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यह निबंध भारत के हाल के कुछ वर्षो में विश्वगुरु बनने की राह पर द्रुतगति से आगे बढ़ने के संदर्भों और दावों का विश्लेषण कयह निबंध भारत के हाल के कुछ वर्षो में विश्वगुरु बनने की राह पर द्रुतगति से आगे बढ़ने के संदर्भों और दावों का विश्लेषण करता है । इस निबंध में लेखक ने हर प्रकार से भारत की विश्वगुरु की राह पर अग्रसर होने की भूमिका को उकेरने की एक छोटी सी कोशिश की है ।रता है । इस निबंध में लेखक ने हर प्रकार से भारत की विश्वगुरु की राह पर अग्रसर होने की भूमिका को उकेरने की एक छोटी सी कोशिश की है ।

  • भारत सदा ही विश्वगुरु रहा है जिसका केंद्र बिंदु आध्यात्म रहा है । अध्ययन, आराध्य और आध्यात्म का समायोजन भारत को फिर से विश्व का सिरमौर बना सकता है । भारत की सनातन संस्कृति हजारों साल पुरातन है जब विश्व की आज की तथाकथित सभ्यताओं का आगाज भी नही हुआ था । समाज में बढ़ती राजनैतिक और धार्मिक विषमताओं और इतिहास में रचित विसंगतियों ने भारत की उस महान संस्कृति को पिछले सालों में कुछ हद तक विश्व के मानसपटल से विस्मृत कर दिया था । भारत का भौगोलिक वातावरण भी देश को अनेकानेक भीतरी और बाहरी समस्याओं से जूझने को मजबूर करता रहा है । पाकिस्तान की समस्या, चीन की कारस्तानियां, कश्मीरी घुसपैठ की चुनौती, राजनैतिक इच्छाशक्ति का अभाव, इन सभी कारणों से देश विश्वपटल पर एक बार हाशिए पर चला गया था । लेकिन पिछले कई वर्षो में भारत में जो एक के एक बाद राजनैतिक बदलाव हुए हैं और दृढ़ संकल्प के साथ पिछले सालों में जो महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए है जैसे की कश्मीर से धारा ३७० और ३५ ए का हटना, कश्मीरी पंडितो का कश्मीर वापस लौटना, नागरिकता बिल संशोधन अधिनियम, समान आचार संहिता और जनसंख्या नियंत्रण कानून, यह कुछ ऐसी अहम बातें है जो राष्ट्र को विश्व के मानसपटल पर एक उच्च स्थान दिलाने में काफी सफल हुई है । वर्तमान राजनैतिक और सामाजिक परिदृश्य में हमारी विरासत की संस्कृति और सांस्कृतिक धरोहरों के पुनरुद्धार के लिए उठाए गए कदम सचमुच सराहनीय है ।
  • कुछ वर्ष पहले तक आलम यह था कि देश में वसुधैव कुटुम्बकम की भावना निजी स्वार्थों के चलते अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच गई थी । पर सन २०१४ में देश की राजनीति में एक ऐसा आमूलचूल परिवर्तन हुआ की इसने देश की दिशा ही मोड़ दी । वर्षो से चली आ रही कुत्सित राजनीति और ओछी मानसिकता ने देश को जो जंजीरों में जकड़ रखा था वह जंजीरे अब काफी हद तक टूट चुकी हैं। आने वाले वर्षो में देश विदेशी गुलामी की मानसिकता से सही मायने में स्वतंत्र होकर एक नया आयाम हासिल कर विश्व को एक नया आगाज देने की पूरी तैयारी करने में जुटा है । एक समय वह था जब भारत के राजनयिकों को विदेशों के हवाई अड्डे के बाहर जाने से रोक दिया जाता था वहीं आज हमारे इस भारत राष्ट्र के राजनयिकों का विश्व भर में एक हृदयात्मक सम्मान और स्वागत होता है ।
  • विश्व के बड़े बड़े देशों में भारतीय संस्कृति और विचारधारा का दूरगामी असर दिखाई देता है । कश्मीर मुद्दे पर विश्व का भारत को समर्थन, पाकिस्तान और चीन को उनकी औकात दिखाना, पुलवामा आतंकी घटना का बदला लेना, सर्जिकल एयर स्ट्राइक, विश्व के शक्तिशाली राष्ट्रों के साथ भारत के प्रगाढ़ होते संबंध, सामरिक सशक्तिकरण, सड़को का नवीकरण और नई सड़को का फैल रहा जाल, नए हवाई अड्डों का निर्माण ऐसी कई सैकड़ों बाते है जो देश को एक दूरगामी प्रगति पथ पर आरूढ़ कर चुकी हैं ।
  • देश में सैकड़ों पर्यटन स्थलों का नया अवतार राष्ट्र के पर्यटन व्यवसाय को नए शिखर पर ले जाने को तैयार है । बनारस शहर के स्वरूप का आमूल परिवर्तन पर्यटकों को खूब लुभा रहा हैं । अयोध्या में बन रहा राम मंदिर न सिर्फ लोगो की धार्मिक आस्था को अहमियत देता है पर साथ ही इससे उत्तर प्रदेश के पर्यटन उद्योग को भी काफी बढ़ावा मिलेगा ।
  • कोरोना काल में भारत ने एलोपैथी और आयुर्वेद में जो प्रगति हासिल की है, वह उल्लेखनीय है । मार्च, २०२० के पहले भारत में मास्क और पी पी ई किट का उत्पादन न के बराबर था । पर कोरोना विभीषिका के प्रकोप के बीच भारत ने जिस गति से मास्क, पी पी ई किट, ऑक्सीजन आदि का उत्पादन बढ़ाया है, वह भारत को चिकित्सा के जगत में बहुत ऊंचाई पर ले जाता है । भारत बायोटेक और सेरम इंस्टीट्यूट में बनी कोविड वैक्सीन ने विश्व के कई देशों में धूम मचाई है । भारत ने पूरे विश्व को जो चिकित्सकीय सहायता प्रदान की है, उसने पूरे विश्व का ध्यान भारत की और खींच भारत का मान सम्मान कई गुना बढ़ाया है । इनके उपरांत विश्व के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान के अंतर्गत राष्ट्र ने अबतक करीब तीस करोड़ कोविड वैक्सीन देश की जनता को देकर रिकॉर्ड कायम किया है ।
  • राष्ट्रपति भवन में आने वाले सभी विदेशी राजनयिकों और राजनेताओं को आजकल उनकी ही भाषा में अनुवादित “भगवत गीता” भेंट में दी जाती है । यह अपने आप में विश्व को संदेश है कि भारत अब पहले वाला भारत नहीं रहा, वह बदल रहा है, बल्कि वह बदल गया है । पिछले साल देशभर में कोरोना काल में लगा ४२ दिनों का दीर्घगामी पूर्ण लॉकडाउन राजनैतिक तौर पर सशक्त निर्णय लेने के जिस साहस का परिचय देता है वह अपने आप में अभूतपूर्व है । कुछ वर्गो को छोड़ कर देशभर में इसे जो समर्थन मिला वह प्रशासन पर जनमानस के विश्वास का परिचायक है जिससे विश्वभर में राष्ट्र का स्थान सही मायने में ऊंचा होता है ।
  • आज राष्ट्रनायक और राष्ट्रनेताओं के पास जो आत्मबल है उससे हम अपनी बातें विश्व के समक्ष बड़ी बेबाकी से रखते हैं । यह अपने आप में एक बहुत बड़ी और महत्वपूर्ण उपलब्धि है ।
  • शिक्षा के क्षेत्र में भी राष्ट्र ने अभूतपूर्व प्रगति की है । भारतीय पंजीकृत लेखाकारों की संख्या विश्व में दूसरे नंबर पर है । भारतीय पंजीकृत लेखाकारों को जिस कठिन ट्रेनिंग और परीक्षा से गुजरने पर मजबूर करती हैं वह उन्हें विश्वभर के लेखाकारों में सर्वोच्च स्थान पर रखती है ।
  • प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जगह जगह भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान की स्थापना ने देश को महान से महानतम इंजीनियर दिए हैं । ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज की बढ़ती स्थापना से मेडिकल की पढ़ाई और चिकित्सा का स्तर शिखर तक पहुंच गया है । इसी तरह लेखन के क्षेत्र में भी देश ने काफी प्रगति की है । पुराने ध्वस्त विश्वविद्यालयों की लेखनियों को फिर से संजोया जा रहा है जिससे आने वाली पीढ़ी शैक्षिक लाभ उठा सके और भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति, स्थापत्य कला, विज्ञान, संस्कृति आदि को अपनाकर विश्व का मानसिक और बौद्धिक स्तर का कद ऊंचा उठ सके ।
  • आर्थिक स्तर पर भारत ने पिछले सालों में द्रुत गति से विस्तार की राह पकड़ ली है । कोरोना के कहर ने राष्ट्र की अर्थ प्रगति को धीमा जरूर किया है पर इस अवरोध से तो पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था अस्त व्यस्त हुई है । पर पिछले पांच छः सालो के आर्थिक पहलुओं को अगर देखे तो भारत ने इलेक्ट्रॉनिक्स, दूरसंचार, इंटरनेट, यातायात आदि क्षेत्रों में काफी लंबा और सफल सफर तय किया है जिसके आने वाले प्रभाव काफी असरदार और दूरगामी सिद्ध होने वाले हैं, इस बात पर शक की कोई गुंजाइश नहीं । डिजिटल इंडिया का सपना भी बड़े पैमाने पर पूरा हुआ है और एक लंबा रास्ता तय करने की प्रक्रिया जारी है । भारत में व्यवसाय और रोज मर्रा के लेन देनो में लोगो का रुझान डिजिटल माध्यम की ओर अधिक हो गया है जो देश को एक त्वरित आर्थिक व्यवस्था की ओर ले जाता है । १३० करोड़ की भारी भरकम जनसंख्या वाले इस विशाल भारत में यह सचमुच एक बड़ी उपलब्धि है । भारत का विदेशी मुद्रा का भंडारण रिकॉर्ड स्तर पर है जिससे राष्ट्र के आयात निर्यात को बल मिलता है ।
  • ५०० और १००० के नोटो का २०१६ सन में किया विमुद्रीकरण भारत सरकार का एक ऐसा साहसपूर्ण निर्णय था जिसने साधारण जनता को कई दिनों तक तकलीफ तो जरूर पहुंचाई थी पर साथ साथ देश में विदेशों से आ रही जाली मुद्रा को विनष्ट करने में इस प्रक्रिया ने एक अहम भूमिका निभाई थी । पास पड़ोस से आने वाली जाली मुद्रा की कमर तोड़कर सरकार ने देश को आने वाले भयानक आर्थिक खतरे से उबार लिया था जिससे राष्ट्र की आर्थिक व्यवस्था को एक नई दिशा मिली ।
  • भारत के बड़े औद्योगिक घरानों ने विश्वभर में अपनी व्यवसायिक बुद्धि का लोहा मनवाया है । विभिन्न व्यवसायिक समूह जैसे गुजर मल मोदी, बिड़ला, सिंघानिया, अंबानी, गोदरेज, टाटा सभीने पूरे विश्व में अपना कारोबार फैलाया है । बाबा रामदेव ने रोजमर्रा की हर वस्तु के उत्पादन में बढ़त हासिल कर भारतीय बाजारों में सामान पाटने वाले विदेशी निर्यातकर्ताओं को कड़ी चुनौती दी है जिससे भारत की विदेशी मुद्रा का संतुलन मजबूत हुआ है ।
  • पूरी योग विद्या को विश्व में एक नए मुकाम तक पहुंचाने में बाबा रामदेव का योगदान कोई नकार नहीं सकता । फलस्वरूप योग की जो बाते किताबों तक ही सीमित थी उसी योग को पूरे विश्व ने उल्हाद के साथ अपनाया है और आज हर साल २१ जून को संयुक्त राष्ट्र साधारण सभा की मान्यता के तहत पूरे विश्व में योग दिवस के रूप में मनाया जाता है और इसमें भारत की भूमिका अग्रणीय है । हजारों साल पुरानी योग विद्या को विश्व में पुनः स्थापित कर और स्वीकृति दिलाकर भारत ने सन २०१५ में ही विश्वगुरु बनने की आधारशिला रख दी थी ।
  • आधुनिक भारत के वैज्ञानिक ए पी जे अब्दुल कलाम आजाद, परमेश्वर शर्मा, अनिल काकोडकर, बीरबल साहनी, होमी जहांगीर भाभा, प्रेम चंद पांडेय, कैलाशनाथ कौल, श्रीराम शंकर अभयंकर और ऐसे सैंकड़ों वैज्ञानिकों ने सीढ़ी दर सीढ़ी भारत की वैज्ञानिक क्षमता पूरे अंतरिक्ष में दर्शाई है ।
  • विश्व-संस्कृति के उत्कर्ष के प्रत्येक चरण में विज्ञान का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है । सैकड़ों वर्षों पूर्व गणित और ज्योतिष-विज्ञान में हमारा देश अप्रतिम माना गया था । आर्यभट्ट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य जैसे महान् विद्वानों ने इसी पावन भूमि में जन्म लिया था ।
  • आज सारे संसार में दस चिह्नों में गणना करने की अंक-पद्धति का प्रचार है । इस पद्धति की खोज भी इसी देश में हुई । आर्यभट्ट ने शुद्ध गणित में गणनाएँ कीं । संख्याओं के मान के लिए उन्होंने अक्षरों की एक सांकेतिक भाषा बनाई । वर्गमूल, घनमूल, क्षेत्रफल, आयतन, वृत्त की परिधि आदि ज्ञात करने की विधि सर्वप्रथम उन्होंने ही लिखी । उन्होंने विश्व को ग्रहों की स्थिति का ज्ञान कराया ।
  • वराहमिहिर ने फलित ज्योतिष पर रचनाएँ कीं । अरबों को गणित तथा ज्योतिष का ज्ञान सर्वप्रथम ब्रह्मगुप्त ने ही दिया । ब्रह्मगुप्त ने गुणनफल निकालने की चार विधियाँ, शून्य, अनंत आदि का वर्णन किया है । न्यूटन से पूर्व ही भास्कराचार्य (‘भास्कर द्वितीय’ के नाम से विख्यात) ने पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में संसार को अवगत कराया । उन्होंने लिखा है- ”पृथ्वी में आकर्षण-शक्ति है ।
  • पृथ्वी अपनी आकर्षण-शक्ति के जोर से सब चीजों को अपनी ओर खींचती है । यह अपनी शक्ति से जिसे खींचती है, वह वस्तु भूमि पर गिरती हुई-सी प्रतीत होती है ।” भास्कराचार्य ने गणित में ‘पाई का मान’, ‘चतुर्भुजों के क्षेत्रफल ज्ञात करने की विधि’ भी अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘लीलावती’ में लिखी है ।
  • परमाणु की मूल संकल्पना में महर्षि कणाद का बहुत योगदान है । परमाणु की उपस्थिनि का ज्ञान उन्होंने ही सर्वप्रथम सारे विश्व को दिया; परंतु बाद में श्रेय मिला वैज्ञानिक जॉन डाल्टन को । अणुओं का स्पष्ट संकेत महर्षि कणाद ने ही दिया है ।
  • उनके अनुसार- “एक परमाणु अंतर्निहित आवेग के अधीन किसी अन्य परमाणु में संयोग करके द्विवकों (अणुओं) का निर्माण करता है ।” रसायन के क्षेत्र में नागार्जुन इसके ‘अधिष्ठाता’ माने जाते हैं । उन्होंने रजत, सोना आदि बनाने के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी ।
  • चिकित्सा के क्षेत्र में धन्वंतरि, भारद्वाज, आत्रेय, सुश्रुत आदि मनीषियों ने भारत-भूमि का नाम रोशन किया । धन्वंतरि तथा सुश्रुत शल्य-चिकित्सा के विद्वान् थे, जबकि भारद्वाज तथा आत्रेय काय-चिकित्सा के । इन्हीं के उपदेशों पर काय-चिकित्सा की आधारशिला रखी गई । शल्य-चिकित्सा का जनक सुश्रुत को माना जाता है ।
  • मूलतः कहने का सार यही है की भारत सदियों से विश्वगुरु था । पिछले कई वर्षो में भारत का यह योगदान जो विश्वपटल पर हाशिए पर जा चुका था उसे हर तरफ से एक नई अवधारणा के साथ उकेर कर भारत अपनी पूरी क्षमता के साथ विश्व के सभी राष्ट्रों के कंधे से कंधा मिलाकर विश्वगुरु की राह पर प्रखर गति से पुनर्स्थापित हो चुका है । वह दिन अब दूर नहीं जब भारत वैश्विक निर्णयों में राष्ट्रों की अगुवाई करेगा । पूरे विश्व को एकसूत्र में बांधने की भारत की यह कोशिश वैश्विक गांव की परिकल्पना को सच साबित करती है ।
  • आज अमेरिका ने स्वीकार किया कि तुलसी और पीपल सर्वोत्तम है । चीन ने मान लिया कि दाह संस्कार ही सर्वोत्तम विधि है । इजराइल ने माना कि हवन और यज्ञ से विषाणु दूर होते हैं । फ्रांस ने माना की शंख ध्वनि बहुत लाभदायक है । संपूर्ण विश्व ने माना की नमस्ते सर्वोत्तम है । यह सब इस बात का परिचायक है कि भारत अपनी सनातन संस्कृति के प्रभाव से पूरे विश्व को एक समरसता में बांधने जो चल पड़ा है, उस जज्बे की शिद्दत को कोई रोक नहीं सकता ।
  • भारत की वर्तमान सत्तारूढ़ पार्टी ने जैसे कई नवोदित और प्रखर चेहरों को मंत्रिमंडल में स्थान दिया है, उससे भारत सरकार की राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर की जाने वाली अवधारणाओं में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन की पूर्ण संभावना है जिससे भारत की छबि में आने वाले दिनों में अभूतपूर्व सुधार होगा और यह भारत के विश्वगुरु बनने की राह में एक मील का पत्थर साबित होगा ।

शब्दसंख्या की सीमा अधिक लिखने की इजाजत नहीं देती । फिर भी ऊपर की गई चर्चा से यह तो सुनिश्चित होता ही है कि भारत सचमुच विश्वगुरु बनने की राह पर द्रुतगति से अग्रसर है और आज के परिदृश्य में विश्वभर में भारत का कोई सानी नहीं । अंत में निम्न पंक्तियों के साथ मैं इस लेख को विराम देता हूं :

“विश्वगुरु बने भारत हमारा,

झंडा ऊंचा सदा रहे हमारा ।

गूंजे हर ओर यही एक नारा,

भारत देश है जग में न्यारा ।

हर राष्ट्र अपनाए भागवत गीता,

बनाए एकरस आचार संहिता ।“

लेखक – रतन कुमार अगरवाला | गुवाहाटी, असम | दिनांक १२.०७.२०२१

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Author Bio

I am a Practising Chartered Accountants being in Practice since 1991. I have also done DISA. I have done various certificate course like FAFD, GST etc. under the aegis of the Institute of Chartered Accountants of India. I original belong to Dhubri Town in lower Assam. My studies till HSLC were in m View Full Profile

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