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सपनों का बजट 2022 पेश करते हुए आखिर वित्त मंत्री ने क्रिप्टोकरेंसी को कानूनी मान्यता दे दी है.

अभी संसद में क्रिप्टोकरेंसी पर कानून बनाया जाना प्रक्रिया में है, फिलहाल यह भी अभी तय नहीं हो पाया है कि इन्हें कानूनी मान्यता दे की नहीं- लेकिन उसके पहले ही सरकार ने इस पर टैक्स और टीडीएस लगाए जाने की घोषणा करके कानूनी जामा पहना दिया है. और तो और ऐसी आभाषी या कहें वर्चुअल करेंसी को आरबीआई के द्वारा लांच करने का रास्ता खोलना एक आत्मघाती कदम साबित होगा. गलत चीज चाहे कितना भी सही ढंग से पेश की जाए उसका आधार गलत ही रहता है.

आरबीआई द्वारा दिसंबर 21 में आई वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में साफ़ साफ़ बताया गया कि ऐसी वर्चुअल करेंसी का उपयोग ज्यादातर गैर कानूनी और असमाजिक गतिविधियों के लिए धड़ल्ले से किया जा रहा है. जुआ सट्टा, मनी लॉन्ड्रिंग, टेरर फंडिंग में सबसे ज्यादा उपयोग इन वर्चुअल करेंसी का हो रहा है और इस पर रोक लगना चाहिए.

After all, digital currency got government recognition

सरकार एक तरफ तो इस पर रोक लगाना चाहती है तो दूसरी तरफ इसे कानूनी दर्जा देना समझ से परे है. क्रिप्टोकरेंसी या वर्चुअल करेंसी की खुबी यही होती है कि यह ब्लॉक चेन पर आधारित है जिस पर इंटरनेट की दुनिया पर कोई नियंत्रण नहीं होता. यह किस के पास कब और कहाँ होती है इसका कोई ट्रैक नहीं होता. इंटरनेट की काली दुनिया यानि डार्क वेब में यह कैसे पहुँच जाती है, इसका न कोई प्रारुप है और न कोई ठिकाना.

मतलब साफ है कि इसका उपयोग काली दुनिया के लोगों के लिए है क्योंकि यह ट्रैसेबल नहीं है और इसलिए आरबीआई द्वारा इसको प्रस्तावित करना आत्मघाती कदम हो सकता हैं.

आभाषी मुद्रा में खेलने वाले इस बात पर खुश है कि अब हम कानूनी दायरे में आ गए हैं और भले टैक्स 30% देना पड़ेगा लेकिन वे जुआ सट्टा खेल सकते हैं जिसमें आधे लेनदेन रिकॉर्ड पर होंगे और आधे लेनदेन ऊपरी जिसका कोई ट्रैल नहीं होगा एवं टैक्स देकर खेलने वाले काले धन को आभाषी मुद्रा में कंवर्ट करते जाएंगे जिससे भविष्य में सरकार को अपने राजस्व में काफी नुकसान सहना पड़ सकता है.

जहाँ सरकार आयकर की धारा 37(1) में संशोधन कर प्रस्तावित कर रही है कि गैर कानूनी आय अर्जित करने के लिए किए गए खर्च अमान्य होंगे, वही दूसरी ओर वर्चुअल करेंसी को मान्यता देना गैर कानूनी कदम से कम नहीं. सरकार वर्चुअल करेंसी को असमाजिक मानकर इसे तुरंत बैन करें और आयकर में प्रस्तावित प्रावधान को वापस ले.

*लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर 9826144965*

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