हमारा नाम शैलेष कंठ है। हमने महंगाई, बेरोजगारी और आर्थिक मंदी बढ़ने के कारण और उपाय खोज निकाला है। हम पिछले १३ साल से इस पर मंथन करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं। हमारी आपसे विनती है कि इस पत्र को पूरा पढ़ें। यदि आप उचित समझें तो मैं आपसे मिलकर सभी महंगाई, बेरोजगारी और आर्थिक मंदी बढ़ने के कारण और उपाय बताना चाहता हूं। हम नीचे दिए गए प्रश्नों का उत्तर ढूंढ़ रहे हैं।
1. १९४७ से लेकर आज तक किसी भी सरकार को महंगाई और बेरोजगारी को रोकने में कामयाब क्यों नहीं हुआ?
2. १९४७ में १ डॉलर बराबर १ रूपया था, तो आज १ डॉलर बराबर लगभग ८० रूपया क्यों हो गया?
3. अमीर आदमी और गरीब क्यों आम तौर पर धनवान हो रहे हैं और गरीब क्यों गरीब हो रहे हैं?
(1) आम जनता (अंतिम उपभोगता) का पक्का बिल नहीं लेना
महंगाई और बेरोजगारी बढ़ने का कारण आम जनता (अंतिम उपभोगता) का पक्का बिल नहीं लेना है। आम जनता (अंतिम उपभोगता) के लिए बिल की कोई कीमत नहीं है, जब की व्यापारी के लिए उसकी कीमत है क्यों की उन्हें खर्चा बाद मिलता है और GST में भी फायदा मिलता है। हमे केवल इतना करना है की आम जनता (अंतिम उपभोगता) के लिए बिल की कीमत बनायीं जाये जैसे की पक्का बिल लेने वालो को GST का २०% वापस किया जाय और बिना GST वाले बिल में से ३% वापस किया जाय, ताकि वह भी पक्का बिल लेना सुरु करे जिससे महंगाई दूर होगी।
MRP Calculation :
Particulars |
Sale Value | Taxable Value | GST | Profit @ 8% | Income Tax | Total Tax | |||
Cost | Profit | Total | Rate | TAX | |||||
Manufacture (25%of Cost) | 1000 | 250 | 1250 | 1250 | 225 | 100 | 25% | 25 | 250 |
Transport (1% of Sale Value) | 15 | 1 | 1 | ||||||
Wholesalers (15%of Cost) | 1265 | 190 | 1455 | 190 | 34 | 116 | 25% | 29 | 63 |
Transport (1% of Sale Value) | 17 | 1 | 1 | ||||||
Retailer (10%of Cost) | 1472 | 147 | 1619 | 147 | 26 | 130 | 10% | 13 | 39 |
Grand Total :- | 287 | 67 |
Solution
Particulars | 100% | 90% | 80% | 70% | 60% | 50% |
GST | 287 | 258 | 230 | 201 | 172 | 144 |
Income Tax | 67 | 60 | 54 | 47 | 40 | 34 |
Total | 354 | 318 | 284 | 248 | 212 | 178 |
Less: Refund 20% GST | 57 | 52 | 46 | 40 | 34 | |
Net Received | 297 | 266 | 238 | 208 | 178 |
ऊपर के Table में MRP कैसे बनती है और कितना कर सरकार को मिलता है एक वस्तु बेचने पर वह दर्शाया गया है। और दूसरा टेबल यदि हम GST में से २०% वापस करते है तो क्या होता है यह दर्शाया गया है। मान लीजिये अभी ५०% आदमी पक्का बिल लेता है तो सरकार को कर १७८ रुपये मिलते है, आप देख सकते है की जैसे जैसे पक्का बिल लेने वालो का संख्या बढ़ती है वैसे वैसे सरकार को मिलने वाला कर भी बढ़ता ही जाता है। इस सिस्टम के कई फायदे है जो निम्न प्रकार है।
1. पक्का बिल उत्पादकता से लेकर अंतिम उपभोगता तक घूमेगा।
2. आम जनता (अंतिम उपभोगता) की खरीद शक्ति बढ़ेगा जिससे मेहंगाई और आर्थिक मंदी घटेगी।
3. सरकार को पता चलेगा किस्से कितना कर लेना है, क्योकि आम जनता (अंतिम उपभोगता) GST वापसी का याचिका दायर करेंगे।
4. यदि ये व्यवस्था लागु की जाती है तो व्यापरी को बहोत मुश्किल पड़ेगा कर के पैसे को व्यपार में इस्तमाल करना।
5. यदि ये व्यवथा लागु की जाती है तो खुदरा व्यपारी जैसे की सब्जी वाला, किराना वाला, दूध वाला वैगेरा वैगेरा के अकाउंट बनाने पड़ेगा, इन सब का अकाउंट बनाने के लिए बहोत सरे डेटा ऑपरेटर की जरुरत पड़ेगी जिससे बेरोजगारी दूर होगी।
(2) व्यापर में नफा का पूरी तरह इस्तमाल नहीं करना
महंगाई और बेरोजगारी बढ़ने का सबसे बड़ा कारण नफा का पूरी तरह इस्तमाल नहीं करना है। हर साल नफा नुकसान से दो खाते Balance Sheet में जाते है एक स्टॉक और नफा, लेकिन दूसरे साल केवल स्टॉक ही नफा नुकसान में लाया जाता है जिससे नफा नुकसान का खाता का बैलेंस बिगड़ जाता है। किसी भी साल में कोई भी खर्चा पिछले साल के नफा से बाद नहीं किया जाता। मान लीजिए की पिछले साल का नफा देखकर इस साल सभी स्टाफ की तन्खा बढ़ायी जाये, बढ़ी हुई तन्खा भी पिछले साल के नफा से बाद नहीं किया जाता, बल्कि बढ़ी हुई तन्खा का बोझ इस साल की आय पर पड़ता है, जिससे मालिक अपनी वस्तु की कीमत बढ़ा देता है जिससे महंगाई बढ़ती जाती है। नफा का इस्तमाल मिलकत खरीदने के लिए किया जाता है परन्तु Depreciation के जरिए हर साल नफा नुकसान में बाद लेते है इस लिए नफा का कुछ समय तक इस्तमाल होता है परन्तु पूरी तरह इस्तमाल नहीं होता। यदि नफा का इस्तमाल होता तो नफा नुकसान का Balance घटता लेकिन ऐसा नहीं होता, हर साल नफा नुकसान का Balance बढ़ता ही जाता है, केवल जिस साल नुकसान होता है तभी नफा का इस्तमाल होता है। हमारे मत से नफा का एक ही इस्तेमाल है की वह केवल आय कर की गिनती में काम आता है नफा का इस्तमाल नहीं करने की वजह से 1947 का 1 पैसा आज का 10 रूपया हो गया है आगे यदि 100 रुपया हो जाये तो हमे कोई आश्चर्य नहीं होगा। ज्यादा तर व्यपारी का मानना है खर्चे कम करने से नफा बढ़ेगा लेकिन हमारे मत से यह गलत है कयोकि बिना आय के खर्चा नहीं हो सकता, वैसे हे बिना खर्च के आय भी संभव नहीं है, आय और खर्च एक दूसरे के पूरक है। नफा का इस्तमाल नहीं करने की वजह से अमीर आदमी और अमीर हो रहा है और गरीब और गरीब। हमारी यह व्यवस्ता ऐसी है की जिसके पास खरीदने के लिए कोई सामान बाकि नहीं है उसकी खरीद शक्ति बढ़ाती है और जिसके पास खरीद ने के लिए बहोत सामान बाकि है उसकी खरीद शक्ति घटाती है। यदि नफा का जल्द इस्तमाल नहीं किया गया तो हम कभी भी मेह्गाई और बेरोजगारी पे रोक नहीं लगा सकते है।
(3) Income की परिभासा Human Person और Legal Person के लिए एक कर देना
हमारे मुताबिक कोई भी Expenses Income के बगैर संभव नहीं है उसी प्रकार कोई भी Income Expenses के बगैर संभव नहीं है। Income और Expenses एक दूशरे के पूरक है।
Particulars | Human Person | Legal Person |
Income | Salary | Turnover |
Expenses | Personal Expenses | Business Expenses |
Profit (Part of Income) | Saving | Net Profit |
ऊपर का Table देखके पता चलता है की Human person अपनी Income पे Tax Pay करता है और Legal Person Part of Income पे Tax Pay करता है। लोग हमे कहते है की Legal Person को Net Profit (Part of Income) पे Tax इस लिए Pay करना पड़ता है क्यों की Legal Person में जो Expenses करता है वह Income पाने के लिए करता है। लेकिन हम तो यही तो कह रहे है की कोई भी Income पाने के लिए Expenses करना ही पड़ता है फिर Human Person को Income में से Expenses क्यों नहीं बाद मिलता जब की Income Tax के मुताबिक Human Person और Legal Person एक बराबर है। हम जानते है की दोनों के Income Tax Rate अलग अलग है। यदि मान लीजिये Assessment Year 2023-24 में एक Human Person और एक Legal Person 10,00,000 की Income करते है। Legal Person को मान लीजिये 10% Profit मिलता है। तब Human Person को 1,06,600 Tax Pay करना पड़ेगा और Legal Person को 25,000 रुपए Tax Pay करना पड़ेगा। इस लिए Legal Person ज्यादा कामियाब है। एक Human Person में और एक Legal Person में क्या अंतर है।
Human Person | Legal Person |
Human person birth from human being. | Legal person birth from Legally. |
No expenses allow as per Income tax act. | All expenses allow as per income tax act. |
Income tax paid on Salary (Income) | Income tax paid on Net Profit (Part of Income) |
No need to maintain books of accounts. | Need to maintain books of accounts. |
Human person not increases his Salary at any time. | Legal person increases his Product or Service rate at any time. |
Human person utilize his saving. | Legal person not utilize net profit. |
Human person organisation is called Family. | Legal person organisation is called Business. |
हमारे मत से Income की परिभाषा होनी चाहिए “कोई भी वस्तु या सेवा बाजार में बेचने से जो धन प्राप्त होता है उसे Income कहना चाइये” । हमारे मत से यदि सरकार Income की परिभासा Human Person और Legal Person के लिए एक कर दे तो भारत 5% Income tax rate पे भी चल सकता है।
(4) न्युनतम आय के साथ साथ अधिकतम आय का कानून बनना चाहिए
किसी भी वस्तु की कीमत आदमी की मेहनत कीमत से बनती है क्योकि सारा कच्चा माल हमें कुदरत से मुफ्त में मिलता है। जैसे जैसे आदमी अपनी मेहनत की कीमत बढ़ाता है वैसे वैसे वस्तु की कीमत बढ़ती जाती है। जब आदमी अपनी मेहनत के साथ साथ लालच को मिलाता है तब महंगाई बढ़ती है।
आदमी | आमदनी |
काम करने वाले व्यक्ति को | वेतन या मजदूरी |
निवेश करने वाले व्यक्ति को | व्याज या भाड़ा |
व्यापर करने वाले व्यक्ति को | नफा |
व्यापर करने वाले व्यक्ति को काम और निवेश दोनों करने पड़ते है तभी वह व्यापारी बनता है। एक व्यापारी को काम करने के लिए वेतन और निवेश करने के लिए व्याज जब मिल जाता है तो उसे नफा नहीं मिलना चाहिए और यदि नफा उसको मिलता है तो उस पर कर लेना चाहिए। सब लोग हमें कहते हे की व्यापर के नफा से कर दे दिया जाता है इस लिए व्यापारी से नफा पर कर नहीं लिया जाता। लेकिन हमारा कहना यह है की व्यपार और व्यापारी आयकर के कानून के हिसाब से दो अलग अलग व्यक्ति है इसी लिए व्यापारी से नफा पर कर लेना चाहिए। हमारे मुताबिक व्यपारी को केवल वेतन और व्याज देना चाहिए या नफा और तीनो पर कर वसूलना चाहिए। यदि नफा देते हो तो आम जनता पर व्यापारी के वेतन और व्याज का अतरिक बोझ क्यों डाला जाता है।
एक व्यक्ति दूसरे को खर्च या ऋृण दे सकता है। जब कोई व्यक्ति खर्च करता है तब दूसरे व्यक्ति की आमदनी बनती है, लेकिन ऋृण देने से दूसरे व्यक्ति का कर्जा बन जाता है। आज लोग खर्च कम करने,ऋृण ज्यादा देने में लगे रहते है और निवेश भी ज्यादा करते है जिसके चलते आर्थिक मंदी का दौर चल रहा है। और आर्थिक मंदी में सबसे पहले मजदूरों को निकाला जाता है जो की Consumable Product के सबसे बड़े खरीदार है जिस के कारन आर्थिक मंदी बढ़ता जाता है।
क्या आपने कभी अमीर आदमी की सूचि में किसी वेतन भोगी का नाम सुना है हम ने तो नहीं सुना क्यों की वेतन भोगी की आमदनी निश्चित होती है जब की व्यापारी की आमदनी निश्चित नहीं होती।
हमारे मत से काला धन उसे कहना चाहिए जो धन व्यक्ति न तो अपने लिए खर्च करे न तो दूसरे को करने दे चाहे वह धन Cash में हो या Bank में । रामायण में खर्च के तीन प्रकार बताये गए है दान, भोग और नास। दान को सबसे उत्तम, भोग को मध्यम और नास को निम्न कहा गया है। हमारे मत से दान को उत्तम इस लिए कहा गया है क्यों की इस में लेखा जोखा रखने की कोई जर्रूरत नहीं है क्यों की इस में लोग जानते है की में जो दान करता हु वह दुरसरे की आमदनी है और जो दूसरा करेगा वो मेरी आमदनी बनेगी। भोग में लोग अपने भोग के लिए ही सही वह खर्च तो करता है जिससे दूसरे की आमदनी होती है। और नास में लोग दान और खर्च कम करता है और ऋृण या निवेश ज्यादा करता है। आज हम लोग खर्च के तीसरे प्रकार नास में जी रहे है। मान लीजिये किसी व्यक्ति की आमदनी 15,00,000 महीना है और उसका खर्चा महीने का 8,00,000 है तो वह 7,00,000 यातो बैंक में रखेगा या निवेश करेगा। बैंक में या निवेश में रखे दोनों के वहासे ज्यादातर पैसा ऋृण या निवेश के रूप में निकलेगा या तो पड़ा ही रहेगा लेकिन खर्च नहीं किया जायेगा जिससे कला धन बनेगा। सरकार भी ज्यादातर ऋृण की योजना ही लाते है।
इस लिए हमारे मत से अधिकतम आमदनी का कानून जल्द से जल्द बनना चाहिए।
(5) सरकार की Accounting System or method
Accounting System Signal Entry और Double Entry में क्या अंतर है।
BASIS FOR COMPARISON |
SINGLE ENTRY SYSTEM | DOUBLE ENTRY SYSTEM |
Meaning
|
The system of accounting in which only one sided entry is required to record financial transactions is Single Entry System. | The accounting system, in which every transaction affects two accounts simultaneously is known as the Double Entry System. |
Nature | Simple | Complex |
Type of recording | Incomplete | Complete |
Errors | Hard to identify | Easy to locate |
Ledger
|
Personal and Cash Account | Personal, Real and Nominal Account |
Preferable for | Small Enterprises | Big Enterprises |
Preparation of Financial Statement | Difficult | Easy |
Suitable for tax purposes | No | Yes |
Financial position | Cannot be ascertained easily. | Can be ascertained easily. |
ऊपर दिए गए अंतर से यह पता चलता है की Singal Entry System में Incomplete Record और Small Enterprise के लिए है। Double Entry System में Complete Record और Big Enterprises के लिए है। हमें यह आश्चर्य होता की इसे बदल ने की किसीने कोशिश नहीं करी या यह हो सकता है की कोशिश करी पर अभी तक कामयाबी नहीं मिली। हमारे मत से सरकार को चाहिए की जल्द ही Singal Entry System से बदल कर Double Entry System में कर दिया जाये।
Cash Method |
Mercantile Method |
Entries are recorded only when cash is received or paid. | Entries are recorded even a payment or receipt is due |
Receipt of revenue (income) is considered as ‘income’ when cash is received against it. | Receipt of revenue (income) is considered as ‘income’ when it accrues to the person. |
A payment is considered as expenditure, when it is actually paid to others. | A payment, which is payable (due) to the other party, may also be considered as paid (deemed expenditure), even though such amount is not actually paid. However such due must be definite, real and legal. |
Generally, the professionals adopt this system. | This method is generally adopted by business people, trade communities. |
Cash Method में यह तो पता चलता है की Cash में कितना रूपया आया और गया, परन्तु यह पता नहीं चलता की कितने रुपया लेना बाकि है और कितना देना बाकि है। हमारे मत से सरकार को चाहिए की जल्द ही Cash Method से बदल कर Mercantile में कर दिया जाये।
(6) Fixed Assets के लिए बाजार से दो बार पैसे लिए जाते है
पहली बार Fixed Assets खरीद ने के लिए नफा के जरिये बाजार से रुपये लिए जाते है और दूसरी बार Depreciation के जरिये Sale / Turnover के जरिये बाजार से रूपये लिए जाते है। यदि नफा से Fixed Assets के लिए रुपये लिए जाते है तो फिर Depreciation के जरिये दोबारा बाजार से रूपया लेना ठीक नहीं है और यदि Depreciation के जरिये Fixed Assets के लिए बाजार से रूपया लेते ही है तो नफा का क्या उपयोग है।
(7) Human Killer और Economy Killer में क्या अंतर है।
Human Killer |
Economy Killer |
At the first stage human killer kill other Human. | At the first stage economy killer kill himself as he is misusing his knowledge. |
Human Killer affected two families. | Economy Killer affected huge number of families. |
Educated & uneducated both are involve in this crime. | Mostly educated person are involve in the economy crime. |
Human killer kill somebody first which result to suffer a family and somehow society then him also. | Economy killer firstly kill himself then society and then the country. |
Human killer firstly kill somebody then hang to death and become free all boundary of this materialistic world. | Economy killer kill itself but live like dead. |
ऊपर दिए गए अंतर से यह पता चलता है की Human Killer से ज्यादा खतरनाक Economy Killer है। इस लिए हमारे मत से Economy Killer को फांसी की सजा का कानून बनना चाहिए।
हमारी यह खवाइश है हम आप से मिले और अपने सारे विचार बताये ।
यदि लिखने में कोई गलती हो गई हो तो हमे माफ़ कर देना।
धन्यवाद
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Author: शैलेष कंठ | Email : [email protected]