महान ग्रीक दार्शनिक हेराक्लिटस का एक कथन है – ‘परिवर्तन इस दुनिया में एकमात्र स्थायी चीज है’। परिवर्तन होना तय है । भले ही यह जीवन का कोई अप्रत्याशित मोड़ हो या ब्रह्मांड की सामान्य घटना से जुड़ा हो। जीएसटी कानून में भी हम परिवर्तन पिछले तीन वर्षो से लगातार देख रहे है। हम सब चाहते है की यह कानून स्थिर हो जायेI सरकार हर बदलाव इस कानून को सरल बनाने के उदेशय से लाती है लेकिन दुर्भाग्यवश यह कानून इन बदलावों के बीच उलझता हुआ और ज्यादा पेचीदा होता जा रहा है। अगर हम 1 जुलाई 2017 से दिसम्बर 2020 तक के जीएसटी सफर की बात करें तो इस कानून में अब तक सेंकडो बदलाव हो चुके है। कभी सरकार कानून की धाराओं को बदलती है तो कभी इसके तहत नियमो को। साथ ही सरकार द्वारा जारी सर्कुलरस, ऑर्डर्स, प्रेस विज्ञप्ति को भी जोड़ दे तो बदलाव काफी हो जाते है। अगर हम यह कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी की “जीएसटी” आज ” परिवर्तन” शब्द का प्रयायवाची बन चुका है। अब तो आलम यह है की कर सलाहकारों, कर विशेषज्ञों एवं कर विभाग के अधिकारीयों को भी इस कानून मे हुए बदलावों को समझना मुश्किल होता जा रहा है। सरकार पर इस बात का दबाव एवं चुनौती है की कर राजस्व बढ़ाया जाये साथ ही कर चोरों एवं घोटालेबाजो पर भी काबू पाया जाये। कुछ गलती करने वाले लोगों की गलती की सजा परिणाम स्वरुप सभी करदाता भुगत रहे है। आज जीएसटी में फर्जीवाड़ा एवं जाली ईनपुट टैक्स क्रेडिट सरकार का सर दर्द बनी हुई है। इसी बात को मध्य नज़र रखते हुवे वित् मंत्रालय ने पिछले दिनों कुछ कड़े फैसले लिए जिससे की गलत लोगों को पकड़ा जा सके और गलत ईनपुट एवं कर चोरी पर लगाम लगाई जा सके।
वर्ष 2020 एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण एवं कठिन वर्ष रहा है। पूरा विश्व कोरोना महामारी के कारण डगमगाया हुआ है। हमारे देश की भी आर्थिक अवस्था अच्छी नहीं रही है। जीएसटी कानून के दृश्टिकोण से भी वर्ष 2020 एक घटनापूर्ण वर्ष रहा। साल के शुरू से लेकर अंत तक सरकार ने इस कानून में बहुत से बदलाव लाये। लेकिन इसके बावजूद कर चोरी पर पूर्ण रूप से लगाम नहीं लगा सकी। अब जाते जाते वर्ष के अंत मे सरकार ने एक और प्रयास किया है और जीएसटी कानून में कुछ बड़े बदवाल कर डाले। सरकार को उम्मीद है की आने वाले दिनों में कर चोरी की राह आसान नहीं होगी।
आइये हम ०१ जनवरी २०२१ से जीएसटी कानून में होने वाले कुछ बड़े बदलावों को समझने की कोशिस करते है।
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जीएसटी की सबसे आकर्षक और खूबसूरत चीज़ अगर कुछ है तो वो है -“ईनपुट टैक्स क्रेडिट”। सही मायने में यह जीएसटी का हृदय है। जब यह कानून बनाया गया था तो इसके पीछे एक मुख्य उद्देशय था की निर्बाधित ईनपुट सबको मिले। लेकिन आज वास्तविकता कुछ और ही है। जो वादा सरकार ने किया था आज वोही सरकार की परेशानी का सबब बन चूका है। सरकार ने आज ईनपुट के हर प्रावधान पर ढेरो बंदिशे लगा राखी है चाहे वह धरा 16(4) हो, 17(5) हो , नियम 36(4) हो या 86A हो। इस तरह की पाबंदियों का विरोध हर तबके से शुरुआती दौर से ही हो रहा था। सरकार का तर्क था की ऐसे नियम आने से जाली बिल एवं फ़र्ज़ी ईनपुट को कहीं न कहीं रोक सके। लेकिन सच्चाई यह है की इतनी सारी पाबंदियों के बावजूद फर्जीवाड़ा करने वालों पर इसका कोई असर नहीं पड़ता दिख रहा है। अब सरकार एक नए नियम 86B के साथ एक बार फिर कोशिस कर रही है इस पर काबू पाने की। आइये समझने की चेश्टा करते है की 01 जनवरी से ईनपुट के प्रावधानों को एक बार फिर सरकार ने कैसे बदलना चाहा है :
नियम 36 (4 ) की सीमा को 10 % से घटाकर 5 % किया गया है –
नियम 36 (4 ) को सरकार ने 01 /10 /2019 से लागू किया था जिसके तहत कोई भी करदाता आपने GSTR -2A मे दर्शाये गए ईनपुट का सिर्फ 20% और अधिक ईनपुट ले सकता था। बाद में 01 जनवरी 2020 से सरकार ने इस सीमा को घटाकर 10 % कर दिया था। अब फिर से 01 जनवरी 2021 से सरकार ने इस नियम में बदलाव करते हुए इसकी सीमा को सिर्फ 5 % कर दिया है। इसका मतलब यह हुआ की अगर किसी माह में आपके GSTR -2A में ईनपुट अगर 100 रूपए आ रहे है तो आप अघिकतम 105 रूपए तक की ही ईनपुट ले सकते है भले ही आपके खातों में ईनपुट 150 रूपए आ रहा हो। आपके विक्रेता द्वारा जीएसटी रिटर्न न लगाना अब आपको भारी पड़ने वाला है। अब आप पर कर की दोहरी मार पड़ने वाली है – एक तो उस वक्त जब आप पूरा पैसा देकर विक्रेता से माल खरीदेंगे और दूसरी तब जब आपके विक्रेता द्वारा अपना जीएसटी रिटर्न नहीं लगाने पर आपके GSTR -2A में ईनपुट नहीं आएगा। यह नियम शुरू से ही विवादों से घिरा रहा है तथा कई उच्च न्यायालयों में इसे अब तक चुनौती दी जा चुकी है। लेकिन फैसला लंबित है। अगर मुझे ठीक से याद आ रहा है तो ऐसा नियम VAT कानून के ज़माने में भी किसी राज्य के कानून में भी था जो की न्यायालय में चैलेंज हुआ और कोर्ट ने इसे बिलकुल सही तरीके से तर्क देकर ख़ारिज करते हुए कहा था की आपके विक्रेता की भूल /गलती का दंड सरकार आपके ईनपुट को नकार कर आपसे वसूल नहीं सकती है क्यों की यह आपके वश में नहीं है तथा पूरी तरह से आपके नियंत्रण से बहार है। इस निर्णय में दिए गए तर्क GST कानून पे भी बराबर लागू होते है। लेकिन सरकार की मंशा अब बहुत साफ़ है और वो इस नियम में कोई ढील नहीं देना चाहती है। लेखक का अनुमान है की आने वाले समय में सरकार इस सीमा को 5% से घटाकर 0 % कर देगी और उतना ही ईनपुट देगी जितना आपके 2A / 2B में दर्शाया गया है।
सरकार ने इस नियम में एक चीज़ और बदली है वो यह है की पहले आपका विक्रेता अगर GSTR -01 में डिटेल्स अपलोड कर देता ( बिना रिटर्न फाइल किये ) तब भी आपको इनपुट GSTR 2A में दिखने पर मिल जाती थी । लेकिन कई करदाताओं ने इस ढील का दुरूपयोग कर अधिक इनपुट लिया। अब सरकार ने इस नियम में संसोधन कर ये बतला दिया की नियम 36 (4 ) के तहत अब सिर्फ GSTR -01 फाइल /फर्निश करने पर ही इनपुट ले सकते है ।
ईनपुट क्रेडिट से कर का भुगतान /समायोजन 99 % देय कर तक होगा:
सरकार ने 1 जनवरी 2021 से एक और तोहफा देते हुए एक नया नियम 86B लागु कर दिया है जिसके तहत करदाता को अब कम से कम 1 % देय कर का भुगतान नकद खाते (cash ledger ) से करना पड़ेगा । हालां की यह नियम कुछ जगहों में लागू नहीं होगा जैसे की –
सरकार ने इस नियम को लाकर व्यापारियों को एक बार फिर पसोपेश में डाल दिया है। सबसे पहले तो कानून में सरकार को इस तरह के नियम बनाने के अधिकारों पर ही सवाल उठने लगे है। दूसरी बात यह है की इस नियम के तहत 99 % तक के output tax को input tax के साथ adjust करने देने के पीछे भी कोई तर्क नहीं दिया गया है। कर जानकारों का मानना है की 99 % ही क्यों ? करदाताओं को अब इसका भी अलग से हिसाब रखना पड़ेगा की किस महीने में उसकी कर देनदारी 1 % के टोटल कर भुगतान से ज्यादा होती है और उसे इस नियम से निजात मिल सके । सबसे बड़ी बात इस नियम की यह भी है की जीएसटी कानून को अब आयकर से भी जोड़ दिया गया है। हो सकता है आने वाले समय में सरकार जीएसटी कानून को PF, ESI PROFESSION TAX या और किसी अन्य कानून से भी जोड़ दे।
लेखक का ऐसा मानना है की हो सकता है आने वाले समय में इस नियम को भी न्यायलय में चुनौती दी जाएगी क्यों की ईनपुट टैक्स के इस्तेमाल पर इस तरह की पाबंदी लगाना ना तो धरा 49 में बतलाया गया है और ना ही धरा 16 में ऐसा कोई प्रावधान रखा गया है।
ई इन्वॉइसिंग का प्रावधान हमारे देश मे दिनांक 01.01.2020 से लागू हो चुका है। अब तक यह नियम उन ख़ास चुनिंदा करदाताओं पर लागू था जिनका वार्षिक टोटल टर्नओवर पिछले वर्ष में 500 करोड़ रुपयों से अधिक हो। लेकिन अब सरकार इस नियम को उन सभी करदाताओ पर भी लागू करने जा रही है जिनका वार्षिक टर्नओवर 100 करोड़ रुपयों से अधिक हो। इस प्रावधान में गौर फरमाने वाली बात यह है की व्यापारी को कोई ऑनलाइन इनवॉइस जीएसटी पोर्टल से नहीं बनाना है बल्कि एक स्टैण्डर्ड फॉर्मेट में बने हुवे इनवॉइस पर E-INVOICE पोर्टल से एक INVOICE REFERENCE NUMBER (IRN) निकालकर डालना है। IRN इनवॉइस नंबर से अलग होता है। एक बार IRN निकल जाने पर उसका डाटा स्वतः ही इ-वे बिल पोर्टल एवं GSTR -1 डेटाबेस मे भी चला जायेगा। इसके अलावा सरकार ने QR Code दर्शाने का भी प्रावधान किया है। ई- इनवॉइस आप आपने किसी भी एकाउंटिंग सॉफ्टवेयर से जेनेरेट कर सकते है। ई- इनवॉइस बनाने के लिए व्यापारी को IRP पोर्टल पर पंजीकृत करना पड़ेगा। यह B2B एवं B2G ट्रांसेक्शन्स पर लागू होगा। B2C ट्रांसेक्शन्स पर यह नियम लागू नहीं होगा। साथ ही सरकार ने ट्रांसपोर्टर्स,सरकारी विभाग , बैंक, इन्शुरन्स कंपनियों , वित्त संस्थानों , पैसेंजर ट्रांसपोर्ट ऑपरेटर्स आदि को इस प्रावधान से बहार रखा है। सरकार ने व्यापारियों की सुविधा हेतु OFFLINE UTILITY, API GENERATION एवं GSP की भी व्यवस्था है। इसके आलावा एक ई-इनवॉइस SCHEMA GST INV -01 भी तैयार की गई है। इस प्रावधान का मुख्य उद्देशय फर्जी बिलस पर रोक लगाना है तथा कर चोरी को रोकना है। ई इनवॉइस के प्रावधान का उल्लेख जीएसटी के नियम 48(4) एवं 48(5) में किया गया है।
जीएसटी रिटर्न शुरुवाती दौर से ही चर्चा का विषय बने हुए थे। सबसे पहले सरकार ने तीन रिटर्न फार्मो की व्यवस्था दी – GSTR-1, GSTR -2 एवं GSTR -3B। कुछ ही महीनो के पश्चात सिर्फ दो ही रिटर्न्स रखे गए – GSTR -1 & GSTR -3B। अब जब सब कुछ ठीक- ठाक होने जा ही रहा था ही की सरकार ने पिछले वर्ष तीन नए रिटर्न फॉर्म्स – सहज, सुगम और सरल को लाने की घोषणा की। इस बाबत प्रचार प्रसार भी शुरू किया गया और ट्रेनिंग प्रोग्राम भी आयोजित हुवे। अचानक सरकार ने फिर से अपना इरादा बदलते हुवे इन तीन नए फॉर्मो को लागू न करने का निर्णय लिया। अब एक बार फिर सरकार रिटर्न्स फाइलिंग की एक पूरी नई स्कीम लेकर आई है जो की छोटे और मझोले व्यापारियों की सुविधा हेतु लायी गई है। इस स्कीम का नाम है -QRMPS ( QUARTERLY RETURN MONTHLY PAYMENT SCHEME).
5 करोड़ तक के वार्षिक टर्नओवर वाले व्यापारियों के लिए नई स्कीम :
यह प्रावधान उन सभी करदाताओं पर लागू होगा जिनका पिछले वर्ष का कुल वार्षिक टर्नओवर 5 करोड़ तक है। यह स्कीम उन करदाताओं पर लागु नहीं होगी जो करदाता कम्पोजीशन स्कीम में है , कोई सरकारी बिभाग है , ISD है , नॉन रेजिडेंट टैक्सेबल पर्सन है । इस स्कीम से सरकार की मंशा है की छोटे व्यापारियों पर कर अनुपालना का दबाव कम रहे। इस स्कीम के प्रमुख बिंदु इस प्रकार है :
5 करोड़ से अधिक के वार्षिक टर्नओवर वाले व्यापारियों के लिए बदलाव:
सरकार ने एक नया नियम 59 (5) लाया है जिसके तहत यह बताया गया है की अगर किसी करदाता ने पिछले 2 महीनो के GSTR -3B रिटर्न्स नहीं भरे है तो अब वो GSTR -1 भी नहीं फाइल कर पायेगा। इस नियम से सरकार ने GSTR -3B को अब GSTR -1 से जोड़ दिया है जो की कर चोरी रोकने की दिशा में एक बहुत ही अच्छा कदम है । यह नियम उन सभी करदाताओं पर भी लागू होगा जो की नियम 89 (5) के तहत आते है।
ई–वेबिल की वैधता (VALIDITY) को कम कर दिया –
जीएसटी में ई-वेबिल के प्रावधान नियम 138 से शुरू होते है। नियम 138 (10 ) के तहत ई -वेबिल की वैधता 100 किलोमीटर तक की दूरी के लिए 1 दिन दी गई है। लेकिन अब नए वर्ष में सरकार चाहती है की आप अपनी स्पीड दोगुनी कर ले। अब इस नियम में संसोधन कर 200 किलोमीटर तक की दूरी पर ई- वेबिल की वैधता सिर्फ 1 दिन की की रहेगी। आईये इसे एक उदाहरण के साथ समझने के कोशिस करते है। मान लीजिये गुवाहाटी से एक माल सड़क के रास्ते से अगरतला के लिए रवाना होता है जो की गुवाहाटी से लगभग 550 किलोमीटर दूर है। ऐसे में पुराने नियम के हिसाब से ई – वेबिल की वैधता 6 दिन रहती थी लेकिन अब संसोधित नियम के मुताबिक ये घटकर महज 3 दिन ही रह जाएगी। इसका मतलब ये हुआ की हर हाल में माल अपने गंतवय स्थान तक ई-वेबिल की वैधता रहते पहुंच जाना चाहिए। अगर ई-वेबिल की वैधता रहते माल अगरतला किसी भी कारण से न पहुँच पाता है तो ट्रांसपोर्टर्स को ई-वेबिल की वैधता को फिर से बढ़ाना पड़ेगा जो की वैधता ख़त्म होने की अवधी से सिर्फ 4 घंटे पहले या 4 घंटे बाद के अंदर मुमकिन है। इसका सीधा सा मतलब यह हुआ की अब ट्रांसपोर्टरों को भी अपनी रफ़्तार बढ़ानी पड़ेगी और समय रहते माल को गंतवय स्थान तक पहुँचाना होगा नहीं तो एक बार फिर ई-वेबिल की वैधता बढ़ाने का झंझट रहेगा। हालां की सरकार का इस प्रावधान को लाने के पीछे का उद्देश्य कर चोरी रोकना रहा होगा । लेकिन सरकार को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए था की पूर्वोत्तर के दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रो में हर 200 किलोमीटर के पीछे सिर्फ 1 दिन की वैधता की अवधी काफी कम पड़ने वाली है। सिर्फ एक दिन में माल से भरे ट्रक की 200 किलोमीटर की यात्रा पहाड़ी क्षेत्रों में काफी मुश्किल एवं चुनौतीपूर्ण लग रही है। इससे व्यापारियों को कहीं ना कहीं परेशानी आने वाली है।
ई–वेबिल अवरोधन (BLOCKAGE) का दायरा बढ़ाया गया –
जीएसटी के नियम 138E में ई – वेबिल ब्लॉकेज का प्रावधान दिया गया है जिसके तहत अगर करदाता लगातार 2 महीने का रिटर्न नहीं भरता है तो वो ई-वेबिल जेनेरेट नहीं कर पाता है। इस नियम को लेकर कई संगठनो ने आवाज़ भी उठाई थी। लेकिन सरकार ने इस नियम मे कोई ढिलाई न बरतते हुए अब इसका दायरा और बढ़ा दिया है। अब निम्नलिखित कारणों से भी ई- वेबिल ब्लॉक किया जा सकता है :
इस प्रावधान को लाने के पीछे यही उद्देस्य लगता है की अगर एक बार पंजीकरण बर्खास्त हो जाये तौ करदाता उस अवधी में किसी प्रकार के सप्लाई ट्रांसेक्शन्स ना कर पाए और ई- वेबिल भी ब्लॉक रहे।
नए पंजीकरण के लिए ( New Registration)-
जीएसटी में अब तक का सबसे आसान , सरल एवं प्रयोग रहित कोई बिषय रहा है तो वो है जीएसटी पंजीकरण । मात्र 3 दिनों में पंजीकरण प्रमाण पत्र प्राप्त किया जा सकता है वो भी बिना कोई शुल्क का भुगतान किये। इस आसान और सरल पंजीकरण के मार्ग को कर चोरों ने खूब भुनाया और फ़र्ज़ी पंजीकरण लेकर कर चोरी को अंजाम दिया। अब सरकार को इस बात का एहसास भलीभांति हो चूका है की अगर पंजीकरण देते वक्त ही ठीक तरह से जांच पड़ताल एवं छानबीन कर ली जावे तो कुछ हद तक फर्ज़ीवाड़े को रोका जा सकता है। इसी बात को मध्य नजर रखते हुए सरकार ने पिछले दिनों आधार प्रमाणीकरण/ सत्यापन(Aadhar Authentication) को लागू किया था तथा field verification का भी आदेश दिया था। अब सरकार ने एक बार फिर से पंजीकरण के नियमों को और अधिक कसते हुए यह बदलाव किये है :
पंजीकरण रद्द करने के लिए (Cancellation of Registration)-
जीएसटी के नियम 21 में पंजीकरण के रद्द करने हेतु कुछ कारण दिए गए है। अब 1 जनवरी से सरकार ने इन कारणों में कुछ और नए कारण डालकर पंजीकरण रद्द के प्रावधानों का दायरा बढ़ा दिया है तथा कर अधिकारीयों के हाथ में कुछ और नए हथियार दे दिए है। अब निम्नलिखित परिस्थितियों में भी पंजीकरण रद्द किया जा सकता है :
हालां की सरकार इस बात का स्पष्टीकरण दे चुकी है की अगर किसी रिटर्न में कोई भूलबस या अनजाने में गलती रह गई है जिसके कारण GSTR -1 और 3B में अंतर आता है तो उस स्थिति में पंजीकरण रद्द्द नहीं किया जायेगा ।
पंजीकरण बर्खास्त करने के लिए (Registration Suspension)-
जीएसटी के नियम 21A में पंजीकरण को suspend करने का प्रावधान दिया गया है। अब इस प्रावधान में संसोधन कर सरकार ने निम्नलिखित परिस्थितियों में भी पंजीकरण बर्खास्त करने का अधिकार कर अधिकारी का दे दिया है :
जब पंजीकरण बर्खास्त कर दिया गया जाता तो ऐसी परिस्थिति में करदाता किसी भी तरह का अब कोई ट्रांसेक्शन नहीं कर सकेगा। साथ की बर्खास्तगी की अवधी के दौरान उसे कोई रिटर्न भी नहीं भरना पड़ेगा। एक बार मामले की सुनवाई पूर्ण हो जाती और कर अधिकारी संतुस्ट हो जाता है तो बर्खास्त पंजीकरण बहाल कर दिया जायेगा।
निष्कर्ष (CONCLUSION):
नए लाये गए नियमों को पढ़कर ऐसा लगता है की अब सरकार ने पूरी तरह ये मन बना लिया है की कर चोरों को और फ़र्ज़ीबाड़े करने वालों को किसी भी हाल में न बक्सा जाये। जीएसटी में ईनपुट टैक्स क्रेडिट और रिफंड दो ऐसी जगह थी जहाँ बहुत फर्जीबाड़े हुए है। इस बार सरकार ने पंजीकरण से लेकर ईनपुट टैक्स क्रेडिट तक ऎसे नियम बना डाले की अब कर चोरों की राह आसान नहीं रहेगी। सरकार पेनल्टी के प्रावधानों में तो बहुत पहले ही कड़ाई करते हुए सख्त नियम बना दिए थे। ऐसे में हम सब की यह जिम्मेदारी बनती हे के सरकार द्वारा उठाये गए क़दमों का पालन करे और हर हाल में कर चोरी एवं फर्जीबाड़े को रोके। हालां की कुछ एक नियम वाकई व्यवारिक नहीं लगते है और करदातों को वास्तविक रूप में कठिनाई का सामना पड़ सकता है। अब देखना यह है की सरकार करदाताओं की सुविधा को तरजीह देती है या कर चोरी रोकने को। इस प्रश्न का उत्तर तो भविष्य के गर्भ में छिपा है लेकिन एक बात पक्की है सरकार अब किसी तरह की ढिलाई बरतने के मूड में नजर नहीं आ रही है।
नोट : इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक की खुद की समझ के अनुसार तैयार की गई है। इसके दूसरे मतलब भी हो सकते है। कृपया इस पर अमल करने से पहले कानून के प्रावधानों को एक बार फिर से अच्छे से पढ़ लेवे।
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