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इनपुट क्रेडिट के 10 % के प्रतिबन्ध का प्रावधान- अब व्यापार एव उद्योग के लिए बड़ी परेशानी खड़ी करने वाला है

जीएसटी में टैक्स का भुगतान करने  का एक तरीका है जिसके अनुसार डीलर्स अपनी बिक्री पर कर एकत्र करते हैं और इसका भुगतान करते समय अपनी खरीद पर चुकाए गए कर को घटाकर शेष बचे हुए कर का भुगतान  करते हैं . जो कर डीलर्स एकत्र करते हैं उसे आउटपुट टैक्स कहते हैं और जो टैक्स वे देकर आते हैं इसे इनपुट क्रेडिट कहते हैं और जो टैक्स का भुगतान होता है वह आउटपुट टैक्स और इनपुट टैक्स का अंतर होता है. आप इस तरह यह मान सकते हैं कि एक डीलर को जो टैक्स जमा करना होता है वह उसके मार्जिन पर टैक्स होता है इसीलिए जीएसटी एक “वैल्यू एडेड टैक्स” है.

अब मान लीजिये कि किसी डीलर की इनपुट क्रेडिट पर कोई शर्त लगा दी जाये तो क्या होगा ? इसका अर्थ यह होगा कि उतनी इनपुट क्रेडिट उस डीलर को उस माह में नहीं मिलेगी और उस माह में रोकी गई इनपुट क्रेडिट के बराबर उस डीलर को अतिरिक्त कर का भुगतान करना होगा .

अब देखिये किसी डीलर की इनपुट क्रेडिट उसे कितनी मिलेगी यह कैसे तय होगा . अपने व्यवसाय के लिए किसी डीलर ने जो माल या सेवा की खरीद की है उसपर जो कर उन्होंने चुकाया है यदि वह जीएसटी कानून के तहत प्रतिबंधित क्रेडिट नहीं है तो इनपुट क्रेडिट के रूप में उसकी छुट उसे मिल जाती है . अब तक इसकी गणना डीलर अपने द्वारा खरीद किये माल या सेवा पर अपने द्वारा चुकाए कर के रूप में करते थे अर्थात जितना कर उन्होंने चुकाया है उस डीलर की इनपुट क्रेडिट होती थी .

यह स्तिथी अभी हाल ही तक थी जब तक कि दिनांक 9 अक्टूबर 2019 को इस इनपुट क्रेडिट को सीधा ही GSTR-2A में आ रही क्रेडिट से नहीं जोड़ा गया था लेकिन इस तिथी से किसी भी डीलर की इनपुट क्रेडिट को उसके GSTR-2A में आने वाली इनपुट क्रेडिट से जोड़ दिया गया है . देखिये पहले वाली स्तिथी भी कोई आदर्श स्तिथी नहीं थी जिसें इनपुट क्रेडिट के मिस्मेच लम्बे समय तक बिना किसी कार्यवाही के चलते रहे लेकिन इसका जो उपाय अब सरकार द्वारा निकाला गया है उससे तो स्तिथी को बहुत ही खराब होने वाली है. .

आइये पहले यह देख लें किसी भी डीलर का GSTR-2A क्या होता है ? कोई भी विक्रेता जब अपनी बिक्री का एक रिटर्न GSTR-1 बिलों की डिटेल्स के साथ भरता है तो वह जिस डीलर्स को बिक्री की जाती है उसके GSTR- 2A में दिख जाता है और अब 9 अक्टूबर 2019 से यह नियम बना दिया गया कि किसी एक माह में कोई भी डीलर अपने GSTR- 2A में आ रही इनपुट क्रेडिट में उसका 20 प्रतिशत (अब इसे 10 प्रतिशत ही कर दिया गया है ) जोड़ते हुए ही इनपुट  क्रेडिट ले सकता है . आइये इसे भी एक उदाहरण से समझने का प्रयास करें –

एक डीलर की इनपुट इनपुट क्रेडिट अपनी खरीद के अनुसार 10 लाख रूपये है लेकिन उसके GSTR- 2A के अनुसार यह क्रेडिट केवल 5 लाख रूपये ही है तो नए नियम के अनुसार उसे इस माह मिलने वाली कुल इनपुट क्रेडिट जो वह ले सकता है वह GSTR- 2A में आ रही 5 लाख रूपये और इसके अतिरिक्त 20 प्रतिशत  (अब 10 प्रतिशत )होगी अर्थात GSTR- 2A में दिख रही इनपुट क्रेडिट की 120 प्रतिशत (अब 110 प्रतिशत ) होगी जो कि इस केस में कुल 6 लाख रूपये होगी (अब इसे और भी कम कर 5.50 लाख कर दिया गया है ) और अपनी इनपुट क्रेडिट जिसका इस डीलर ने अपने विक्रेताओं को 10 लाख रूपये का भुगतान किया है उसमें 4 लाख रूपये (अब 4.50 लाख रूपये ) की क्रेडिट इस डीलर को नहीं मिलेगी और इस प्रकार से इस डीलर का जमा कराये जाने वाला कर इस 4 लाख रूपये (अब 4.50 लाख रूपये ) से बढ़ जाएगा और इसकी क्रेडिट इस डीलर को तब मिलेगी जब कि यह क्रेडिट GSTR- 2A में दिखाई देगी .

 इस नियम का डीलर्स और विशेषज्ञों की और से जब विरोध हुआ तो उम्मीद यह थी कि सरकार इसमें समय से सम्बंधित छुट देगी अर्थात नहीं आने वाली क्रेडिट को उस माह नहीं रोककर खरीद करने वाले डीलर को मिस्मेच दूर करने के लिए 3 माह से 6 माह का समय दिया जाएगा लेकिन आश्चर्यजनक रूप से ऐसा नहीं हुआ और जीएसटी कौंसिल की 38 वीं मीटिंग में इस 20 प्रतिशत को घटा कर 10 प्रतिशत कर दिया गया और यह 10 प्रतिशत का प्रावधान भी 26 दिसंबर 2019 को जारी किया गया है .

इस नियम के परिणाम यह होंगे कि अब खरीद करने वाले डीलर अपने विक्रेताओं को प्रेरित करेंगे कि वे समय पर अपना कर जमा करा कर अपना रिटर्न भरे और यही सरकार का उद्देश्य भी है और ऐसा अगर कोई सरकार चाहती है तो इसमें कोई गलत भी नहीं है लेकिन यह नियम बनाते समय ना सिर्फ व्यवहारिक पक्ष को बिलकुल ही नजर अंदाज किया गया बल्कि कानून ने जिन विक्रेता डीलर्स को त्रैमासिक रिटर्न भरने की इजाजत दी है उनसे की गई खरीद की इनपुट क्रेडिट को रोक कर अपने ही बनाये गए कानून में एक विरोधाभास भी उत्पन्न कर दिया जिसका ध्यान हमारे कानून निर्म्माताओं को उसी समय दिला दिया गया था जब कि उन्होंने 20% का प्रावधान बनाया था और उम्मीद यह थी कि हमारे कानून निर्माताओं को जब यह बात समझ आएगी तो वे इस कानूनी और व्यवहारिक भूल को दुरुस्त करेंगे लेकिन जब इस 20 प्रतिशत के प्रावधान को घटा कर 10 प्रतिशत कर दिया गया तब यह लगा कि यह कोई भूल नहीं है बल्कि ऐसा सोच समझ कर किया गया है . अपने ही बनाए कानून के साथ कोई सरकार ऐसा कैसे कर सकती है यह अब एक आश्चर्य का विषय है और यह किसी भी कर व्यवस्था के लिए कोई आदर्श या वांछित स्तिथी नहीं है .

अब किसी डीलर के विक्रेता को त्रैमासिक रिटर्न भरना है और और उसके तीसरे रिटर्न की तारीख भी खरीददार के GSTR -3B की तारीख के बाद आती तो ऐसे में ऐसे खरीददार के GSTR- 2A में इस तरह की क्रेडिट आने का सवाल ही नहीं उठता है तो ऐसे में यह इनपुट क्रेडिट को प्रतिबंधित करने का प्रावधान अपने आप में सरकार द्वारा अपने ही बनाये दूसरे प्रावधान का कानूनी और व्यवहारिक विरोधाभास है लेकिन इसके साथ ही इसके और भी व्यवहारिक दुष्परिणाम है जिनके बारे में हम आगे चर्चा कर रहे हैं लेकिन यहाँ यह तो होगा ही कि यदि किसी खरीददार के लिए “जहाँ भी संभव होगा” वह उस डीलर से माल ही नहीं खरीदेगा जो कि त्रैमासिक रिटर्न भरता है जब कि त्रैमासिक रिटर्न भरने की इजाजत भी उस डीलर को जीएसटी कानून ही देता है और यह छोटे और मझोले स्तर के डीलर्स के लिए व्यापार करने की आदर्श स्तिथी नहीं होगी .यहाँ आप ध्यान रखे कि कर एकत्रीकरण के लिए बड़े डीलर्स का अपना महत्त्व है लेकिन छोटे और मझोले स्तर के डीलर्स भारतीय अर्थ व्यवस्था के लिए रीढ़ की हड्डी का काम करते हैं .

इस प्रकार के प्रतिबन्ध के कई दुष्परिणाम भी है जिनकी हम आगे चर्चा करेंगे लेकिन सबसे पहले तो आप यह समझ लें कि निश्चित रूप से डीलर्स की “वर्किंग कैपिटल” इसमें काफी बड़ी मात्रा में फंसने  वाली है जिसे आप ऊपर दिए हुए उदाहरण को ही आगे ले जाते हुए समझने का प्रयास करते हैं .  देखिये ऊपर दिए उदाहरण में यदि एक माह में एक डीलर की 4.50  लाख रूपये इनपुट क्रेडिट रोक ली गई है और इसे केश में जमा करवा लिया गया है और अगले माह यदि डीलर ने अपने विक्रेता से इनपुट क्रेडिट को क्लियर करवा लिया है तब उसकी इनपुट क्रेडिट एक्स्सस हो जायेगी जब कि केश में भुगतान की गये कर का सेट ऑफ तो पहले ही हो चुका था इसलिए यह क्रेडिट एक्स्सस ही रह जायेगी और किसी भी व्यापार में खरीद और बिक्री का मार्जिन तो 5 से 10 प्रतिशत ही होता है इसप्रकार आउटपुट और इनपुट क्रेडिट का फर्क बहुत ही कम होगा और इस प्रकार से अगले माह का टैक्स भुगतान योग्य बहुत ही कम निकलेगा और “क्रेडिट लेजर” में पैसा पडा रह जाएगा . इस प्रकार से इनपुट क्रेडिट का जो एक्स्सस या आधिक्य आता है उसके रिफंड का भी कोई प्रावधान जीएसटी कानून में नहीं है.

इसके अतिरिक्त यदि उसका मिस्मेच अगले माह भी उतना या उससे अधिक रहता है तो फिर उसे केश में पैसा जमा करना पडेगा और यह रकम बढ़ती ही जायेगी और जब भी इनपुट क्रेडिट इस खरीदादार डीलर के क्रेडिट लेजर में आएगी तब वह सामान्य स्तिथियों में हमेशा जितना पैसा उस डीलर ने मिस्मेच के कारण केश में जमा करा दिया है वह  आधिक्य ही रहेगा . अब इस तरह से होगा यह कि एक और तो डीलर यह पैसा विक्रेता को दे चुका होगा और दूसरी और उसे सरकार को भी यह पैसा देना होगा इस प्रकार इस दोहरी मार  से उसकी “कार्यशील पूंजी यानि वर्किंग कैपिटल” फंस जायेगी जिसकी पहले से ही व्यापार में इस समय कमी है .

इसमें किसी को कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए कि जीएसटी की इनपुट क्रेडिट खरीदादार को तभी मिले जब कि विक्रेता अपना कर चुका दे और अपना GSTR-1 भर दे लेकिन यदि विक्रेता रिटर्न देरी से भरता है या नहीं भरता है इस पर हर समय क्रेता का नियंत्रण नहीं होता है और कई व्यवसायिक परिस्थतियाँ ऐसी होती है जिसमें क्रेता को विक्रेता चुनने की स्वत्रन्त्रता नहीं होती है जिसमें माल की उपलब्धता , कई बार सप्लायर का एकाधिकार , वित्तीय व्यवस्था, सप्लायर से क्रेता के स्थान की दूरी  इत्यादि भी यह अधिकार क्रेता से  छीन लेता है कि वह अपने विक्रेता को हमेशा ही चुन सके  और इसी को व्यापार कहते हैं लेकिन एक और बात है कि रिटर्न देरी से भरे जाने के पीछे  “कर चोरी” करना हर बार कारण नहीं होता है विक्रेता की और से रिटर्न देरी से भरने के भी कारण होते है लेकिन इस सब के लिए क्रेता को दण्डित किया जाए यह भी तो उचित नहीं है .

जब भी कर देरी से भरा जाता है तो उस पर विक्रेता को ब्याज तो भरना पड़ता ही है और दूसरी और यदि क्रेता के GSTR-2A में यदि इनपुट क्रेडिट कभी  आती ही नहीं है तो क्रेता को ही  इसे  ब्याज सहित भरना है . जब से जीएसटी लागू हुआ है तब से ऐसी कोई सख्ती नहीं थी कि उसी माह में यदि मिस्मेच है तो क्रेता की इनपुट क्रेडिट रोक दी जाएगी और  क्रेता को उसी माह में कर जमा कराना  ही पडेगा लेकिन अब जो सख्त प्रावधान बनाया गया है वह भी व्यवहारिक नहीं है .

यहाँ ध्यान रखिये राजस्व का भी एक पक्ष है कि वह मिस्मेच को  एक लम्बे  समय तक सहन कर ले यह भी संभव नही है जैसा कि 1 जुलाई 2017 से  अब तक व्यवहारिक रूप से होता आया था लेकिन वह भी करों की इस व्यवस्था के लिए एक आदर्श स्तिथी नहीं थी . लेकिन एक माह के भीतर ही इनपुट क्रेडिट रोक दी जाए तो यह भी न्यायसंगत नहीं है.

जीएसटी एक नया कानून है समस्याएं तो आएँगी ही और इसके लिए आप हमेशा कानून निर्माताओं को पूरी तरह से जिम्मेदार भी  नहीं ठहरा सकते और क्यों कि इतने बड़े कानूनी परिवर्तन के लिए किसी भी सरकार के पास पिछला कोई अनुभव हो ऐसा सोचना भी हमारी अपरिपक्वता ही होगी और केवल समस्या पर चर्चा कर लें इससे कोई हल भी नहीं निकलना है तो आइए विचार करें कि इस समस्या का हल क्या है .

आइये इस लेख के अंत में आपको बताते हैं कि सरकार को एक आदर्श स्तिथी जिसमें राजस्व के हक़ भी सुरक्षित रह जाए और डीलर भी परेशान नहीं इसके लिए अब क्या करना चाहिए क्यों कि यदि इनपुट क्रेडिट के 10 प्रतिशत  के प्रावधान को जारी रखा गया तो इसका भारतवर्ष के व्यापार और उद्योग विशेष तौर पर छोटे और मझोले स्तर के डीलर्स पर बहुत बुरा असर पडेगा . सरकार को इनपुट क्रेडिट का मिस्मेच क्लियर करने के लिए  क्रेता को इतना समय  दिया जाना चाहिए कि वह अपने विक्रेता से संपर्क कर मिस्मेच को समाप्त करने की कोई प्रक्रिया प्रारम्भ कर इसका निवारण कर सके और इसके लिए कम से कम 3 माह से 6 माह का समय दिया जाना चाहिए तो यह  कर एकत्रीकरण के लिए भी आदर्श स्तिथी होगी और कर चुकाने वाले डीलर्स  के लिए भी यह एक सरलीकृत व्यवस्था होगी .

आइये इन्तजार करें कि यह समस्या सुलझाने के लिए सरकार  अब यह सुझाव या इससे ही मिलता जुलता सुझाव कब तक स्वीकार करती है क्यों कि भारतीय उद्योग एवं व्यापार को इस राहत की अतिशीघ्र जरुरत है .

  • नव वर्ष शुभकामनाओं के साथ

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One Comment

  1. Naveen says:

    is sarkar se sarlikaran expect karna ek bevkufi h.
    ye sarkar satta me choor nirnkush shashak bn behti h.
    inke commitment to matra ek jumla hota h
    asl me to ye garibi nhi garib virodhi h

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