
क्या माल का मूल्यांकन केवल आंखों के अनुमान के आधार पर और उत्पादन क्षमता और/या बिजली की खपत आदि के आधार पर किया जा सकता है?
(संदर्भ मां महामाया एलॉयज प्राइवेट लिमिटेड बनाम स्टेट आफ यूपी और अन्य, रिट पिटीशन संख्या 31/ 2021, निर्णय दिनांक 23 मार्च 2023, इलाहाबाद हाई कोर्ट)
केस के तथ्य-
यह कि याचिकाकर्ता मां महामाया अलॉयज प्राइवेट लिमिटेड एक जीएसटी-पंजीकृत कंपनी है। 29 सितंबर, 2018 को, वाणिज्यिक कर विभाग, मिर्जापुर ने याचिकाकर्ता के व्यावसायिक परिसर का निरीक्षण किया और माल जब्त कर लिया। याचिकाकर्ता को माल छोड़ने के लिए 52,20,000 रुपये जमा करने पड़े। इसके बाद, याचिकाकर्ता को धारा 130 (3) के तहत 52,45,000 रुपये की कुल देयता के साथ कर और जुर्माना लगाया गया । याचिकाकर्ता ने इस आदेश के खिलाफ अपील की, जिसे आंशिक रूप से अनुमति दी गई और देयता को घटाकर 15,84,810 रुपये कर दिया गया। याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय में रिट याचिकादायर कर इन आदेशों को चुनौती दी।
उच्च न्यायालय ने कहा कि जीएसटी अधिनियम 2017 के तहत सीधे कर निर्धारण नहीं किया जा सकता है। कर देयता निर्धारित करने की अधिनियम की धारा 73 या धारा 74 के माध्यम से है। विभाग द्वारा धारा 130. कर निर्धारित करने की कार्रवाई को अनुचित माना गया । माल या वाहनों की जब्ती और जुर्माना लगाना ।
उच्च न्यायालय ने धारा 130 (1) में उल्लिखित विशिष्ट शर्तें स्पष्ट किया कि धारा 130 के तहत जर्माना तभी लगाया जा सकता।
2. के अंतर्गत नहीं आते थे, और इसलिए लगाया गया जुर्माना वैध नहीं था। पूरी हो । आरोप धारा 130(1) केवल the petitioner a कुछ परिस्थितियों में नोटिस धारा 169 (1) के खंड (ए) के संदर्भ में, एक तामीली तभी पूरी होगी जब उसे कर योग्य या उसके प्रबंधक या अधिकृत प्रतिनिधि को दिया जाए। कंपनी के एकाउंटेंट को वैध तामीली नहीं माना गया, जिससे पूरी कार्यवाही रद्द होने योग्य हो गई। की तामीली जीएसटी अधिनियम की धारा कर योग्य आपूर्ति का मूल्य – जीएसटी की धारा 15: माल का मूल्यांकन
उच्च न्यायालय ने माल के मूल्यांकन के लिए गलत तरीके को रेखांकित किया। मूल्यांकन जीएसटी अधिनियम की धारा 15 और संबंधित नियमों के अनुसार किया जाना चाहिए। विभाग के आँखों के अनुमान पर भरोसा और अपीलीय प्राधिकारी का उचित प्रक्रियाओं का पालन किए बिना मूल्यांकन को गलत ठहराया गया ।
उच्च न्यायालय का निर्णय –
यह कि उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया, यह मानते हुए कि विभाग द्वारा अपनाई गई प्रक्रियाएं कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण थीं। न्यायालय ने कर निर्धारण आदेश को रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता द्वारा जमा की गई राशि को वापस करने का निर्देश दिया।
यह कि उच्च न्यायालय ने अपने फैसले के समर्थन में निम्नलिखित तर्क दिए –
a. यह कि धारा 130 कर निर्धारण के लिए नहीं है।
b. यह कि जुर्माना लगाने के लिए धारा 130 (1) की शर्तें पूरी होनी चाहिए।
c. यह कि नोटिस की तामील धारा 169 के अनुसार होनी चाहिए।
d. यह कि माल का मूल्यांकन धारा 15 और संबंधित नियमों के अनुसार होना चाहिए।
4. क्या प्रथम अपीलीय अधिकारी को धारा 107(11) में निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना कर मांग बढ़ाने का अधिकार है?
नहीं, माननीय कलकत्ता उच्च न्यायालय ने हृदय कुमार दास बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और ओआरएस के मामले में आईए नंबर: सीएएन/1/2024) एफएमए/1168/2024 दिनांक 24.09.2024 को अधिनियम की धारा 107(11) में निर्धारित प्रक्रिया का पालन न करने के लिए विवादित आदेशों को रद्द कर दिया। माननीय न्यायालय ने नोट किया कि याचिकाकर्ता ने 2,58,536.80 रुपये के कर की मांग की पुष्टि करते हुए 41,83,804.72 रुपये का जुर्माना लगाते हुए अधिनिर्णय आदेश के खिलाफ अपील दायर की। अपीलीय प्राधिकरण को इस बात पर विचार करना था कि क्या न्यायाधिकरण द्वारा 2,58,536.80 रुपये पर निर्धारित कर देयता सही है और क्या जुर्माना 41,83,804.72 रुपये की कुल राशि पर लगाया जाना है। हालांकि, अपीलीय प्राधिकरण ने आदेश पारित करते समय अधिनियम की धारा 107(11) के तहत प्रक्रिया का पालन किए बिना अपीलकर्ता द्वारा देय राशि पर स्वतः संज्ञान लेते हुए कर देयता बढ़ा दी है। इसलिए, अपीलीय प्राधिकरण द्वारा उस सीमा तक पारित आदेश कानून में मान्य नहीं है और इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए। अपीलीय प्राधिकरण के साथ-साथ न्यायाधिकरण द्वारा पारित आदेश को रद्द किया जाता है और मामले को नए सिरे से विचार करने के लिए न्यायाधिकरण को वापस भेज दिया जाता है। माननीय न्यायालय ने आदेश दिया कि अपीलकर्ता इस आदेश की सर्वर प्रति प्राप्त होने की तारीख से छह सप्ताह की अवधि के भीतर सभी विवादों को उठाते हुए और दिनांक 22.07.2024 के समापन आदेश के प्रभाव से निपटते हुए कारण बताओ नोटिस के आरोपों का एक पूरक उत्तर दायर करेगा, जिसके बाद अपीलकर्ता के अधिकृत प्रतिनिधि को व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर दिया जाएगा और गुण-दोष के आधार पर और कानून के अनुसार नए आदेश पारित किए जाएंगे।
5. क्या बिना कोई कारण बताए पूर्वव्यापी तिथि से पंजीकरण रद्द किया जा सकता है?
नहीं, माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय ने सुरेश चंद गुप्ता बनाम भारत संघ और ओआरएस (डब्ल्यू.पी.(सी) 11492/2024) दिनांक 21.08.2024 के मामले में कारण बताओ नोटिस में प्रस्तावित कार्रवाई का उल्लेख करने में विफलता और कारण के अभाव के कारण जीएसटी पंजीकरण को पूर्वव्यापी रूप से रद्द करने के आदेश को रद्द कर दिया। माननीय न्यायालय ने नोट किया कि आरोपित एससीएन(SCN )गूढ़ है और स्पष्ट रूप से उन कारणों को निर्धारित नहीं करता है कि याचिकाकर्ता का जीएसटी पंजीकरण रद्द करने का प्रस्ताव क्यों किया गया था। यह केवल वैधानिक प्रावधान – सीजीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 29(2)(ई) को पुन: प्रस्तुत करता है – जो उचित अधिकारी को करदाता के जीएसटी पंजीकरण को रद्द करने में सक्षम बनाता है यदि यह धोखाधड़ी, जानबूझकर गलत बयानी या तथ्यों को दबाने के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। आरोपित एससीएन(SCN )कथित धोखाधड़ी की प्रकृति का विवरण निर्धारित नहीं करता है। माननीय न्यायालय ने पाया कि आरोपित कारण बताओ नोटिस(SCN )के अपेक्षित मानकों को पूरा करने में विफल रहा है। माननीय न्यायालय ने पाया कि आरोपित निरस्तीकरण आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए पारित किया गया है और इसलिए, इसे रद्द किया जाना चाहिए और याचिकाकर्ता के पंजीकरण को तत्काल बहाल करने का निर्देश दिया।
6. क्या ई-वे बिल में उल्लिखित पते से संबंधित विसंगति के लिए धारा 129 के तहत जुर्माना लगाया जा सकता है, जब मेंसरिया मौजूद नहीं है?
नहीं, माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तम इलेक्ट्रिक स्टोर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में रिट पिटीशन संख्या 153 / 2021 दिनांक 26.07.2024 को आरोपित आदेशों को रद्द कर दिया और रिट पिटीशन को अनुमति दी। माननीय न्यायालय ने नोट किया कि ई-वे बिल में त्रुटि, जहां डिलीवरी का स्थान अलीगढ़ के बजाय “चांदपुर (यूपी)” बताया गया था, फॉर्म भरते समय मानवीय भूल के कारण हो सकता है। आगे कहा कि अधिकारियों को ऐसा कोई निष्कर्ष नहीं मिला कि याचिकाकर्ता का कर चोरी करने का “मेंसरिया” (इरादा) था। न्यायालय के समक्ष कार्यवाही के दौरान भी राज्य द्वारा कोई तर्क नहीं दिया गया कि याचिकाकर्ता का कर चोरी करने का इरादा था रिट पिटीशन संख्या 892/2023 दिनांक 15 जुलाई, 2024, जिसमें यह माना गया कि मासिक रिटर्न के संबंध में किसी विशिष्ट निष्कर्ष के अभाव में, जीएसटी अधिनियम की धारा 129(3) के तहत कार्यवाही शुरू नहीं की जानी चाहिए। चूंकि इस मामले में मासिक रिटर्न के संबंध में कोई निष्कर्ष या दलील नहीं थी, इसलिए 30.09.2020 और 21.08.2019 के आदेश कानूनी रूप से कायम नहीं रह सके और परिणामस्वरूप, माननीय न्यायालय ने दोनों आदेशों को रद्द कर दिया और रिट पिटीशन को अनुमति दी।
7. क्या एससीएन(SCN )में उल्लिखित नहीं की गई आवश्यकताओं के आधार पर मांग की पुष्टि की जा सकती है?
नहीं, टीवीएल स्लिटिना मेटल सेल्स एलएलपी बनाम असिस्टेंट कमिश्नर (एसटी) डब्ल्यूपी संख्या 17112 /2024 डब्ल्यूएमपीएनओएस 18877 और 18879 / 2024 दिनांक 15.07.2024 के मामले में माननीय उच्च न्यायालय मद्रास ने आरोपित आदेश को अलग रखा और मामले को पुनर्विचार के लिए वापस भेज दिया। माननीय न्यायालय ने नोट किया कि कारण बताओ नोटिस(SCN )में दो कर(Tax) प्रस्तावों को संबोधित किया गया था:
A पहला मुद्दा लागू जीएसटी कानूनों की धारा 17 की उप-धारा (5) के अनुसार कथित रूप से अयोग्य वस्तुओं के संबंध में इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा था।
B दूसरा मुद्दा रद्द किए गए डीलरों से आपूर्ति के लिए आईटीसी का दावा था माननीय न्यायालय ने पाया कि पहले मुद्दे के लिए, आरोपित आदेश में कोई निष्कर्ष या चर्चा शामिल नहीं थी, और दूसरे मुद्दे के लिए, माल की आवाजाही के साक्ष्य (जैसे लॉरी रसीदें और वजन पर्चियां) की कमी के आधार पर कर प्रस्ताव की पुष्टि की गई थी, जिसका कारण बताओ नोटिस में उल्लेख नहीं किया गया था। माननीय न्यायालय ने माना कि आरोपित आदेश कायम नहीं रह सकता क्योंकि इसमें पहले मुद्दे को संबोधित नहीं किया गया था और ऐसे दस्तावेजों की आवश्यकता थी जो कारण बताओ नोटिस (SCN)में निर्दिष्ट नहीं थे। माननीय न्यायालय ने आरोपित आदेश को अलग रखा और मामले को पुनर्विचार के लिए वापस भेज दिया। याचिकाकर्ता को आदेश की एक प्रति प्राप्त करने के पंद्रह दिनों के भीतर माल की आवाजाही के बारे में प्रासंगिक दस्तावेजों के साथ एक अतिरिक्त उत्तर प्रस्तुत करने की अनुमति दी गई है और प्रतिवादी को याचिकाकर्ता को एक व्यक्तिगत सुनवाई सहित एक उचित अवसर प्रदान करने और अतिरिक्त उत्तर प्राप्त करने से तीन महीने के भीतर एक नया आदेश जारी करने का निर्देश दिया है।
8. क्या जीएसटी के तहत आदेश किसी मृत व्यक्ति के खिलाफ पारित किया जा सकता है?
नहीं, माननीय केरल उच्च न्यायालय ने बेनॉय अब्राहम बनाम राज्य कर अधिकारी रिट पिटीशन (सी) संख्या 10362/2024 दिनांक 09 जुलाई, 2024के मामले में रिट पिटीशन को अनुमति दी और मृत व्यक्ति के खिलाफ पारित आदेश को रद्द कर दिया और माना कि मृत व्यक्ति के खिलाफ पारित आदेश शून्य है। केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 की धारा 93 कानूनी उत्तराधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही जारी रखने की अनुमति देती है लेकिन मृत व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही के समापन को अधिकृत नहीं करती है। कर अधिकारियों को याचिकाकर्ता को नोटिस जारी करके कानूनी उत्तराधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही जारी रखने का निर्देश दिया जाता है, जो अन्य कानूनी उत्तराधिकारियों के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी रखता है। माननीय केरल उच्च न्यायालय ने देखा कि सीजीएसटी अधिनियमों की धारा 93 के प्रावधान मृत व्यक्ति के कानूनी उत्तराधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही जारी रखने की अनुमति देते हैं इसलिए, जैसा कि याचिकाकर्ता की ओर से उपस्थित विद्वान वकील ने सही ढंग से तर्क दिया है, आरोपित आदेश अमान्य है। माननीय न्यायालय ने माना कि वर्तमान रिट याचिका स्वीकार की जाती है और आरोपित आदेश को रद्द किया जाता है। प्रतिवादी को मृतक के कानूनी उत्तराधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी गई थी। चूंकि याचिकाकर्ता, जो मृतक के कानूनी उत्तराधिकारियों में से एक था, अन्य कानूनी उत्तराधिकारियों के लिए पावर अटॉर्नी भी रखता है, प्रतिवादी कार्यवाही पूरी करने के लिए याचिकाकर्ता को नोटिस जारी कर सकता है। याचिकाकर्ता को ऐसा नोटिस अन्य कानूनी उत्तराधिकारियों के लिए भी उचित नोटिस माना जाएगा।सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 का आदेश XXII नियम 1, जिसे संदर्भ के लिए निम्नानुसार पुन: प्रस्तुत किया गया है: किसी व्यक्ति की मृत्यु/निधन के कारण ऐसे व्यक्ति के खिलाफ सभी कार्यवाही समाप्त हो जाती हैं।
निष्कर्ष
उपरोक्त न्यायिक निर्णय टैक्स प्रोफेशन के लिए उपयोगी होंगे। यह लेखक के निजी विचार हैं । किसी निर्णय पर जाने से पूर्व निर्णय की स्वयं समीक्षा करनी आवश्यक है।