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Summary: सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त 2024 को जस्टडायल लिमिटेड की याचिका पर सुनवाई की, जिसमें मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई थी। उच्च न्यायालय ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) को निर्देश दिया था कि वह वकीलों द्वारा ऑनलाइन विज्ञापन हटाए और शिकायतें दर्ज करें, जो नियम 36 का उल्लंघन करते हैं। इस आदेश ने जस्टडायल और अन्य ऑनलाइन प्लेटफार्मों को प्रभावित किया, जिन्होंने वकीलों की सेवाओं को ऑनलाइन प्रदर्शित किया। सुप्रीम कोर्ट ने बीसीआई से जवाब मांगा कि क्या जस्टडायल की सेवाएँ अधिवक्ता अधिनियम और बीसीआई नियमों के अनुरूप हैं। जस्टडायल के वरिष्ठ अधिवक्ता ने उच्च न्यायालय के आदेश को स्थगित करने की अपील की, यह तर्क करते हुए कि उनका प्लेटफॉर्म केवल वकीलों को कनेक्ट करने की सुविधा प्रदान करता है। सुप्रीम कोर्ट ने बीसीआई से जवाब का इंतजार करने का निर्णय लिया और नोटिस जारी किया, जिसमें तीन सप्ताह का समय दिया गया है। यह मामला बीसीआई के नियमों और वकीलों के विज्ञापन के व्यवसायीकरण के मुद्दों को लेकर महत्वपूर्ण है।

जस्टडायल.कॉम, जस्ट डायल लिमिटेड बनाम पीएन विग्नेश एवं अन्य  सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया एसएलपी (सी) नंबर 17844/2024

सुप्रीम कोर्ट ने 14.08.2024 को मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ जस्टडायल(Justdial) की याचिका पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI )से जवाब मांगा, जिसमें वकीलों द्वारा प्रकाशित विज्ञापनों को हटाने का निर्देश दिया गया था।

न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की खंडपीठ ने इस बात की जांच करने की आवश्यकता पर बल दिया कि क्या जस्टडायल की व्यावसायिक गतिविधियां अधिवक्ता अधिनियम और बीसीआई विनियमों का अनुपालन करती हैं।

न्यायालय ने कहा, “आपको यह देखना होगा कि आपकी व्यावसायिक गतिविधियां (एडवोकेट्स) अधिनियम और बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अनुरूप हैं। आइए हम उनकी प्रतिक्रिया देखें। इसमें एक ध्रुवीकरण है।”

मद्रास उच्च न्यायालय के जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम और जस्टिस सी कुमारप्पन की खंडपीठ ने दिनांक 03.07.2024 में बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) को निर्देश दिया था। कि वह दिशानिर्देश जारी कर राज्य बार काउंसिलों से उन वकीलों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने का आग्रह करे जो विज्ञापनों, संदेशों और दलालों के माध्यम से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से काम मांगते हैं।

इसने बीसीआई को क्विकर( Quicker), सुलेखा (sulekha) और जस्टडायल(Justdial )जैसे ऑनलाइन सेवा प्रदाताओं/मध्यस्थों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का निर्देश दिया था, जो बार काउंसिल ऑफ इंडिया नियमों के नियम 36 का उल्लंघन करते हैं।

यहां तक कि इसने बार काउंसिल को निर्देश दिया कि वह ऐसे विज्ञापनों को हटा दे जो वकीलों द्वारा ऐसे ऑनलाइन सेवा प्रदाताओं के माध्यम से पहले ही प्रकाशित किए जा चुके हैं, तथा मध्यस्थों को भविष्य में ऐसे विज्ञापन प्रकाशित न करने की सलाह दे।

इसके परिणामस्वरूप जस्टडायल ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की।

आज सुनवाई के दौरान जस्टडायल के वरिष्ठ अधिवक्ता रितिन राय ने न्यायालय से उच्च न्यायालय के आदेश को स्थगित रखने का आग्रह किया। उन्होंने तर्क दिया कि यह मंच केवल वादियों को वकीलों से जुड़ने में सुविधा प्रदान करने के लिए ऑनलाइन निर्देशिका सेवाएँ प्रदान करता है।

हालाँकि, न्यायालय ने सवाल उठाया कि जस्टडायल इस आदेश से कैसे असंतुष्ट था।अदालत ने पूछा, “क्या यह निषिद्ध प्रथाओं के अंतर्गत नहीं आता? आप इससे कैसे असंतुष्ट हैं?”

राय ने न्यायालय को बताया कि बीसीआई ने उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार पहले ही निष्कासन नोटिस जारी कर दिया है।उन्होंने अनुरोध किया कि आदेश पर रोक लगाई जाए।

हालाँकि, न्यायालय ने बीसीआई के जवाब का इंतजार करने का निर्णय लिया और तदनुसार एक नोटिस जारी किया, जिसका जवाब तीन सप्ताह में देना है।

मद्रास उच्च न्यायालय का यह निर्देश पी.एन. विग्नेश नामक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर आया, जिसमें उन वेबसाइटों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी जो अपनी वेबसाइटों पर “ऑनलाइन वकील सेवाएं” प्रदान करती हैं।उच्च न्यायालय ने वकीलों के बीच “ब्रांडिंग संस्कृति” के बारे में नकारात्मक दृष्टिकोण अपनाया था।

इसने कहा कि वेबसाइटें बिना किसी आधार के रेटिंग देती हैं और यह स्पष्ट है कि वे वकीलों की कानूनी सेवाएं एक निश्चित कीमत पर बेच रही हैं, जो बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों के विरुद्ध है।

इसने इस बात पर जोर दिया कि इस पेशे को किसी भी तरह से व्यवसाय नहीं माना जा सकता, किसी भी तरह का विज्ञापन या आग्रह पेशे की अखंडता को कम करता है।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने 06.07.2024  को देश भर के राज्य बार काउंसिलों और कई ऑनलाइन प्लेटफार्मों को निर्देश जारी किए कि वे उच्च न्यायालय के फैसले के अनुपालन में वकीलों द्वारा काम मांगने वाले ऑनलाइन विज्ञापनों को हटा दें।

ताकि सनद

कानूनी पेशा कोई व्यवसाय नहीं: मद्रास उच्च न्यायालय ने वकीलों द्वारा ऑनलाइन विज्ञापन हटाने का आदेश दिया।

मद्रास उच्च न्यायालय

के आदेश रिट पिटीशन संख्या 31281 और 31428/2019में दिनांक 03.07.2024 के बाद, बीसीआई ने राज्य बार काउंसिलों और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म को वकीलों के विज्ञापन हटाने का निर्देश दिया

सभी राज्य बार काउंसिलों को निर्देश दिया गया है कि वे बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों का उल्लंघन कर ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से विज्ञापन देने या काम मांगने वाले वकीलों के खिलाफ कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई करें।

भारतीय विधि परिषद (बार काउंसिल आफ इंडिया) ने विधि व्यवसाय में कार्यरत अधिवक्ताओं के लिए सभी स्टेट बार  काउंसिल को एक परिपत्र BCI D 3417/2024/06.07.2024 जारी करते हुए। उन अधिवक्ताओं के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए कहा है।  जो विधि व्यवसाय के लिए विज्ञापन या ऑनलाइन माध्यम से विधि व्यवसाय के लिए अनुशंसा करते हैं या कराते हैं।

निष्कर्ष

उपरोक्त पिटीशन से स्पष्ट है। कि आने वाले समय में अधिवक्ता अधिनियम 1961 की अधिकृत संस्था बार काउंसिल आफ इंडिया द्वारा निर्मित नियमों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में स्पष्ट हो पाएगा। कि बार काउंसिल आफ इंडिया की नियमावली कितनी सार्थक है? जिस प्रकार देश में व्यवसायकरण हो रहा है ।उस दृष्टि से अधिवक्ता अधिनियम 1961 के अंतर्गत धारा 36 का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। वैसे माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा नोटिस जारी करते समय याचिका कर्ता पर प्रश्न चिन्ह लगाया है , और 3 सप्ताह का समय देते हुए बार काउंसिल आफ इंडिया से इस विषय में जवाब मांगा है।

यह लेखक के निजी विचार हैं।

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मेरा नाम संजय शर्मा हैं।मैं उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में इनडायरेक्ट टैक्सेस में वकालत करता हूं ।तथा मेरी शैक्षिक � View Full Profile

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