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प्रस्तुत लेख में मैने व्यवसाय के मूल अर्थ और व्यवसाय की मुख्य गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए व्यवसाय करने के जो जरूरी तरीके हैं उनके बारे में एक प्रारंभिक चर्चा की है ।व्यवसाय है तो बातें तो बहुत होगी पर सारी बातों को एक लेख में समेटनासंभव नहीं ।इसीलिए मैंने कुछ जरूरी पहलुओं को ही पाठक के समक्ष रखा है ।

  • व्यवसाय वह एक आर्थिक क्रिया है जिसमें वस्तुओं या सेवाओं का आदान प्रदान होता है ।व्यापार शब्द से भिन्न व्यवसाय का एक विशेष अर्थ है ।
  • एक ऐसी आर्थिक प्रक्रिया जिसमेंवस्तुओं और सेवाओं का नियमित उत्पादन,क्रय विक्रय,विनियम और हस्तांतरण लाभ कमाने हेतु होता है,उसे ही व्यवसाय कहते हैं ।नियमितता व्यवसाय कहलाने की महत्वपूर्ण शर्त है ।अगर आप कोई ऐसा कोई कार्य करते हैं जिसमेंआप कुछ लाभ तो कमाते हैं पर वह आपकी नियमित आजीवनी का जरिया नहीं और जिस प्रक्रिया में वस्तुओं या सेवाओं का नियमित क्रय विक्रय न हो उसे हम व्यवसाय की संज्ञा नहीं दे सकते हैं ।
  • मैल्विनऐन्सन के अनुसार “व्यवसाय जीवनोपार्जन का तरीका है ।इस प्रकार व्यवसाय में वे सारी प्रक्रियाएं आ जाती हैं जो वस्तुओं या सेवाओं के उत्पादन से लेकर क्रय विक्रय,वितरण,भंडारण के लिए की जाती हैं“

व्यवसाय कैसे शुरू करें ?

  • किंग्सलेडेविड के नजरिए से अगर देखें तो व्यवसाय की परिधि मेंहर वह छोटा बड़ा धंधा समाहित है चाहे वह वस्तुओं से संबंधित हो या फिर सेवाओं से और चाहे वह छोटे सीमित स्तरपर हो या फिर सार्वजनिक वृहत स्तरपर,बशर्ते उसमेंनिजीगतएवम समाज के आर्थिक मूल्योंकेविकास का मुद्दा निहित हो ।
  • किसी भी गतिविधि को व्यवसाय की परिधि में तभी अंतर्भुक्त कर सकते हैं जब वह निम्न विशिष्टताओंके मानकों पर खरी उतरती हो:
  • वह एक आर्थिक प्रक्रिया हो ।
  • वह किसी मानव द्वारा प्रायोजित हो ।
  • उसे स्थानीय,राज्यिक और राष्ट्रीय स्तर पर जहां भी कानूनी तौर पर जरूरी हो,वह सारी मान्यताएं प्राप्त हो ।
  • उसका मुख्य उद्देश्य ही हो लाभ कमाना ।कभी नुकसान हो गया वह अलग बात है पर उद्देश्य लाभ का ही होना चाहिए ।
  • व्यवसाय करने वालाउसके जोखिम पूर्ण साहस और धैर्य के साथ उठाने के लिए तैयार हो ।
  • व्यवसाय में वस्तुओं या सेवाओं का उत्पादन,क्रय विक्रय,वितरण,स्थानांतरण,भंडारण आदि प्रक्रियाएं आवश्यकता के अनुसार प्रयुक्त होती हैं ।
  • व्यवसाय में दोनो पक्षों के लाभ नुकसान की बात होती है ।
  • व्यवसाय एक नियमित प्रक्रिया है ।
  • व्यवसाय में क्रय प्रक्रिया का उद्देश्य मूल रूप में या परिवर्तित रूप में पुनः विक्रय होता है ।
  • वस्तु या सेवा का उत्पादन या फिर उत्पाद में सहायता देना,दोनो ही प्रक्रियाएं व्यवसाय की श्रेणी में आती हैं ।
  • व्यवसाय की आर्थिक प्रक्रियाओं को हम चार भागों में बांट सकते हैं ।वे निम्न प्रकार हैं :
  • प्राथमिक गतिविधियां: जिन प्रक्रियाओं में प्रकृति से प्राप्त संसाधनों का सीधा प्रयोग होता हो,उन्हे प्राथमिक गतिविधि कहा जाता हैं ।उदाहरण : पशुपालन,मछली पालन,खेती करना,जंगल से लकड़ी काटना आदि ।
  • द्वितीयकगतिविधियां: जब हम प्रकृति से प्राप्त संसाधन को सीधे सीधे प्रयोग में नहीं लाते बल्कि उनसे और कुछ बनाते हैं उन्ही गतिविधियों को द्वितीयकगतिविधि कहते हैं ।उदाहरण : दूध से पनीर बना कर बेचना,धान से चावल बनाना,बांस से कागज बनाना,पानी से बरफबनाना,गेहूं से आटाबनाना आदि ।
  • तृतीयकगतिविधियां: सेवाओं से संबंधित जो गतिविधियां समाज को लाभ के उद्देश्य से देते हैं (जैसे शिक्षण,काश्तगारी,डाक्टरी, संचार,यातायात इत्यादि)उन्हेतृतीयकगतिविधि कहते हैं ।
  • चतुर्थकगतिविधियां: कुछ ऐसी गतिविधियां भी होती है जो हरदम ऊपर उल्लेखित की गई गतिविधियों के दायरे में नहीं आती (जैसे की नेतृत्व,शोध कार्य,विज्ञान,कला आदि ) उन्हेचतूर्थक गतिविधि की श्रेणी में रख सकते हैं ।

व्यवसाय कैसे शुरु करें 

  • लक्ष्य :किसी भी व्यवसाय को शुरू करने का पहला पायदान है लक्ष्य का निर्धारण ।“क्या”,“कैसे”और “कब”, इन तीन मुद्दों पर निर्णय लेना ही लक्ष्य का निर्धारण है और यह एक महत्वपूर्ण शुरुआती कड़ीहै ।
  • प्रकार: अब आपकोयह तय करना है कि कौनसा व्यवसाय करना है ।कौनसी वस्तु का उत्पादन या क्रय विक्रय करना है या कौनसी सेवा प्रदान करनी है ? आपके ग्राहक कौन होंगे ? आपके बाजार का विस्तार क्या होगा ?
  • रणनीति:अब आपको अपने व्यवसाय की रणनीति तय करनी होगी ।आपके व्यवसाय की नीतियां और अवधारणाएं कैसे औरों से भिन्न और एक कदम आगे हैं इस बात का भी आपको गहनविश्लेषण करना होगा ।आपके व्यवसाय का प्रारुपक्या होगा इस बात पर भी आपको विचार करना होगा ।आप किन किन तरीकों से अपने व्यवसाय से पैसे कमा सकते हैं इन बातों पर भी विचार करना होगा ।कौन से ग्राहक को कितना माल उधार में बेचना है,कितने दिन के लिए उधार देना है,कौन कौन से बाजार में माल बेचना है,यह सब बातें रणनीति के अंतर्गत आती है और किसी भी व्यवसाय की सफलता की कुंजी है उस व्यवसाय की रणनीति ।आपकी एक सही रणनीति पूरे बाजार का परिदृश्य बदल सकती है ।उबेरका ही उदाहरण ले लीजिए ।एक सोची समझी रणनीति के तहत काम कर पूरे यातायात बाजार को एक नई दिशा दे दी एक क्रमानुदेश(सॉफ्टवेयर)की मदद से ।
  • स्थान निर्धारण:अब सवाल यह उठेगा किआपका व्यवसाय कहां से आरंभ करेंगे ।घर से ही व्यवसाय चलाएंगे या किसी अलग जगह से शुरू करेंगे ? जगह की उत्तमताऔर ग्राहकों की सहज पहुंच आदि बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए आपको सही जगह का चयन करना होगा ।अगर घर से करना है तो घर के सदस्यों की सहमति भी लेनी पड़सकती है ।
  • वित्त प्रबंधन : व्यवसाय शुरू करने के लिए कितने धन की आवश्यकता होगी इसका भीआकलन करना होगा ।सुचारू रूप से व्यवसाय को चलाते रहने के लिए त्वरित धन की जरूरत का भी शुरू के कुछ वर्षों के लिए आकलन करना होगा ।इसमें अगर अपनी जमीन पर व्यवसाय खड़ा करना है तो जमीन की लागत,दुकान की लागत,साजो सामान जैसे अलमारियां,पंखे,गाड़ीआदि की लागत आदि का भी हिसाब लगाना होगा ।अपना पैसा कितना लगेगा और बैंक से ऋण कितना मिलेगा इन सब बातों का विश्लेषण करना होगा ।माल की खरीदारी के लिए और रोजमर्रा के व्यवसायिकखर्चों के लिए जरूरी धन का प्रबंधन भी करना होगा ।जगह भाड़ेपर लेनी है तो मकान मालिक को देयअग्रिम राशि की भी व्यवस्था करनी होगी ।वित्त तो किसी भी व्यवसायिक प्रतिष्ठान का जीवनरक्त होता है जो की संतुलित मात्रा में व्यवसाय की धमनियों में प्रवाहित न हो तो व्यवसाय की गति धारा अवरुद्ध हो सकती है और आप दिवालिया हो सकते हैं ।
  • बाजार पर शोध : अपने व्यवसाय या उद्योग के उपलब्ध और भविष्य केसंभावित बाजारों के बारे में पूर्ण रूप से और घने अंतराल में शोध करते रहना किसी भी व्यवसाय की सफलता के लिए बहुत ही आवश्यक है ।कौन से बाजार में आपका माल ज्यादा बिक रहा हैं,कहां कम बिक रहा है और क्यों,कौनसा माल ज्यादा बिक रहा है,कौनसे माल में क्या कमियां हैं,कब कैसे उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार करना है,इन सारी बातों पर एक अध्ययनहोना चाहिए जिससे आपको अपने व्यवसाय को एक सही दिशा देने के आसानी होगी ।
  • व्यवसाय के ढांचे का निर्णय:आपका व्यवसाय एकल प्रतिष्ठान होगा या संयुक्त व्यवसाय या फिर निजी सीमित कंपनी, इन सब बातो का व्यवसाय की वित्तीय हालत से बहुत गहरा नाता है।आपके वित्तीय स्त्रोतों के अनुसार ही आपको व्यवसायिक ढांचे पर विचार करना होगा ।अगर आप छोटी पूंजी के साथ व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं तो एकल व्यवसाय कर सकते हैं ।लेकिन अगर ज्यादा पूंजी की आवश्यकता है तो आपको संयुक्त व्यवसाय या फिर कंपनी ढांचे को तवज्जो देनीहोगी ।
  • योजना : अब आपको अपने व्यवसाय की एक लिखित योजनाबनानी होगी जिसमें आपको अपने व्यवसाय के सारे पहलुओं को सम्मिलित करना होगा ।इसके लिए आप किसी वित्तीय सलाहकार की मदद भी ले सकते हैं ।
  • पंजीकरण:आप एकल व्यवसाय करना चाहें,या संयुक्त या फिर सीमित निजी कंपनी या कोई और ढांचा,आपको अपने व्यवसाय का पंजीकरण कराना होगा ।जैसे की व्यापार अनुज्ञा पत्र (ट्रेड लाइसेंस),जी.एस.टी.पंजीकरण,एम.एस.एम.ई.पंजीकरण,स्थाई लेखा नंबर (PAN)आदि की प्रक्रियाएं आपको पूरी करनी होगी ।इन सबके लिए आप किसी सी.ए.या कानूनी सलाहकार की भी मदद ले सकते हैं ।
  • वित्त के स्त्रोत:अब आपको अपने वित्त के स्त्रोतों के बारे में भी सोचना होगा ।आप एवम आपके सहयोगियों में से कौन कितनी पूंजी लगाएगा,बैंक या ऋणप्रतिष्ठान से कितना कर्ज मिलेगा,बाजार से कितना कर्ज मिलेगा,कौन से बैंक से ऋणलेंगे,किस विशेष योजना के तहत ऋणलेंगे इन सभी मुद्दों पर विचार कर लिपिबद्ध कर ले और उसी हिसाब से वित्त का प्रबंध करे ।बैंक से ऋणलेने के लिए बैंक में आपको विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डी.पी.आर.) और अन्य कागजात जमा करने होंगे ।अनेक संस्थान नए उद्योगों को प्रोत्साहनदेने के लिए कमब्याज पर ऋणदेते हैं ।ऐसे संस्थानों से भी संपर्क साध सकतें हैं ।वित्त के स्त्रोतोंके बारे में आपके सनदीलेखाकार आपको पूरी जानकारी दे सकते हैं ।
  • व्यवसाय की शुरुआत : वित्त का प्रबंध होने के बाद अब व्यवसाय को शुरू करने की कवायद शुरू कीजिए ।सारे जरूरी संसाधनों की व्यवस्था कीजिए जैसे किकर्मचारियों की नियुक्ति,कच्चे माल की व्यवस्था,स्थाई संपत्तियों की खरीद फरोख्त,मशीनरी का इंतजाम,बिजली की व्यवस्था,उत्पादन की परियोजना का कार्यान्वयन,विज्ञापन देने की प्रक्रिया,भंडारण की व्यवस्था आदि सब इस पर्याय में आते हैं ।
  • पहचान बनाना और बाजार की व्यवस्था : अब आपको यह सुनिश्चित करना है किआप अपना व्यवसाय कब शुरू करना चाहते हैं ।अगर आप औपचारिक तरीके सेव्यवसाय का उद्घाटन करनाचाहते हैं तो किस किस को उद्घाटन में बुलाएंगे,किससेफीताकटवाएंगे,नाश्ते में क्या देंगे,किस पंडित से पूजा करवाएंगे,कुर्सियों की व्यवस्था,शामियाने की व्यवस्था आदि सभी बिंदुओं पर विचार करना होगा ।
  • प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल : आज के इस भौतिक युग में प्रौद्योगिकी के बिना कोई व्यवसाय सही ढंग से नहीं चल पाता ।सामाजिक पटलों जैसे फेसबुक,ट्विटर,इंस्टाग्राम,यूट्यूब,लिंक्ड इन,रेफरलकी आदि और व्यवसायिक पटलों जैसे जस्टडायल, ट्रेडमार्ट आदि पर अपने व्यवसाय के बारे में विस्तार से बताएं ।अपनी खुद की वेबसाइट भी बना सकते हैं ।अमेजन,फ्लिपकार्ट आदि से भी जुड़सकते हैं ।
  • अद्वितीयविक्रयप्रस्ताव (Unique Selling Proposition):एक बार जब आपने व्यवसाय में कदम रख दिया तब अब आगे बढ़ते जाना है ।अपने अनुभवों के आधार पर आपको अद्वितीयविक्रय प्रस्ताव (USP) की संरचना करनी होगी जिसमें आपको यह बताना होगा किकौन सी ऐसी खास बातें हैं जो आपके व्यवसाय को और आपको औरों से अलग और खास बनाती हैं ।
  • नेतृत्व:अपने व्यवसाय की सतत प्रगति के लिए आपको एक सुघड़अगुवा बनकर अपने मातहतों का सही मार्गदर्शन करना होगा एवमउनके सुझावों को भी तवज्जो देनी होगी ताकि वह भी अपना ही व्यवसाय समझ कर इसकी भलाई के लिए दिन रात मेहनत करें ।

अस्वीकरण : उपरोक्त लेख मैंनेअपने अध्ययन और पिछले तीस सालों के अनुभवों के आधार पर लिखा है ।किसी भी पूर्व प्रकाशित लेख के साथ इसका कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष संबंध नहीं है ।अगर कही किसी प्रकार की समानता मिलती है तो वह महज एक संयोग ही होगा ।

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Author Bio

I am a Practising Chartered Accountants being in Practice since 1991. I have also done DISA. I have done various certificate course like FAFD, GST etc. under the aegis of the Institute of Chartered Accountants of India. I original belong to Dhubri Town in lower Assam. My studies till HSLC were in m View Full Profile

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