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आज प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कर विभाग की प्रशंसा करते हुए कहा कि देश में आयकर दाता का १६% बढ़ना गर्व की बात है और वाकई यदि आयकर दाता देश में बढ़ते हैं तो यह हमारी आर्थिक प्रगति का मापदंड है. और प्रधानमंत्री ने कहा है तो आयकर विभाग द्वारा पुख्ता जानकारी के आधार पर ही होगा.

आयकर विभाग ने जो अपने पोर्टल पर जानकारी साझा की है, उसके अनुसार:

1. पहला, ३१ जुलाई २३ तक नान आडिट केस वाले वित्तीय वर्ष २२-२३ के लिए कुल ६.७७ करोड़ विवरणी फाइल हुई जो पिछले साल के ५.८४ करोड़ विवरणी से १६% अधिक है.

2. अब हकीकत देखें तो हम पाएंगे कि लगभग ४.६५ करोड़ विवरणी ५ लाख से कम की है यानि इस पर कोई कर देयता नहीं है. इसका मतलब लगभग ७०% विवरणी भरने वाले कोई भी टैक्स नहीं भरते और लगभग यही आंकड़ा भी पिछले सालों का है.

3. तीसरा अपनी आय ५ लाख से १० लाख के बीच दिखाने वाले लगभग १.४३ करोड़ करदाता है जो कि कुल करदाता का मात्र २१% होता है और इसका दायरा लगभग २४% पिछले वर्षों में होता था.

4. चौथी बाद १० लाख रुपए से ज्यादा आय बताने वाले देश में लगभग ६९ लाख लोग हैं जो असली करदाता है वह कुल विवरणी का मात्र १०% है, और पिछले सालों के मुकाबले इसमें २% का इजाफा भी हुआ है एवं इनके द्वारा आयकर भी अधिक भरा गया है.

5. पांचवीं बात देश में मात्र १.६९ लाख लोग अपनी आय १ करोड़ रुपए सालाना से अधिक बताते हैं.

इसके क्या मायने निकाले जाएं:

१. आयकर न देने वाला करदाता संख्या में सिर्फ इसलिए बढ़ रहा है क्योंकि अब उसके लेन-देन की जानकारी विभाग के पोर्टल पर दिखने लगी है. लेकिन इसके बावजूद भी वह टैक्स के दायरे में नहीं आना चाहता और न ही टैक्स भरना चाहता है.

२. मध्यम वर्गीय और वेतनभोगी करदाता अपनी आय ईमानदारी से ५ लाख से १० लाख रुपए सालाना दिखाकर उसपर टैक्स भर रहा है और इसमें से लगभग २-३ % करदाता सालाना १० लाख रुपए से ज्यादा आय के दायरे में इस वर्ष आए हैं, इसलिए ५ से १० लाख की आय दिखाने वालों में कुछ कमी आई है.

३. असली करदाता लगभग आज भी वही है जो पिछले कई सालों से अपनी आय सालाना १० लाख रुपए से ज्यादा दिखा रहा है. मतलब साफ है कि धनाढ्य वर्ग का धन और बढ़ रहा है और वो ही मात्र सबसे ज्यादा टैक्स भरने वाला करदाता है. हर साल उसकी आय भी बढ़ रही है और वह टैक्स भी अधिक दे रहा है.

उपरोक्त तथ्यों के आधार पर सरकार यदि कहे कि आयकर कलेक्शन बढ़ रहा है और करदाता बढ़ रहें हैं तो ये बेमानी होगा क्योंकि संख्या बल मात्र दिखावा है. असली करदाता की पहचान कर टैक्स के दायरे में लाना हमारा टारगेट होना चाहिए.

साफ है आज भी यदि आयकर के प्रति लोगों का रूझान नहीं है तो यह प्रमुख कारण है जिनका उपाय खोज कर क्रियान्वयन करना होगा तभी देश की असल आर्थिक प्रगति संभव है:

१. आयकर कानून के नियम और अनुपालन अधिक और कठिन होते जा रहे हैं.

२. कठोरता से दंड दिया जा सकता है, टैक्स नहीं वसूला जा सकता.

३. करदाता जबतक स्वेच्छा से टैक्स देने के फायदे के प्रति जागरूक और आकर्षक नहीं होगा वह कर दायरे से अपने आपको बाहर रखेगा.

४. सरकार और विभाग को करदाता को ग्राहक के द्रृष्टिकोण से देखना होगा ताकि हमारा नीति निर्धारण करदाता को रिझाने और उसकी सुविधाएं बढ़ाने का हो.

५. सारी सुविधाएं उनको मिलती है जो टैक्स नहीं भरते हैं, फिर चाहे वे राजनेता, सांसद या विधायक ही क्यों न हो. दिव्यांग लोगों और परिवारों को छोड़कर सभी को टैक्स दायरे में लाना होगा चाहे वो खेती से आय करता हो या ट्रस्ट का उपयोग करता हो.

६. आम करदाता आज भी यही कहता है कि आयकर और जीएसटी मिलाकर साल का ४०-४५% टैक्स चला जाता है और उसके बाद भी घर, इलाज और शिक्षा के भटकता रहता है.

७. आयकर कानून का उपयोग डराने के लिए नहीं बल्कि सुविधाएं देने के लिए होना चाहिए. आमजन में इसके प्रति अपने कर्तव्यों का बोध और जागरूकता जरूरी है.

उम्मीद है सरकार आयकर कानून को सिर्फ टैक्स कलेक्शन की प्रक्रिया न देखते हुए इसे करदाता को सुविधाएं उपलब्ध कराने हेतु निर्धारित करें तभी करदाता स्वेच्छा से आगे बढ़कर टैक्स जमा करेगा और तब न सिर्फ संख्या बढ़ेगी बल्कि सही मायनों में आयकर का दायरा बढ़ेगा.

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सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर ९८२६१४४९६५

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