यदि Taxpayer se अपील फाइल करने की time limit miss ho जाए, तो न तो Appellate Authority और न ही High Court उसकी मदद कर सकते हैं। Parihar Tent Workers का matter इसका सबसे बड़ा उदाहरण है—सिर्फ 9 दिन की देरी हुई और अपील का अधिकार हमेशा के लिए खत्म हो गया।
Taxpayer ने Madhya Pradesh High Court में writ दायर की, यह सोचकर कि वहां से न्याय मिलेगा। परंतु High Court ने साफ इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि GST कानून में स्पष्ट समय-सीमा दी गई है और इसका violation नहीं हो सकता।
क्या High Court कभी हस्तक्षेप कर सकता है? और करदाता इस स्थिति से कैसे बच सकते हैं? आइए इसे समझते हैं।
अर्जुन: हे माधव! करदाता ने सिर्फ 9 दिन की देरी की, फिर भी उसकी अपील क्यों reject हो गई? क्या High Court उसे न्याय नहीं दिला सकता था?
श्रीकृष्ण: पार्थ! GST युद्ध में नियम ही सबसे बड़ा शस्त्र है। यहाँ देरी का कोई स्थान नहीं।
करदाता को ₹92,48,360 का demand notice मिला।
उसने appeal file की, लेकिन 9 दिन late।
Appellate Authority ने reject कर दिया, क्योंकि Section 107 of CGST Act कहता है कि चार महीने से अधिक की देरी माफ नहीं की जा सकती।
करदाता High Court गया, लेकिन कोर्ट ने कहा— समय-सीमा का पालन अनिवार्य है, इसे बढ़ाया नहीं जा सकता।
अर्जुन: किन्तु माधव! क्या High Court कभी भी देरी माफ नहीं कर सकता?
श्रीकृष्ण पार्थ! GST कानून में समय-सीमा पत्थर की लकीर है।
Appeal तीन महीने के अंदर फाइल होनी चाहिए।
अगर कोई ठोस कारण हो, तो एक महीने की अतिरिक्त छूट मिल सकती है।
लेकिन चार महीने से ज्यादा की देरी किसी भी हाल में माफ नहीं होती।
और सबसे बड़ी बात— Limitation Act यहाँ लागू नहीं होता। यानी कोई भी न्यायालय इस समय-सीमा को बढ़ा नहीं सकता।
अर्जुन: लेकिन माधव! कुछ मामलों में तो courts ने देरी को condone किया है, फिर यहाँ क्यों नहीं?
श्रीकृष्ण: सत्य कहा पार्थ, लेकिन प्रत्येक युद्ध की नीति अलग होती है।
करदाता ने तर्क दिया कि कुछ पुराने मामलों में delay condone हुआ था, इसलिए उसकी अपील भी सुनी जानी चाहिए।
विभाग ने तर्क दिया कि M/s Sai Rubber Works vs. State of MP मामले में court ने कहा था कि fiscal laws में timelines का पालन अनिवार्य है।
High Court ने Supreme Court के Chintels India Ltd. केस का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि GST जैसी fiscal laws में time-limit strict होती है और इसे strictly follow करना ही पड़ेगा।
Court ने writ petition dismiss कर दी।
अर्जुन: तो क्या करदाता High Court में writ file कर सकता है, अगर उसकी appeal time-barred हो जाए?
श्रीकृष्ण: हाँ पार्थ! लेकिन सिर्फ विशेष परिस्थितियों में writ accept होती है जैसे कि:
-यदि natural justice का उल्लंघन हुआ हो— जैसे बिना सुनवाई के order पास हो गया हो।
-यदि GST अधिकारी ने jurisdiction exceed किया हो— जैसे गलत अधिकारी ने assessment किया हो।
-यदि order स्पष्ट रूप से illegal हो— जैसे कानून का गलत intrepretation करके demand निकाली गई हो।
अर्जुन: हे माधव, Writ कब dismiss होगी?
श्रीकृष्ण: Writ in परिस्थितियों me reject ho सकती है:
-अगर alternative remedy (appeal) थी, लेकिन करदाता ने समय पर use नहीं की।
-अगर delay सिर्फ negligence से हुआ हो, ना कि किसी असाधारण परिस्थिति के कारण।
-अगर मामला factual disputes से जुड़ा हो, जिसे appellate authority को सुलझाना चाहिए, High Court को नहीं।
अर्जुन: हे मधुसूदन Writ में High Court क्या कर सकता है?
श्रीकृष्ण: ये पार्थ! High Court के पास power होती है कि अगर किसी order में किसी taxpayer के Constitutional fundmental rights का violation हुआ है तो:
-Order को quash कर सकता है, अगर वह पूरी तरह illegal हो।
-Case को reconsideration के लिए वापस भेज सकता है, अगर natural justice का उल्लंघन हुआ हो।
-Law की गलत interpretation को clarify कर सकता है।
परंतु GST appeal की time-limit बढ़ाने का अधिकार High Court के पास भी नहीं है।
अर्जुन: हे गोविंद! अगर appeal time-barred हो जाए, तो क्या कोई और रास्ता है?
श्रीकृष्ण: हाँ पार्थ! लेकिन सीधे writ file करने से पहले, यह देखो—
-क्या notice की service में कोई defect था?
-क्या order की communication गलत हुई थी?
-क्या demand notice में कोई legal error थी?
अगर इनमें से कोई भी issue हो, तो court writ accept कर सकता है और करदाता को राहत मिल सकती है।
हे पार्थ! Parihar Tent Workers case सिखाता है कि GST में deadline चूकना घातक हो सकता है।
एक बार समय निकल गया, तो appeal का अधिकार हमेशा के लिए समाप्त हो जाता है।
Author’s Comment:
GST कानून में समय-सीमा का पालन अनिवार्य है। एक बार appeal filing की deadline निकल गई, तो Appellate Authority और High Court दोनों ही आपकी मदद नहीं कर सकते।
लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि आपके पास कोई उपाय नहीं बचता? नहीं! उपाय है, लेकिन सिर्फ तभी जब कोई कानूनी त्रुटि हो।
सीधे Writ दायर करना हमेशा सही विकल्प नहीं है!
बहुत से करदाता सोचते हैं कि अगर appeal time-barred हो गई, तो हम High Court में Writ दायर कर देंगे! लेकिन ऐसा सोचना भारी गलती हो सकती है।
> High Court तभी Writ स्वीकार करेगा, जब करदाता के साथ कुछ अन्याय हुआ हो।
> सिर्फ “delay हो गया” यह कोई वैध कारण नहीं है!
> अगर कोई वैधानिक गलती हुई है, तो ही Writ maintainable होगी।
Writ Maintainable बनाने के लिए किन बिंदुओं पर ध्यान दें?
अगर आपकी appeal की deadline निकल गई है, तो आपको यह देखना चाहिए कि—
> क्या Order की Service में कोई गलती हुई थी?
> क्या आपको Order मिला ही नहीं या गलत पते पर भेज दिया गया?
> क्या Email या Physical Notice सही तरीके से नहीं दिया गया?
> क्या Order की Communication में कोई गड़बड़ी थी?
> कभी-कभी GST विभाग आदेश अपलोड कर देता है, लेकिन Email या SMS से सूचना नहीं देता।
> अगर Taxpayer को आदेश मिलने में देरी हुई, तो वह इस आधार पर Writ में जा सकता है।
> क्या Notice या Demand Order में कोई वैधानिक त्रुटि थी?
> क्या Notice सही Section के तहत जारी नहीं हुआ?
> क्या Proper Reasoning दिए बिना Demand निकाल दी गई?
> क्या Order में Fundamental Mistake थी, जिससे करदाता का अधिकार प्रभावित हुआ?
> अगर ऊपर दिए गए किसी भी बिंदु पर गड़बड़ी है, तो आप Writ के लिए जा सकते हैं।
कब Writ फाइल करने से बचना चाहिए?
> अगर सिर्फ negligence या भूलवश delay हुआ, तो Writ बेकार है।
> अगर मामला फैक्चुअल विवाद (Factual Dispute) का है
> अगर Taxpayer के पास Alternative Remedy थी, लेकिन उसने उसे समय पर इस्तेमाल नहीं किया, तो Writ निरस्त हो जाएगी।
रणनीति: Writ से पहले क्या करें?
Writ file करने से पहले एक बार legal opinion ya second opinion जरूर लेना चाहिए, कई बार ऐसा होता है कि खुद से technical points पर ध्यान ही नहीं जाता है, लेकिन किसी एक्सपर्ट से opinion लेने पर कुछ नए points mil सकते है और case को मजबूत बनाया जा सकता है।
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Disclaimer: यह लेख श्रीकृष्ण की कृपा से कृष्ण-अर्जुन संवाद के रूप में केवल Legal Concepts को सरल शब्दों एवं रोचक तरीके से समझाने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसका कोई अन्य प्रयोजन नहीं है। इसमें किसी प्रकार की धार्मिक, आध्यात्मिक, सामाजिक या कानूनी व्याख्या का दावा नहीं किया जाता और न ही किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाने का कोई उद्देश्य है। पाठकों से विनम्र अनुरोध है कि इसे केवल शैक्षिक और जानकारीपूर्ण सामग्री के रूप में ही ग्रहण करें। यदि किसी विधिक समस्या से जुड़े निर्णय की आवश्यकता हो, तो किसी योग्य Subject Matter Expert, CA / Advocate से परामर्श अवश्य करें।
श्रीकृष्ण की कृपा से ज्ञान की ज्योति सभी तक पहुँचे।
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