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MAHI YADAV[1] & YATHARTH GUPTA[2]

अनुकम्पा नियुक्ति (Compassionate Appointment) और पारिवारिक पेंशन (Family Pension)

माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णेय वी. सिवमूर्ति बनाम आंध्र प्रदेश सरकार[3] में कहा हैं कि सरकारी नौकरी में अनुछेद 14 और 16 की पलना में नियुक्ति योग्यता के अनुसार मिलती हैं, जो की एक सामान्य नियम हैं, परन्तु अपवादी परिस्थितियां में उक्त सामान्य नियम में छूठ दी जा सकती है। ऐसी ही एक अपवादी परिस्थिति हैं अनुकम्पा नियुक्ति।  कोर्ट ने स्पष्ट किया की अनुकम्पा नियुक्ति सरकारी नौकरी पाने का जरिया नहीं हैं अपितु यह नियुक्ति सिर्फ उन्ही परिस्थितियों में दी जा सकती हैं, जब नौकरी के दौरान कर्मचारी का आकस्मिक निधन हो जाये और वह मृतक कर्मचारी सम्पूर्ण परिवार का एकमात्र नौकरीपेशे व्यक्ति हैं तथा उसके परिवार के पास आय को कोई और दूसरा साधन उपलब्ध ना हो।

अनुकम्पा नियुक्ति के लिए हक़दार

नियुक्तियों के लिए विभिन्न विभाग नीतिया बनाते हैं जिसमे मूलतः मृतक कर्मचारी के आश्रित अनुकम्पा नियुक्ति के हक़दार होते हैं। “आश्रितों” में मृतक कर्मचारी की विधवा/विधुर, पुत्र, अविवाहित/ विधवा पुत्री शामिल होते हैं। पुत्र और पुत्री में दत्तक पुत्र और पुत्री भी शामिल हैं । अविवाहित मृतक कर्मचारी के सम्बन्ध में उसके भाई या बहन योग्य होंगे। आवेदक को नियुक्ति उसकी पात्रता के अनुसार और अनुकम्पा नियुक्ति के लिए विशेष योजना/नियम/प्रावधानों के अनुसार दी जाती है।

Compassionate Appointment and Family Pension

  • विवाहित बेटी का अनुकम्पा नियुक्ति में हक़माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णेय कर्नाटक सरकार बनाम सी एन अपपोरवा श्री वगैरा[4] में विवाहित बेटी को भी अनुकम्पा नियुक्ति का हक़दार माना हैं और अनुकम्पा नियुक्ति के नियमो में विवाहित बेटी के साथ भेदभाव को असंवैधानिक घोषित किया हैं। उक्त निर्णय के मुताबिक माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय ने शैफाली सांखला (याचिकाकर्ता) को अनुकम्पा नियुक्ति प्रधान की हैं।[5]
  • तलाकशुदा बेटी का अनुकम्पा नियुक्ति पर हक़ – माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने एक निर्णय में अपने पूर्व निर्णय एन. सी. संतोष बनाम कर्नाटक सरकार[6] पर रिलायंस किया जिसमे कहा गया था की आवेदन पर विचार करने की तिथि पर प्रचलित मानदंड अनुकंपा नियुक्ति के दावे पर विचार करने का आधार होना चाइये। इसीलिए नियमो के अनुसार अविवाहित बेटी की परिभाषा में तलाक़शुदा बेटी समलित नहीं होती हैं और क्युकी तात्यात्मक में भी मृतक कर्मचारी  की बेटी का तलाक़ कर्मचारी के निधन के बाद हुआ था तो इन्ही कारणों से अनुकम्पा नियुक्ति नहीं दी जा सकती हैं।[7] हलाकि तलाक़शुदा पुत्री जिसका तलाक़ कर्मचारी के निधन से पूर्व हो गया हो इस पर वर्तमान में निर्णय नहीं हैं पर विधिक राय में ऐसी पुत्रियों को नियुक्ति दी जा सकती हैं।
  • माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने मुकेश कुमार वगैरा बनाम भारत संघ[8] में कहा हैं की मृतक कर्मचारी की दूसरी पत्नी के द्वारा हुई संतान का भी अनुकम्पा नियुक्ति में पूर्ण अधिकार हैं।

अनुकम्पा नियुक्ति के आवेदनों पर निर्णय लेने की समयसीमा

हाल ही में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने मलया नंदा सेठी बनाम उड़ीसा सरकार[9] में निर्देश दिए गए हैं की अनुकम्पा नियुक्ति के आवेदन पत्र को जल्द से जल्द तय करना चाइये और इस पूरी प्रक्रिया में छः माह की समयसीमा कोर्ट ने तय की हैं।

पारिवारिक पेंशन

केंद्र सरकार के CCS (Pension) Rules, 1972 के अनुसार पारिवारिक पेंशन के लिए योग्य मृतक कर्मचारी के पति या पत्नी, अविवाहित बच्चे, जिनकी उम्र 25 वर्ष से कम होना अनिवार्य हैं। परन्तु विधवा/अविवाहित/तलाक़शुदा पुत्री जो नियमो के अनुसार योग्य हो, ऐसी पुत्री को 25 वर्ष की आयु के पश्यात भी पारिवारिक पेंशन दी जा सकती है। योग्य विकलांग बच्चे को आजीवन पारिवारिक पेंशन का भी प्रावधान हैं। राज्य सरकार के नियम भी केंद्र सरकार के नियमों के समान है।

Team Majesty Legal[10]

[1] Standing Counsel of CGST & ED; Special Public Prosecutor (SPP), Union of India; Founder of Majesty Legal.

[2] Advocate, Rajasthan High Court & Associate, Majesty Legal.

[3] (2008) 13 SCC 730.

[4] Special Leave to Appeal (C) No. 20116/2021, decided on 17.12.2021.

[5] Shaifali Sankhla v. State of Rajasthan, SBCWP No. 9769/2018, decided on 04.01.2022.

[6] (2020) 7 SCC 617

[7] Director of Treasuries in Karnataka v. V. Somyashree, 2021 SCC Online SC 704, decided on 13.09.2021.

[8] SLP (C) No. 18571/2018, decided on 24.02.2022.

[9] SLP (C) No. 936/2022, decided on 20.05.2022.

[10] Majesty legal is law firm, established in 2013 and aim of the present article is to provide recent legal development as on 10.06.2022. The opinions presented in the article are personal in nature and not to be deemed as legal advice.

Author Bio

Founder of law firm – Majesty Legal (Advocates & Legal Consultants), Standing counsel for CGST, FEMA,FERA, and ED (Government of India), Standing counsel for Legal Aid, Rajasthan High Court, Jaipur, Standing counsel/consultant for leading industries, companies and firms. View Full Profile

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