Summary: माल और सेवा कर (जीएसटी) रिटर्न और अन्य दस्तावेज़ करदाताओं द्वारा जीएसटी विभाग को प्रस्तुत किए जाते हैं, जिनमें बिक्री, खरीद, और जीएसटी अनुपालन से संबंधित जानकारी शामिल होती है। एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि क्या जीएसटी रिटर्न सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम 2005 के तहत सार्वजनिक की जा सकती हैं। RTI अधिनियम नागरिकों को सरकारी विभागों से जानकारी मांगने का अधिकार देता है, लेकिन इसमें कुछ विशेष छूटें भी हैं। जीएसटी अधिनियम की धारा 158 स्पष्ट रूप से जीएसटी रिटर्न की जानकारी को सार्वजनिक करने पर रोक लगाती है। इसका अर्थ यह है कि जीएसटी रिटर्न गोपनीय दस्तावेज हैं और उन्हें सामान्य जनता के लिए सुलभ नहीं किया जा सकता। हाल ही में, केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) ने यह स्पष्ट किया कि जीएसटी रिटर्न का विवरण RTI अधिनियम के तहत प्रकट नहीं किया जा सकता, क्योंकि जीएसटी अधिनियम एक विशेष कानून है और इसे सामान्य कानूनों पर वरीयता दी जाती है। इससे पता चलता है कि जीएसटी रिटर्न व्यक्तिगत जानकारी के अंतर्गत आते हैं और इन्हें सार्वजनिक दस्तावेज़ों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। इसके अलावा, वित्त अधिनियम 2023 के अनुसार, जीएसटी रिटर्न दाखिल करने की नियत तिथि से तीन साल बाद इसे दाखिल नहीं किया जा सकता, इसलिए करदाताओं को अपनी जानकारी को शीघ्रता से व्यवस्थित करने की सलाह दी जाती है।
माल और सेवा कर (जीएसटी) में जीएसटी रिटर्न और अन्य दस्तावेज देश में पंजीकृत संस्थाओं से आवश्यक एक अनिवार्य फाइलिंग है, जिसे माल और सेवा कर (जीएसटी) विभाग को प्रस्तुत किया जाता है। इन दस्तावेज़ में करदाता का रिकॉर्ड जैसे बिक्री, खरीद और जीएसटी अनुपालन से संबंधित व्यय के व्यापक रिकॉर्ड शामिल हैं । अब एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता हैकि
क्या जीएसटी रिटर्न निजी दस्तावेज हैं, या उन्हें सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम 2005 के तहत प्रकट किया जा सकता है?
आरटीआई (RTI )अधिनियम के तहत, नागरिकों को देश के किसी भी सार्वजनिक विभाग से जानकारी मांगने का अधिकार है । हालाँकि, इस अधिकार में कुछ विशेष छूट भी हैं।
उदाहरण – राष्ट्रीय सुरक्षा को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करने वाले डेटा को आरटीआई(RTI) ढांचे के तहत साझा नहीं किया जा सकता है। राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करने वाली संवेदनशील जानकारी के विपरीत, जीएसटी रिटर्न अन्य स्वाभाविक रूप से इस श्रेणी में नहीं आते हैं। फिर भी, जीएसटी अधिनियम 2017 की धारा 158 स्पष्ट रूप से उन नागरिकों के साथ जीएसटी रिटर्न साझा करने पर रोक लगाती है जो इस डेटा तक पहुँच का अनुरोध करते हैं।
जीएसटी रिटर्न/अन्य दस्तावेज गोपनीय या सार्वजनिक?
एक सार्वजनिक दस्तावेज़ को आम तौर पर एक ऐसे दस्तावेज़ के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसे सार्वजनिक अधिकारी द्वारा तैयार या दायर किया जाता है और जो सार्वजनिक निरीक्षण के लिए उपलब्ध होता है। इसके विपरीत, जीएसटी रिटर्नऔर अन्य दस्तावेज व्यक्तिगत करदाताओं द्वारा दाखिल किए जाते हैं , न कि सार्वजनिक अधिकारियों द्वारा, और उनकी सामग्री आम तौर पर जनता के लिए सुलभ नहीं होती है। यह अंतर उन्हें अन्य सार्वजनिक दस्तावेजों, जैसे भूमि रिकॉर्ड या अदालती फैसलों से अलग करता है।
क्या जीएसटी रिटर्न गोपनीय या सार्वजनिक डेटा के रूप में वर्गीकृत है?
यह कि जीएसटी अधिनियम 2017 का संदर्भ लेते हैं। धारा 158 के अनुसार , अधिनियम के तहत प्रस्तुत किसी भी विवरण, रिटर्न, खातों या दस्तावेजों में निहित सभी विवरणों को विशिष्ट अपवादों के साथ लोक सेवकों द्वारा प्रकट नहीं किया जाना चाहिए।
यदि प्रकटीकरण की आवश्यकता है तो अनुमति केवल कुछ परिस्थितियों में दी जाती है, जैसे -कि जब अन्य कानूनों द्वारा आवश्यक हो, सत्यापन उद्देश्यों के लिए, नोटिस या मांगों की सेवा में, या अदालती कार्यवाही के लिए।
जीएसटी अधिनियम 2017 की धारा 158 बनाम आरटीआई अधिनियम जीएसटी अधिनियम और आरटीआई अधिनियम के प्रावधान सूचना साझाकरण प्रबंधन के लिए विपरीत दृष्टिकोण दर्शाते हैं। धारा 158 करदाताओं द्वारा प्रस्तुत डेटा की गोपनीयता को प्राथमिकता देती है, अधिकारियों को जीएसटी रिटर्न सहित अन्य जानकारी का खुलासा करने से सख्ती से रोकती है। इसके विपरीत, आरटीआई अधिनियम 2005 नागरिकों को सार्वजनिक कार्यालयों से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार देता है, जिससे सरकारी कार्यों में जवाबदेही को बढ़ावा मिलता है। हालाँकि, आरटीआई (RTI)अधिनियम में धारा 8 के तहत विशिष्ट छूट भी शामिल है , जो राष्ट्रीय सुरक्षा, व्यक्तिगत गोपनीयता और वाणिज्यिक गोपनीयता जैसे संवेदनशील मुद्दों को कवर करती है – जो अक्सर वित्तीय जानकारी को प्रकटीकरण से बचाती है। जीएसटी अधिनियम 2017 को एक विशेष कानून माना जाता है, जबकि आरटीआई (RTI)अधिनियम एक सामान्य कानून के रूप में कार्य करता है। इसलिए, जब इन दोनों क़ानूनों के बीच टकराव होता है, तो विशेष कानून सामान्य कानून पर वरीयता लेता है। यह सिद्धांत कानूनी अर्थ है कि सामान्य प्रावधान विशिष्ट प्रावधानों को ओवरराइड नहीं करते हैं।
यह कि हाल के एक फैसले में, केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) ने निर्धारित किया कि केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम (सीजीएसटी अधिनियम), 2017 की धारा 158 (1) के तहत जीएसटी रिटर्न का विवरण प्रकट नहीं किया जा सकता है । केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) ने स्पष्ट किया कि विशेष कानूनों को सामान्य कानूनों द्वारा ओवरराइड नहीं किया जा सकता है।
चंद्र प्रकाश तिवारी बनाम शकुंतला शुक्ला अपील (सिविल) 3441-3446 वर्ष 2002 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का संदर्भ देते हुए । एक सार्वजनिक दस्तावेज को आम तौर पर एक ऐसे दस्तावेज के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसे किसी सार्वजनिक अधिकारी द्वारा तैयार या दायर किया जाता है और जो सार्वजनिक निरीक्षण के लिए उपलब्ध होता है। इसके विपरीत, जीएसटी रिटर्न व्यक्तिगत करदाताओं द्वारा दाखिल किए जाते हैं, न कि सार्वजनिक अधिकारियों द्वारा, और उनकी सामग्री आम तौर पर जनता के लिए सुलभ नहीं होती है। यह अंतर उन्हें अन्य सार्वजनिक दस्तावेजों, जैसे भूमि रिकॉर्ड या अदालती फैसलों से अलग करता है। केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) ने मामले की समीक्षा करने के बाद प्रतिवादी की स्थिति की पुष्टि की और दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले (रिट पिटीशन संख्या (C) 340/2023) का हवाला दिया, जिसमें सामान्य कानूनों पर विशेष प्रावधानों की प्राथमिकता पर प्रकाश डाला गया था, जिसमें विशेष रूप से सूचना का अधिकार (RTI)अधिनियम, 2005 को सामान्य कानून और आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 138 को विशेष प्रावधान के रूप में अलग किया गया था। केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) ने इस बात पर जोर दिया कि आयकर अधिनियम1961 के तहत तीसरे पक्ष के बारे में जानकारी का खुलासा करने की विशिष्ट प्रक्रियाओं को सामान्य आरटीआई (RTI)अधिनियम के तहत लागू नहीं किया जा सकता है। इसी तरह सुप्रीम कोर्ट ने Kerala Public Service Commission (KPSC) v. State Information Commission मामले के निर्णय पर केंद्रित है। कोर्ट ने इस सवाल का समाधान किया कि क्या उम्मीदवारों को RTI Act के तहत उन परीक्षकों (Examiners) के नाम जानने का अधिकार है जिन्होंने उनकी उत्तर पुस्तिकाओं (Answer Sheets) का मूल्यांकन किया। इस निर्णय ने पारदर्शिता (Transparency) और गोपनीयता (Confidentiality) के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया है, खासकर उन मामलों में जहाँ सार्वजनिक निकाय (Public Authority) विशेष कार्यों के लिए एजेंट (Agents) नियुक्त करते हैं। RTI की भूमिका (Role of RTI) RTI Act नागरिकों को सार्वजनिक निकायों से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार देकर पारदर्शिता को बढ़ावा देता है। हालांकि, इस अधिनियम में कुछ संवेदनशील सूचनाओं (Sensitive Information) की सुरक्षा के लिए छूट भी दी गई है। Section 8(1)(e) के तहत उन सूचनाओं के खुलासे पर रोक है, जो विश्वासपूर्ण (Fiduciary) संबंधों में साझा की गई हैं, जहाँ एक पक्ष (Party) दूसरे पर निष्ठा और ईमानदारी से कार्य करने का भरोसा करता है।
टिप्पणी –
उपरोक्त लेख से स्पष्ट है कि आरटीआई (RTI )अधिनियम की धारा 8 के अंतर्गत किसी पंजीकृत कर दाता की सूचना जीएसटी अधिनियम 2017 के अंतर्गत प्राप्त नहीं की जा सकती ,क्योंकि वह सार्वजनिक तथ्यों पर आधारित नहीं है, वह करदाता की व्यक्तिगत जानकारी के अंतर्गत आता है।
महत्वपूर्ण सूचना जीएसटी रिटर्न तीन वर्ष की अवधि समाप्त होने पर रोक।
यह कि वित्त अधिनियम, 2023 (8/2023), दिनांक 31-03-2023 के अनुसार, जिसे अधिसूचना संख्या 28/2023 – केंद्रीय कर दिनांक 31 जुलाई, 2023 के माध्यम से 01-10-2023 से लागू किया गया है, करदाताओं को धारा 37 (आउटवर्ड सप्लाई), धारा 39 (देयता का भुगतान), धारा 44 (वार्षिक रिटर्न) और धारा 52 (स्रोत पर कर संग्रह) के तहत उक्त रिटर्न प्रस्तुत करने की नियत तिथि से तीन वर्ष की अवधि समाप्त होने के बाद अपना जीएसटी रिटर्न दाखिल करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। ये धाराएँ GSTR-1, GSTR 3B, GSTR-4, GSTR-5, GSTR-5A, GSTR-6, GSTR 7, GSTR 8 और GSTR 9 को कवर करती हैं।
जीएसटी पोर्टल में ये बदलाव अगले साल (2025) की शुरुआत से लागू होने जा रहे हैं। इसलिए, करदाताओं और टैक्स प्रोफेशनल को सलाह दी जाती है कि वे अपने रिकॉर्ड को ठीक कर लें और अगर अभी तक जीएसटी रिटर्न दाखिल नहीं किया है तो जल्द से जल्द दाखिल करें।
यह लेखक के निजी विचार हैं।