राम के वनवास और दशरथ के निधन के बाद, भरत नंदीग्राम चले गए! अयोध्या में कुछ यूं हुआ कि केवल कैकेयी ही महलों में रानी रह गई थी, बाकी सब तो शोक ग्रस्त थे, वह भी अब तड़प रही थी और राजमाता बनने के ख्वाब के पूरा होने के पश्चात भी अफसोस जताकर तड़प तड़प कर पश्चाताप की अग्नि में जल रही थी, और भरत के पास जाकर कहती है कि मुझे भी पंचवटी में स्थान दे दे।
इस पर भरत जी कहते हैं कि माता यह परिस्थिति तो तुम्हारी मांगी हुई ही है, तुम्हारे दो वरदानों का परिणाम है, ध्यान से देखो कि आपने जो माँगा वो आपको मिल गया!
आप राजमाता भी बन गईं, आपका बेटा राजा भी बन गया, राम भैया वन भी चले गए, लेकिन मांगते समय आपने यह नहीं सोचा था कि आपकी व्यक्तिगत इच्छा तो पूरी हो जाएगी परंतु इसका औरों के जीवन पर, जो लोग आप से जुड़े हुए हैं, आपके साथ रह रहे हैं, आपके परिवार का, समाज का या जीवन का हिस्सा है, जिनके कारण आप और आप के कारण जो जी पाते हैं, हंस खेल पाते हैं, फल फूल पाते हैं, उनके जीवन पर आपकी इस ख्वाहिश के पूरा होने के क्या असर पड़ेंगे, आप ने यह नहीं सोचा! अब जब वही आपको मिल गया है तो आपको उससे अरुचि जाग रही है।
आपने यह भी नहीं सोचा कि व्यक्तिगत ख्वाहिश एक परिवार के लिए कितनी भारी पड़ सकती है और कितनों का इससे नुकसान हो सकता है और आप खुद को इस ख्वाहिश के पूरा होने के बाद जो खुशी और शांति मिलेगी वह कितने दिन तक ठहरेगी!
एक बसे हुए परिवार को उजाड़ कर, एक व्यवस्थित ढंग से चलते हुए परिवार की दशा खराब करके, आपको कितने दिन तक सुकून मिल सकता है, यह भी आपने नहीं सोचा!
माता, अब आप का प्रायश्चित यही है कि आप इस महलों में रहकर शापित जीवन को ठीक उसी प्रकार से जिए, जैसी कि आपने ख्वाहिश की थी, जिससे कि मानव जाति को यह संदेश मिल सके कि व्यक्तिगत ख्वाहिशों को इस कदर भी नहीं बढ़ा लेना चाहिए कि उनके आगामी प्रभावों को चिंतन और मनन किए बगैर कोई फैसला ले लिया जाए तो उसकी कीमत पूरे परिवार, समाज या देश को चुकानी पड़ सकती है और व्यक्तिगत जीवन की मिली हुई खुशी भी बहुत अल्पकाल के लिए रहकर बाकी के जीवन के लिए एक दर्दनाक पीड़ा सकती है!
आने वाले समय में मानव इससे सीख लें, ऐसा करने से पहले सौ बार सोचें और अपनी ख्वाहिशों के आगामी प्रभावों पर भी गौर कर लें!
मेरा व्यक्तिगत तजुर्बा है
मैंने इस दुनिया में ऐसा होते देखा है
जिसे मोहब्बत थी उसे रोते देखा है
ख्वाहिशों के पीछे भागता है इंसान
बेचैन होकर उसका शौक खोते देखा है।
अर्थात, एक दौर ऐसा आता है जब जिसके पीछे हम पागल रहते हैं, उसी से अरुचि होने लगती है और उस से मुक्त होने में जन्मों लग जाते हैं। भगवान कहते हैं कि ये तो तेरी मांगी हुई दुनिया थी, तूने कठोर तप किया इसको पाने के लिए और कर्म सिद्धांत के चलते मैं तुझे ये देने से खुद को रोक नहीं सकता।
हम जब भी कुछ चाहते हैं तब बहुत ही नजदीक का सोचते और देखते हैं। जिस प्रकार से कड़ाके की ठंड से घबराकर कोई व्यक्ति सूर्य देव की आराधना करे कि वो अपना रौद्र रूप धारण कर लें ताकि ठंड खत्म हो जाए, और प्रार्थना सुनते ही सूर्य देव प्रसन्न हो जाएं और ऐसा कर भी बैठे, तो जाने अनजाने में आप एक भीषण गर्मी को निमंत्रण दे देंगे और परिस्थितियां क्योंकि बदल चुकी होंगी, सर्दियां खत्म हो चुकी होंगी तो आपको उस मौसम से भी अरुचि जाग जाएगी। फिर आप क्या करेंगे।
अर्थशास्त्र का भी सिद्धांत है कि जब किसी आंकड़े का विश्लेषण किया जाता है तो कहा जाता है कि “अन्य बातें समान रहने पर“। हम किसी चीज की कल्पना तो करते हैं लेकिन अन्य बातों के समान रहने पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता। और अनेकों बार जीवन में पछताना पड़ता है।
मेरी किताब
“मेरी कलम से“