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कंपनी एवं डाइरेक्टर के बीच व्यवहार पर जीएसटी प्रावधान

कंपनी और डाइरेक्टर के बीच सामान्यत: निम्न प्रकार के व्यवहार होते हैं :

  • कंपनी द्वारा डाइरेक्टर को रेमूनेरेशन
  • डाइरेक्टर द्वारा बैंक / आर्थिक संस्थानो को पर्सनल गारंटी
  • कंपनी द्वारा डाइरेक्टर को जमीन जायदाद का किराया देना
  • डाइरेक्टर का कंपनी को व्व्यक्तिगत रूप में प्रोफेशनल / मैनेजमेंट / कंसल्टेंसी सेवाएँ देना

इन सभी व्यवहारों पर जीएसटी लगेंगा या नहीं लगेंगा इसके बारे मे मेरे विचार इस लेख द्वारा समझाने का प्रयत्न किया गया है ।

  • डाइरेक्टर रेमुनरेशन : यदि पूर्ण कालिक डाइरेक्टर ( होल टाइम डाइरेक्टर ) या मैनिजिंग डाइरेक्टर को कंपनी रेमूनेरेशन दिया जा रहा है तो यह नियोक्ता ( एम्प्लायर ) , कर्मचारी ( एम्प्लोयी ) संबंध माना जाएंगा और जीएसटी नहीं लगेंगी । यंहा यह ध्यान रखना चाहिए की आय कर के टीडीएस प्रावधान के अंतर्गत टीडीएस धारा १९२ मे काटा जाना चाहिए ।धारा १९४ जे मे नहीं काटा जाना चाहिए । अगर अगर नॉन – एक्जिकुटिव डाइरेक्टर या को वेतन या सिटिंग फीस दी जा रही है तो कंपनी को रिर्वस चार्ज के अंतर्गत जीएसटी भर्ना पड़ेंगा ।
  • डाइरेक्टर द्वारा बैंक / आर्थिक संस्थानो को पर्सनल गारंटी : यदि कंपनी के डाइरेक्टर के द्वारा बिना किसी प्रतिफल ( कंसिडरेशन ) के बैंक / आर्थिक संस्थाओ को क्रेडिट सुविधा उपलब्ध कराने के लिए व्यक्तिगत गारंटी दी गयी है तो ऐसे केस मे जीएसटी नहीं लगेंगा ।

GST provisions on dealings between company and director

  • कंपनी द्वारा डाइरेक्टर को जमीन जायदाद का किराया देना : डाइरेक्टर द्वारा कंपनी को प्रॉपर्टि किराए पर देना यह सेवा डाइरेक्टर के रूप मे कंपनी को दी गयी सेवा के अंतर्गत नहीं आती है । यह सेवा डाइरेक्टर द्वारा अपनी व्यक्तिगत रूप मे कंपनी को प्रदान की जा रही है इसलिए इस सेवा के लिए डाइरेक्टर को फॉरवर्ड चार्ज मे जीएसटी लगाना पड़ेंगा । अगर डाइरेक्टर अपने अग्रीगेट टर्नओवर के हिसाब से जीएसटी मे पंजीकृत होने के लिए बढ़ी है तो वह फॉरवर्ड चार्ज मे जीएसटी लगायेंगा अन्यथा नहीं ।
  • डाइरेक्टर का कंपनी को व्व्यक्तिगत रूप में प्रोफेशनल / मैनेजमेंट / कंसल्टेंसी सेवाएँ देना: अगर डाइरेक्टर ऐसी कोई भी सेवा जो व्यक्तिगत रूप मे देता है तो उस परिसतिथी मे डाइरेक्टर की जिम्मदारी है की वह फॉरवर्ड चार्ज मे जीएसटी लगाए । कंपनी आरसीएम के अंतर्गत जीएसटी नहीं भरेगी । टीडीएस भी धारा १९४ जे मे भरा जाएंगा । उदाहरन्णार्थ अगर कोई कोचिंग कंपनी मे डाइरेक्टर ( जो की स्वय एक टीचर है) टीचिंग सेवाएँ देता है तो उसे इस सेवा पर फॉरवर्ड चार्ज मे जीएसटी लगाना पड़ेंगा । ( अगर वह जीएसटी मे पंजीकृत है तो ही ) । यह सेवाएँ एम्प्लोयेर – एम्प्लोयी सेवा मे नहीं पकड़ी जाएंगी ।

जीएसटी डिपार्टमेंट ने सर्क्युलर नो। २०१/१३/२०२३-जीएसटी ता। १ अगस्त २०२३ मे यह स्पष्ट कर दिया है की ऐसी कोई भी सेवा जिनहे डाइरेक्टर अपनी पर्सनल कपकिती मे कंपनी को प्रदान करता है – जैसे की जमीन जायदादा किराए पर देना , प्रॉफेश्नल सेवा देना इत्यादि ऐसे केसेस मे ये सेवाएँ आर सी एम के अंतर्गत नहीं आएंगी । इसके पहले कंपनी को कई बार सिर्फ आरसीएम की अप्प्लिकेबिलिटी के कारण जीएसटी मे पंजीकृत होना पड़ता था ।

कंपनी को आरसीएम के अंतर्गत जीएसटी लायबिलिटी सिर्फ उसी केस मे आ सकती है जब वह किसी नॉन एक्सेकुटिव डाइरेक्टर या इंडिपेंडेंट डाइरेक्टर को रेमुंरेशन देती है ।

कंपनीयों को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए की जब वह अपने डाइरेक्टर को पगार देती है तो उस डाइरेक्टर को होल टाइम डाइरेक्टर या मैनिजिंग डाइरेक्टर  बनाए एवं उस के साथ बाकायदा एक करार करे जिसमे इस पगार का उल्लेख हो । एवं इस पगार पर आय कर के टीडीएस प्रावधान के अंतर्गत धारा १९२ मे टीडीएस काटे।  ऐसा करने पर जीएसटी की लायबिलिटी नहीं आएंगी ।

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संकलन : सी ए सतीश गिरधरलाल सारडा | ईमेल – satishsardanagpur@gmail.com

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