देश भर के विभिन्न डीलरों को आरसीएम का भुगतान न करने के लिए, विशेष रूप से माइंस व्यवसायी द्वारा सरकार को भुगतान की गई रॉयल्टी, कॉटन व्यापारी द्वारा कच्चे कपास की खरीद एवं सभी व्यापारियों द्वारा माल भाड़े आदि पर लागू आरसीएम का भुगतान नहीं करने पर कर , ब्याज और दंड के भुगतान के भारी मांग आदेश प्राप्त हो रहे हैं और इस अतिरिक्त कर, ब्याज एवं दंड के भारी भुगतान करना उनके लिए संभव नहीं है.
ध्यान रहे जीएसटी यों तो बिक्री पर लगने वाला कर है लेकिन इस कानून के तहत कुछ अधिसूचित वस्तुओं और सेवाओं की खरीद पर आरसीएम के नाम पर कर का भुगतान करना होता है और उसकी इनपुट क्रेडिट अधिकाँश मामलों में तुरंत ही मिल जाती है.
यहां आरसीएम के संबंध में यह उल्लेखित करना उचित होगा कि कर योग्य वस्तुओं के संबंध में रिवर्स चार्ज तंत्र केवल एक तकनीकी औपचारिकता थी और अधिकांश मामलों में आरसीएम के नाम पर कोई अतिरिक्त कर भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है बल्कि भुगतान किये गए कर में से ही एक हिस्से को आरसीएम का नाम देकर उसका इनपुट क्रेडिट लेना होता है. अधिकांश मामलों में डीलर द्वारा वर्ष के दौरान भुगतान किया गए कर की राशि आरसीएम की राशि से अधिक है लेकिन संबंधित डीलर इसे अपने आरसीएम के रूप में चिह्नित करने में विफल रहा और इस तकनीकी भूल के कारण से उसे भारी कर , मांग और पेनाल्टी के भुगतान के विभागीय आदेश आ रहे हैं.
Read in English: Government Should Provide Relief from Huge Demand of GST RCM
इस मामले को यहाँ एक उदाहरण के रूप में समझने का प्रयास करते है :-
X ने वित्तीय वर्ष 2017-18 में नकद में जीएसटी के तहत कर के रूप में 20 करोड़ की बिक्री पर 5% की दर से एक करोड़ रुपये का भुगतान किया है। इसी वर्ष में रॉयल्टी के रूप में राज्य सरकार को 1 करोड़ का भुगतान किया और इस रॉयल्टी की रकम पर आरसीएम के रूप में 18 लाख का भुगतान भी करना था। यदि X आरसीएम का भुगतान करता तो उसे तुरंत उसका इनपुट क्रेडिट भी मिल जाता और ऐसे में X को आरसीएम के रूप में 18 लाख और सामान्य कर के रूप में 82 लाख रूपये का भुगतान करना होगा और इस स्तिथि में भी कुल कर का भुगतान 1 करोड रूपये ही होता इस तरह आरसीएम के भुगतान करने या ना करने दोनों ही स्तिथि में X द्वारा कर का भुगतान 1 करोड़ रूपये ही होता ।
चूंकि उन्होंने आरसीएम जमा नहीं किया था, इसलिए उन्होंने कुल रुपये का सामान्य कर के रूप में भी 1 करोड़ रुपया चुकाया है। जीएसटी के चालान में भी आरसीएम और सामान्य टैक्स में कोई अंतर नहीं होता है . कर इतना ही चुकाना था लेकिन इसके अतिरिक्त आरसीएम् को जीएसटी के रिटर्न में अलग से दिखा कर उसकी इनपुट क्रेडिट लेनी थी. अब इस तकनीकी गलती के चलते इस डीलर को आरसीएम के रूप में 18 लाख रूपये और उस पर ब्याज और जुर्माना भी चुकाने होंगे. ज्यादातर मामलों में ब्याज का बोझ भी आरसीएम की रकम के लगभग बराबर होता है और इस डीलर पर यह भुगतान अतिरिक्त बोझ होगा हालांकि उसने पहले ही उसके द्वारा एकत्र किए गए और बनने वाले सभी करों का भुगतान कर दिया है. इस वर्ष अर्थात 2017-18 के बाद के वर्षों में भी यही समस्या है।
इस प्रकार के मामलों में आरसीएम को न दिखाना या चिन्हित करना केवल एक तकनीकी गलती है क्योंकि जीएसटी एक नया कानून था और बड़ी संख्या में डीलर इसके प्रक्रियात्मक हिस्से को समझने में विफल रहे लेकिन इसके अतिरिक्त उस पर देय पूर्ण कर का भुगतान किया।
सरकार को इन डीलरों को माफी या कानून में उपयुक्त संशोधन के रूप में राहत प्रदान करनी चाहिए।