एक अंश
मेरी किताब मेरी कलम से
बिल्ली का प्रयास और सफलता
यह घटना उन दिनों की है जब मैं जीवन के कठिन दौर से गुजर रहा था अपने प्रयासों में हुई विफलता और सफलता के प्रति मेरा विश्वास दोनों ही टूट रहे थे ऐसे में एक बिल्ली ने मेरा मार्गदर्शन किया जिसकी कहानी में आपको बता रहा हूं!
साल था 2015, राजस्थान में गुलाबी नगर के नाम से प्रसिद्ध जयपुर की घटना मैं सुबह जब दफ्तर में आता तो मुझे रोज एक बिल्ली अपने दफ्तर से बाहर जाती हुई दिखाई देती, बिल्ली के शरीर की बनावट कुछ इस कदर होती है कि अगर खिड़की दरवाजे मैं उसका मुंह निकल जाए तो बाकी का शरीर वह स्पंज के रूप में संकुचित करके निकाल लेती है यह अपने आप में एक आश्चर्य की बात है लेकिन वह बिल्ली जब मुझे रोज दिखने लगी तो मैं दफ्तर पहुंचते ही उसको खाने के लिए कुछ रख देता और बिल्ली उसे खा कर चले जाती!
एक दिन की बात है मैं चार-पांच दिनों से जयपुर में नहीं था और मेरी बिल्डिंग में ऊपर के तीन मालों पर पहले कोचिंग चला करती थी जो अभी हॉस्टल के रूप में परिवर्तित कर दिए गए लेकिन उस समय पर वे कमरे खाली थे, छठे दिन मैं जब ऑफिस आया तो मैंने पाया कि मेरी बिल्डिंग में बिल्ली के बच्चों की बोलने और रोने की आवाज आ रही है, मैं ऊपर गया तो मैंने पाया कि बिल्ली ने 3 बच्चों को जन्म दिया है और वह मजे से मेरी बिल्डिंग के फर्स्ट फ्लोर पर पूरे कमरे में घूम रहे हैं!
शहरी रहन-सहन और मानसिक सोच के चलते मुझे वह मेरी संपत्ति को गंदा करते हुए दिखाई दे रहे थे और मेरे मन में क्रांतिकारी विचार आने लगे कि मैं कैसे इनको इस बिल्डिंग से बाहर कर दूं, इस बीच सबसे चौंकाने वाली चीज दिखाई दी कि जब जब मैं बिल्डिंग में रहता तो बिल्ली अपने बच्चों को सुरक्षित पाती थी और उनके लिए भोजन का प्रबंध करने के लिए बाहर चली जाती थी और कई के घंटे बाद वापस आती थी परंतु जब मैं ऑफिस में नहीं होता था मेरा स्टाफ इत्यादि कोई होते थे तो वह बिल्ली अपने बच्चों को छोड़कर कहीं नहीं जाती थी, स्टाफ या कोई भी व्यक्ति अगर आता तो बिल्ली अपने बच्चों के पास जाती और बैठी रहती लेकिन जैसे ही मैं बिल्डिंग में आ जाता तो बिल्ली को शायद मुझ पर विश्वास हो गया था और बिल्ली घूमने या उनके लिए भोजन का कुछ व्यवस्था करने के लिए बाहर चली जाती उसको मानो यह पूर्ण विश्वास था कि मेरे रहते हुए उसके बच्चों का कोई भी नुकसान नहीं कर सकता!
परंतु वह जीव यह नहीं जानता था कि मेरे मन में उसके ठीक विपरीत विचार उमड़ रहे थे और एक दिन जैसे ही बिल्ली मेरे कंफर्ट जोन में आकर बच्चों के लिए भोजन लेने बाहर चली गई तो मौका देखकर मैंने उन बच्चों को रेस्क्यू किया और लगभग 1 किलोमीटर दूर S.M.S. स्टेडियम में उन बच्चों को छोड़ आया और मन ही मन खुश हो रहा था कि आज मैंने सफलता पा ली!
लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था लगभग 1 घंटे बाद बिल्ली का आगमन हुआ मैं एक शरारती मुस्कान लिए अपने दफ्तर में बैठा अपने काम में व्यस्त था और खुश था कि आज मैंने बिल्ली के बच्चों से निजात पाली है, अब यह बिल्ली चाह कर भी इन बच्चों को वापस या नहीं ला पाएगी लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था बिल्ली ने अचानक रोना शुरू कर दिया!
ममता और करुणा कि वह पुकार मुझे झकझोर देने के लिए पर्याप्त थी, परंतु मैंने कठोर होने का प्रयास किया और मैंने ठान लिया कि यह कितना भी रोए लेकिन मैं किसी भी सूरत में उन बच्चों को वापस लेकर नहीं आऊंगा और हो सकता है बिल्ली कल तक चुप हो जाएगी या चली जाएगी परंतु बिल्ली मानो गीता का अध्ययन करके आई थी और उसने ठान लिया था कि जब तक सफलता नहीं तब तक प्रयास जारी रहेगा!
एक जीव भला अपने से सौ गुना आकार के व्यक्ति के सामने कर भी क्या सकता था, ना बिल्ली मुझसे लड़ सकती थी, ना बिल्ली मुझसे बगावत कर सकती थी, ना मेरा रास्ता रोक सकती थी, ना ही मेरा कोई काम बिगाड़ सकती थी, मेरे मन में भी दम्भ था कि एक छोटी सी बिल्ली मेरा क्या कर लेगी, रो रो कर चुप हो जाएगी या चली जाएगी, लेकिन मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी और इसी दंभ के मारे मैं भीतर ही भीतर खुश हो रहा था कि तुझे क्यों बताऊं कि तेरे बच्चे कहां है मुझे पता है!
लेकिन कहते हैं कि रामायण में गिलहरी राम सेतु के निर्माण में चुटकी भर मिट्टी लाकर डाल रही थी तो भगवान ने उसे पकड़ लिया और पूछा कि छोटे से जीव तुम यह क्या कर रहे हो, तुम्हारे द्वारा डाली गई मिट्टी के कण हो सकता है पानी में ठहर भी नहीं पाए, इस पर गिलहरी ने कहा हो सकता है प्रभु कि मैं आपकी इसमें मदद ना कर पाऊ, लेकिन मेरी क्षमता के अनुसार में प्रयास जरूर करूंगी, उस गिलहरी की तरह यह बिल्ली अपनी क्षमता के अनुसार अपना प्रयास करना शुरू कर दी, उस दिन से लेकर आने वाले 2 दिनों तक जब जब मैं दफ्तर आता, बिल्ली मेरे दरवाजे पर आती और रोने लगती, कई कई घंटों बैठी रहती और रोती रहती, मानो कह रही हो कि दुनिया मैं मैंने सिर्फ तुम पर विश्वास किया था, सिर्फ तुम को देखकर मैं अपने बच्चों को छोड़कर चली जाती थी, लेकिन तुम मेरे एकमात्र भरोसेमंद इंसान ने भी मेरा विश्वास तोड़ दिया, अब मैं मेरे बच्चों को कहां ढूंढू?
हकीकत तो यह है कि मैं उस बिल्ली तक से आंख नहीं मिला पा रहा था और मुझे ऐसा लगता है कि बिल्ली भी समझ चुकी थी कि यह शरारत किसी और की नहीं बल्कि मेरी है!
लगातार तीन दिनों तक उसके रुदन को देखकर मेरा ह्रदय कांप उठा और मुझे यह एहसास हुआ कि मैंने कितनी बड़ी भूल कर दी, मैंने कुछ बच्चों को उसकी मां से अलग कर दिया और बिल्ली तो वैसे भी अपने बच्चों को पांच सात दिन से ज्यादा एक जगह नहीं रखती, तो दो-चार दिन के उस डिस्कंफर्ट को मैंने एक पाप कृत्य में क्यों बदल दिया और मैं मन ही मन घबराने लगा!
तीसरे दिन उस बिल्ली ने इतना रुदन किया और साफ दिखाई पड़ रहा था कि बिल्ली ने लगभग तीन-चार दिनों से कुछ खाया भी नहीं है, मुझे भी अपनी गलती और भूल का एहसास हो रहा था कि मैंने किसी ऐसे जीव का भरोसा तोड़ा था जिसका कि एकमात्र भरोसेमंद व्यक्ति में ही था!
दोस्तों यह कृत्य मुझे भयभीत करने के लिए पर्याप्त था, मुझे एहसास हो गया था कि किसी का अंतिम विश्वास बनने के बाद उस विश्वास को तोड़ना महाभयंकर दुखदाई और पाप कार्य होता है, इस चीज से घबराकर मैंने यह फैसला किया कि मैं उन बच्चों को ढूंढ लूंगा, मुझे यह घबराहट होने लगी कि 3 दिन भूखे मरने के बाद में बच्चे जीवित कहां मिलेंगे, परंतु मैंने दो लड़कों को साथ लिया और हम तीनों लग गए S.M.S. स्टेडियम में उन बच्चों को ढूंढने!
लगभग चार घंटे की प्रयास के बाद हमें S.M.S. स्टेडियम में दीवार के पास बने हुए एक सीमेंट के पाइप जो कि शायद पानी के निस्तारण के लिए लगे हुए हो, उस में छुपे हुए वह बच्चे मिल गए हैं और मैंने उनको रेस्क्यू करवा कर सकुशल अपने दफ्तर में उसी स्थान पर लाकर रखा, जिस स्थान से मैंने उन्हें उठाया था!
आत्मग्लानि से भरे हुए मैंने उन्हें दूध इत्यादि का इंतजाम भी करके दिया परंतु दिल्ली ने मानो मुझ पर विश्वास त्याग दिया था और वह तुरंत ही अपने बच्चों को लेकर उस बिल्डिंग से चली गई और उस दिन का दिन और आज का दिन, वह बिल्ली फिर लौट कर कभी नहीं आई!
दोस्तों इस कहानी ने मुझे दो प्रेरणाएं दीं, जो मैं आपसे साझा करना चाहता हूं,
पहली प्रेरणा यह कि
कभी भी आप उसका विश्वास मत तोड़ो जिसका कि आखिरी विश्वास और उम्मीद आप हैं क्योंकि अगर आपने वह विश्वास तोड़ दिया तो उसका इस दुनिया में किसी पर से विश्वास उठ जाएगा, और शायद वह फिर किसी पर दोबारा विश्वास ही न कर पाए और उसका परिणाम उसको ही नहीं एक दिन आपको भी जरूर भोगना होगा!
और दूसरी प्रेरणा यह कि
वह बिल्ली सामान्य सा एक छोटा सा जीव जो चाहते हुए भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती थी, ऐसा मुझे लगता था, परंतु उस बिल्ली ने हिम्मत नहीं हारी, वह चाहती तो दिन दो दिन रो कर चुप हो जाती, घबरा कर मर जाती या कुछ भी कर जाती, परंतु उस बिल्ली में अपना आत्मविश्लेषण किया और शायद यह पाया कि मैं जो कर सकती हूं मैं उसे दृढ़ निश्चय के साथ, पूर्ण प्रयास के साथ, पूरी लगन के साथ करूंगी!
दूसरी ओर मैं चाहे कितना भी कठोर हो रहा था, परंतु शायद भगवान यह चाहते थे कि वह मुझे एहसास कराएं कि तुम कितना भी कठोर हो लेकिन तुम एक छोटे से जीव के प्रयास के आगे ही हार जाओगे अगर उसका निश्चय दृढ हुआ, इसलिए तुम्हें इस चीज का दम्भ रखने की कोई की कोई जरुरत नहीं है, अहंकार करने का कोई अधिकार नहीं है!
तो बिल्ली ने अपना रोना भी इस कदर जारी रखा, इतना ज्यादा रोई कि आखिर उसकी दशा देखकर, मेरा अहंकार टूट गया और मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया, प्रेरणा की बात यह है दोस्तों की जब भी हम किसी कठिन दौर से गुजर रहे होते हैं अपने प्रयास में विफल होने लगते हैं या कहीं ना कहीं टूट रहे होते हैं उस वक्त हम क्या कर सकते हैं, हमारी क्षमता के अनुसार, हम उसमें हमारा सर्वोत्तम प्रयास करने की कोशिश अवश्य करें, हो सकता है यह कायनात हमारे इस प्रयास को देखकर ठीक उसी तरह पिघल जाए जिस प्रकार से अहंकार और दंभ से भरा हुआ मैं उस वक्त एक बिल्ली के रोने पर पिघल गया!
यदि आप ऐसे वक्त में जो कि कठिन दौर है, उस वक्त अपना प्रयास भरसक जारी रखते हैं तो ईश्वर की कृपा आप पर अवश्य होती है और कायनात उसे आपको दिलाने में आपकी मदद करने लगती है, आश्चर्य है एक बिल्ली ने मुझे प्रेरणा दी और मुझे समझाया कि जब कोई अपने प्रयास में चरम सीमा पर होता है तो उसे कोई नहीं हरा सकता!
लेखक: मोहित चतुर्वेदी
Very nice and true!
Awesome story
Thanks Sir
अत्यंत सुंदर।
सोच को एक नई दिशा देने के लिए हृदय से आभार।
बहुत बहुत धन्यवाद और आभार आपका।
Mohit Chaturvedi