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1. Fake invoice रोकने के उपाय

राजस्व सचिव संजय मल्होत्रा ने कहा कि सरकार अगले वित्तीय वर्ष 202-/25 में खरीदारों और विक्रेताओं को उनके चालान लॉक करके और Amendment के विकल्प को हटाकर उनकी आउटपुट देनदारी को संशोधित करने के लिए दी गई । सुविधा को खत्म करने की योजना बना रही है। उन्होंने कहा कि इस प्रस्ताव पर अगली जीएसटी परिषद की बैठक में चर्चा की जाएगी।

उद्देश्य

इस कदम का उद्देश्य अनुपालन में सुधार करना और अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था में फर्जी चालान (fake invoice) पर अंकुश लगाना है।

“हमें अनुपालन में और सुधार करने की आवश्यकता है। ताकि फर्जी संस्थाओं और नकली बिलिंग के खतरे को किसी तरह नियंत्रित किया जा सके। अभी, यह एक विश्वास-आधारित प्रणाली है। और हमने एक सुविधा दी है ।जिसका दुरुपयोग कुछ बेईमान, अस्तित्वहीन प्रकार के लोग इन फर्जी कंपनियों को बनाकर कर रहे हैं। इसलिए हम अपने सिस्टम को मजबूत करेंगे, ” ।

डेटा मौजूद है लेकिन फर्जी चालान के खतरे को रोकने के लिए अभी तक इसका पूरी तरह से उपयोग नहीं किया जा रहा है।

जीएसटी परिषद की अनुमति?

मल्होत्रा ने कहा कि “हमें इस पर जीएसटी परिषद की मंजूरी की आवश्यकता नहीं है,। लेकिन हम इस तिमाही की बैठक में इसे उनके ध्यान में लाएंगे। सिस्टम बनाए जा रहे हैं, इसलिए इसमें कुछ समय लगेगा। प्रत्येक चालान के लिए स्वीकृति होनी चाहिए। इसलिए इस पूरी व्यवस्था में बदलाव की जरूरत है,” ।

सूत्रों ने कहा कि जीएसटी परिषद की अगली बैठक फरवरी के अंत में होने की संभावना है Amendment नही होगा

वर्तमान में, कर पर क्रेडिट लेने के बाद भी किसी भी त्रुटि को ठीक करने के लिए खरीदारों और विक्रेताओं दोनों को एक Amendment सुविधा दी गई है। अर्थात

“सरकार ने एडिट करने की सुविधा दी है, जिसे  हटाना चाहता हूं/ हटा सकता हूं। उदाहरण. Mr X ने Y को बेचने के बाद चालान अपलोड करता है। और अगले महीने कर का भुगतान करता है। लेकिन कर भुगतान के समय, यदि X को पता चलता है ।कि कोई त्रुटि हुई है,। तो उसे इसे Amendment करने की अनुमति है। इसलिए Amendment करने की यह सुविधा हटा दी जाएगी, ”।

जीएसटीआर-1 और जीएसटीआर-3बी जमा करने के बाद चालान लॉक करने और Amendment विकल्प को हटाने से पूरे आर्थिक ढांचे के लिए कई फायदे मिलेंगे।

लेखक के अनुसार,

 “यह सिस्टम संशोधन धोखाधड़ी के इरादे वाले आपूर्तिकर्ताओं को जमा करने के बाद चालान जानकारी को बदलने से रोक देगा, गलत इनपुट टैक्स क्रेडिट मुद्दों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करेगा और शामिल पक्षों के बीच वाणिज्यिक विवादों को कम करेगा।” लेकिन जीएसटी के अंतर्गत विक्रेता व्यापारी /क्रेता व्यापारी को नई चुनौतियों का सामना करना होगा। जब से जीएसटी एक्ट लगाया गया है । उसी समय से इस अधिनियम में विभिन्न त्रुटियां हैं। शायद यह कदम और भी जीएसटी प्रणाली को गंभीर बना देगा क्योंकि मानवीय त्रुटि होना सदा संभव है।

चुनौतियाँ

हालाँकि, इससे कुछ चुनौतियाँ भी पैदा हो सकती हैं, जिनमें वास्तविक त्रुटियों को ठीक करने के लिए लचीलेपन में कमी, प्रशासनिक कार्यभार में वृद्धि और संभावित सिस्टम एकीकरण मुद्दे शामिल हैं। छोटे व्यवसायों को महत्वपूर्ण अनुपालन बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है, और प्रारंभिक अशुद्धियाँ विवादों को बढ़ा सकती हैं। इसके अतिरिक्त, नई तकनीक और प्रशिक्षण से जुड़ी लागत, लॉक करने से पहले सिस्टम का फायदा उठाने के लिए डिज़ाइन की गई परिष्कृत धोखाधड़ी योजनाओं की संभावना के साथ, इन जोखिमों के खिलाफ लाभों को संतुलित करने के लिए सावधानीपूर्वक विचार और शमन रणनीतियों की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है।

Measures to stop fake invoices in GST

“आपूर्तिकर्ता जीएसटीआर-1 में अपने चालान-वार बिक्री विवरण दाखिल करते हैं। यदि बाद के महीनों में किसी आपूर्तिकर्ता को पता चलता है कि बिक्री विवरण में कुछ त्रुटियां थीं।, तो उसे संशोधित/संशोधित किया जा सकता है, जैसे प्राप्तकर्ता का जीएसटीआईएन, आपूर्ति का मूल्य, आदि। यदि इसे रोक दिया जाता है, तो वास्तविक करदाताओं को समस्या का सामना करना पड़ सकता है। गैर-इरादतन गलतियों को सुधारें. तब एकमात्र विकल्प गलत चालान के खिलाफ क्रेडिट नोट जारी करना होगा,।

यदि जीएसटी परिषद ऐसी अनुमति देता है। तो वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम में परचेज़र और सप्लायर के मध्य होने वाले संव्यवहार के लिए डेबिट नोट/ क्रेडिट नोट की व्यवस्था को समाप्त करना होगा। तथा और भी  अन्य संशोधन इस अधिनियम में करने होंगे। शायद सरकार केवल अधिक से अधिक कर की प्राप्ति चाहती है। तथा अधिनियम के द्वारा कर प्राधिकारियों को अधिक से अधिक नोटिस जारी करने की अनुमति देना चाहती है। जिसे यह प्रणाली और जटिल हो जाएगी।

इसके अलावा, वर्तमान में, जीएसटीआर 2बी के आधार पर क्रेडिट का दावा किया जाता है। हालाँकि, ऐसा प्रतीत होता है कि आगे चलकर जीएसटीआर 2बी से अधिक क्रेडिट का दावा नहीं किया जा सकता है। इस कदम से वास्तविक करदाताओं पर असर पड़ सकता है.।

निष्कर्ष

उपरोक्त फेक इनवॉइस के संबंध में वित्त मंत्रालय के राजस्व सचिव द्वारा जारी बयान एक अत्यंत गंभीर विषय है ।क्योंकि टैक्स प्रोफेशनल/सीए / करदाता पहले से ही जीएसटी अधिनियम की जटिलताओं से परेशान है। उसी में एक नई कड़ी अमेंडमेंट को समाप्त करना शामिल है। शुरू से ही टैक्स प्रोफेशनल/सीए / करदाताओं की मांग  है। कि सरकार को अमेंडमेंट करने की सुविधा देनी चाहिए। ताकि किसी माह में यदि कोई त्रुटि हुई है। तो उसका सुधार किया जा सके। वरन  सरकार ऐसी सुविधा को वर्तमान में समाप्त करना चाहती है जो दुर्भाग्यपूर्ण होगा।

यह लेखक के निजी विचार हैं।

2. क्या एडवोकेट पर सेवाकर लगाया जा सकता है?

वकीलों की सेवा पर सर्विस टैक्स लगेगा या नहीं, इस पर विवाद होता रहता है ?इस तरह का एक मामला पिछले दिनों बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंचा ।इस मामले पर हाई कोर्ट ने कहा कि वकीलों की सेवा सर्विस टैक्स के दायरे में नहीं है।

वकील साहब क्लाइंट्स सर्विस को देते हैं ?क्या चुकाना होगा उन्हें सर्विस टैक्स? जानिए हाई कोर्ट ने क्या कहा है?

वकील साहब की सेवा सर्विस टैक्स के दायरे में है या नहीं, इस पर अक्सर विवाद होता है।  विवाद न्यायाधिकरण तक पहुंचता है। कभी-कभी मामला हाई कोर्ट तक भी पहुंच जाता है। ऐसा ही एक मामला पिछले दिनों बॉम्बे हाई कोर्ट में पहुंचा। जानिए यहां कि हाई कोर्ट बॉम्बे ने क्या कहा।

किस मामले में आया है आदेश

वकीलों की सेवा पर सर्विस टैक्स नहीं लगेगा,। बॉम्बे हाई कोर्ट ने यह बात एक वकील पर 35 लाख रुपये के सर्विस टैक्स के आदेश को रद्द करते हुए स्पष्ट किया है। दरअसल, सर्विस टैक्स डिपार्टमेंट के एक आदेश के खिलाफ एडवोकेट पूजा पाटील ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में सर्विस टैक्स के संबंध में 26 अक्टूबर 2023 को जारी सीजीएसटी डिप्टी कमिश्नर के आदेश को चुनौती दी गई थी। जस्टिस गिरीश कुलकर्णी और जस्टिस किशोर संत की बेंच के सामने याचिका पर सुनवाई हुई।

अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर जारी हुआ है आदेश

इस याचिका में दावा किया गया है कि डिप्टी कमिश्नर ने अधिकार क्षेत्र के बाहर जाकर इस मामले में आदेश जारी किया है। आदेश में कई प्रक्रियागत कमियां हैं,। साथ ही नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन भी करती हैं। इसलिए इस मामले में कोर्ट का हस्तक्षेप जरूरी है। याचिका के अनुसार, नोटिफिकेशन संख्या 25 /2012 STदिनांक 20. 6.2012 और 20 जून 2022 को केंद्र सरकार द्वारा जारी की गई अधिसूचना में वकीलों को सर्विस टैक्स से दूर रखा गया है। इस लिहाज से डिप्टी कमिश्नर को सेवा कर वसूली के संबंध में आदेश ही नहीं जारी करना चाहिए था।, क्योंकि वकील सर्विस टैक्स के दायरे में नहीं आते हैं। केंद्र सरकार की यह अधिसूचना कर भुगतान का आदेश जारी करने वाले अधिकारी पर बाध्यकारी है।

नोटिफिकेशन संख्या 25 /2012 ST दिनांक 20.06.2012 द्वारा वकील या साझेदारी में सलाहकार फर्म को सर्विस टैक्स के दायरे से बाहर रखा गया है। तथा रुपए 10 लाख से अधिक का व्यवसायिक फर्म के रूप में लॉ फर्म पर सर्विस टैक्स का प्रावधान किया गया है।

लेखक का मत

अधिवक्ताओं के संबंध में जीएसटी में भी स्पष्ट व्याख्या है। कि अधिवक्ता पर जीएसटी नहीं लगाया जाएगा और उनकी फीस को आरसीएम के अंतर्गत प्राप्तकर्ता को देना होगा ।कई हाईकोर्ट द्वारा स्पष्ट किया गया है । कि अधिवक्ता की सेवा व्यवसाय के रूप में परिभाषित नहीं होती है ।अतः उन पर सेवा कर लगाया जाना उचित नहीं है।

यह लेखक के निजी विचार है।

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