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सारांश: 27 .08, 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली एक याचिका के जवाब में एक नोटिस जारी किया। इस फैसले में आदेश दिया गया कि सभी दिल्ली बार एसोसिएशन एक समान दो साल की अवधि के साथ कार्यकारी समिति के चुनाव एक साथ आयोजित करें। इसके अतिरिक्त, इसने दिल्ली बार काउंसिल या बार काउंसिल ऑफ इंडिया के सदस्यों को एक साथ कई बार एसोसिएशनों में चुनाव लड़ने या पद संभालने से रोक दिया। याचिकाकर्ताओं का नेतृत्व डी.के. शर्मा और दिल्ली बार काउंसिल के अन्य सदस्यों का तर्क है कि इस तरह के प्रतिबंध गलत तरीके से एसोसिएशन के सदस्यों को बार काउंसिल चुनाव लड़ने से रोकते हैं। उनका तर्क है कि बार काउंसिल सोसायटी पंजीकरण अधिनियम के तहत संघों से अलग वैधानिक निकाय हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले में वकीलों के लिए पहचान पत्र और आरएफआईडी टैग लागू करने और चुनाव पारदर्शिता सुनिश्चित करने के निर्देश भी शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट के नोटिस में दो सप्ताह के भीतर जवाब मांगा गया है, यह विचार करते हुए कि क्या बार काउंसिल की उम्मीदवारी और चुनाव की एकरूपता पर उच्च न्यायालय के प्रतिबंध वैध हैं। याचिकाकर्ता इन आदेशों के प्रभाव पर स्पष्टता चाहते हैं और बार काउंसिल चुनाव और सदस्यता को विनियमित करने के लिए अधिक व्यावहारिक दृष्टिकोण की वकालत करते हैं।

(रिट पिटीशन संख्या 35523/2024 डी.के. शर्मा एवं अन्य बनाम दिल्ली बार काउंसिल )

विषय वस्तु- 

यह कि उच्चतम न्यायालय ने 27.08.2024 को एक विशेष अनुमति याचिका पर नोटिस जारी किया है।

 जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय को चुनौती दी गई है, जिसमें निर्देश दिया गया है कि दिल्ली के सभी बार संघों की कार्यकारी समितियों के चुनाव एक साथ आयोजित किए जाएंगे, ऐसी सभी कार्यकारी समितियों का कार्यकाल/कार्यकाल दो वर्षों की एक समान अवधि के लिए होगा और दिल्ली बार काउंसिल या बार काउंसिल ऑफ इंडिया का कोई भी सदस्य दो अलग-अलग बार संघों/निकायों में एक साथ चुनाव नहीं लड़ेगा या पद पर नहीं रहेगा।

याचिका कर्ता- 

यह याचिका कार्यकारी समिति के अध्यक्ष डी.के. शर्मा और दिल्ली बार काउंसिल के अन्य सदस्यों द्वारा दायर की गई थी। 

सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही- 

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की खंडपीठ ने आदेश दिया, “नोटिस जारी करें। दो सप्ताह में जवाब दें। दस्ती की अनुमति दी गई।”

याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने कहा, “इस मामले में, सवाल यह है कि क्या आप एसोसिएशन के किसी सदस्य को बार काउंसिल का चुनाव लड़ने से रोक सकते हैं। बार काउंसिल एक वैधानिक निकाय है। तथा एडवोकेट की perinatal body हैं।यह एसोसिएशन नहीं हैं। जो एसोसिएशन सोसायटी पंजीकरण अधिनियम के तहत पंजीकृत हो। यदि कोई व्यक्ति एसोसिएशन का सदस्य है तो क्या उसे वैधानिक निकाय का चुनाव लड़ने से रोका जा सकता है.?

सभी पेशेवर की एसोसिएशन हैं। जैसे डॉक्टरों की एसोसिएशन हैं, आर्किटेक्ट की एसोसिएशन हैं… वकीलों को क्यों रोका गया है?… बिना किसी कारण के आदेश पारित किया गया। बीडी कौशिक के निर्णय बिल्कुल विपरीत।

दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष विचार के लिए मुख्य विषय निम्न लिखित थे 

1. क्या दिल्ली में विभिन्न बार एसोसिएशनों की कार्यकारी समितियों के चुनाव एक साथ होने चाहिए।

2. क्या ऐसी कार्यकारी समितियों का कार्यकाल एक समान अवधि के लिए होना चाहिए।

3. इसके अलावा, क्या पहचान कार्ड (‘आईडी’) और रेडियो फ्रीक्वेंसी पहचान टैग/स्टिकर (‘आरएफआईडी’) सभी वकीलों को अनिवार्य रूप से जारी किए जाने चाहिए और यदि हां तो किसके द्वारा? 

4. यह कि चुनावों में शुचिता सुनिश्चित करने के लिए, क्या इस न्यायालय को चुनावी पार्टियों की मेजबानी, पोस्टर छापने और होर्डिंग लगाने पर रोक लगानी चाहिए?

दिल्ली उच्च न्यायालय ने निम्नलिखित आदेश पारित किया-

1. सभी जिला न्यायालय बार संघों, दिल्ली उच्च न्यायालय बार संघ और दिल्ली में न्यायाधिकरणों से संबद्ध सभी बार संघों की सहमति से यह निर्देश दिया जाता है कि उनकी कार्यकारी समितियों के चुनाव एक साथ अर्थात एक ही दिन कराए जाएंगे और ऐसी सभी कार्यकारी समितियों का कार्यकाल 2  वर्षों की एक समान अवधि के लिए होगा

2. किसी भी बार संघ या निकाय, जैसे कि बार काउंसिल ऑफ दिल्ली या बार काउंसिल ऑफ इंडिया का कोई भी सदस्य एक साथ दो अलग-अलग बार संघों/निकायों में चुनाव नहीं लड़ेगा या पद नहीं रखेगा

3. सभी बार संघों के लिए एक दिन एक समान चुनाव कराने की कवायद सभी वकीलों के लिए आईडी/प्रॉक्सिमिटी कार्ड और आरएफआईडी जारी करने की कवायद पूरी होने के बाद ही आयोजित की जाएगी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से कराए जाएं।

4. दिल्ली में जिन बार एसोसिएशनों का कार्यकाल सितम्बर 2024 में समाप्त होने वाला है, ऐसे सभी बार एसोसिएशनों के चुनाव एक ही दिन अर्थात् 19 अक्टूबर, 2024 को कराना उचित होगा। जिन बार एसोसिएशनों का कार्यकाल पहले ही समाप्त हो चुका है, उनमें से कुछ का चुनाव अप्रैल/मई, 2024 में कराना न तो व्यावहारिक है और न ही संभव है, क्योंकि उस समय देश में आम चुनाव होने हैं और ईवीएम तथा सुरक्षा बलों की अनुपलब्धता होगी।

5. यदि मौजूदा बार एसोसिएशन निर्धारित तिथि तक चुनाव प्रक्रिया शुरू नहीं करती है, तो उक्त कार्य को दो पूर्व अध्यक्षों और दो सचिवों वाली समिति को सौंपा गया माना जाएगा, साथ ही संबंधित जिला न्यायाधीश या न्यायाधिकरण के रजिस्ट्रार या इस न्यायालय के महापंजीयक द्वारा नामित एक वकील को भी शामिल किया जाएगा। यह समिति केवल यह सुनिश्चित करने के लिए निर्णय लेगी कि चुनाव समय पर और निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से कराए जाएं। यह समिति कोई अन्य प्रशासनिक कार्य नहीं करेगी और इसे बार एसोसिएशन की कार्यकारी समिति का स्थान लेने वाला नहीं माना जाएगा।

6. चुनावों में शुचिता सुनिश्चित करने और धनबल के उपयोग पर अंकुश लगाने के लिए, यह न्यायालय चुनाव पार्टियों की मेजबानी, पोस्टर छापने और होर्डिंग लगाने पर रोक लगाता है।

7. उम्मीदवारों को भौतिक और आभासी बैठकें आयोजित करने की अनुमति होगी और वे कानूनी बिरादरी के सर्वोत्तम हित में सुधार लाने के लिए अपने विचारों और विचारों का प्रचार करने के लिए व्हाट्सएप या सोशल मीडिया का उपयोग कर सकते हैं।

समिति की रिपोर्ट- 

उच्च न्यायालय में समक्ष याचिका तब दायर की गई थी जब खंडपीठ ने 24 अगस्त, 2023 के आदेश के तहत इस न्यायालय के तीन वर्तमान न्यायाधीशों के साथ-साथ दिल्ली बार काउंसिल के अध्यक्ष, दिल्ली उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और दिल्ली के सभी जिला न्यायालयों के बार एसोसिएशनों की समन्वय समिति के तत्कालीन अध्यक्ष की एक समिति गठित की थी, जिसका उद्देश्य एक ही दिन में सभी बार एसोसिएशनों के संबंध में एक समान चुनाव कराने और वकीलों के लिए आईडी/प्रॉक्सिमिटी कार्ड, वकीलों के वाहनों के संबंध में आरएफआईडी तैयार करने की संभावना का पता लगाना और उसके संबंध में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करना था।

कुछ वकीलों ने समिति के समक्ष कहा कि बी डी कौशिक एडवोकेट बनाम बार काउंसिल ऑफ दिल्ली (2016 दिल्ली) में निर्धारित ‘एक बार एक वोट’ के नियम का ईमानदारी से कार्यान्वयन नहीं किया जा रहा है। उक्त समिति ने विभिन्न बार संघों की कार्यकारी समितियों के सदस्यों के साथ-साथ बार संघों और बार काउंसिल ऑफ दिल्ली के अन्य सदस्यों के साथ कई दौर की बैठकें और विचार-विमर्श किया था। समिति बहुमत से इस निष्कर्ष पर पहुंची थी कि ‘एक बार एक वोट’ के नियम का ईमानदारी से कार्यान्वयन नहीं किए जाने का एक प्रमुख कारक कार्यकारी समिति के कार्यकाल की लंबाई में असमानता और विभिन्न बार संघों द्वारा अलग-अलग तारीखों पर चुनाव कराए जाना था। इसके बाद समिति ने 22 सितंबर, 2023 को कई सिफारिशें कीं और फिर मामले को उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ के पास भेज दिया गया।

निष्कर्ष- 

उपरोक्त लेख से स्पष्ट है। कि दिल्ली प्रदेश में बार एसोसिएशन में अनियमिताओं के कारण उच्च न्यायालय को बार संगठन और अधिवक्ताओं के संबंध में एक प्रारूप/ आदेश पारित करना पड़ा ,लेकिन माननीय उच्च न्यायालय ने अधिवक्ताओं के मत पर जो रोक लगाई है वह त्रुटि पूर्ण है। कार्यकारी संस्था का गठन होना अति आवश्यक है, लेकिन मूलभूत अधिकारों पर फर्क नहीं आना चाहिए  अब क्योंकि रिट पिटीशन माननीय सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत की गई है ,जिससे स्पष्ट हो पाएगा कि दिल्ली उच्च न्यायालय की आदेश/ निर्देश कितने प्रभावी होंगे ।

अनुरोध माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा बार संगठन के चुनाव के संबंध में नियम निर्धारित करते समय स्थानीय बार संगठन में एल्डर कमेटी की भूमिका पर भी विचार करना चाहिए ।

लेखक का मत है कि एल्डर कमेटी के सदस्यों की आयु का निर्धारण होना चाहिए।

तथा एल्डर कमेटी के सदस्यों को वास्तविक रूप से प्रैक्टिशनर होना चाहिए तथा प्रत्येक एल्डर कमेटी के सदस्य को पिछले 5 वर्ष के अपने कार्य के संबंध में वकालतनमा/आदेश आदि प्रस्तुत करने चाहिए जिससे स्पष्ट होगी वह वास्तविक रूप से प्रभावी अधिवक्ता है ।उत्तर प्रदेश में बहुत से स्थान पर बार एसोसिएशन में एल्डर कमेटी की भूमिका अत्यधिक विवादास्पद है। यदि माननीय सुप्रीम कोर्ट एल्डर कमेटी के बारे में कोई निश्चित नियम करती है तो वह स्वागत योग्य है।

 यह लेखक के निजी विचार हैं।

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