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कुछ विनम्र व्यवहारिक प्रश्न  जो समस्या भी है

1.  क्या जीएसटी में रिटर्न रिवाइज नहीं होगा इस घोषणा के साथ भारत मे जीएसटी लाया गया था ? क्या कानून किसी रिटर्न के रिवाइज करने के करदाता के अधिकार को रोकता है ? क्या जीएसटी रिटर्न भरते समय डीलर से गलती नहीं हो सकती है ?

2. जब सरकार को विक्रेता से देरी से पेश किये गए रिटर्न पर पूरा कर और  ब्याज प्राप्त हो गया है तो फिर क्रेता की इनपुट क्रेडिट को हमेशा के लिए रूकना क्या उचित है ?

3. जब एक डीलर को जब देरी से रिटर्न पेश करने की अनुमति दी गई है तो फिर उसके विक्रेता द्वारा चुकाए गए कर की इनपुट क्रेडिट नहीं देना क्या न्यायोचित है ?

4. जीएसटी की प्रारम्भिक अवस्था एवं अभी तक जब कि जीएसटी में एक स्थायित्व नहीं आता है तब तक लेट फीस जैसे प्रावधानों की कोई विशेष जरुरत थी ?

5. QRMP – मासिक कर त्रैमासिक रिटर्न स्कीम में  जिस तरह सभी डीलर्स को स्कीम में प्रविष्ट कर दिया गया क्या यह किसी वैकल्पिक योजना को लाने का व्यवहारिक तरीका है ?

6. क्या ख़रीदे माल पर विक्रेता कर चुका कर अपना रिटर्न समय पर भर दे इस पर क्रेता का कोई अधिकार हो सकता है ? यदि नहीं तो फिर इसका दंड क्रेता को क्यों दिया जाता .

7.  कुछ और प्रश्न ………….. आइये देखें . 

 ***

भारत वर्ष में जीएसटी आज से लगभग साढ़े तीन वर्ष से भी अधिक समय पूर्व अर्थात जुलाई 2017 में इस उम्मीद से लाया गया था कि यह एक सरलीकृत कर प्रणाली होगी और उद्योग, व्यापार और व्यवसाय जगत को व्यापार करने एवं अप्रत्यक्ष करों के भुगतान में आसानी होगी और सरकार का राजस्व भी बढेगा. लेकिन साढ़े तीन वर्ष से भी अधिक बीत जाने के बाद भी व्यापार एवं उद्योग जगत से जीएसटी के पालन करने में समस्याएं आने के समाचार बराबर आ रहें है . अभी भी यह कर और इसकी प्रक्रियाएं सरल और सहज नहीं है पर अब इन्हें सरल और सहज बनाना जरुरी है /

जीएसटी हमारी सरकार के द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था के उत्थान एवं उद्योग और व्यापार  जगत को एक सरलीकृत कर प्रणाली देने के लिए लाया गया एक साहसिक कदम था लेकिन यदि इस समय इस कर प्रणाली को लेकर जो समस्याएं आ रही है उनका समाधान हो जाए यह कर प्रणाली अर्थव्यवस्था और उद्योग और व्यापार जगत के लिए और भी अधिक उपयोगी हो सकता है .

आइये इस समय जीएसटी से जुडी मुख्य समस्याएं क्या है एवं इनके संभावित समाधान क्या हो सकते हैं:-

1. जीएसटी इनपुट क्रेडिट के मिस्मेच की समस्या

जीएसटी में सरकार द्वारा बनाई गई व्यवस्था के तहत ही एक खरीददार अपना माल या सेवा का क्रय करते समय विक्रेता को कर का भुगतान करता है और ऐसे में विक्रेता से कोई भूल हो जाए या वह कर ना चुकाए अथवा अपना रिटर्न ना भरे या किन्ही कारणों से ना भर पाए तो इसके जो भी परिणाम हो उस पर क्रेता का कोई अधिकार नहीं होता है लेकिन यदि ऐसे में क्रेता के इनपुट क्रेडिट रोक दी जाये तो यह क्रेता को बिना उसकी कोई गलती के दिया हुआ दंड होता है . ऐसे में आपसे अनुरोध है कि इस सम्बन्ध में जो कोई भी प्रक्रिया हो वह क्रेता की जगह विक्रेता पर लागू की जाए.

इसके अतिरिक्त जीएसटी के मूल स्वरुप में यह था कि क्रेता से उसकी खरीद की सूचना ली जाए और उसे विक्रेता द्वारा दी गई बिक्री की सुचना से मिलाया जाए और आने वाले फर्क के लिए विक्रेता को पाबन्द किया जाए लेकिन यह व्यवस्था प्रारम्भ ही नहीं की गई इसीलिये जीएसटी इनपुट की बहुत सी समस्याएं खड़ी हो रही है .

जीएसटी में कर चोरी को रोकने के सरकार के प्रयास सराहनीय है और हमेशा इन क़दमों एवं प्रयासों की प्रशंसा की जानी चाहिए लेकिन जीएसटी कानून की धारा 16(4) एवं नियम 36 (4) एवं कई अन्य प्रावधान ऐसे है “गलती और विलम्ब” तथा कर चोरी के बीच के अंतर को ही मिटा दिया है . तकनीकी गलतियों के भी डीलर्स को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं .

2. जीएसटी इनपुट क्रेडिट की समयावधि सम्बन्धी समस्या

एक विक्रेता जो माल बेचता है उस पर किन्ही कारणों से वह समय पर कर नहीं चुका पाता है लेकिन कुछ समय के बाद वह अपना कर एवं ब्याज चुका कर लेट फीस के साथ रिटर्न भर देता है लेकिन यदि इस प्रक्रिया में उससे  एक विशिष्ट समयावधि बीत जाती है तो सरकार को तो कर ब्याज सहित मिल जाता है लेकिन क्रेता को ऐसे जमा कराये गए कर की इनपुट क्रेडिट नहीं मिलती है जो कि किसी भी दृष्टी से  न्यायोचित नहीं है क्यों कि क्रेता तो विक्रेता को पहले ही कर चुका कर भुगतान दे चुका है इसलिए सरकार एक  ऐसा प्रावधान बनाए कि खरीददार को उसकी वांछित क्रेडिट मिल सके . यदि विक्रेता अपना कर ब्याज के साथ चुका रहा है तो फिर क्रेता के लिए इनपुट क्रेडिट रोकने का कोई न्यायोचित औचित्य ही नहीं है .जीएसटी लेट फीस :-

जीएसटी लेट फीस प्रारम्भ से ही डीलर्स के लिए एक समस्या बनी हुई है और व्यापार और उद्योग को इस समस्या का जीएसटी लगने के प्रारम्भ से ही सामना करना पड़ रहा है . जीएसटी एक नया कर है और अभी भी व्यापार एवं उद्योग इसकी मुश्किल प्रक्रियाओं से उलझन में है और इस लिए देरी होना स्वाभाविक है और ऐसे समय में जब जीएसटी स्वयम ही अपने आप में पूर्ण नहीं है तो लेट फीस का औचित्य नहीं है . अब तक जो लेट फीस वसूल की गई है उसे कृपया लौटाया जाए एवं जिन डीलर्स ने किन्ही कारणों से कुछ रिटर्न अभी तक नहीं भरें है और लेट फीस के कारण भर नहीं पा रहें हैं उन्हें बिना लेट फीस के एक बार रिटर्न भरने का मौक़ा दिया जाना चाहिए और इस मौके के साथ ही उन्हें उनकी वह इनपुट क्रेडिट भी दी जाए जिस पर उनके विक्रेता पूरा कर ब्याज सहित चुका चुके हैं .

3. रिटर्न रिवाइज करने का मौक़ा

जीएसटी रिटर्न को लेकर कुछ सवाल है क्या जीएसटी में रिटर्न रिवाइज नहीं होगा इस घोषणा के साथ भारत मे जीएसटी लाया गया था ? क्या कानून किसी रिटर्न के रिवाइज करने के करदाता के अधिकार को रोकता है ? क्या जीएसटी रिटर्न भरते समय डीलर से गलती नहीं हो सकती है ?

यदि इन सभी सवालों के जवाब नहीं में है तो फिर जीएसटी डीलर्स को रिटर्न रिवाइज करने से रोका क्यों गया ? आइये देखें कि यह एक विवादास्पद मुद्दा है क्या ?

जीएसटी में एक रिटर्न GSTR – 3 बी जो कि प्रारम्भिक कानून में था ही नहीं और जिसे केवल दो महीने के लिए लाया गया था वह जीएसटी का आज  भी एक महत्वपूर्ण रिटर्न बना हुआ है और इस रिटर्न को भरते हुए डीलर्स से बहुत सी गलतियां हुई है लेकिन कानून में भूल सुधार और रिवाइज्ड रिटर्न का प्रावधान होते हुए भी इस रिटर्न में रिवीजन का कोई प्रावधान जीएसटी पोर्टल पर दिया नहीं गया  और अभी भी इस रिटर्न में रिवीजन की  कोई सुविधा  नहीं है और जीएसटी से जुडी हुई बहुत सी समस्याओं का सबसे बड़ा कारण यही है . यदि प्रारम्भ से ही इस रिटर्न में सुधार की सुविधा दे दी जाए तो जीएसटी से जुडी बहुत सी समस्याएं समाप्त हो सकती है .

यह सुविधा आज भी प्रारम्भिक रिटर्न्स से शुरू करते हुए दी जा सकती है और यदि आज भी जीएसटी के इस रिटर्न में रिवीजन की सुविधा दे दी जाए तो विभाग और डीलर इस सम्बन्ध में जारी होने वाले नोटिस और उनके जवाब देने की परेशानी से बच सकते हैं और जीएसटी विभाग और डीलर्स को इन नोटिसों की प्रक्रियात्मक उलझनों से बचाना है तो इसका यह सर्वोत्तम उपाय है .

4. जीएसटी इ- इनवोइसिंग में हुई गलतियों के सुधार का मौक़ा

जीएसटी में अभी हाल ही में  इ- इनवोइसिंग का प्रावधान लाया गया है जो प्रारम्भ में 500 करोड़ रूपये से अधिक के टर्नओवर पर था और जिसे 1 जनवरी २०२१ से घटा कर १०० करोड़ पर कर दिया गया है और 1 अप्रैल २०२१ से यह 50 करोड़ से अधिक की बिक्री पर लागू हो जाएगा. इस कानून के साथ समस्या यह है कि प्रारम्भ में जब यह घोषित किया गया था तब इसकी सीमा वित्तीय वर्ष में बिक्री के सम्बन्ध में थी लेकिन बाद में इसे सीमा को 2017-18 से प्रारम्भ होकर किसी भी वर्ष में कर दिया गया जिसके कारण से कई डीलर्स जिनका टर्नओवर वर्ष 2019-20 और 2020-21 में निर्धारित सीमा से कम था इस प्रावधान का समय से अपने यहाँ लागू नहीं कर पाए और ऐसी देरी के लिए उन्हें माफ़ करते हुए यदि जरुरी हो तो ई – इन्वोसिंग पोर्टल पर उन्हें ये बिल अपलोड करने की सुविधा दी जाए . इनमें से अधिकाँश डीलर्स ने अपने बिलों के सम्बन्ध में ई-वे बिल तो जारी किये ही है और इस सम्बन्ध में कर की चोरी की कोई संभावना भी नहीं बनती है.

नए लाये प्रावधानों में सरकार को अपना रुख लचीला रखना जरुरी है क्यों कि डीलर्स अभी तक लागू की गई प्रक्रियाओं से ही पूरी तरह वाकिफ नहीं हो पाए है तो लगातार हो रहे नए परिवर्तनों के लिए उनके द्वारा हुई भूलों को माफ़ करते हुए ही इस कानून को आगे बढ़ाना पडेगा.

5. जीएसटी में डीलर्स द्वारा हुई प्रक्रियात्मक निर्दोष गलतियों के सुधार का मौक़ा

महोदय , जीएसटी एक नया कर था और भारत वर्ष के करदाताओं को इससे परिचित होने से कुछ समय तो लगना ही था और उसके जीएसटी की कठिन प्रक्रियाओं ने उन्हें और भी उलझा कर रख और इन सभी कारणों से उनसे काफी गलतियां हुई है जिससे सरकार को राजस्व का कोई नुक्सान नहीं हुआ है और यदि ऐसी गलतियों में जो कि मुख्य रूप से तकनीकी गलतियां है लेकिन इनमें कोई कर की चोरी नहीं है . आपसे निवेदन है कि ऐसी गलतियों को सुधारने का मौक़ा डीलर्स को देने का कष्ट करें.

6. जीएसटी में एमनेस्टी स्कीम

जीएसटी में उद्योग एवं व्यापार की और से आपको एक सुझाव है कि आप एक ऐसी एमनेस्टी स्कीम लाये जिसमें मुख्य धारा से दूर हुए डीलर्स उनके विक्रेताओं के द्वारा दी गई इनपुट क्रेडिट को लेने के बाद बचे हुए कर को चुका कर अपना बकाया कर बिना किसी लेट फीस के चुका सके. पूर्व में लाइ गई एमनेस्टी स्कीम में इनपुट क्रेडिट को देरी से लेने पर इसके खारिज होने की समस्या थी इसलिए अधिकाँश डीलर्स इसका लाभ नहीं ले सके. सरकार को जब ऐसी इनपुट पर अपना कर एवं ब्याज मिल चुका है तो फिर इसे अब रोकने का कोई औचित्य नहीं है .

7. जीएसटी में परिवर्तनों की संख्या सीमित हो

जीएसटी एक जुलाई 2017 में लागू हुआ था लेकिन इसके बाद कानून में लगातार परिवर्नन किये गए है और निरंतर इतने अधिक अधिसूचनाएं और स्पष्टीकरण जारी हुए हैं कि व्यापार और उधोग को इसे समझने में और अधिक समस्याएं आने लगी है . आपसे अनुरोध है कि इस कर कानून को एक स्थिरता देने के लिए इसके स्वरूप को बार – बार बदलाव नहीं किये जाए ताकि इसके पालन करने में आसानी हो सके.

8. तकनीकी समस्याओं का हल तुरंत हल करने की व्यवस्था स्थापित की जाए

जीएसटी में प्रारम्भ से ही एक सुदृढ़ हेल्प लाइन की आवश्यकता थी लेकिन इस समय जो हेल्प लाइन कार्य कर रही है वहां से डीलर्स की समस्याएं अधिकांश मामलों में कोई मदद नहीं मिलती है अत: आपसे निवेदन है कि जीएसटी विशेषज्ञों की मदद से एक ऐसी हेल्प लाइन तैयार करें कि वह डीलर्स की वांछित मदद कर सके.

9. वैकल्पिक स्कीम यदि लायी जाए तो उसका तरीका व्यवहारिक हो

यदि कोई सुविधा दें या कोई नया नियम लागू करें तो उसके लागू करने की पद्धति में कोई अनोखा प्रयोग नहीं किया जाए तो जीएसटी का पालन कर रहे डीलर्स के लिए इसका विकल्प लेना और फिर उसका पालन करना आसान होगा. जीएसटी में यह समय अनोखे प्रयोग या साधारण प्रयोग भी अनोखे तरीके से करने का यह समय नहीं है .

आइये हाल ही के एक उदाहरण के माध्यम से इसे समझने की कोशिश करें .  जैसे QRMP – मासिक कर त्रैमासिक योजना लाई गई  तो उसमें सारे डीलर्स को इस स्कीम में अपने आप ही डाल दिया गया और विकल्प यह दिया गया कि जिसे इस योजना में नहीं जाना है वह अपने आपको बाहर कर ले. यह किसी वैकल्पिक योजना को लाने का सरल और प्राकृतिक तरीका नहीं है और इसी तरह के अनोखे प्रयोगों ने जीएसटी का अब तक बहुत नुक्सान किया है . इस तरह का प्रावधान कि जिसे योजना में नहीं जाना है वह सूचित करे यह व्यवहारिक तरीका नहीं है इसके बदले में होना यह चाहिए कि जिसे योजना में जाना हो वह विकल्प ले ले शेष जैसा चल रहा है उसी में रहें. इस योजना को अनोखे तरीके से लाने के कारण कई डीलर्स बिना किसी स्वेच्छा के इस योजना में चले गए और परेशानी में पड़ गए . यह योजना जिस तरह से लाई गयी है उससे साफ पता लगता है कि जहां इस योजना को बनाया गया वहां व्यवहारिकता का अभाव था और इसका नुक्सान और परेशानी डीलर्स को उठानी पडी है .

आइये इस सुखद और सरल जीएसटी की कल्पना करें ताकि हमारे देश का करदाता आसानी से उसका पालन कर सके और केवल प्रक्रियाओं में उलझ कर नहीं रह जाए. देखिये यदि इन सुझावों का पालन किया जाए तो एक बड़ी हद तक इस उद्देश्य को प्राप्त कर लिया जाए.

  • सुधीर हालाखंडी |sudhirhalakhandi@gmail.com

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5 Comments

  1. Milind Gudadhe says:

    I think Finance Ministry should conduct a meeting with trade union and professional in every month or two only then they will understand the ground realities of professional and MSME, give one chance to settle all pending return with rational late fees. Zero late fees for nil returns from July-17 to Mar-21

  2. K.S.SHAH says:

    SUDHIRJI, NAMASKAR
    AAPNE BAHUT HI ACHSE HINDI ME GST KA PROBLEM BATAYA LEKIN
    GSTN VALE PROFESSIONAL OR TRADERS VALO KO CHAKKI KE AATA KI MAFAK PISTE HE.
    SUN NE VALE KOY NAHI HE,DIFFICULTY DOOR KAR NE VALE KOY NAHI HE!!!!

  3. Arum Kumar Sinha says:

    I agree . Law does not provide assessee to rectify error in the return against the principle of natural justice.
    If Law provide time ceiling of ITC claim is clear cut crussing the people.ITC is equal to cash . Law should must be made by legislature to see the common people.

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