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तीन नए आपराधिक कानून 1 जुलाई 2024 से लागू हो जाएंगे। सरकार ने शनिवार (24 फरवरी) को इससे जुड़ी अधिसूचना जारी कर दी है। यानी अब इंडियन पीनल कोड (IPC) की जगह भारतीय न्याय संहिता2023, क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (CrPC) की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023और एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम2023 लागू हो जाएगा।

नए कानून के लागू होने के बाद जो धाराएं अपराध की पहचान बन चुकी थीं।उनमें भी बदलाव होगा। जैसे हत्या के लिए लगाई जाने वाली IPC की धारा 302 अब धारा 101 कहलाएगी। ठगी के लिए लगाई जाने वाली धारा 420 अब धारा 316 होगी। हत्या के प्रयास के लिए लगाई जाने वाली धारा 307 अब धारा 109 कहलाएगी। वहीं दुष्कर्म के लिए लगाई जाने वाली धारा 376 अब धारा 63 होगी। यह कि तीनों कानून को पिछले साल 21 दिसंबर 2023 को संसद की मंजूरी मिली थी ।इसके बाद राष्ट्रपति द्रोपति मुर्मू ने 25 दिसंबर 2023 को इन पर हस्ताक्षर करके कानून बनाया था ।तथा इनके प्रभावी दिनांक 1 जुलाई 2024 निर्धारित की गई थी।

पूर्व 3 विधेयकों से क्या बदलाव हुए?

कई धाराएं और प्रावधान बदल गए हैं। IPC में 511 धाराएं थीं, अब 356 बची हैं। 175 धाराएं बदल गई हैं। 8 नई जोड़ी गईं, 22 धाराएं खत्म हो गई हैं। इसी तरह CrPC में 533 धाराएं बची हैं। 160 धाराएं बदली गईं हैं, 9 नई जुड़ी हैं, 9 खत्म हुईं। पूछताछ से ट्रायल तक सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से करने का प्रावधान हो गया है, जो पहले नहीं था।सबसे बड़ा बदलाव यह है। कि अब ट्रायल कोर्ट को हर फैसला अधिकतम 3 साल में देना होगा। देश में 5 करोड़ केस पेंडिंग हैं। इनमें से 4.44 करोड़ केस ट्रायल कोर्ट में हैं। इसी तरह जिला अदालतों में जजों के 25,042 पदों में से 5,850 पद खाली हैं।

भारतीय न्याय संहिता 2023 (BNS 2023)में क्या बड़े बदलाव हुए-

भारतीय न्याय संहिता (BNS) में 20 नए अपराध जोड़े गए हैं।

ऑर्गेनाइज्ड क्राइम, हिट एंड रन, मॉब लिंचिंग पर सजा का प्रावधान।

डॉक्यूमेंट में इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड शामिल हैं।

IPC में मौजूद 19 प्रावधानों को हटा दिया गया है।

33 अपराधों में कारावास की सजा बढ़ा दी गई है।

83 अपराधों में जुर्माने की सजा बढ़ा दी गई है।

छह अपराधों में सामुदायिक सेवा की सजा का प्रावधान किया गया है।

3 अपराधिक कानूनों का विश्लेषण

नए अपराध कानून से प्रमुख बदलाव निम्न प्रकार हैं

नाबालिक से रेप के दोषी को उम्र कैद या फांसी होगी। पहले रेप की धारा 375, 376 थी जिसे अब धारा 63, 69 के रूप में जाना जाएगा ।

पहले हत्या की धारा 302 थी ।जिसे अब धारा 101 के रूप में जाना जाएगा ।

गैंगरेप के अपराधी को 20 साल तक की सजा या जिंदा रहने तक सजा का प्रावधान किया गया है।

अब मॉब लिंचिंग में फांसी की सजा का प्रावधान किया गया है। 

दुर्घटना के संबंध में निम्न प्रावधान किए गए हैं –

यदि किसी वाहन से कोई एक्सीडेंट होता है। तथा ड्राइवर घायल व्यक्ति को अस्पताल या पुलिस स्टेशन ले जाता है। तो कम सजा का प्रावधान किया गया है ।

हिट एंड रन केस में 10 साल की सजा का प्रावधान किया गया है। इसने स्नेचिंग के लिए कानून बना दिया गया है। 

अभी तक सिर पर लाठी मारने वाले पर अभी तक सामान्य झगड़े की धाराएं लगती थी। उसमें परिवर्तन करते हुए ।उस चोट को विक्टिम के ब्रेन डेड की स्थिति में अपराध सिद्ध होने पर 10 साल की सजा का प्रावधान किया गया है। 

ट्रायल की स्थिति –

अब किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने पर उसके परिवार को सूचित करना अनिवार्य कर दिया गया है।

 किसी भी केस में 90 दिन में क्या हुआ, इसकी जानकारी पुलिस आरोपित व्यक्ति को देगी।

 अगर आरोपी 90 दिन के भीतर कोर्ट के सामने पेश नहीं होता है ।तो उसकी गैर मौजूदगी में भी ट्रायल की कार्रवाई होगी।

 गंभीर मामलों में आधी सजा काटने के बाद रिहाई मिल सकती है।

 अब ट्रायल कोर्ट में अधिकतम 3 वर्ष में फैसला देना होगा।

 केस समाप्त होने के पश्चात जज को 43 दिन में फैसला देना होगा। और फैसले के 7 दिन के अंदर सजा सुनी होगी ।

अब दया याचिका में केवल दोषी व्यक्ति ही उसकी अपील कर सकेगा। 

भारतीय न्याय संहिता 2023की धारा 106(2)  अभी विचाराधीन है।

नए आपराधिक कानून भ्रम पैदा करते हैंI और वकीलों पर काम का बोझ बढ़ाते हैं:-

नए आपराधिक कानून 1 जुलाई 2024 से लागू किए जाने हैंI जिस पर अधिवक्ता समाज ने आपत्ति दर्ज करते हुए माननीय सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक याचिका प्रस्तुत की हैI इस याचिका के माध्यम से इन आपराधिक कानून के संबंध में उन्हें विचार करना और जिन विषय से भ्रम की स्थिति पैदा हुई हैI उस पर चर्चा करके तीनों आपराधिक कानून के संबंध में संशोधन किया जाना आवश्यक हैI इस WRIT के आधार को निम्न तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत किया गया है-

नए आपराधिक कानूनों (New Criminal Laws) का आकलन करने के लिए एक्सपर्ट कमेटी की मांग करने वाली सुप्रीम कोर्ट की जनहित याचिका दायर की गई। याचिका में कहा गया कि ये कानून भ्रम पैदा करते हैंI और वकीलों पर काम का बोझ बढ़ाते हैं।

3 New Criminal Laws की व्यवहारिकता का आकलन करने और उनकी पहचान करने के लिए तत्काल एक्सपर्ट कमेटी गठित करने के लिए विशिष्ट निर्देश जारी करने की मांग करने वाली एक याचिका सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर की गई। इसके अलावा, AOR कुंवर सिद्धार्थ द्वारा दायर याचिका में तीन New Criminal Laws के संचालन और कार्यान्वयन पर रोक लगाने के लिए भी न्यायालय से प्रार्थना की गई है।

ये कानून, अर्थात भारतीय न्याय संहिता2023 (BNS2023), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता2023(BNSS2023) और भारतीय साक्ष्य संहिता 2023 (BSS2023) क्रमशः भारतीय दंड संहिता 1860, दंड प्रक्रिया संहिता 1898और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की जगह लेंगे, जो 1 जुलाई, 2024 से प्रभावी होंगे।

सबसे पहले, याचिकाकर्ता अंजले पटेल और छाया मिश्रा ने तर्क दियाहैं ।

कि मौजूदा कानूनों के शीर्षक सटीक नहीं हैं। याचिका में कहा गया कि क़ानून की व्याख्या के अनुसार, इन प्रस्तावित विधेयकों के शीर्षक क़ानून और उनके उद्देश्य को स्पष्ट रूप से नहीं दर्शाते हैं। इसके बजाय, अधिनियमों के मौजूदा नाम अस्पष्ट हैं।इसके अलावा, याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि अधिनियमों में विसंगतियां हैं।

बीएनएस 2023(BNS23023)के बारे में कहा गया। कि इसमें आईपीसी के अधिकांश अपराध शामिल हैं। इसके अलावा, बीएनएस छोटे संगठित अपराध को अपराध के रूप में परिभाषित करता है। इसमें वाहन चोरी, जेबकतरी, सार्वजनिक परीक्षा के प्रश्नपत्र बेचना और गिरोहों द्वारा किए गए संगठित अपराधों के अन्य रूप शामिल हैं। इस तरह से विचार किए जाने के लिए इन अपराधों को (i) नागरिकों में असुरक्षा की सामान्य भावना पैदा करनी चाहिए और (ii) संगठित आपराधिक समूहों या गिरोहों द्वारा किया जाना चाहिए, जिसमें मोबाइल संगठित अपराध समूह शामिल हैं।

हालांकि, “असुरक्षा की सामान्य भावना” शब्द को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया। इसके अतिरिक्त, भारतीय न्याय संहिता 2023’गिरोह’, ‘लंगर बिंदु’ और ‘मोबाइल संगठित अपराध समूह’ जैसे शब्दों को परिभाषित नहीं करती है।

बीएनएसएस 2023 (BNSS 2023) में प्रमुख मुद्दे पर जोर देते हुए। तर्क दिया। कि यह 15 दिनों तक की पुलिस हिरासत की अनुमति देता है।जिसे न्यायिक हिरासत की 60 या 90-दिन की अवधि के शुरुआती 40 या 60 दिनों के दौरान भागों में अधिकृत किया जा सकता है। यह प्रावधान पूरी अवधि के लिए जमानत से इनकार कर सकता है। यदि पुलिस ने हिरासत के 15 दिनों की अवधि समाप्त नहीं की है।

याचिका में वी. सेंथिल बालाजी बनाम राज्य के हा के सुप्रीम कोर्ट के मामले का हवाला दिया गया। जिसमें न्यायालय ने इस प्रश्न को बड़ी पीठ को संदर्भित किया। विचाराधीन मुद्दा यह है ।कि “क्या पुलिस हिरासत की 15-दिन की अवधि रिमांड के पहले 15 दिनों तक सीमित होनी चाहिए या जांच की पूरी अवधि तक बढ़ाई जानी चाहिए – 60 या 90 दिन, जैसा भी लागू हो। विधेयक हिरासत, पुलिस हिरासत और हथकड़ी के उपयोग से संबंधित प्रावधानों में संशोधन करता है। जो मुद्दे पेश करेगा।”

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि विधेयक बिना किसी उचित संसदीय बहस के पारित किए गए।क्योंकि अधिकांश सांसद निलंबित थे। इस प्रकार, इस तरह की कार्रवाई से विधेयकों के तत्वों पर कोई बहस नहीं हुई ।और न ही कोई चुनौती दी गई। उल्लेखनीय है। कि जब 20 दिसंबर को लोकसभा में संबंधित विधेयक पारित किए गए तो 141 विपक्षी सांसद (दोनों सदनों से) निलंबित हो गए।

याचिका ने ऐसे अवसर की ओर भी ध्यान आकर्षित किया। जब पूर्व सीजेआई एनवी रमना ने 2021 में उचित संसदीय बहस के बिना कानूनों के अधिनियमन के बारे में चिंता जताई थी।

उन्होंने कहा था। कि 

“संसदीय बहस लोकतांत्रिक कानून निर्माण का मूलभूत हिस्सा है। संसद में सदस्य मतदान से पहले विधेयकों पर बहस करते हैं। बहस सार्वजनिक होती है, इसलिए वे संसद सदस्यों (सांसदों) को सदन में मतदाताओं के विचारों का प्रतिनिधित्व करने और मतदाताओं की चिंताओं को आवाज़ देने का अवसर प्रदान करते हैं।”

अंत में बीएसए 2023(BSA 2023)के बारे में अपनी चिंताओं को उठाते हुए इसने कहा। कि यह इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की स्वीकार्यता प्रदान करता है।लेकिन इसमें जांच प्रक्रिया के दौरान इन रिकॉर्डों से छेड़छाड़ और संदूषण को रोकने के लिए सुरक्षा उपायों का अभाव है।

आगे कहा गया,

“भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 के साथ मुख्य मुद्दे यह हैं  कि सुप्रीम कोर्ट ने माना कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के साथ छेड़छाड़ की जा सकती है… वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को दस्तावेज़ के रूप में स्वीकार्य होने के लिए प्रमाणपत्र द्वारा प्रमाणित किया जाना चाहिए। भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 स्वीकार्यता के लिए इन प्रावधानों को बरकरार रखता है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को भी दस्तावेज़ के रूप में वर्गीकृत करता है (जिसे प्रमाणीकरण की आवश्यकता नहीं हो सकती है)।”

अधिवक्ताओं पर संभावित प्रभाव –

इसमें कहा गया कि नए आपराधिक विधेयकों के आने से वकीलों पर कई तरह से असर पड़ सकता है, जिससे कई तरह की चुनौतियां सामने आ सकती हैं।

संसाधन की कमी:- छोटे और मध्यम आकार के कानूनी फर्मों के साथ-साथ व्यक्तिगत रिसर्चर को लॉ लाइब्रेरी को अपडेट करने, अपडेट किए गए केस लॉ संदर्भों तक पहुंचने और नए आपराधिक विधेयकों के तहत मुवक्किलों का प्रभावी ढंग से प्रतिनिधित्व करने के लिए आवश्यक संसाधनों को प्राप्त करने के मामले में संसाधन की कमी का सामना करना पड़ सकता है।

निरंतर कानूनी शिक्षा: -वकीलों को नए आपराधिक कानूनों से अवगत रहने के लिए अतिरिक्त समय और संसाधनों का निवेश करने की आवश्यकता हो सकती है, जिससे नए कानूनी ढांचे के तहत मामलों को संभालने में सक्षमता सुनिश्चित करने के लिए निरंतर कानूनी शिक्षा और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।

कानूनी अभ्यास पर प्रभाव: नए आपराधिक विधेयकों के आने से कानूनी अभ्यास में समायोजन की आवश्यकता हो सकती है, जिससे वकीलों को अपनी रणनीतियों, केस की तैयारी और वकालत तकनीकों को विकसित कानूनी परिदृश्य के साथ संरेखित करने की आवश्यकता हो सकती है।

जटिलता और अस्पष्टता: -नए आपराधिक विधेयकों के आने से जटिल कानूनी प्रावधान, अस्पष्ट भाषा या जटिल प्रक्रियात्मक आवश्यकताएं आ सकती हैं। वकीलों को इन जटिलताओं की व्याख्या करने और उनसे निपटने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जिससे संभावित रूप से देरी और कानूनी अनिश्चितताएं हो सकती हैं।

कार्यभार में वृद्धि: -नए आपराधिक विधेयकों के आने से कानूनी मामलों में वृद्धि हो सकती है, जिससे वकीलों पर कार्यभार बढ़ सकता है। इससे संसाधनों पर दबाव पड़ सकता है और समय पर और प्रभावी कानूनी प्रतिनिधित्व प्रदान करने में संभावित चुनौतियां आ सकती हैं।

बढ़ी हुई कानूनी जांच: -आपराधिक मामलों में मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों को नए विधेयकों के तहत कड़ी जांच और जवाबदेही का सामना करना पड़ सकता है। संभावित रूप से नैतिक विचारों, मुवक्किल की गोपनीयता और संशोधित कानूनी मानकों के पालन से संबंधित चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

प्रक्रियात्मक परिवर्तन और न्यायालय प्रथाएं:- नए आपराधिक विधेयकों के तहत न्यायालय प्रक्रियाओं, दाखिल करने की आवश्यकताओं और साक्ष्य मानकों में बदलाव की आवश्यकता हो सकती है, जिसके लिए वकीलों को संशोधित न्यायालय प्रथाओं और साक्ष्य के नियमों के अनुकूल होने की आवश्यकता हो सकती है।

कानूनी वकालत प्रतिबंधों की संभावना: -वकीलों की अपने मुवक्किलों की ओर से जोरदार वकालत करने की क्षमता को नए आपराधिक विधेयकों के कुछ प्रावधानों के तहत प्रतिबंधों या सीमाओं का सामना करना पड़ सकता है, जिससे मजबूत कानूनी प्रतिनिधित्व प्रदान करने की उनकी क्षमता प्रभावित हो सकती है। नए आपराधिक विधेयकों के आने से कानूनी सहायता और निःशुल्क सेवाओं तक पहुँच प्रभावित हो सकती है, जिससे हाशिए पर पड़े और वंचित लोगों को व्यापक कानूनी सहायता प्रदान करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

इसके अलावा, नए आपराधिक विधेयक पिछले विधेयकों से कोई बड़ा बदलाव नहीं करते हैं। जिससे नागरिकों में भ्रम की स्थिति पैदा होती है ।और पुलिस को अधिक शक्ति मिलती है।जिससे मौलिक अधिकारों का दमन हो सकता है। भारतीय कानूनों को उपनिवेशवाद से मुक्त करने के इरादे के बावजूद।ये विधेयक नए स्पष्टीकरण के बिना मौजूदा कानूनों को बड़े पैमाने पर दोहराते हैं।इसके बजाय ऐसी शक्तियां जोड़ते हैं ।जो डर पैदा कर सकती हैं ।और नागरिकों के अधिकारों को कमजोर कर सकती हैं।

याचिका में निम्न प्रार्थनाएं  हैं-:

1. कृपया रिट या कोई अन्य उपयुक्त रिट जारी करें, जिसमें विशिष्ट निर्देश, नीतियां और विनियमन जारी करने की मांग की गई हो। इस पर तुरंत एक्टसपर्ट कमेटी गठित करने के लिए दिशा-निर्देश और निर्देश आरंभ करें, जो देश के आपराधिक कानूनों में सुधार करने और भारतीय दंड संहिता 1860, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 को समाप्त करने के उद्देश्य से तीन नए संशोधित आपराधिक कानूनों भारतीय न्याय संहिता, 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की व्यवहार्यता का आकलन और पहचान करेगी।

2. न्याय के हित में भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 के संचालन और कार्यान्वयन पर रोक लगाने के लिए परमादेश/निर्देश जारी करें।

लेखक के विचार

यह कि 1 जुलाई 2024 से प्रस्तावित 3 नए कानून के संबंध में विवाद ने भी जन्म ले लिया है । पूर्व में भी जीएसटी अधिनियम बनाते समय सावधानी नहीं बरती गई थी जिसके कारण टैक्स प्रोफेशनल को बहुत अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ा था। और अब जिस प्रकार से पूरे देश को प्रभावित करने वाली व्यवस्था में परिवर्तन किया जा रहा है ।उसके विषय में सरकार को विशेषज्ञों से ,कानूनीविदो से चर्चा की जाने अत्यंत आवश्यक है। यह तीनों कानून जल्दबाजी में बनाए और लागू किया जा रहे हैं ।इन कानून को लागू करने से पूर्व पूरे देश में कानूनविदो से चर्चा, परिचर्चा ,कॉन्फ्रेंस आदि का आयोजन निचले स्तर तक किया जाना आवश्यकता था।यह कि माननीय सुप्रीम कोर्ट, उच्च न्यायालय, बार काउंसिल आफ इंडिया ,स्टेट बार काउंसिल और जिला स्तर पर बार एसोसिएशन को अधिवक्ताओं के हितों का ध्यान रखते हुए इन कानून पर परिचर्चा ,चर्चा ,अधिवक्ताओं के लिए सेमिनार, ट्रेनिंग, और IT से जुड़ी हुई समस्याओं के निदान पर विचार विमर्श किया जाना चाहिए। यह तो स्पष्ट है। कि अभी तक देश में माननीय सुप्रीम कोर्ट ,उच्च न्यायालय में अंग्रेजी भाषा का दब दबा है ।हमें अपने डॉक्यूमेंट ,WRIT सभी अंग्रेजी में ही दायर करनी होती है ।तथा भारत का संविधान कानून के लिए अंग्रेजी भाषा के आधार को स्वीकार करता है ।यदि सरकार उचित समझती है ।तो वह इन तीनों कानून के नाम में परिवर्तन ना करते हुए। पुराने कानून में ही संशोधन कर सकती थी ।और न्याय प्रक्रिया में शामिल व्यक्तियों को एक नई समस्या का सामना नहीं करना पड़ता।

यह लेखक के निजी विचार हैं। यह लेख किसी साक्ष्य के लिए नहीं है।

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