हाल में ही मुंबई हाईकोर्ट ने आयकर संबंधित एक मामले में आयकर विभाग और उसको चलाने वाली संस्था सेंट्रल बोर्ड आफ डायरेक्ट टैक्सेस ( सीबीडीटी) को काफी खरी खरी सुनाई.
कोर्ट ने इतना तक कह दिया कि सीबीडीटी अपने अधिकारियों को कम से कम इतनी ट्रेनिंग तो दें ताकि कोई केस निर्धारण करते समय अपने दिमाग का प्रयोग करें.
मामलासरवाह मल्टीट्रेड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड विरुद्ध आईटीओ 13/01/2022,134 टैक्समेन 134 (मुंबई) का है जो आयकर की धारा 148 के अंतर्गत किए गए निर्धारण पर सुना जा रहा था.
आयकर अधिकार द्वारा केस खोलने से पूर्व जो कारण दर्शाये गए या रिकॉर्ड पर लाए गए वो समझ से परे है. इन कारणों में यह बताया गया कि कंपनी द्वारा अपने को ही बोगस एडजस्टमेंट एंट्री दी गई यानि देने वाली भी कंपनी और लेने वाली भी कंपनी.
कैसे कोई अपने आप से ही लेनदेन कर सकता है और वह आय छुपाने का कारण बन सकता है. अधिकारी ने केस खोलने से पहले ऐसा लगता है कोई दिमाग लगाया ही नही. और तो और पार्टी द्वारा ओब्जेक्शन लगाने के बावजूद भी अधिकारी को अपनी गलती समझ में नहीं आई और अपनी रिपोर्ट एफिडेविट सहित एपरुवल के लिए प्रिंसिपल कमीश्नर को प्रेषित कर दी.
विभाग की विडम्बना तो देखिए कि प्रिंसिपल कमीश्नर साहब ने भी एक कागजी कार्यवाही की तरह एपरुवल भी दे दिया. यदि एक बार कारण पढ़ लेते तो कभी एपरुवल न देते.
बाकी कसर आयकर अधिकारी ने उलजलूल आर्डर पास कर पूरी कर दी. कोर्ट ने कहा ऐसा लगता है कि कानून में दिमाग का उपयोग शब्द जो लिखा है, उसे उन अधिकारियों ने उल्टा पढ़ लिया है कि दिमाग के उपयोग के बिना.
कोर्ट ने आगे कहा कि इस आर्डर की प्रति सीबीडीटी, प्रिंसिपल कमीश्नर और विभागीय स्तर पर अन्य जगह भेजी जावेगी ताकि भविष्य में ऐसी गलती कोई भी विभाग का अधिकारी न करें और साथ ही सीबीडीटी को चेतावनी दी कि अपने अधिकारियों को इतनी ट्रेनिंग दें कि वे दिमाग का उपयोग करें.
मुंबई हाईकोर्ट की इस तीखी टिप्पणी और जजमेंट ने आयकर विभाग के साथ सरकार को भी सोचने को मजबूर कर दिया कि अधिकारियों के चयन, ट्रेनिंग, अनुभव, कर्तव्यनिष्ठा संबंधित खामियों को जल्द दूर करना होगा नहीं तो व्यापारी और ईमानदार करदाता टैक्स देने से दूर होगा एवं एक फार्मल कर प्रणाली का हिस्सा बनने से घबरायेगा.
*लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर 9826144965*