सी.ए. सुधीर हालाखंडी
भारत में वेट वर्ष 2006 में लगाया गया था और इस अप्रत्यक्ष कर की अंतिम तार्किक परिणिति गुड्स एवं सर्विस टैक्स के रूप में होनी थी इसीलिए तत्कालीन वित्तमंत्री श्री पी. चिदंबरम ने वर्ष 2006 के अपने बजट भाषण में जी.एस.टी. का जिक्र करते हुए कहा था कि पूरे भारत में एक ही अप्रत्यक्ष कर 1 अप्रेल 2010 से लगाया जाएगा जिसके तहत केंद्र सरकार कर एकत्र करेगी जिसे केंद्र एवं राज्यों के मध्य बांटा जाएगा. लेकिन हमारे देश में शासन का संघीय ढ़ांचा है एवं राज्यों एवं केंद्र दोनों को ही अप्रत्यक्ष कर लगाने का अधिकार है जिसके तहत राज्य मुख्य रूप से वेट एवं केंद्र मुख्य रूप से केन्द्रीय उत्पाद शुल्क लगाते है एवं राज्य चूँकि अपना यह कर लगाने का अधिकार छोड़ने को तैयार नहीं थे इसलिए केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित एकल गुड्स एवं सर्विस टैक्स का प्रस्ताव प्रारम्भ में ही राज्यों ने खारिज कर दिया .
इसके बाद राज्यों और केंद्र के बीच एक समझोते के तहत दोहरे जी.एस. टी. को लागू करने का फार्मूला विकसित किया गया जिसके तहत बिक्री एवं सेवा के एक ही व्यवहार पर राज्य एवं केंद्र अलग – अलग कर लगायेंगे. आइये देंखे और सरल एवं आसान भाषा में समझने का प्रयास करे कि कैसा होगा भारत में लगने वाला “गुड्स एवं सर्विस टैक्स” और क्या सरकार द्वारा घोषित निर्धरित तिथी अर्थात 1 अप्रैल 2016 तक यह कर भारत में लग पायेगा या अभी इसके लिए और भी इन्तजार करना पडेगा .
1. क्या भारत में लगने वाला जी.एस.टी. एक दोहरा कर है
जी.एस.टी. के बारे में आम धारणा यह है कि यह एक एकल कर है एवं सभी प्रकार के अप्रत्यक्ष करों की जगह अब व्यापार एवं उद्योग जगत को सिर्फ एक ही कर का भुगतान करना होगा और यही जी.एस.टी. का आदर्श स्वरूप भी है जिसके तहत केंद्र सरकार को एक ही जगह सारा कर एकत्र करने के बाद उसे केंद्र एवं राज्यों के बीच बांटना था . लेकिन जैसा कि ऊपर भी लिखा जा चुका है राज्य अपना कर लगाने का अधिकार नहीं छोड़ना चाहते थे इसलिए राज्यों और केंद्र के बीच एक समझोता हुआ जिसके तहत बिक्री एवं सेवा के एक ही व्यवहार पर राज्य एवं केंद्र दोनों अलग – अलग कर वसूल करेंगे जो कि राज्यों के जी.एस.टी. अर्थात “एस.जी.एस.टी.” एवं केन्द्रीय सरकार का जी.एस.टी. अर्थात “सी.जी.एस.टी.” के रूप में जाने जायंगे इसके अतिरिक्त माल के साथ सेवाओं पर भी कर लेने का अधिकार राज्यों को भी मिल जाएगा.
आइये इसे एक उदाहरण के जरिये समझने की कोशिश करें :-
मुंबई का एक व्यापारी “अ” मुंबई के ही एक दूसरे व्यापारी “ब” को कोई माल 10 लाख रुपये में बेचता है और मान लीजिये कि राज्यों के जी.एस.टी. की दर 12 प्रतिशत है एवं केंद्र के जी.एस.टी. की दर 14 प्रतिशत रहती है तो “अ” इस व्यवहार में 1.20 लाख रुपये एस.जी.एस.टी. एवं 1.40 लाख रुपये सी.जी.एस.टी. के रूप में अपने खरीददार “ब” से वसूल करेगा.
आइये अब इस व्यवहार को और भी आगे ले जाए और देखे कि इसी माल को मुंबई का “ब” अब मुंबई या महाराष्ट्र के किसी अन्य शहर के व्यापरी “स” को 10.50 लाख रुपये में बेचता है तो वह 1.26 लाख रुपये एस.जी.एस.टी. एवं 1.47 लाख रुपये सी.जी.एस.टी. के रूप में वसूल करेगा .
यहाँ ध्यान रखे कि “ब” पहले से ही एस.जी.एस.टी. के रूप में अपना माल खरीदते हुए 1.20 लाख रुपये का भुगतान कर चुका है एवं सी.जी.एस.टी. के रूप में 1.40 लाख रुपये का भुगतान इसी प्रकार का चुका है एवं इस प्रकार “ब” की इनपुट क्रेडिट एस.जी.एस.टी. के रूप में 1.20 रुपये है एवं सी.जी.एस.टी. के रूप में 1.40 लाख रुपये है जिसे वह अपने द्वारा “स” से वसूल किये गए कर में घटा कर जमा करा देगा.
इस प्रकार “ब” एस.जी.एस.टी. के रूप में (रुपये 1.26 लाख–रुपये 1.20 लाख ) 6000.00 रुपये का भुगतान राज्य के खजाने में जमा कराएगा एवं इसी प्रकार से सी.जी.एस.टी. (रुपये 1.47लाख – रुपये 1.40 लाख ) 7000.00 रुपये केन्द्रीय सरकार के खजाने में जमा कराएगा.
इस कर में माल एवं सेवाओं दोनों को शामिल किया जाएगा लेकिन एक ही व्यवहार पर जैसा कि ऊपर समझाया गया है केंद्र एवं राज्य दोनों ही कर लेंगे इसलिए भारत में लगने वाला यह “माल एवं सेवा कर” एक दोहरा कर है
2. जी.एस.टी. एवं संवैधानिक संशोधन
जी.एस.टी. भारत वर्ष में लागू किये जाने के लिए संवैधानिक संशोधन की भी बात बार-बार की जाती रही है एवं केंद्र सरकार ने इस सम्बन्ध में संवैधानिक संशोधन विधेयक हाल ही में लोकसभा में रखा है . आइये देंखे कि क्यों जरुरी है संवैधानिक संशोधन और क्या प्रक्रिया इसके लिए पूरी करनी होगी .
हमारे देश में राज्यों को माल की बिक्री पर कर लगाने के अधिकार है जिसे मुख्य रूप से वे “वेट” लगाकर प्रयोग करते है और इसी तरह केंद्र सरकार को माल के निर्माण की स्तिथी तक कर लगाने में अधिकार है जिसे वे मुख्य रूप से केन्द्रीय उत्पाद शुल्क के रूप में प्रयोग करते है . इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार को सेवाओं पर भी कर लगाने का अधिकार है .
यहाँ ध्यान दे कि केंद्र को माल की बिक्री पर कर लगाने का अधिकार नहीं है और राज्यों को सेवाओं पर कर लगाने का अधिकार नहीं है और यही अधिकार देने के लिए एवं जी.एस.टी.की राह में आने वाली अन्य अडचनों को दूर करने के लिए संवैधानिक संशोधन आवश्यक है .
आइये अब देंखे कि यह संविधान संशोधन किस प्रकार से होगा तो पहले इसे संसद के दोनों सदनों से पास कराना होगा जिसके लिए प्रत्येक सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम आधे सदस्यों का मत एवं उस समय मताधिकार का प्रयोग करने वाले दो-तिहाई सदस्यों के मतों की जरुरत होती है इसके बाद इसे राष्ट्रपति महोदय के हस्ताक्षर के लिए भेजने से पूर्व पूरे देश के आधे राज्यों की विधान सभाओं का अनुमोदन भी लेना होगा.
सरकार अभी इस संवैधानिक संशोधन बिल को लोकसभा से रख सकी है एवं उसे लोकसभा से पारित करवाने के बाद इसे राज्य सभा एवं कम से कम आधे राज्यों राज्यों की विधान सभाओं में रखना एवं पारित करवाना जरुरी होगा इसलिए अभी आप यह मान सकते है कि यह सब आसान नहीं होगा और इसमे समय भी काफी लगेगा.
3. जी.एस.टी. एवं राज्यों में लगने वाला वेट
हमारे देश में 2005 एवं 2006 में सभी राज्यों में वेट लागू किया गया था अब इसी वेट को जी.एस.टी. के तहत राज्यों के जी.एस.टी. अर्थात एस.जी.एस.टी. में परिवर्तित करते हुए इसमे माल के साथ – साथ सेवाओं को भी शामिल कर कर लिया जाएगा.
व्यवहारिक रूप से राज्यों में लगने वाले सभी अप्रत्क्ष कर एस.जी.एस.टी. में समाहित हो जायेंगे लेकिन अभी इसमे प्रवेश कर (एंट्री टैक्स) को लेकर केंद्र एवं राज्यों में विवाद है मुख्य रूप से उन राज्यों में जिन राज्यों में प्रवेश कर चुंगी कर के बदले में लगाया गया था और वे राज्य इसका राजस्व स्थानीय निकायों को दे रहे है. इसके अतिरिक्त करो की दर, पेट्रोलियम प्राडक्ट्स एवं लिकर को जी.एस.टी. से बाहर रखने , एवं राज्यों को जी.एस.टी. लागू होने पर होने वाली हानि की भरपाई भी राज्यों एवं केंद्र के साथ विवाद के अन्य बिंदु है .
हमारे देश में अब सभी राज्यों में वेट लागू है इसलिए प्रक्रियात्मक स्वरूप से समझे तो राज्य सरकारों को जी.एस.टी. लागू करने में कोई परेशानी नहीं होगी लेकिन उसके पहले केंद्र एवं राज्यों को अपने विवाद पूरी तरह से सुलझाने होंगे.
4. जी.एस.टी. एवं केन्द्रीय उत्पाद शुल्क (सेन्ट्रल एक्साइज )
केन्द्रीय उत्पाद शुल्क भारत में सरकारी राजस्व का एक बहुत बड़ा हिस्सा है एवं यह एक ऐसा अप्रत्यक्ष कर है जिसे केन्द्रीय सरकार वसूल करती है. यह कर वस्तु के निर्माण की अवस्था पर लगता है . यह कर “सी.जी.एस.टी.” अर्थात केन्द्रीय जी.एस.टी. में समाहित हो जाएगा.
लेकिन यहाँ यह ध्यान रखे कि केन्द्रीय उत्पाद शुल्क वस्तु की निर्माण की अवस्था तक ही लगता है जब कि सी.जी.एस.टी. वस्तु की बिक्री की अवस्था तक लगना है इसलिए संवैधानिक संशोधन के जरिये पहले केन्द्रीय सरकार को यह अधिकार प्रदान किया जाएगा कि वह माल की बिक्री पर भी कर लगा सके.
5. न्यूनत्तम राशि जहाँ से जी.एस.टी. लगना है
बिक्री या सेवा की वह न्यूनत्तम राशि जहाँ से जी.एस.टी. के तहत कर लगना है वह राशि केंद्र एवं राज्यों को तय करनी है और अभी तक जो समाचार आ रहें है उनके अनुसार यह राशि केवल 10.00 लाख रुपये होगी. इस राशि को ही “थ्रेशहोल्ड लिमिट” कहा जाता है. देखिये इस समय अधिकांश राज्यों में यह सीमा वेट के लिए 10.00 लाख रुपये है लेकिन कुछ राज्यों में अभी भी यह सीमा 5.00 लाख रुपये है . सेवा कर के लिए भी छोटे सेवा प्रदाताओ के लिए यह सीमा इस समय 10 लाख रुपये है .
लेकिन असली समस्या तो केन्द्रीय उत्पाद शुल्क को लेकर है जहां यह सीमा 150 लाख रुपये है लेकिन सी.जी.एस.टी. के तहत यह सीमा भी अब 10 लाख रुपये प्रस्तावित है .
केन्द्रीय उत्पाद शुल्क की जगह जो नया कर जी.एस.टी. के तहत सी.जी.एस.टी. के नाम से लाया जा रहा है उसमे यह कहा जाता रहा है केंद्र राज्यों के मुकाबले वित्तीय रूप से और भी मजबूत हो जाएगा उसका सबसे बड़ा कारण एक तो यह “थ्रेशहोल्ड लिमिट” एवं दूसरा यह तथ्य है कि अब केंद्र माल के निर्माण की अवस्था की जगह बिक्री की अवस्था पर प्रत्यक्ष कर के रूप में सी.जी.एस.टी. की वसूली करेगा.
6. जी.एस.टी. एवं केन्द्रीय बिक्री कर (सी.एस.टी.)
जब वर्ष 2006 में राज्यों में वेट लागू किया गया था तब केन्द्रीय बिक्री कर अर्थात सी.एस.टी. को सबसे बड़ी बाधा माना गया था और यह वादा किया गया था कि प्रत्येक वर्ष एक प्रतिशत से इस दर को गिराकर अंत में इस कर को समाप्त कर दिया जाएगा लेकिन यह वादा पूरा नहीं किया गया और आज भी यह दर दो प्रतिशत पर कायम है और इसके साथ ही केन्द्रीय बिक्री कर पर एकत्र किये जाने वाले सी- फॉर्म की समस्या से पूरा ही व्यापार एवं उद्योग जगत परेशान है .
आइये पहले समझ ले कि केन्द्रीय बिक्री कर क्या है क्यों कि आम तौर पर इसका नाम यह संकेत देता है कि यह केंद्र सरकार द्वारा लगाया गया एक कर है जब कि सच्चाई यह है कि यह बिक्री करने वाले राज्य द्वारा दो राज्यों के मध्य होने वाले व्यापार पर वसूल किया जाने वाला कर है और देश के विकसित राज्य जिन्हें हम निर्माता राज्य भी कह सकते है इस कर से काफी राजस्व एकत्र करते है .
जी.एस.टी. एक अंतिम बिंदु पर अंतिम उपभोक्ता पर लगने वाला कर है अत; केन्द्रीय बिक्री कर का इसमे कोई स्थान नही होगा और इससे विकसित राज्यों अर्थात बिक्री करने वाले राज्यों के राजस्व पर भी नकारात्मक प्रभाव पडेगा जिसके बारे में भी केंद्र एवं राज्यों को अंतिम रूप से जी.एस.टी. लगाते समय सोचना पडेगा.
दो राज्यों के मध्य होने वाले व्यापार पर निगरानी रखने के लिए एक आई.जी.एस.टी. मॉडल भी तैयार कर प्रस्त्तावित किया गया है जिसकी चर्चा हम आगे कर रहे है लेकिन यह ध्यान रखे कि यह केन्द्रीय बिक्री कर के स्थान पर लगने वाला कोई नया कर (एस.जी.एस.टी. एवं सी.जी.एस.टी. के अतिरिक्त तीसरा कर) नहीं है बल्कि एक ऐसा तंत्र है जिसके जरिये दो राज्यों के बीच हुए व्यापार पर नजर रखी जा सके एवं यह भी सुनिश्चित किया जा सके कि कर उस राज्य को मिले जहाँ अंतिम उपभोक्ता निवास करता है .
7. जी.एस.टी. का आई.जी.एस.टी. मॉडल
जी.एस.टी. के तहत सूचना तकनीकी की सहायता से एक ऐसा तंत्र विकसित किया जाएगा जिससे दो राज्यों के मध्य माल एवं सेवा के अंतरप्रांतीय व्यापर पर निगरानी भी रखी जा सके एवं यह भी सुनिश्चित किया जा सके कि “कर” अंतिम उपभोक्ता के राज्य को मिल रहा है . यहाँ ऊपर पहले ही यह बताया जा चुका है कि यह केन्द्रीय बिक्री कर की जगह लगने वाला कोई नया कर नहीं है लेकिन यह “आई.जी.एस.टी.” भी उद्योग एवं व्यापार के लिए प्रक्रियात्मक उलझाने तो बढाने वाला ही है .
आइये देखे कि यह आई.जी.एस.टी. मॉडल किस तरह से काम करेगा :-
(अ). अंतरप्रांतीय व्यापर के दौरान बिक्री करने वाला डीलर अपने खरीददार से आई.जी.एस.टी. के रूप में एक कर एकत्र कर केन्द्रीय सरकार के खजाने में जमा कराएगा. इस कर की दर एस..जी.एस.टी. एवं सी.जी.एस.टी. की दर को मिलाकर बनेगी. उदाहरण के लिए मान लीजिये कि एस.जी.एस.टी. की दर 12 प्रतिशत है एवं सी.जी.एस.टी. की दर 14 प्रतिशत है तो आई.जी.एस.टी. के रूप में जमा कराया जाने वाला कर 26 प्रतिशत की दर से केंद्र सरकार के खजाने में जमा कराया जाएगा.
(i). अपना आई.जी.एस.टी. जमा कराते समय विक्रेता अपने द्वारा इस माल ,को जो कि उसने अंतरप्रांतीय बिक्री के दौरान बेचा है, की खरीद पर चुकाए गये एस.जी.एस.टी. एवं सी.जी.एस.टी. की इनपुट क्रेडिट लेगा.
(ii) . विक्रेता का राज्य इस बिक्री किये गए माल के सम्बन्ध में विक्रेता ने जो एस.जी.एस.टी. की क्रेडिट ली है उतनी राशि केंद्र सरकार के खजाने में हस्तांतरित कर देगा.
(iii). अंतरप्रांतीय बिक्री के दौरान खरीद करने वाला क्रेता जब भी यह माल बेचेगा तो अपनी एस.जी.एस.टी. एवं सी.जी.एस.टी. की राशि में से अपने द्वारा चुकाए गई आई.जी.एस.टी. की राशी को कम कर लेगा एवं शेष राशि ही एस.जी.एस.टी. एवं सी.जी.एस.टी. के रूप में चुकाएगा.
(iv). जितनी राशि की इनपुट क्रेडिट अपनी एस.जी.एस.टी. चुकाते समय उपभोक्ता राज्य का व्यापारी आई.जी.एस.टी. में से लेगा उतनी रकम केंद्र उपभोक्ता राज्य के खाते में हस्तांतरित कर देगा.
इसा प्रकार एस.जी.एस.टी. के रूप में मिलने वाला पूरा राजस्व अंतरप्रांतीय व्यापर के दौरान भी उपभोक्ता राज्य को ही मिल जाएगा.
8. जी.एस.टी. एवं कर की दर
जी.एस.टी. के दौरान कर की दर क्या होगी यह भी एक बहुत बड़ा मुद्दा है क्यों कि सरकार यह चाहती है कि उसे एवं राज्यों को जी.एस.टी. के दौरान अधिक कर या कम से कम उतना तो कर मिले जितना वर्तमान में लागू अप्रत्यक्ष कर प्रणाली के दौरान लागू करो यथा वेट एवं केन्द्रीय उत्पाद शुल्क इत्यादि से मिल रहा है और ऐसी कोई दर निकालना बहुत ही मुश्किल है क्यों कि अभी जी.एस.टी. के दौरान कर मुक्त वस्तुए , जी.एस.टी. से बाहर वस्तुए इत्यादि तय करना बाकी है इसके अतिरिक्त सरकार कोई भी दर तय का ले वह उद्योग , व्यापर एवं उपभोक्ता के लिए अधिक ही होगी लेकिन इसके बाद भी सरकार को यथोचित राजस्व जिसकी उसे उम्मीद है मिल जाएगा ऐसा कोई जरुरी नहीं है.
इस समय जो समाचार आ रहे है उनके अनुसार एस.जी.एस.टी. की दर 12 प्रतिशत एवं सी.जी.एस.टी. की दर 14 प्रतिशत पर विचार चल रहा है लेकिन यहाँ यह ध्यान रखे कि दर कोई भी हो वह विवादित ही रहेगी और समस्त विवादों के बाद भी सरकार को वांछित राजस्व मिल जाए यह अनिवार्य नहीं है .
9. जी.एस.टी. एवं पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स
पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स जी.एस.टी. के भीतर भी रखा जा सकता है और इन पदार्थो को अभी जिस तरह से वेट से बाहर रखकर कर लगाया जाता है वैसा भी किया जा सकता है . ये तो आपको पता ही होगा कि वर्तमान में पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स जी.एस.टी.से बाहर है और जिन कारणों से ये पदार्थ वेट से बाहर रखे गए है उन्ही कारणों से इन्हें जी.एस.टी. से भी बाहर रखा जा सकता है इसकी पूरी – पूरी संभावना है .
यहाँ ध्यान रखे कि केंद्र एवं राज्य दोनों ही अपने राजस्व का बहुत बड़ा भाग इन पदार्थो पर लगाने वाले सेंट्रल एक्साइज एवं वेट से करते है और यह इनके लिए बहुत ही सुखद स्तिथी है जिसे दोनों ही छोड़ना नहीं चाहते और ऐसे में यह होगा कि उद्योग एवं व्यापार को पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स पर दिए हुए कर का इनपुट नहीं मिलेगा और यह जी.एस.टी. आदर्श स्वरूप के साथ और भी खिलवाड़ होगा.
अभी प्रचारित यह किया जा रहा है कि राज्य पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स को जी.एस.टी. से बाहर रखना चाहते है लेकिन इसकी असलियत तब मालूम होगी जब जी.एस.टी. अंतिम रूप से लागू होगा और तभी यह पता लगेगा कि पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स जी.एस.टी. से बाहर रखे जाते है या जी.एस.टी. में शामिल कर जी.एस.टी. के मूल स्वरुप को बनाये रखने के प्रयास किये जाते है .
यही समस्या लिकर को भी जी.एस.टी. से बाहर रखने की राज्यों की मांग से भी जुडी है .
10. केंद्र क्यों जी.एस.टी. लगाने को आतुर है
केंद्र राज्यों के मुकाबले अधिक उत्सुक है जी.एस.टी. लगाने के लिए और तत्पर भी नजर आता है ऐसा कहा जाता है तो आइये देखे क्या इसमे भी कोई सच्चाई है या नहीं .
देखिये केंद्र को जी.एस.टी. के दौरान अभी अप्रत्यक्ष करों से जो वसूली हो रहे है उससे अधिक वसूली करेगा क्यों कि एक तो इस समय सेंट्रल एक्साइज 150.00 लाख रुपये से अधिक की सीमा पर लगता है लेकिन सी.जी.एस.टी. अब केवल 10.00 लाख से ऊपर ही लगाने लगेगा इस प्रकार यह 140.00 लाख रुपये का अंतर एक बड़ी मात्र में डीलर्स को सी.जी.एस.टी. के दायरे में लाएगा.
इसके अतिरिक्त इस समय सेंट्रल एक्साइज माल के निर्माण की स्तिथी तक ही लगता है जब कि सी.जी.एस.टी. बिक्री की अंतिम स्तिथी तक लगेगा और चाहे उपभोक्ता किसी भी राज्य में रहे केंद्र को तो सी.जी.एस.टी. मिलेगा ही और इससे भी केंद्र के राजस्व में वृद्धि होगी.
लेकिन राज्यों के बारे में आप यह नहीं कह सकते क्यों कि एक तो इस समय सेंट्रल एक्साइज का “कैस्केडिंग इफ़ेक्ट” (कर पर मिलने वाला कर ) जी.एस.टी. के दौरान समाप्त हो जाएगा इससे भी राज्यों के राजस्व में कमी आयेगी . केन्द्रीय बिक्री कर समाप्त हो जाएगा इस कारण से निर्माता राज्यों का राजस्व कम होगा और प्रवेश कर की समाप्ती होने से भी कुछ राज्यों को समस्या हो सकती है. इसके अतिरिक्त लिकर एवं पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स को जी.एस.टी. जी.एस.टी. से बाहर रखने की राज्यों की मांग पर भी अभी अंतिम फैसला होना है .
सभी राज्य वित्तीय रूप से राज्यों के मुकाबले और अधिक मजबूत केंद्र चाहते है ऐसा भी नहीं है अत: राज्यों की तरफ से जी.एस.टी. को लेकर उतनी उत्सुकता नहीं है जितनी केंद्र की तरफ से है
11. राज्यों के साथ अभी भी विवाद के मुख्य बिंदु क्या है
राज्यों के साथ केंद्र का विवाद जी.एस.टी. की चर्चा की प्रारम्भिक अवस्था में ही शुरू हो गया था जिसकी परिणिति एक समझोतावादी दोहरे जी.एस.टी. के रूप में हुआ लेकिन अभी भी केंद्र एवं राज्य पूरी तरह से भारत में जी.एस.टी. लगाए जाने के अंतिम स्वरूप के बारे में पूरी तरह से सहमत नहीं है जबकि केंद्र और राज्यों को जी.एस.टी. पर चर्चा करते हुए इस वर्ष आठ वर्ष से भी अधिक हो गए है .
आदर्श रूप से हम कितने भी बड़े –बड़े दावे करे जी.एस.टी. के सम्बन्ध में लेकिन वर्तमान भारतीय राजनैतिक एवं अर्थ-व्यवस्था एवं राज्यों के अधिकारों को ध्यान में रखे तो राज्यों के संशय एवं शंकाओं का पूरी तरह निवारण किये बिना यदि जी.एस.टी. लगाया गया तो इसकी सफलता अनिश्चित ही नहीं बल्कि संदिग्ध भी रहेगा.
12. जी.एस.टी. एवं व्यापार एवं उद्योग
जी.एस.टी. वर्ष 2006 के बाद से ही केंद्र और राज्यों के बीच ही एक विवाद का विषय बना हुआ है और सरकारी स्तर पर व्यापार और उद्योग की इस बारे में क्या राय एवं उम्मीदे है इस बारे में कोई विशेष महत्त्व नहीं दिया गया है . इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि अभी तक राज्य एवं केंद्र ही इस कर के अंतिम स्वरूप के बारे में एकमत ही नहीं है तो वे व्यापार एवं उद्योग की राय लेकर और भी असमंजस एवं विवाद में नहीं पड़ना चाहते है .
लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न ही यह है कि जब कर ही व्यापार एवं उद्योग जगत तो देना है तो कर का अंतिम स्वरूप तय करने के पूर्व व्यापार एवं उद्योग जगत की राय लेना भी उचित होगा अन्यथा जी.एस.टी. की सफलता संदिग्ध है .
व्यापार एवं उद्योग के भी कई क्षेत्रो से जो बयान जी.एस.टी. को लेकर कभी –कभी आते है उनमे भी अधिकांशत; इस राय पर आधारित होते है कि जी.एस.टी. एक एकल कर है जबकि जी.एस.टी. केंद्र एवं राज्यों द्वारा एक ही व्यवहार पर दोनों द्वारा लगाया जाने वाला “दोहरा कर” है. व्यापर एवं उद्योग के लिए भी अभी से जी.एस.टी. के बारे में अध्ययन करना आवश्यक ताकि वे जी.एस.टी. के बारे में उद्योग एवं व्यापर की एक राय बना सके जिसे अंतिम रूप से जी.एस.टी. लगने से पूर्व सरकार को पेश कर सके.
13. क्या जी.एस.टी. 2016 से लागू हो पायेगा
वर्ष 2006 में जब पहली बार जी.एस.टी. का जिक्र किया गया तब यह कहा गया था कि यह एक अप्रैल 2010 पूरे भारत में लागू कर दिया जाएगा तब से लेकर अभी तक यह बहुचर्चित नयी कर प्रणाली राज्यों एवं केंद्र के बीच एक विवाद का विषय बन कर रह गयी है और प्रारम्भ से ही जी.एस.टी. को लेकर यह प्रचरित किया जाता रहा है कि इस कर प्रणाली से ना सिर्फ राजस्व में वृद्धि होगी बल्कि उपभोक्ताओं को भी लाभ होगा . यों तो ये दोनों तथ्य अर्थात राजस्व में वृध्दि होना और उपभोक्ताओं को भी सस्ती वस्तुए मिलना आपस में विपरीत तथ्य है लेकिन फिर भी हम इस पर विश्वास कर ले तब फिर यह सवाल उठता है कि फिर जी.एस.टी. को लागू करने में देरी क्यों हो रही है ?
जी.एस.टी. भारत में केवल एक कर ही नहीं है यह केंद्र और राज्यों के बीच कर लगाने के अधिकारों की एक राजनैतिक लड़ाई भी है और जी.एस.टी. में “राज्यों के कर लगाने के अधिकारों” की रक्षा राज्य केंद्र के साथ दोहरे कर के रूप में जी.एस.टी. का प्रस्ताव मनवा कर कर चुके है लेकिन अभी भी जी.एस.टी. पर कई मुद्दों पर राज्यों की अपनी आशंकाए है .
संविधान संशोधन भी अभी केवल लोकसभा में ही रखा गया एवं पारित करवाना बाकी है और इसके बाद इसे राज्य सभा एवं कुल राज्यों के कम से कम आधी संख्या में राज्यों द्वारा इसको पास करना अनिवार्य है .
इसके अतिरिक्त यह भी तथ्य है कि यदि संसद के दोनों सदनों के साथ देश के आधे से अधिक राज्यों ने संविधान संशोधन का अनुमोदन कर दिया तो संविधान संशोधन तो पारित हो जाएगा लेकिन जो राज्य असहमत होंगे उन्हें जी.एस.टी. लगाने के लिए कैसे तैयार किया जाएगा यह भी एक विचारणीय प्रश्न है क्यों कि वेट की तरह जी.एस.टी. तो पूरे भारत में अलग अलग समय पर नहीं लगाया जा सकता है और इसे पूरे देश में एक साथ ही लगाना होगा
इसलिए एक साल का समय बहुत ही कम है और इसी कारण से हम कह सकते है कि व्यवहारिक रूप से सब कुछ ठीक ठाक रहा तो 1 अप्रैल 2016 तो नहीं हम 1 अप्रैल 2017 कह सकते है कि जी.एस.टी. लागू करने की तिथी हो सकती है.
टैक्स कोई समस्या नहीं है, व्यापार को आसान बनाने की एक सतत प्रकिर्या में वैट, और GST, व्यापार और औद्योगिक प्रतिष्ठानों को शैक्षिक विस्तार देने में सहायक है, हमारा व्यापारिक एवं औधोगिक एडमिनिस्ट्रेशन कितना सजग है??? यह GST की कामयाबी है ! भारत का शैक्षिक समुदाय की कितनी हिस्सेदारी होती है ??? यही GST की कामयाबी है! क्योंकी हमारे भारत में शिक्षित घराने व्यवसाय नहीं करते वे सरकारी नौकरी या फिर विदेशी प्रलोभनों में चले जाते हैं ! VAT और GST हमारे समाज के उधमियों को श्रेष्ठ बनाने का एक प्रक्रम है, जिसकी ज़िमेदारी अब राज्य-केंद्र सरकारों पर संयुक्त रूप से रहेगी !
धन्यवाद,
आपका हसन मुशीर अहमद
#पीलीभीत (UP)
ढेर सारीजानकारी के लिए आपका बहोत शुक्रिया। सर में नया बिज़नस शुरू कर रहा हूँ । और मुझे टेक्स की गहन जानकारी चाहिए। क्या आप मेरी मदद कर सकते हे टेक्स की प्रकिया को समझने में ??
After going through the finer points of the article, one can say that”dilli abhi dur hai aur gst ka rasta mushkil hai.
Nice to Read, We hope in future you will give us more information in Hindi.
Lots of thanks
Regard,
Ajay gupta
Dear Sir,
Nice to read your article regarding GST if in future you write any article regarding tax & law pls send me on my email id it’s help to me.
[email protected]
Thanks & Regards
Girish
Nice to read. If you can give please your other important articles also in hindi so that we can read properly because we are less fluent in english.
Sir Thank you for sharing valuable information.
Nice to read your views in Hindi and wordings used by you on the subject matter and issue most important and has to be considered by the Government before discussion between the political parties who is the part of Governments:
“लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न ही यह है कि जब कर ही व्यापार एवं उद्योग जगत तो देना है तो कर का अंतिम स्वरूप तय करने के पूर्व व्यापार एवं उद्योग जगत की राय लेना भी उचित होगा अन्यथा जी.एस.टी. की सफलता संदिग्ध है”
God grace you more praise you more Halakhandiji!
what will be the outcome or final result,whom it will benefit or what be the position of business and industry,it will suit businessman of india or they will loose business or consumer has to pay more taxes,who will be at ease……?
DEAR FRIENDS,G S T is a milestone in indirect tax structure.No doubt.it is going to club so many indirect taxes of center and state together.it will curtail and control the authority of central as well as state government to levy various taxes for revenue.is it acceptable to both ??and that is the real reason for implementation of G S T. It is said that the government revenue of both central and state is going to increase by this single tax,then how it is beneficial to us ,because it is going to be collected from our pocket?? Moreover, it is not going to restrict to both the governments to levy any other tax in future such as l b t ,luxury tax ,profession tax etc.Also G S T is three taxes within itself ,CGST,SGST and IGST.Our experience says the levy of GST is nothing but old wine in new bottle.till then let us pray for betterment of all we people including government authorities.
Thank you sir