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पिछले 7 वर्षों से जीएसटी अधिनियम लागू होने से सरकार को लाखों करोड़ रुपए जीएसटी के द्वारा टैक्स के माध्यम से प्राप्त हुआ है।तथा यह रुपया जीएसटी पोर्टल पर मौजूद करदाता के लेजर से प्राप्त हुआ है, या कहा जाए। कि इलेक्ट्रॉनिक खाता/ लेजर की वजह से ही सरकार को यह राजस्व प्राप्त हुआ है। वित्त विभाग की सारी प्राप्तियां इन इलेक्ट्रॉनिक लेजर के माध्यम से जमा की गई है ।इतने महत्वपूर्ण विषय की चर्चा लेख अथवा मीटिंग अथवा ग्रुप डिस्कशन में सबसे कम हुई है। इस कारण इन तीन इलेक्ट्रॉनिक लेजर में छुपी बारीकियों पर प्रकाश डालते हुए। यह विवेचना संक्षेप में निम्न प्रकार प्रस्तुत है-

यह कि करदाता के जीएसटी पोर्टल पर लेजर के नाम से एक शीर्षक है ।इस शीर्षक में तीन उप शीर्षक के लेजर का उल्लेख है ।जिनका नाम इलेक्ट्रॉनिक कैश लेजर ,इलेक्ट्रॉनिक क्रेडिट लेजर और इलेक्ट्रॉनिक लायबिलिटी लेजर हैं।उक्त तीनों लेजर के संबंध में बिंदुवार विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है –

A इलेक्ट्रॉनिक कैश लेजर

इलेक्ट्रॉनिक कैश लेजर को हम जीएसटी पोर्टल पर पीएमटी 05 के रूप में जानते हैं ।इस लेजर में जमा और क्रेडिट निम्न मध्यम से प्राप्त होता है- 

1. टीडीएस और टीसीएस के माध्यम से काटे गए टैक्स के द्वारा ।

2. चालान पीएमटी 06 के माध्यम से जमा धनराशि। 

3. जीएसटी अधिनियम की धारा 49 (10) के अंतर्गत रिलेटेड पार्टी से या किसी पंजीकृत व्यापारी से कोई राशि ट्रांसफर हुई है। करदाता के खुद के किसी हेड या सब हेड से राशि ट्रांसफर करने के लिए पीएमटी 09 फॉर्म के द्वारा किया गया है ।लेकिन इस फॉर्म में अन्य दो प्रकार के ट्रांसफर रिलेटेड पार्टी को या किसी अन्य पंजीकृत व्यापारी को राशि ट्रांसफर करने के लिए कोई उल्लेख नहीं है। अर्थात अन्य कोई तरीका या फॉर्म राशि ट्रांसफर करने का नहीं है। 

4. रिफंड के द्वारा प्राप्त धनराशि। 

5. अपवाद जब धारा 73(5) में संबंधित मांग जमा की जाती है ।तो उसके लिए प्रॉपर ऑफिसर द्वारा DRC 04 जब तक जारी नहीं किया जाता है। तब तक वह राशि इलेक्ट्रॉनिक कैश लेजर में जमा रहेगी या DRC 03 के द्वारा धारा 73(8) में धनराशि ट्रांसफर की गई है उसके लिए भी प्रॉपर ऑफिसर द्वारा जब तकDRC 05 जारी नहीं किया जाएगा, तो यह धनराशि इलेक्ट्रॉनिक कैश लेजर में जमा रहेगी।

यह है।कि इलेक्ट्रॉनिक कैश लेजर में मुख्यता तीन मुख्य हेड है ।तथा उनके अंतर्गत 5 सब हेड है। जिसमें टैक्स, इंटरेस्ट, फीस ,पेनल्टी और cess कुल मिलाकर इलेक्ट्रॉनिक कैश लेजर में 15 मुख्य बिंदु हैं।

इलेक्ट्रॉनिक कैश लेजर में धनराशि कम किस प्रकार की जा सकती है-

1. जब जीएसटी विभाग द्वारा कोई कर मांग की जाय।

2. जब प्रॉपर ऑफिसर DRC 03 के लिए DRC 0 4/05 जारी करें। 

3. जब फॉर्म जीएसटी R1/ 3B में सेल्फ एसेसमेंट के अंतर्गत टैक्स घोषित किया जाए।

Q क्या इलेक्ट्रॉनिक कैश लेजर से जीएसटी विभाग या प्रॉपर ऑफिसर डायरेक्ट टैक्स या अन्य धनराशि निकल सकता है? 

ANS. जी हां, परंतु इसके लिए जीएसटी अधिनियम में कोई स्थाई नियमावली का प्रावधान नहीं है। जैसी परिस्थिति होगी ।उसके अनुसार इलेक्ट्रॉनिक कैश लेजर से धनराशि निकली जा सकती है। जैसे गलत रिफंड के संबंध में धनराशि ट्रांसफर की जाए, या जब करदाता स्वयं के द्वारा इस प्रकार का अनुरोध करें, कि बकाया राशि का समायोजन कैश लेजर के माध्यम से कर लिया जाए, या करदाता के विरुद्ध किसी अपील प्रकरण के कारण रिकवरी प्रक्रिया चल रही हो ,या जब करदाता के विरुद्ध कोई टैक्स, इंटरेस्ट ,पेनल्टी अथवा अन्य कोई राशि बकाया के रूप में दर्ज हो, तो इलेक्ट्रॉनिक कैश लेजर के माध्यम से प्रॉपर ऑफिसर उसका समायोजन कर सकता है, या जब करदाता द्वारा किसी प्रकार के भुगतान में कोई छूट या गलती करता है ।तब प्रॉपर ऑफिसर इस प्रकार की चूक /गलती की राशि का समायोजन कर सकता है।

यह कि विचारणीय विषय है। कि किसी करदाता की देर राशि को वसूलने के लिए किसी अन्य व्यक्ति करदाता को धारा 79 (1)(c) के तहत कोई नोटिस जारी किया गया है या नहीं ।और ऐसे अन्य करदाता के इलेक्ट्रॉनिक कैश लेजर में जमा राशि उपलब्ध है। तो इस धारा की उप धारा (iii) के अंतर्गत अन्य व्यक्ति को मूल करदाता की तरह डिफॉल्टर मानकर उसके इलेक्ट्रॉनिक कैश लेजर से राशि निकाली जा सकती है या नहीं ।यह विषय विवादास्पद है। जिस पर निर्णय होना बाकी है। 

जीएसटी पोर्टल में लेजर की क्या स्थिति है

इस विषय में प्रॉपर ऑफिसर को सामान्य एक कारण बताओं नोटिस (SCN )जारी करना होगा। जिसमें यह इंगित करना होगा। कि किस कारण से अथवा किसी उद्देश्य से यह राशि निकालना है, और इसके लिए एक समय अवधि भी बतानी होगी । कि उसके कैश लेजर में किस हेड से कितनी राशि जमा है और प्रस्तावित समायोजन के लिए उस मद में पर्याप्त राशि उपलब्ध है या नहीं ।राशि निकालना अथवा समायोजन करने के पश्चात करदाता को इस बाबत सूचना देना भी जरूरी है ।यदि धनराशि शेष है। तो उसे विषय में भी बताया जाएगा ।इस प्रक्रिया में पारदर्शिता बरतनी आवश्यक है ।इस प्रकार की प्रक्रिया से यदि करदाता असहमत है ।तो करदाता इस निकासी या समायोजन के विरुद्ध जीएसटी अधिनियम की धारा 107 के अंतर्गत अपील प्रस्तुत कर सकता है। 

इन स्थिति में करदाता को भी ज्ञान होना आवश्यक है। कि उसके इलेक्ट्रॉनिक कैश लेजर में क्या वस्तु स्थिति है ।क्या उसके लेजर में टैक्स ,ब्याज, रिफंड, समायोजन आदि की सभी सूचना सही-सही प्रदर्शित हो रही है या नहीं ।यदि किसी प्रकार की त्रुटि या गलती हो रही है। उसके लिए लिखित आवेदन पीएमटी 04 में दाखिल करना चाहिए। 

उपरोक्त विषय में जीएसटी 3b रिटर्न विलंब से दाखिल करने पर उसके अनुसार टैक्स कैश लेजर से पहले ही भर दिया या जितना कैश लेजर में टैक्स देना है उतना बैलेंस पहले से उपलब्ध है ।ऐसी स्थिति में विभिन्न न्यायालय के समक्ष है। यह प्रश्न प्रस्तुत किया गया। कि ऐसी अवस्था में रिटर्न लेट फीस करने पर रिटर्न में बताई गई । कैशपर टैक्स राशि पर धारा 50(1) के अंतर्गत ब्याज देना होगा या नहीं ।इस प्रकार के प्रश्न विभिन्न उच्च न्यायालय में प्रस्तुत किए गए जिसमें कुछ पक्ष और विपक्ष के निर्णय संकेत रूप में प्रस्तुत है-

1. आयशर मोटर लिमिटेड बनाम सुपरिंटेंडेंट ऑफ़ जीएसटी सेंट्रल एक्साइज 2024 72 TLD 184 मद्रास हाई कोर्ट

 सार करदाता द्वारा इस आधार पर रिट पिटीशन प्रस्तुत की गई। कि जीएसटी 3B लेट दाखिल की गई ।लेकिन जीएसटी 3B निर्धारित तिथि पर उसके इलेक्ट्रॉनिक कैश लेजर में धनराशि उपलब्ध थी। इलेक्ट्रॉनिक कैश लेजर से केवल अकाउंटिंग एंट्री के द्वारा डेबिट एंट्री की जानी होती है।जो धारा 49 (11 )(1) के अनुसार भुगतान माना जाता है। इलेक्ट्रॉनिक कैश लेजर से करदाता को धनराशि निकालने का अधिकार नहीं है। यह राशि विभाग के पास जमा मानी जाएगी ।धारा 50(1) के अंतर्गत ब्याज तभी देय होगा ।यदि नियत तिथि तक इलेक्ट्रॉनिक कैश लेजर में धनराशि उपलब्ध नहीं होगी।

2. मेघा इंजीनियररिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड बनाम सीसी टी 2019/ 65/ जीएसटी/ 164/ तेलंगाना हाई कोर्ट

 सार इस रिट पिटीशन में माननीय तेलंगाना हाई कोर्ट स्पष्ट किया है। कि यदि कैश लेजर से धनराशि ट्रांसफर नहीं की गई है। तो उस ट्रांसफर के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा ।एक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा कि जिस प्रकार एक बैंक में एक करदाता का करंट अकाउंट और लोन अकाउंट है ।जब तक करंट अकाउंट से धनराशि लोन अकाउंट में ट्रांसफर नहीं की जाएगी। उन स्थिति में ट्रांसफर नहीं माना जाएगा। ऐसी स्थिति में करदाता को इंटरेस्ट देने की जिम्मेदारी बनती है ।धारा 49 (1) नियम 87( 6) (7 )में DEPOSIT तथा MAY BE USED शब्दावली का प्रयोग किया गया है। जिसके अनुसार जब तक डिपॉजिट का उपयोग नहीं किया जाएगा। करदायित्व का भुगतान नहीं माना जाएगा ।

उपरोक्त दोनों उदाहरण में पक्ष विपक्ष की स्थिति बनती है। ऐसी स्थिति में करदाता को गोल्डन रूल का प्रयोग करना चाहिए अर्थात More Beneficial to the Assesseeके नियम को मान्य करना चाहिए।

2. इलेक्ट्रॉनिक क्रेडिट लेजर

जीएसटी पोर्टल पर लेजर का दूसरा भाग इलेक्ट्रॉनिक क्रेडिट लेजर के नाम से जाना जाता है। जिसे जीएसटी पीएमटी 02 कहते हैं ।जिसमें विभिन्न मदों से राशि प्रदर्शित होती है यह राशि निम्नलिखित से जमा होती हैI जैसे 

1. पंजीकृत करदाता इनवर्ड सप्लाई पर कोई कर चुकता है। तो वह आईटीसी इलेक्ट्रॉनिक क्रेडिट लेजर में जमा होती है। 

2. यह कि धारा 19/143 के अंतर्गत के आधार पर इलेक्ट्रॉनिक क्रेडिट लेजर में जमा होती है। 

3. जब कोई व्यक्ति व्यक्ति पंजीयन के लिए पात्र होता है। तो ठीक पहले दिन उसके पास जो आईटीसी उपलब्ध होती है ।वह भी इलेक्ट्रॉनिक रेट लेजर का भाग होती है।Sec.18(1)(a) 

4. यह कि जब कोई कंपोजिशन डीलर कंपोजिशन स्कीम से सामान्य करदाता बनता है। तो उसे स्थिति पर उपलब्ध आईटीसी उसके इलेक्ट्रॉनिक क्रेडिट लेजर में जमा होगी।Sec.18(1)(c) 

5. यहकि.जब कोई करदाता वॉलंटरी रजिस्ट्रेशन धारा 25(3) में लेता है ।तब उसके पास ठीक 1 दिन पहले उपलब्ध स्टॉक पर चुकाई गई ।आईटीसी इलेक्ट्रॉनिक लेजर का भाग होगी। Sec.18(1)(b) 

6. यह कि आरसीएम(RCM) की मद में जमा आईटीसी भी इलेक्ट्रॉनिक क्रेडिट लेजर में जमा होगी। नियम 37

 7. यह कि धारा 18(3) के अंतर्गत बिजनेस के सेल या ट्रांसफर या प्रोपराइटर की डेथ की स्थिति में आईटीसी 02 विधिवत जमा आईटीसी को इलेक्ट्रॉनिक लेजर में प्रदर्शित करेगा। 

बिक्री, विलय, डिमर्जर, एकीकरण, स्थानांतरण क्षमताओं के लिए विशिष्ट प्रावधानों के साथ व्यवसाय के एसएफईआर पर पट्टे के कारण, उक्त पंजीकृत व्यक्ति को उस इनपुट टैक्स क्रेडिट को स्थानांतरित करने की अनुमति दी जाएगी जो उसके इलेक्ट्रॉनिक क्रेक लेजर में अप्रयुक्त रहता है। , विलय, पृथक, समामेलित, पट्टेदार द्वारा व्यवसाय को ऐसे तरीके से हस्तांतरित किया गया जैसा निर्धारित किया जा सकता है।

8. यह कि कोई करमुक्त वस्तु टैक्सेबल घोषित की जाती है। तो उसे दिनांक पर स्टॉक में रहे माल की आईटीसी आनुपातिक रूप में इलेक्ट्रॉनिक क्रेडिट लेजर में जमा होगी।

इस प्रकार इस लेजर में उपलब्ध क्रेडिट बैलेंस का उपयोग लायबिलिटी लेजर में दिख रहे हैं। डेबिट बैलेंस को चुकाने क्रेडिट किए जाने के लिए टैक्स चुकाने के नियम 88 A में बताए गए हैं ।उस क्रम का पालन किया जाना चाहिए ।इलेक्ट्रॉनिक क्रेडिट लेजर में उपलब्ध आईटीसी का समायोजन जीएसटी 3b में उक्त बताए गए नियम के क्रम में किया जाएगा। जिसके लिए CBIC द्वारा सर्कुलर नंबर 98/17/ 2019/ जीएसटी दिनांक 23 .4 .2019 जारी किया है।

जो आईटीसी जीएसटीआर 3बी में इलेक्ट्रॉनिक लेजर के क्रेडिट बैलेन्स के आधार पर मागी गई है। वो अस्थायी होगी। क्रेडिट लेजर में किसी भी प्रकार की कोई सीधी प्रविष्टि नहीं की जा सकती है। जब जीएसटीआर 3बी में आईटीसी बताई जाती है। तब इस लेजर में वह इन्ट्री क्रेडिट हो जाती है। जीएसटीआर-2B के कारण इस लेजर में कोई इन्ट्री नहीं होती। लेकिन जीएसटीआर 3बी में चाही गई अथवा दिखाई गई यह इन्ट्री तब तक अस्थायी है जब तक यह जीएसटीआर 2B में नहीं दिखती ।1.1.2022 से 2B फॉर्म स्थापित 

करदाता को अगर कोई पेनल्टी, ब्याज अथवा लेट फीस देना है Iतो उसका चुकाने के लिए क्रेडिट लेजर के क्रेडिट बैलेन्स से नहीं किया जा सकता है। क्योंकि टेक्स ड्यूज का आशय केवल tax बताया गया है ।जबकि ब्याज, फीस अथवा शास्ति के लिये अन्य ड्यूज शब्द का उपयोग किय गया है।

अगर किसी करदाता को धारा 54 के तहत कोई वापसी मिलना है। तो यह वापसी नियम 86(3) के अनुसार उसके क्रेडिट लेजर में क्रेडिट की होगी ।और अगर ऐसी कोई वापस अमान्य की जाती है ।तो वह इसी क्रेडिट लेजर में प्रारूप पीएमटी-03 के द्वारा प्रॉपर अधिकारी द्वारा डेबिट होगी ।

इन परिस्थितियों में भी क्रेडिट लेजर में आईटीसी कम/डेबिट होती है –

1. जब कोई करदाता नॉर्मल टेक्सपेयर की जगह कम्पोजिशन स्कीम का विकल्प चुनता है।Sec. 18(3)

2. जब उसके द्वारा व्यापार की जाने वाली वस्तु करयोग्य से पूर्णतः करमुक्त घोषित की जाती है।Sec.18(3)

3. जब उसके द्वारा खरीदे गये माल का भुगतान 180 दिन में नहीं किया जाता है तो नहीं चुकाई गई क्रय राशि पर देय कर को डेबिट किया जाना चाहिये । परन्तु भुगतान किये जाने पर इस पर देय कर राशि को वापस क्लेम किया जा सकता है। Senco Gold Ltd. AAR-WB 2019-20 dtd. 8-5-2019 प्रकरण में बुक-एडजस्टमेंट से किये गये भुगतान को मान्य किया गया हैI ओर ऐसी दशा में आईटीसी का रिवर्सल करना जरूरी नहीं माना गया ।Sec.16(4)

4. क्रेडिट लेजर में अगर कोई अनियमितता प्रतीत होती है ।तब संबंधित अधिकारी को प्रारूप पीएमटी-04 में सूचित किया जाना चाहिये ।

गुजरात एडवांस रूलिंग अथॉरिटी ने एक प्रकरण GUJ/GAAR/R/15/2021, dated 7-1-2021 में यह निर्णय लिया गया ।कि क्रेडिट लेजर में जो आईटीसी उपलब्ध है ।वो वैधानिक रूप से तब ही उपलब्ध होगी जबकि ऐसी वस्तु अथवा सेवा के पITC पर होने पर मिली हो ।उसने कारोबार को अग्रसर करने/बढ़ाने के लिये अथवा उस आशय से प्राप्त की हो। इस कार्य में क्रय की गई ।वस्तु एवं विक्रय की गई वस्तु का करदाता के व्यवसाय से सीधा संबंध । इस प्रकरण के तथ्यों के अनुसार करदाता द्वारा क्रय किये स्वर्ण-बुलियन से मिले आईटीसी उपयोग विक्रय किये ।तेल बीज के विक्रय पर देय कर में समायोजन के लिये नहीं किया सकता ।क्योंकि इन दोनों वस्तुओं के करदाता के व्यापार में सीधा संबंध नहीं होना बताया।

 इन निर्णयों में संकेत रूप में कहा गया है कि 

1. एआरएस इंटरनेशनल पी. लिमिटेड बनाम. एसटीओ (2021) 127 स्टील्स और मिश्र धातु टैक्समैन.कॉम 787 (मद्रास high court)।

निर्माण में होने वाले इनहैरेन्ट माल के नुकसान की आईटीसी को कम करने की जरूरत हैI क्योंकि एक बार जब कच्चा माल निर्माण में पूरी तरह उपयोग में आ गया Iतो उसके क्षय होने अथवा नष्ट होने का कोई प्रश्न हीं नहीं होता है। 

2. AAR Maharashtra in General Manager ordnance factory Bhandara, In re, 2019 (26) GSTL 423.

किसी निर्माण प्रक्रिया की प्रोसेस में होने वाले अप्रत्यक्ष नुकसान के लिये भी माल के के आईटीसी को भी रिवर्स करने की आवश्यकता नहीं है Iजैसा कि निम्न निर्णय में बताया

3. आर.के. गणपति चेट्टियार बनाम. जीएसटी के सहायक आयुक्त 22) 68 टीएलडी 74 (मद्रास हाई कोर्ट); 2022 (56) जीएसटीएल )।

कृषि उत्पादनों आदि में मौसम की वजह से होने वाले वजन एवं भाव के कारण कमी र, जिसे Moisture /मौसमी नुकसान कहा जाता है ।उस कारण से भी आईटीसी के रिवर्सल बावश्यकता धारा 17 (5) में निम्न निर्णयों के प्रकाश में नहीं है।

 कमिश्नर अथवा उसके द्वारा अधिकृत अधिकारी निम्न दशाओं में नियम 86A किसी करदाता के क्रेडिट लेजर में उपलब्ध आईटीसी को रोक सकता है ।जबकि क्रेडिट लेजर में दिख रही आईटीसी या तो अपात्र / इनइलिजीबल है या धोखे से जबकि जिन बिलों या डेबिट नोट के आधार पर ये आईटीसी मांगी गई है ।वो नियम 36 है या जिस करदाता ने उन्हें जारी किया है वो या तो अस्तित्व में नहीं है या अपने स्थान पर उपलब्ध नहीं है। जहां से ये इनवॉइस जारी किये गये हैं अथवा इन इनवॉइस में दिखाये सप्लायर नहींहो। नियम 86ए के तहत निम्न मुख्य तथ्य संकेत रूप में उल्लेखनीय हैं- 

A किसी करदाता का नियम 86ए के तहत आईटीसी ब्लॉक किया गया है ।तो ऐसी ब्लॉक एक वर्ष के बाद स्वतः समाप्त मानी जावेगी। देखें – Gujarat High Court rmecha Texfab P. Ltd. Vs. commr. (2022) 104 ITPJ G-349 (Guj-

B 86ए के तहत उस समय क्रेडिट लेजर में उपलब्ध आईटीसी में से ही आईटीसी ब्लॉक किया जा सकता हैI आने वाले समय की भावी आईटीसी को ब्लॉक नहीं सकता है। देखें – RM Dairy Products LLP Vs. State of UP (2021) axman.com 37 (All-HC).

 C जितनी आईटीसी ब्लॉक की जाती है। उतनी ही आईटीसी ब्लॉक की जानी चाहिए उससे अधिक अथवा क्रेडिट लेजर में दिख रही सारी आईटीसी को ब्लॉक करना गलत होगा। देखें – Bombay High Court in Dee Vee Projects Ltd.W P2693OF 2021/68/TLD/280(BOMBAY HIGH COURT)

समुचित अधिकारी के पास आईटीसी ब्लॉक करने के लिये उचित, विश्वसन संतोषप्रद साक्ष्य एवं सूचना होना चाहिये। समर्थन के लिये देखें – North End Marketing P. Ltd. Vs. U.P. (2022) 68 TLD 439 (All); (202 ITPJ G-728 (All-HC).

D साक्ष्य एवं मटेरियल के अभाव में निम्न प्रकरणों में नियम 86ए के अनुसार गई ब्लाकिंग को अनुचित संकेत रूप में बताया गया । देखें –

ए रिटेलर्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम। यूनियन ऑफ इंडिया 2019-टीआईओएल एचसी-डीईएल-जीएसटी।

अल्फ़ा इंडस्ट्रीज बनाम। 2 मेसर्स के आवेदन संख्या 16698 की स्थिति। ए.एस.ई. भारत बनाम. भारत संघ (रिट याचिका एन2023 का)।

सीमा शुल्क आयुक्त (आयात) बनाम। दिलीप कुमार [2018] 95 टैक्समैन.कॉम 327/69 जीएसटी 239/361 ईएलटी 57 2018 एससी 3606।

मेघा इंजी. एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड बनाम। कर आयुक्त (2019) 104 टैक्समैन.कॉम 393/73 जीएसटी 787/26 जीएस (तेलंगाना)।

E किसी करदाता के क्रेडिट लेजर में आईटीसी का बैलेन्स अगर शून्य है तो भी लेजर को ब्लॉक नहीं किया जा सकता । संकेत –

ए समय अलॉयज इंडिया (पी) लिमिटेड बनाम। गुजरात राज्य (2022) 299 (गुजरात)।

नालबंद ट्रेडर्स बनाम मामले में समय अलॉयज इंडिया (पी.) लिमिटेड का अनुसरण किया गया था। गुजरात राज्य [2022} टैक्सपी 431 (गुजरात-एचसी)।

आर.एम. डेयरी उत्पाद एलएलपी बनाम। यूपी राज्य 2021 टैक्सपी (एआईआई-एचसी)।

बसंत कुमार शॉ बनाम. I वाणिज्यिक कर और राज्य कर के सहायक आयुक्त [2022J 2022 TAXP 1209 (Cal HC)।

F माननीय सुप्रीम कोर्ट ने टीवीएस मोटर कंपनी लिमिटेड बनाम स्टेट ऑफ़ तमिलनाडु एंड अदर्स सिविल अपील नंबर 10560/20564वर्ष 2018 के प्रकरण में-

कर कानून निर्णय क्रेडिट लेजर में दिख रही बैलेन्स की क्रेडिट लेने का करदाता को अधिकार है। लेकिन एक चेक्स व शर्तों के बाद ही उसे उपलब्ध होगी। उसके लिये यह उसका जन्म सिद्ध नहीं हो सकता। चेक्स निम्न प्रकार के बताये गये हैं जैसे- करदाता का मौजूद होना तो उसके पास क्रय ऑर्डर हो, माल के परिवहन का पक्का सबूत हो, ई-वे बिल का , क्रय की गई वस्तु का व्यापार में उपयोग अथवा अग्रसर करने अथवा निर्माण के निर्माण में उपयोग किये जाने का सबूत हो, लागत पत्रक हो, उसके द्वारा क्रय की गई बस्तु के भुगतान का सबूत हो, विक्रेता व्यापारी का KYC जैसे पेन कार्ड व कार्ड, आधार कार्ड,पंजीयन पत्रक तथा उसके जीएसटी पंजीयन की प्रति हो। करदाता के न क्रय राशि का भुगतान अकाउन्ट पेयी चेक से किया जाना अथवा क्रय बीजक की – मात्र ही आईटीसी की क्रेडिट लिये जाने के लिये पर्याप्त नहीं माना गया। कोर्ट ने कि जहां माल खरीद-बिक्री के सीधे साक्ष्य न हो वहां अन्य अप्रत्यक्ष साक्ष्यों से भी विक्रय सिद्ध किया जा सकता है। लेकिन यह केवल खरीददार की ही जिम्मेदारी है ।यह सिद्ध करें कि ली जा रही क्रेडिट न्यायोचित है।

Krishna Industries Ltd Vs. Union of India (2023) 70 TLD 70 2022 145 taxmann.com 629 (Guj HC) के प्रकरण में यह कहा गया कि जहां लेजर क्रेडिट लेने के लिये जो क्रम बनाया गया है अगर उस क्रम में क्रेडिट लेजर नहीं किया गया है।वहां रिफंड मना किया जा सकता है।

G एक प्रकरणों में विभिन्न कोर्ट ने यह निर्णय दिया है कि केवल इसी बात पर किसी आईटीसी मना नहीं कर देना चाहिये। कि उसके जीएसटीआर 2ए तथा 3बी में फर्क है। अधिकारी को ऐसा करने के पहले कई एक तरह से तथ्यों पर विचार लेना चाहिये। इन निर्णयों में प्रमुख संकेत रूप में निम्न प्रकार से निर्णित होकर आए हैं।

 कुछ प्रमुख निर्णय संकेत रूप में निम्न हैं : Henna Medicals Vs. State Tax Officer 2 TLD 556 (Kerala High Court) यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के प्रकरण स्टेट karnataka Vs. Ecom Gill Coffee Trading Private Limited (2023) 134 (SC) तथा Calcutta High Court के प्रकरण Suncraft Energy limited Vs. The Assistant Commissioner, State Tax (2024) 72 (Cal) तथा Diya Agencies Vs. The State Tax Officer (2023) 257 (Ker) के निर्णय पर आधारित है।

H कलकत्ता हाईकोर्ट के निर्णय में समुचित अधिकारी को निर्णय लेने के पहले निम्न शेष ध्यान देना जरूरी बताया

1. क्रेता के पास विक्रेता द्वारा जारी की गई टेक्स इनवाईस या डेबिट नोट हो ।

2. उसने माल प्राप्त किया हो।

3. विक्रेता द्वारा विक्रय बिल में जो टेक्स लगाया गया हैI उसका भुगतान विक्रेता द्वारा नगद अथवा जमा आईटीसी शासन को कर दिया हो ।

4. उसने धारा 39 के तहत अपने रिटर्न्स पेश कर दिये हों।

5. उसने विक्रेता व्यापारी को नियत अवधि में क्रय राशि का मय टेक्स राशि के पूरा कर दिया हो।

इस प्रकार धारा 16(2) के समस्त प्रावधानों का पूरा-पूरा पालन किया हो ।अगर विक्रेता व्यापारी के जीएसटीआर 1 में कोई विक्रय नहीं दिख रहा अथवा क्रेता के जीएसटीआर-2ए में कोई क्रय नहीं दिख रहा तब भी उपरोक्त तथ्यों के प्रकाश में आईटीसी स्वतः ही रिवर्स नहीं की जाएगी ।

अगर विक्रेता व्यापारी ने रिटर्न नहीं भरा अथवा टेक्स नहीं चुकाया हो तब अधिकारी को विक्रेता व्यापारी की एवं उसके व्यवसाय की मोजूदगी, उसके टेक्स नहीं जमा की वजह तथा क्षमता आदि का उसकी संपत्ति आदि का पता कर तत्पश्चात उचित लेना चाहिये ।

इसके विपरित Larsen & Toubro Limited Vs. The Assistant Commis ST) (FAC) के प्रकरण जहां जीएसटीआर 2ए में आईटीसी जीएसटीआर 3बी के अधिक दिख रही थी। ऐसी अधिक राशि पर टेक्स लगाना गलत बताया।

Sri Shanmuga Hardwares Electricat Vs. The State Tax O 024) 72 TLD 376 (Mad) के प्रकरण में इस बात पर विचार किया कि क्रेडिट लेजर में आईटीसी उपलब्ध थी ।परन्तु वह अपने जीएसटीआर 3बी में उसे क्लेम नहीं किया और चूंकि उसने अपना जीएसटीआर 9 वार्षिक रिटर्न अक्टूबर के जीएसटी प्रस्तुत करने के पहले पेश कर दिया था ।और उसमें इस वार्षिक रिटर्न में यह पूर्व में न आईटीसी क्लेम की तो कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि करदाता की ऐसी आईटीसी समायोजन की जा सकती है। वैसे कोई करदाता अपने अक्टूबर माह के रिटर्न में पिछले वर्ष व क्लेम्ड आईटीसी की राशि क्लेम कर सकता है ।अगर उसके पहले उसने अपना प्रस्तुत नहीं किया है।

जीसटी एक्ट के नियम 86 बी के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक क्रेडिट लेजर में उपलब्ध आईटीसी का क्लेम पूरा उपयोग नहीं किया जा सकता। ये परिस्थितियां मुख्य रूप से निम्नानुसार हैं-

किसी करदाता का किसी माह के कुल विक्रय में से कर मुक्त तथा जीरो रेटेड विक्रय करके शेष करयोग्य माल का विक्रय अगर रु. 50 लाख से अधिक है ।तो वह उस लिये देय कर के 99 प्रतिशत से अधिक का भुगतान उसके क्रेडिट आईटीसी बैलेन्स में कर पायेगा। शेष राशि का भुगतान नकद लेजर से किया जावेगा। यह नियम प्रति लिये अलग है। पिछले माह या पिछले वर्ष के उस माह के विक्रय के टर्नओवर को तथा अगर करदाता के प्रोपराईटर ने या कर्ता ने या उसके दो भागीदारों ने पिछले दो वर्षों में प्रत्येक वर्ष में एक लाख से अधिक का आयकर चुकाया – पिछले वर्ष में उसे एक लाख से अधिक का आयकर का रिफंड मिला है अथवा आईटीसी के कारण पिछले साल में जीएसटी में एक लाख का रिफंड मिला हो तो – उस करदाता पर लागू नहीं होगा। इसके अलावा किसी करदाता ने चालू वर्ष के तक की देय कर की कुल जोड़ के 1 प्रतिशत से अधिक का भुगतान नगद लेजर से होगा।तो उस पर भी यह नियम लागू नहीं होगा। इसके अलावा शासकीय विभाग, लोकल अथॉरिटी पर भी यह नियम लागू नही होता है। अन्य कहीं आवश्यक होने पर जीएसटी कमिश्नर इस नियम से किसी को छूट प्रदान कर सकता है। जीएसटी के अन्य प्रावधान – इस नियम का सभी धाराओं पर ओवर राईडिंग प्रभाव है। करदाता को केवल देय राशि का- एक प्रतिशत नगद देना है।

 उदाहरण :-

(a)Tax Due= 110 क्रेडिट लेजर में उपलब्ध आईटीसी = 90. चूंकि उपलब्ध आईटी कर के 99 प्रतिशत से कम है। इसलिये इस आईटीसी का पूरा उपयोग किया जा सकता हैं।

(b) जबकि देय कर 110 क्रेडिट लेजर में ITC = 120 है ।ऐसी अवस्था में पूरी आईटीसी का उपयोग किया नहीं किया जा सकता। क्योंकि उपलब्ध आईटीसी देय कर के 99 प्रतिशत से ज्यादा है Iइस प्रकार tax due= 110 का 99% = 0.99 x 110 = 108.90 उपलब्ध है।

आईटीसी 110 %108.90 (कुल देय कर का 99%) = 1.10 नियम के अनुसार नियम 86 बी के तहत रु. 1.10 देना होगा। साथ ही यह समझना अगर किसी करदाता का करयोग्य टर्नओवर 50 लाख से अधिक है। और उसने नियम पालन नहीं किया है। तब प्रॉपर अधिकारी नियम 86ए के तहत आईटीसी को उसके आईटीसी के उपयोग को रोक सकता है।

3. इलेक्ट्रॉनिक टेक्स लायबिलिटी लेजर :-

जीएसटी में इस लेजर का नाम जीएसटी पीएमटी-01 है तथा निम्न कारणों से इन प्रविष्टियां की जा सकेंगी-

a. यह कि जब करदाता ने अपना रिटर्न पेश किया और उसमें कोई टेक्स, ब्याज,अन्य कोई राशि देना बताई गई।

1. यह कि जब प्रॉपर अधिकारी द्वारा किसी कार्यवाही के तहत कोई टेक्स, बinterest अथवा अन्य कोई राशि निर्धारित की हो ।

c .यह कि धारा 42/43 अथवा 50 के तहत देय कर अथवा ब्याज की रकम में अंतर हो।

d .यह कि ब्याज या अन्य राशि जो समय-समय पर अपेक्षित हो ।

धारा 49, 49ए एवं 49 बी के अनुसार अथवा धारा 51 अथवा 52 के टीडीएस/टीसीएस की राशि या रिवर्स चार्ज की राशि या धारा 10 के तहत देय राशि, इंटरेस्ट पेनल्टी भी लायबिलिटी लेजर को क्रेडिट कर क्रेडिट लेजर को अथवा नियम 87 के तहत डेबिट किया जाए। अपील प्रकरण में मिलने वाली रियायत पर इस लेजर को क्रेडिट अथवा केश लेजर को क्रेडिट किया जायेगा। इस लेजर में कोई त्रुटि पीएमटी 04के द्वारा प्रॉपर ऑफिसर को सूचित की जाय ।

निष्कर्ष –

 उपरोक्त लेख से स्पष्ट हैI कि जीएसटी पोर्टल में लेजर की पूरी व्याख्या की गई है ।जीएसटी पोर्टल पर लेजर तीन भागों में विभक्त किया गया है ।तथा उसके पेमेंट के मुख्य पांच भाग हैं। तथा उप भाग में 15 शीर्षक हैं ।लेजर के संबंध में बहुत अधिक चर्चा नहीं हुई है ।इसी दृष्टि से यह लेख लिखा गया है ।लेजर में CBIC द्वारा सर्कुलर संख्या 98 /17/ 2019 /जीएसटी/ 23 .4 .2019 के द्वारा बताया गया है। कि लेजर में किस क्रम के अनुसार कर देयाता को सुनिश्चित किया जाएगा। जीएसटी नियमावली में स्पष्ट किया गया है। कि नियम 88 ए के क्रमानुसार इलेक्ट्रॉनिक लायबिलिटी लेजर को पूरा किया जाएगा ।साथ ही नियम 86 ए और बी की भी शर्तें लगाई गई हैं। जिसका पालन करना प्रत्येक करदाता के लिए अनिवार्य है ।इस लेख से टैक्स प्रोफेशनल को लाभ मिलेगा ।जिसकी मुझे आशा है। 

संकेत यह लेखक के निजी विचार हैं ।यह लेख किसी वैधानिक कार्य का भाग नहीं होगा ।आप जो भी निर्णय करें ।स्वयं के विवेक से करें।

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मेरा नाम संजय शर्मा हैं।मैं उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में इनडायरेक्ट टैक्सेस में वकालत करता हूं ।तथा मेरी शैक्षिक � View Full Profile

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