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यदि आप UPI का उपयोग कर रहे हैं, तो आयकर एक्ट और जीएसटी अधिनियम 2017 के अनुसार UPI लेनदेन की सीमा क्या होगी और इसके लिए जीएसटी अधिनियम में क्या प्रावधान है?

यूपीआई(UPI )क्या है?

यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) एक त्वरित भुगतान प्रणाली है, जिसे भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) द्वारा विकसित किया गया है, जो RBI द्वारा विनियमित इकाई है। UPI को IMPS (Immediate Payment Service) इंफ्रास्ट्रक्चर पर बनाया गया है और यह दो पक्षों के बैंक खातों के बीच तुरंत पैसे ट्रांसफर करने की अनुमति देता है।

प्रतिदिन UPI से ट्रांसफर सीमा

एनपीसीआई (NPCI) के अनुसार UPI ट्रांजैक्शन की प्रतिदिन की सीमा 1 लाख रुपये है। हालांकि, शैक्षणिक संस्थानों और स्वास्थ्य सेवा के लिए भुगतान की सीमा 5 लाख रुपये है। यूपीआई की अधिकतम दैनिक ट्रांसफर सीमा बैंक दर बैंक 25,000 रुपये से लेकर 1 लाख रुपये के बीच हो सकती है। कुछ बैंकों ने यूपीआई ट्रांसफर की सीमा एक दिन के बजाय प्रति सप्ताह या प्रति माह निर्धारित की है।

आयकर एक्ट के अनुसार यूपीआई सीमा:

आयकर अधिनियम के नियम 114 ई के अनुसार नकद जमा और निकासी सीमा, क्रेडिट कार्ड भुगतान सीमा, सावधि जमा सीमा की तरह, सीधे तौर पर आयकर अधिनियम में कोई सीमा निर्दिष्ट नहीं है, लेकिन नीचे अप्रत्यक्ष रूप से प्रावधानों से यूपीआई सीमाओं से जुड़े हुए हैं:

आईटीआर दाखिल करने की आय सीमा:

आयकर एक्ट की धारा 139 (1) के अनुसार, कंपनी और फर्म के लिए आईटीआर दाखिल करना अनिवार्य है और किसी अन्य व्यक्ति के मामले में यदि उनकी आय छूट सीमा ₹3,00,000(तीन लाख रुपये) से अधिक है तो उन्हें आयकर रिटर्न दाखिल करना आवश्यक है।

इसके अलावा कुछ ऐसे मामले भी हैं जिनमें आपकी आय आयकर सीमा से कम होने पर भी आईटीआर दाखिल करना अनिवार्य है:

निम्नलिखित कुछ ऐसे उदाहरण हैं। जहां किसी व्यक्ति को अपनी आयकर सीमा से कम होने पर भी अपना आईटीआर दाखिल करना होता है:

यदि किसी व्यक्ति ने एक या अधिक चालू खातों में 1 करोड़ रुपये या उससे अधिक जमा किया हो , या यदि किसी व्यक्ति ने एक या एक से अधिक बचत खातों में 50 लाख रुपये या उससे अधिक जमा किया है, या

यदि किसी व्यक्ति ने स्वयं अथवा किसी अन्य व्यक्ति के लिए विदेश यात्रा पर 2 लाख रुपये से अधिक व्यय किया है, या एक वर्ष में बिजली भुगतान पर 1 लाख रुपये से अधिक व्यय किया हो ,या पेशेवरों के लिए, यदि सकल प्राप्तियां 10 लाख रुपये से अधिक हैं तो उन्हें आईटीआर दाखिल करना होगा, या व्यवसायों के लिए, यदि टर्नओवर 60 लाख रुपये से अधिक है, या

यदि टीडीएस/टीसीएस की राशि 25000 रुपये से अधिक काटी गई है (वरिष्ठ नागरिकों के मामले में 50000 रुपये) या भारत के बाहर किसी भी संपत्ति का लाभकारी स्वामी या लाभार्थी है। या किसी विदेशी बैंक खाते पर हस्ताक्षरकर्ता हो।

अतः उपरोक्त मामलों में आप देख सकते हैं। कि यदि आप यूपीआई(UPI )लेनदेन कर रहे हैं तो बचत खाते और चालू खाते के लिए निर्दिष्ट सीमा आप पर लागू होती है और यदि आपकी आय ₹3,00,000 रुपये से अधिक है ।तो भी आपके लिए आईटीआर दाखिल करना अनिवार्य है, अन्यथा आयकर विभाग आपको नोटिस दे सकता है

UPI के लेनदेन आयकर विभाग कैसे ट्रैक करता है

क्योंकि आपका यूपीआई (UPI)बैंक अकाउंट से लिंक होता है इसलिए आयकर विभाग आपका पैन कार्ड से सभी लेनदेन ट्रैक कर सकता है।

यूपीआई (UPI)लेनदेन पर भी उसी तरह आयकर लगता है ।जैसे म्यूचुअल फंड या फिक्स्ड डिपॉजिट से होने वाली आय पर लगता है। आयकर अधिनियम की धारा 56(2) सभी ई-वॉलेट लेनदेन पर लागू होती है क्योंकि वे सभी ‘अन्य स्रोतों से आय’ के रूप में वर्गीकृत हैं।

यदि आपको ITR दाखिल करना है तो उस समय, अपने वेतन और आय के अन्य स्रोतों, जैसे ई-वॉलेट या UPI ऐप से प्राप्त धन के बारे में विस्तृत जानकारी देनी होगी। अगर आप मानते हैं कि UPI के ज़रिए प्राप्त लेन-देन या पैसे को ट्रैक नहीं किया जाता है। तो आप गलत हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि आयकर विभाग आपके हर लेन-देन को ट्रैक करता है।

यूपीआई(UPI) लेनदेन पर करदेयता

यूपीआई लेनदेन अन्य वित्तीय लेनदेन की तरह ही कर कानूनों के अधीन हैं। जिसके मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:

A. नकद प्राप्तियाँ(CASH RECEIPTS): UPI के माध्यम से प्राप्त 50,000 रुपये तक की राशि कर-मुक्त है। इससे अधिक की राशि को उपहार माना जाता है और कर योग्य है।जब तक कि यह ऋण का पुनर्भुगतान न हो।

B. UPI लेनदेन के ज़रिए लोग ज़रूरत पड़ने पर नकद भेज या प्राप्त कर सकते हैं। अगर रसीद 50,000 रुपये तक की है, तो यह कर से मुक्त है। इससे ज़्यादा की राशि को उपहार माना जाता है और इस पर कर लगता है। हालाँकि, अगर आपको अभी-अभी कोई पैसा मिला है जो आपके दोस्त ने आपको दिया है, तो उस पर कर नहीं लगेगा।

C. उपहार वाउचर(GIFT VOUCHER): नियोक्ता द्वारा यूपीआई(UPI )के माध्यम से दिए गए 5,000 रुपये से अधिक के उपहार वाउचर कर योग्य हैं।

आयकर नियम 3(7) (iv) के अनुसार, जब नियोक्ता UPI के माध्यम से 5,000 रुपये से अधिक का उपहार वाउचर देते हैं, तो UPI पर कर लागू होता है। हालाँकि, यदि ई-वॉलेट के माध्यम से हस्तांतरित की गई ऐसी राशि की रिपोर्ट नहीं की जाती है, तो इसके परिणामस्वरूप आयकर अधिनियम की धारा 147 के तहत पुनर्मूल्यांकन हो सकता है।

D. कैशबैक और रिवार्ड्स(CASH BACK & REWARDS): ई-वॉलेट से प्राप्त कैशबैक, यदि एक वित्तीय वर्ष में 50,000 रुपये से अधिक है, तो इसे आयकर अधिनियम की धारा 56(2) के अंतर्गत कर योग्य उपहार माना जाता है।

ई-वॉलेट के उपयोगकर्ता ऑनलाइन भुगतान करने के लिए अपने ई-वॉलेट का उपयोग करने पर कैशबैक पुरस्कार अर्जित करते हैं। यही कारण है कि ई-वॉलेट का उपयोग बढ़ रहा है। इस अधिनियम के तहत ‘उपहार’ शब्द से तात्पर्य आपके द्वारा प्राप्त की गई कोई भी राशि से है, और इसलिए इन ई-वॉलेट से प्राप्त कैशबैक को ‘उपहार’ कहा जाता है और यह अधिनियम के अंतर्गत होता है।

आयकर अधिनियम की धारा 56(2) के अनुसार, यदि किसी एक वित्तीय वर्ष में कैशबैक 50,000 रुपये से अधिक है, तो उस पर कर लगता है। इसी तरह, दोस्तों और परिवार से मिले उपहार वाउचर, जिनकी कीमत एक वित्तीय वर्ष में 50,000 रुपये से अधिक है, पर भी कर लगता है।

जीएसटी के अनुसार यूपीआई(UPI )सीमा:

आयकरएक्ट की तरह ही, जीएसटी अधिनियम के तहत यूपीआई के लिए कोई सीमा निर्धारित नहीं है। लेकिन जीएसटी पंजीकरण प्राप्त करने की सीमा है, जो जीएसटी अधिनियम में निम्न प्रकारदी गई है:

1. यदि कोई व्यक्ति केवल माल की आपूर्ति करता है ।तो कुल कारोबार सीमा 40 लाख रुपये है ।से अधिक होने पर।

2. यदि कोई व्यक्ति केवल सेवाएं प्रदान करता है। तो कुल कारोबार सीमा 20 लाख रुपये से अधिक होने पर।

इसलिए यदि हम ऊपर यूपीआई(UPI )के साथ लिंक करते हैं ।तो आपको लेनदेन देखना होगा और उन्हें एकत्रित करना होगा ।यदि एक वर्ष का कुल टर्नओवर इन सीमाओं से ऊपर आता है ।तो आप जीएसटी पंजीकरण प्राप्त करने के लिए उत्तरदायी हैं।

निष्कर्ष

उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि आज हम सभी डिजिटल युग में वर्क कर रहे हैं। जिसके कारण यूपीआई और ई वॉलेट का बहुत अधिक इस्तेमाल किया जा रहा है। लगभग सभी बैंक अकाउंट में यूपीआई या ई वॉलेट का प्रयोग हो रहा है। ऐसी स्थिति में यूपीआई/ई वॉलेट का इस्तेमाल करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को इस विषय में ध्यान देना होगा, यानी आपके द्वारा जो ट्रांजैक्शन किया जा रहा है, वह आयकर अधिनियम तथा जीएसटी अधिनियम की सभी शर्तों को पूर्ण करते हुए। आपको अपने दायित्व का निर्वाह करना होगा, अर्थात यदि आपकी आय ₹300,000 से अधिक है या विभिन्न शर्तों के साथ जो नियम लागू होते हैं। अपना आयकर रिटर्न समय से दाखिल करना चाहिए।

इसी प्रकार, यदि आपकी टर्नओवर गुड्स की स्थिति में 40 लाख से अधिक है, तथा सेवा के संबंध में 20 लाख रुपए से अधिक है, तो आपको जीएसटी का पंजीकरण करना चाहिए।

यह लेखक के निजी विचार है।

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