CA Santosh Mishra
कम्पनीज एक्ट 2013 की धारा 185(1) के प्रावधानों के अनुसार कंपनी को अपने डायरेक्टर या किसी ऐसे PERSON को जिसमे डायरेक्टर का हित है को लोन, गारंटी या सिक्यूरिटी देने से मना किया गया है यह धारा काफी DEBATABLE है क्योकि इस धारा के ORIGINAL सेंटेंस को पढने से ऐसा लगता है की कंपनी किसी ऐसे कंपनी को भी लोन दे सकती है जिसमे डायरेक्टर इंटरेस्टेड है यदि धारा 186 के प्रावधानों का पालन कर लिया जाता है तो. क्योकि धारा 185 की शुरुवात इस प्रकार है
Save as otherwise provided in this Act, no company shall, directly or indirectly, advance any loan, including any loan represented by a book debt, to any of its directors or to any other person in whom the director is interested or give any guarantee or provide any security in connection with any loan taken by him or such other person.
SAVE AS OTHERWISE PROVIDED IN THIS ACT इसका मतलब है यदि एक्ट में एक ही मामलो में दो अलग-अलग प्रावधान हो तो एक धारा दुसरे धारा के प्रावधानों समाप्त नहीं करेगी अर्थात एक कंपनी दुसरे कंपनी में भी लोन तब भी दे सकती है जब एक कंपनी का डायरेक्टर दुसरे कंपनी में INTERESTED हो, इसप्रकार धारा 186 के प्रावधानों का पालन करके एक कंपनी दुसरे कंपनी में लोन तब भी दे सकती है जब एक कंपनी का डायरेक्टर दुसरे कंपनी में INTRESTED है क्योकि धारा 186 बताती है की एक कंपनी दुसरे कंपनी को लोन दे सकती है कुछ शर्तो को ध्यान में रख कर.
लेकिन यदि Harmonious Construction के रूल अप्लाई करते है तो कंपनी किसी ऐसे कंपनी में लोन नहीं दे सकती है जहा डायरेक्टर इंटरेस्टेड है
क्योकि Harmonious Construction बताती है जब एक्ट में एक ही मामलो पर दो अलग-अलग प्रावधान हो तो इस तरीके से काम करना चाहये जिससे दोनों प्रावधानों का पालन हो जाये [Bengal immunity Co. vs. State of Bihar (1955) 6 STC 446 (SC)]
इस प्रकार एक कंपनी किसी ऐसे कंपनी को लोन नहीं दे सकती है जिस कंपनी में डायरेक्टर इंटरेस्टेड है जब तक की इसकेलिए अलग से एक्ट में कुछ कहा नहीं गया हो
♦ कंपनी निम्न को लोन, गारंटी या सिक्यूरिटी नहीं दे सकती :
- किसी ऐसे कंपनी में जिस कंपनी में इस कंपनी का डायरेक्टर उस कंपनी में भी डायरेक्टर है
- किसी ऐसे पार्टनरशिप फर्म में जहाँ कंपनी का डायरेक्टर पार्टनर है
- किसी ऐसे HUF में जिसमे कंपनी का डायरेक्टर HUF का मेम्बर है
- किसी ऐसे कंपनी में जिसमे GENERAL MEETING में कम से कम 25% का वोटिंग पॉवर ऐसे एक डायरेक्टर या एक से अधिक डायरेक्टर मिलकर EXERCISED या CONTROL करते है
- किसी ऐसे कंपनी में जिसमे ऐसे कंपनी का डायरेक्टर दुसरे कंपनी के बोर्ड पर कण्ट्रोल रखता है
- किसी ऐसे पर्सन को जो डायरेक्टर का रिलेटिव है कंपनी एक्ट के अनुसार
♦ First proviso to Section 185 के अनुसार कंपनी को निम्न को लोन देने से छुट प्रदान की गयी है :
(a) मैनेजिंग डायरेक्टर या होल टाइम डायरेक्टर को :-
(i) ऐसे सेवा शर्तों के अनुसार जिसमे कंपनी के सभी एम्प्लोयी को लोन दिया जाता है या
(ii) ऐसे स्कीम फ्रेम करके लोन दिया जा सकता है जिसे कंपनी के मेम्बर दूरा स्पेशल RESOLUTION पास करके APPROVED किया गया हो
इसके अलावा COMPANIES AMENDMENT BILL 2014 में दो क्लॉज़ जोड़े गए है
(b) एक कंपनी अपने WHOLLY OWNED SUBSIDIARY कंपनी को लोन दे सकती है या WHOLLY OWNED SUBSIDIARY कंपनी दुआरा लिए गए लोन के सम्बन्ध में गारंटी या सिक्यूरिटी दे सकती है
(c) SUBSIDIARY कंपनी दुआरा किसी बैंक या फाइनेंसियल INSTITUTION दुआरा लिए गए लोन के सम्बन्ध में गारंटी या सिक्यूरिटी दे सकती है
शर्त ये है की क्लॉज़ (b) और (c) में लिए गए लोन का यूज़ सब्सिडियरी कंपनी दुआर अपने प्रिसिपल बिज़नेस एक्टिविटी में किया जायेगा
♦ नोट क्लॉज़ (b) और (c) पर :
(a) कंपनी सिर्फ 100% वाली सब्सिडियरी कंपनी में ही लोन दे सकती है
(b) लेकिन सब्सिडियरी कंपनी दुवारा बैंक से या फाइनेंसियल INSTITUTION से लिए गए लोन के सम्बन्ध में गारंटी या सिक्यूरिटी देने के लिए जरुरी नहीं है की 100 % सब्सिडियरी कंपनी हो
PUNISHMENT FOR VIOLATION
धारा 185(2) के अनुसार यदि कंपनी धरा 185(1) का पालन नहीं करती है तो
(a) कंपनी को पनिश किया जायेगा जो 5 लाख से काम नहीं होगा और इसे 25 लाख तक किया जा सकता है और
(b) डायरेक्टर और किसी अन्य पर्सन को पनिश किया जायेगा जो 6 माह की जेल तक हो सकती है और फाइन किया जायेगा जो 5 लाख से काम नहीं होगा और इसे 25 लाख तक किया जा सकता है