हाल में ही किए गए आयकर छापे जो कि गुजरात, मध्यप्रदेश और पश्चिम बंगाल स्थित व्यापारिक समूह पर हुए, ये सभी ग्रुप स्टील, केमिकल, लोहा, शिक्षा, अस्पताल, कंस्ट्रक्शन, बिल्डर, आदि व्यापार में लिप्त है.
करीब 1500 करोड़ के अवैध और काले धन के लेनदेन की जानकारी समूह के मालिकों और मैनेजरों के वाट्सऐप चेट एवं ईमेल के जरिये प्राप्त हुई और साथ ही व्यापक स्तर पर फर्जी या मुखौटा कंपनियों का उपयोग काले धन के लेनदेन में किया जाता है.
साफ है कानूनी प्रक्रिया और प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है और यह जबाबदारी सरकार की ही नहीं अपितु पेशेवरों और व्यापारियों की भी है.
आज व्यापार में व्यापक स्तर पर डिजिटल माध्यमों का उपयोग कर लेनदेन रिकॉर्ड पर नहीं लाए जाते और डील खत्म होते ही रिकॉर्ड को डीलीट कर दिया जाता है और इस तरह आसानी से कर चोरी की जाती है.
इसी तरह फर्जी कंपनियों के नाम पर लेनदेन कर कोई भी रिकॉर्ड नहीं रखा जाता और कंपनियों के पते ऐसी जगह के होते हैं जिसका पता लगाना ही नामुमकिन होता है और बाकी रही सही कसर देश में आसानी से उपलब्ध लोगों के केवाइसी दस्तावेज़ पूरा कर देते हैं.
तो न केवल सरकार बल्कि पेशेवरों को भी ध्यान रखना होगा कि हम ऐसी प्रक्रिया को बढ़ावा न दें क्योंकि खराब नीयत वाला व्यक्ति कानून की कमजोरी और पैसों का लालच देकर पेशेवरों का उपयोग कर टैक्स चोरी को अंजाम देता है.
डिजिटल माध्यम, मुखौटा कंपनियों और पेशेवरों का उपयोग कर टैक्स चोरी करने से रोकने के लिए निम्नलिखित सुझावों पर विचार किया जा सकता है:
- सोशल मीडिया पर कानून बनाना कि कोई भी व्यक्ति का व्यक्तिगत और व्यापारिक खाता अलग अलग खुलें जैसा कि बैंक में सेविंग और करंट अकाउंट खुलता है.
- व्यापारिक ईमेल खाते का रिकॉर्ड आयकर कि धारा 44ए के अंतर्गत रखना जरूरी होगा और नहीं रखने पर पेनल्टी के प्रावधान होंगे.
- इसी तरह व्यक्तिगत ईमेल का उपयोग यदि व्यापारिक लेनदेन के उपयोग में पाया जाता है तो उसे आयकर कानून के अन्तर्गत डिफाल्ट माना जावेगा और ऐसे लेनदेन पर 100% टैक्स देना होगा.
- ईमेल सर्विस प्रोवाइडर को यह सुनिश्चित करना पड़ेगा कि हर खाता केवाइसी वेरिफाई हो और जिनमें कोई भी प्रूफ नहीं है, उन सभी को तुरंत ब्लॉक किया जावे.
- वाट्सऐप और अन्य सोशल मीडिया एप का उपयोग सिर्फ और सिर्फ व्यक्तिगत उपयोग के लिए होगा और किसी भी तरह का व्यापारिक लेनदेन उपयोग पाए जाने पर एप कंपनी और उपयोगकर्ता पर जुर्माना लगेगा.
- व्यापारिक और संस्थागत क्रियाकलापों और लेनदेन में सिर्फ और सिर्फ व्यापारिक ईमेल खाते का ही उपयोग होगा और अन्य सभी तरह के सोशल और मोबाइल एप वर्जित होंगे.
- किसी भी संस्था या कंपनी का रजिस्ट्रेशन करने से पहले पैशेवर और विभाग की यह जबाबदारी होगी कि वे फिजिकल वैरिफिकेशन रिपोर्ट अपने हस्ताक्षर से रिकॉर्ड में लगावें ताकि फर्जी कंपनियों का और फर्जी मालिकों पर रोक लगें.
- फर्जी कंपनी या फर्जी मालिक या फर्जी पता या रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया में खामियां पाए जाने पर भी विभागीय अधिकारी के साथ जिस पेशेवर ने कंपनी या फर्म बनाने में सहयोग दिया है, उस पर शास्ति के प्रावधान लागू होंगे.
- व्यापार में काफी बड़े स्तर पर डिजिटल रिकॉर्ड बनाना और उसे डीलीट कर देना एक आम प्रक्रिया बन गई है जो कि टैक्स चोरी का प्रमुख साधन और तरीका है. इसलिए समय की मांग है कि सरकार द्वारा डिजिटल नीति निर्धारण किया जावें.
देश में ऐसे डिजिटल साफ्टवेयर और मशीनों का उपयोग होना जरूरी हो जिससे डीलीट किए रिकॉर्ड का ट्रैल मौजूद रहें. उदाहरण के लिए एक रेस्टोरेंट वाला अपनी कम्प्यूटर बिक्री मशीन से दिन भर की बिक्री के रिकॉर्ड डीलीट कर अपने हिसाब से मनगढंत बिक्री बताकर टैक्स जमा करता है.
आज डिजिटल माध्यम और साक्ष्य पर कोई रोक टोक नहीं है, इसके उपयोग पर सरकार द्वारा कंट्रोल और नजर रखना नामुमकिन है और इसीलिए इनके उपयोग पर कानून बनाना और बंदिशों में बांधना ही आख़िरी रास्ता है.
ये मानवधिकार का हनन नही है अपितु हर देश का हक है कि देश हित में किस माध्यम को कितनी छूट दी जावें ताकि प्रशासनिक और कानून व्यवस्था का सही ढंग से अनुपालन हो सकें क्योंकि हम सभी इस बात पर तो सहमत होंगे कि डिजिटल साधनों पर निगरानी एवं नियंत्रण न होना टैक्स चोरी को बढ़ावा दे रहा है और साथ ही फर्जी रजिस्ट्रेशन में भी सहायक बन रहा है.
डिजिटल साधनों पर लगाम कसें बिना राजस्व वृद्धि नामुमकिन प्रतीत होती है और उम्मीद है सरकार इस पर चर्चा करेगी और साथ ही पेशेवर एवं व्यापारी भी सहयोग करेंगे कि इन साधनों का उपयोग देश हित में हों.
लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर 9826144965
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