किसी भी वस्तु की कीमत आदमी की मेहनत कीमत से बनती है क्योकि सारा कच्चा माल हमें कुदरत से मुफ्त में मिलता है। जैसे जैसे आदमी अपनी मेहनत की कीमत बढ़ाता है वैसे वैसे वस्तु की कीमत बढ़ती जाती है। जब आदमी अपनी मेहनत के साथ साथ लालच को मिलाता है तब महंगाई बढ़ती है।
आदमी | आमदनी |
काम करने वाले व्यक्ति को | वेतन या मजदूरी |
निवेश करने वाले व्यक्ति को | व्याज या भाड़ा |
व्यापर करने वाले व्यक्ति को | नफा |
व्यापर करने वाले व्यक्ति को काम और निवेश दोनों करने पड़ते है तभी वह व्यापारी बनता है। एक व्यापारी को काम करने के लिए वेतन और निवेश करने के लिए व्याज जब मिल जाता है तो उसे नफा नहीं मिलना चाहिए और यदि नफा उसको मिलता है तो उस पर कर लेना चाहिए। सब लोग हमें कहते हे की व्यापर के नफा से कर दे दिया जाता है इस लिए व्यापारी से नफा पर कर नहीं लिया जाता। लेकिन हमारा कहना यह है की व्यपार और व्यापारी आयकर के कानून के हिसाब से दो अलग अलग व्यक्ति है इसी लिए व्यापारी से नफा पर कर लेना चाहिए। हमारे मुताबिक व्यपारी को केवल वेतन और व्याज देना चाहिए या केवल नफा देना चाहिए और सब पर कर वसूलना चाहिए। यदि व्यापारी को नफा देते हो तो आम जनता पर व्यापारी के वेतन और व्याज का अतरिक बोझ क्यों डाला जाता है।
हमारे हिसाबसे व्यापारी को केवल वेतन और व्याज मिलना चाहिए, क्यों की नफा सरकार की आय है। मान लीजिये एक Travel Co. के पास सेकड़ो गाड़ी है उसे चलाने के लिए वाहन चालक रखता है उससे Security के तोर पर कुछ पैसा लेता है और उस पर व्याज देता है और वाहन चलाने के लिए वेतन Co. देती है परन्तु नफा नहीं देती। ठीक उसी तरह व्यापारी सरकार से व्यापर नाम की गाड़ी चलाने के लिए लेता है। इसलिए हम कहते है की व्यापारी केवल व्यापर चलाने वाला होता है परन्तु मालिक नहीं यदि ऐसा होता तो राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री को देश बेचने का अधिकार होता।
एक व्यक्ति दूसरे को खर्च या ऋृण दे सकता है। जब कोई व्यक्ति खर्च करता है तब दूसरे व्यक्ति की आमदनी बनती है, लेकिन ऋृण देने से दूसरे व्यक्ति का कर्जा बन जाता है। आज लोग खर्च कम करने,ऋृण ज्यादा देने में लगे रहते है और निवेश भी ज्यादा करते है जिसके चलते आर्थिक मंदी का दौर चल रहा है। और आर्थिक मंदी में सबसे पहले मजदूरों को निकाला जाता है जो की Consumable Product के सबसे बड़े खरीदार है जिस के कारण आर्थिक मंदी बढ़ती जाती है।
क्या आपने कभी अमीर आदमी की सूचि में किसी वेतन भोगी का नाम सुना है हम ने तो नहीं सुना क्यों की वेतन भोगी की आमदनी निश्चित होती है जब की व्यापारी की आमदनी निश्चित नहीं होती।
मान लीजिये किसी व्यक्ति की आमदनी 15,00,000 महीना है और उसका खर्चा महीने का 8,00,000 है तो वह 7,00,000 यातो बैंक में रखेगा या निवेश करेगा। बैंक में या निवेश में रखे दोनों के वहासे ज्यादातर पैसा ऋृण या निवेश के रूप में निकलेगा या तो पड़ा ही रहेगा लेकिन खर्च नहीं किया जायेगा जिससे काला धन बनेगा। जिस तरह सारे नदियों का पानी समन्दर में जमा होते है ठीक उसी प्रकार आम जनता से पैसा निकलकर Cash और Bank में जमा हो रहा है।
हमें किसी भी व्यक्ति की कितनी भी आय से कोई एतराज नहीं है हमें एतराज है तो केवल इस बात से की वो अपनी आय को संग्रह करके रखता है। यह पैसा आम जनता से आता है एक तरफ आम जनता की आय कम हो रही है वही व्यापारी लोग पैसे को संग्रह करके रखते है तो आप लोग हमें बताये की आर्थिक मंदी का दौर कैसे नहीं आएगा।
सरकार यदि अधिकतम आय का कानून नहीं बना सकती तो आय के हिसाब से खर्च करनेका प्रतिसत तय करना चाहिए। जिसकी आमदनी सालाना 12.00.000 से 1,00,00,000 तक है उसे 65% खर्चा करना पड़ेगा और जिसकी आमदनी 1,00,00,000 से ऊपर हो जो बढ़ी संख्या पे उसे 95% खर्चा करना पड़ेगा ।
सरकार को अधिकतम सम्पति का कानून बनाना चाहिए, क्यों की जब तक अधिकतम सम्पति का कानून नहीं बनेगा तब तक लोग निवेश ज्यादा करेंगे और खर्च कम। जिसके कारण आर्थिक मंदी बढ़ती जाएगी।
Fixed Assets
व्यापारी अपनी निजी सम्पति को व्यापर की सम्पति बताकर व्यपार में Depreciation और Maintainance का फयदा लेते है। यदि व्यापर की सम्पति का मूयना किया जाय तो कई सम्पति व्यपारी के घर में मिलेगी। उदहारण के तोर पर मान लीजिये एक Partnership Firm में दो Partner है लेकिन Partnership Firm में 10 कार होगी और दसो कार का Depreciation और Maintainance खर्च भी Partnership Firm से बाद किया जाता है। बड़े से बड़े व्यपारी के पास जितनी कार है उस में से लगभग 80% कार व्यपार में होगी जिसका Depreciation और Maintainance खर्च व्यापर में डाला जाता है । आप हमें बताये जिस Partnership Firm में दो Partner है उस में कितनी कार का Depreciation और Maintainance खर्च बाद मिलना चाहिए। व्यापारी को खुली छूट है किसी भी खर्च को व्यापर का खर्च साबित करके व्यपार में डाल दिए जाते है, जैसे की विदेश यात्रा, घर का Telephone Bill, Electric Bill, घर के नौकर, माली, वाहन चालक की पगार Co. में डालते है। कई व्यपारी तो जो सम्पति व्यपार में काम नहीं होती वैसी सम्पति में व्यपार का पैसा लगा देते है और खर्च का बोझ आम जनता पर लाद देते है। यदि हम किसी भी व्यपारी की निजी नफा नुकसान खाता देखे तो उस में ज्यादातर व्यपारी के खाते में किराना, सब्जी, फल, दूध अदि का खर्च नहीं मिलेगा। व्यपारी का वेतन, व्याज और नफा हर साल बढ़ता ही जाता है खर्च नहीं किया जाता जिसके कारण कला धन पैदा होता है जिससे आर्थिक मंदी बढ़ती ही जाती है। जहा आम जनता पर Income Tax और GST बोझ है वही उस पर व्यापारी का सोख मौज का खर्च का बोझ भी लाद दिया जाता है।
Interest
हमारे हिसाब से केवल Working Capital Loan का ही Interest नफा नुकसान से बाद मिलना चाहिए बाकि Interest को Capitalisation करना चाहिए क्यों की बाकि सब Interest Specify होता है की वो किस Assets के लिए किया जाता है। Working Capital लोन के अलावा जितने Fixed Assets लोन पे लेते है उसका Loan Processor Fees, Forclouser Charges भी Capitalisation करना चाहिए। जैसे की मान लीजिये एक कार लोन पर ख़रीदे तो उस लोन का Loan Processor fees, Interest, Forclosuer Charges का खर्च कार Account में जाना चाहिए न की नफा नुकशान में। यदि हम ऐसे Assets Interest को नफा नुकसान से हटा देते है तो ज्यादातर वस्तु या सेवा की कीमत में कटौती आएगी।
क्या आप जानते है Privste Finance Co. लोन का Interest तब से गिनते है जब से वो लोन का चेक बनाते है और ख़तम तब करते है जब उनके Account में लोन Amount Credit होता है। कई Finance Co तो जब Account Close करते है तब तक Interest लेते है और कई Finance Co. तो पुरे महीने का Interest लेते है। इस से Finance Co. को फायदा होता है और व्यापारी को कोई फर्क नहीं पड़ता है क्यों की Interest का खर्च व्यपारी को अपनी जेब से नहीं देना पड़ता, Interest का खर्च उठाने के लिए आम जनता तो है ही।
सरकार की बजट Accounting
सरकार की बजट Accountig System का फायदा है की खर्च पर नियंत्रण किया जाता है। लेकिन उससे Actual खर्च नहीं पता लगाया जाता। मान लीजिये Office Maintainance का बजट 1,00,000 पास किया गया है और Actual खर्च 60,000 होगा तो कर्मचारी अगले साल भी 1,00,000 बजट पास हो इस लिए वो 40,000 का Extra खर्च डाल देता है।
Human Killer और Economy Killer में क्या अंतर है।
Human Killer | Economy Killer |
At the first stage human killer kill other Human. | At the first stage economy killer kill himself as he is misusing his knowledge. |
Human Killer affected two families. | Economy Killer affected huge number of families. |
Educated & uneducated both are involve in this crime. | Mostly educated person are involve in the economy crime. |
Human killer kill somebody first which result to suffer a family and somehow society then him also. | Economy killer firstly kill himself then society and then the country. |
Human killer firstly kill somebody then hang to death and become free all boundary of this materialistic world. | Economy killer kill itself but live like dead. |
ऊपर दिए गए अंतर से यह पता चलता है की Human Killer से ज्यादा खतरनाक Economy Killer है। इस लिए हमारे मत से Economy Killer को फांसी की सजा का कानून बनना चाहिए।
हम कोई अर्थशात्री नहीं है हम तो केवल B.Com. पास है। जिस किसीने भी हमारे इस लेख के आलावा यह चार लेख पढ़े होंगे वो समझ गए होंगे आर्थिक मंदी क्यों बढ़ रही है, कैसे बढ़ रही है और उसको रोकने के क्या उपाय है।
Sr. No. | Article | Published On |
1 | आर्थिक मंदी (कला धन) | 25-Dec-2024 |
2 | सरकारी लेखा प्रणालियों को अधतन करने का महत्व | 27-Feb-2025 |
3 | आयकर अधिनियम सैलरी और लीगल पर्सन पर टैक्स अंतर | 02-Mar-2025 |
4 | GST का Collection Base गलत होना | Not Published |
यह हमारा आखरी लेख है। यह सारे लेख हमने १३ साल अध्यन करके लिखे है। हम जानते है की आप में से कई लोग मेरी बात को नहीं मानते क्यों की हमने सारे विचार किताब से विपरीत लिखे है। आप लोग माने या ना माने लेकिन सत्य तो यही है और सत्य हमेसा कड़वा होता है।
धन्यवाद,
शैलेष कंठ
मो 8511105619