> किसी भी व्यक्ति या महिला में ऐसी योग्यता को निखारना जो उसे अपने जीवन के सारे निर्णय स्वतंत्र रूप से लेने की क्षमता और वैचारिक बुद्धि दे -यही सशक्तिकरण है।
> “महिला सशक्तिकरण” की जब हम बात करते हैं तो नारी की उस क्षमता की बात करते हैं जहाँ कोई भी महिला अपने निर्णय खुद ले सकती हो किसी भी बंधन से पूर्ण रूप से मुक्त होकर।
> मैं आशा करता हूँ और मुझे पूरा विश्वास है कि मेरा यह लेख विषय के साथ पूरा न्याय करेगा। कहीं कोई धृष्टता या अतिश्योक्ति हो जाये तो पाठक से क्षमा प्रार्थी हूँ। पाठकों से सुझाव भी आमंत्रित हैं।
> आज पूरे विश्व में “नारी सशक्तिकरण” एक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय है। भारतीय सनातनी संस्कारों की बात करें तो हमारा तो यह मानना है कि जहाँ नारी कि पूजा अर्चना होती है वहाँ स्वर्ग बसता है और देवता विराजमान होते हैं। यहाँ यह भी सोचने वाली बात है कि शक्ति का रूप होते हुए भी नारी को सशक्तिकरण क्यों चाहिए? यहाँ सशक्तिकरण का मूल उद्देश्य नारी को स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता से है जिसके बलबूते वह आर्थिक और सामाजिक मामलों में खुद से महत्वपूर्ण निर्णय ले सके। महिला को सही मायने में सशक्त बनाने के लिये समाज की उस निकृष्ट सोच में आमूल बदलाव की जरुरत है जो नारी को दहेज़ कुप्रथा, अशिक्षा, घरेलु उत्पीड़न, लड़कियों की खरीद फरोख्त, सामाजिक और आर्थिक असामानता, भ्रूणहत्या, वेश्यावृत्ति आदि की ओर धकेलती हैं। शक्तिस्वरूपा नारी को सही मायने में सशक्त बनाकर ही हम नारी सशक्तिकरण की मुहिम को एक सही मुकाम दे सकते हैं।
> मानव जाति के अस्तित्व का मूल स्त्रोत नारी को ही माना गया है। इस महान शक्ति को समुचित ढंग से विकसित कर हर परिदृश्य में समानता का अवसर देना ही नारी सशक्तिकरण का मूल उद्देश्य है।
> महिला सशक्तिकरण से महिलाओं को समाज में वह बल मिलता है जिससे वह अपने फैसले खुद ले सकें।
> प्राचीन काल की तुलना में बाद के वक़्त में भारत में नारी का सम्मान पहले जैसा नहीं रहा।
♦ सामान्य घरेलु ग्रामीण महिलाएं अब भी घर की चारदीवारी में रहने को मजबूर है। सामान्य जीवन की सुविधाएँ जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य आदि भी उन्हें नहीं मिल पाती।
♦ शिक्षा के सन्दर्भ में भी महिलाएं पुरुषों की तुलना में काफ़ी पीछे हैं।
♦ शहरी क्षेत्रों में रोजगार में महिलाओं की भागीदारी ग्रामीण औरतों की तुलना में ज्यादा हैं।
♦ भुगतान के मामले में भी औरतों को पुरुषों की तुलना में करीब 20 प्रतिशत कम मेहनताना मिलता है।
♦ भारत की पूरी आबादी का करीब 50% हिस्सा महिलाओं के नाम है। अतः समाज के इतने बड़े वर्ग का अगर संतुलित सशक्तिकरण न हो तो समाज की रीढ़ की हड्डी भी सशक्त नहीं हो सकती और इसकी जिम्मेदार वर्त्तमान पीढ़ी ही कहलाएगी।
♦ लैंगिक असमानता भी महिला सशक्तिकरण के पीछे छिपा एक ज्वलंत कारण है। समाज के अलग अलग तबके में इतिहास के अलग अलग दौर में घर बाहर हर जगह औरत को मानसिक, शारीरिक, सामाजिक और आर्थिक स्तर पर दबाया गया। और यह विश्व के कई देशों में परिलक्षित हुआ।
> भारतवर्ष विभिन्नताओं से भरा देश है। उसी तरह सामाजिक और आर्थिक मान्यतायें भी अलग अलग है जो समय के साथ परिवर्तित भी होती है। पर रूढ़िवादी समाज में कुछ मान्यतायें प्राचीन काल से पैर जमाये बैठी है जो नारी सशक्तिकरण के मार्ग को अवरुद्ध करती है। इस पर कुछ विस्तार से चर्चा की आवश्यकता है।
♦ संकीर्ण रूढ़िवादी सोच के चलते ग्रामीण इलाकों में अभी भी महिलाओं को घर से बाहर जाने में झिझक होती है या फिर उन्हें जाने नहीं दिया जाता। रूढ़िवादी परंपराओं के कारण महिलाएं खुद को कमजोर मानने लगती हैं और दर्दनीय हालातों से उबर नहीं पाती।
♦ ज्यादातर कार्यक्षेत्रों में महिला कर्मचारियों के साथ शोषण होना एक आम बात है। पिछले वर्षों में इस तरह के शोषण में वृद्धि हुई है।
♦ महिलाओं को एक ही काम के लिये पुरुषों की तुलना में कम पारिश्रमिक दिया जाता है, खासकर असंगठित क्षेत्रों में।
♦ बीच में ही पढ़ाई छोड़ देना भी महिला सशक्तिकरण के रास्ते में एक बड़ी रुकावट है। अभी कुछ वक़्त पहले तक लड़की की शादी की न्यूनतम आयुसीमा 18 वर्ष थी जिसे हाल ही में 21 वर्ष किया गया है।
♦ कन्या भ्रूण हत्या भी महिला सशक्तिकरण की राह में एक बड़ा रोड़ा है।
> भारत सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए कई सारी योजनाएँ चलाई जाती हैं। इनमें से कुछ मुख्य योजनाएँ मनरेगा, सर्व शिक्षा अभियान, जननी सुरक्षा योजना (मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिए चलायी जाने वाली योजना) आदि हैं।
> महिला एंव बाल विकास कल्याण मंत्रालय और भारत सरकार द्वारा भारतीय महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए निम्नलिखित योजनाएँ इस आशा के साथ चलाई जा रही है कि एक दिन भारतीय समाज में महिलाओं को पुरुषों की ही तरह प्रत्येक अवसर का लाभ प्राप्त होगा-
1) बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं योजना –
2) महिला हेल्पलाइन योजना –
3) उज्जवला योजना –
4) सपोर्ट टू ट्रेनिंग एंड एम्प्लॉयमेंट प्रोग्राम फॉर वूमेन (स्टेप) –
5) महिला शक्ति केंद्र –
6) पंचायाती राज योजनाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण –
> कानूनी अधिकार के साथ महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए संसद द्वारा भी कुछ अधिनियम पास किए गए हैं। वे अधिनियम निम्नलिखित हैं –
(i) अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम 1956
(ii) दहेज रोक अधिनियम 1961
(iii) एक बराबर पारिश्रमिक एक्ट 1976
(iv) मेडिकल टर्म्नेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1987
(v) लिंग परीक्षण तकनीक एक्ट 1994
(vi) बाल विवाह रोकथाम एक्ट 2006
(vii) कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन शोषण एक्ट 2013
> बदलते समय के साथ आधुनिक युग की नारी अपने अधिकारों के प्रति सजग है तथा स्वयं अपना निर्णय लेने के लिये स्वतंत्र हैं। अब वह देश के लिए विशेष महत्वपूर्ण कार्य करती है। महिलाएँ हमारे देश की आबादी का लगभग आधा हिस्सा हैं। राष्ट्र के विकास में महिलाओं की हिस्सेदारी, भूमिका और योगदान को पूरी तरह और सही परिप्रेक्ष्य में रखकर ही हम राष्ट्र निर्माण के लक्ष्य को सही दिशा की ओर ले जा सकते हैं। भारत में ऐसी महिलाओं की कतई कमी नहीं है जिन्होंने अलग अलग क्षेत्रों में अपने वर्चस्व को सिद्ध किया जैसे लता मंगेशकर, बचेंद्री पल, मेरी कॉम, अतिया साबरी, सानिया मिर्ज़ा, निर्मला सीतारमण, वर्षा जबलगेकर आदि। ट्रिपल तलाक के विरुद्ध अतिया सबरी और तेजाब पीड़ितों के लिये इन्साफ की मांग में वर्षा जबलगेकर की लड़ाई महिला सशक्तिकरण के ज्वलंत उदाहरण है।
> आज की महिला ने उस सोच को बदल दिया है कि वह सिर्फ घर और परिवार की ही जिम्मदारी को बेहतर निभा सकती है।
> महिला सशक्तिकरण के बल पर देश व समाज में नारी को वह उचित स्थान मिल सकता है, जिसकी वह हमेशा से हकदार रही है। महिला सशक्तिकरण से सदियों पुरानी परम्पराओं और दुष्टताओं से लड़ने का साहस आ गया है।
> (i) महिलाओं ने हर कार्य में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना शुरू किया है।
> (ii) महिलाएँ अपनी जिंदगी से जुड़े फैसले खुद कर रही हैं।
> (iii) महिलाएँ अपने हक के लिए लड़ने लगी हैं और धीरे धीरे आत्मनिर्भर बनती जा रही हैं।
> (iv) पुरुष भी अब महिलाओं को समझने लगे हैं, उनके हक भी उन्हें दे रहें हैं।
> (v) पुरुष अब महिलाओं के फैसलों की इज्जत करने लगे हैं।
महिला अधिकारों और समानता का अवसर पाने में महिला सशक्तिकरण ही अहम भूमिका निभा सकती है। क्योंकि स्त्री सशक्तिकरण समाज में एक सकारात्मक ऊर्जा पैदा करने में सहायक है।
> हमारा देश भारतवर्ष बड़ी तीव्र गति से आर्थिक तरक्की के पायदान चढ़ रहा है। इसीलिए निकट भविष्य में भारत को महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य को प्रखर गति और सही दिशा देनी होंगी। महिलाओं के विरुद्ध बुरी प्रथाओं के मुख्य कारणों को समझना भी होगा और इनका निराकरण भी करना होगा। हमारी सोच में एक आमुलचूल बदलाव की आवश्यकता है।
> यह सही है की आज के भारत में महिलाएँ उच्च पदों पर आसीन है और अनेक औरतें घर की चौखट से निकल कर उद्यम और सेवा क्षेत्र में नये मुकाम हासिल कर रही हैं पर फिर भी काफी सारी महिलाओं को आज भी सहयोग और सहायता की आवश्यकता है। उन्हें शिक्षा, और आजादीपूर्वक कार्य करने, सुरक्षित यात्रा, सुरक्षित कार्य और सामाजिक आजादी में अभी भी और मुकाम पाने होगें।
> आज की भारतीय नारी को समाज द्वारा थोपी गयी बेड़ियों और बंदिशों को तोड़कर जीवन की राह पर बढ़ना होगा तभी नारी सही मायने में सशक्त हो सकती है। लोग बदल रहे हैं, उनकी सोच बदल रही है पर इस दिशा में अभी भी बहुत कुछ बाकी है। समाज के हर वर्ग को, सरकारों को और सबसे महत्वपूर्ण खुद नारी को “नारी सशक्तिकरण” के मसले पर अभी बड़ा लम्बा रास्ता तय करना होगा एक सटीक और अडिग उद्देश्य के साथ।
अस्वीकरण
इस लेख में दिए गए सभी विचार, भाव और उदाहरण लेखक के खुद के हैं। इस विषय पर हजारों लेख उपलब्ध है और उनमे से किसी के साथ थोड़ी भी शब्दों या भावों की समानता को एक संयोग ही समझा जाए।