देश और विदेश में बसें लगभग 3 लाख से ज्यादा सीए सेंट्रल और रीजनल काउंसिल के अपने अपने क्षेत्रों के सदस्यों को चुनेंगे जो संस्थान और सदस्यों की काबिलियत और नीति निर्धारण को सरकार और विश्व के समक्ष रखेंगे.
पिछले 3-4 साल हमारे पेशे के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहे हैं क्योंकि इस दौरान न केवल कानूनों में काफी क्रांतिकारी परिवर्तन आए हैं बल्कि वित्तीय अनिमित्तायें भारी तादाद पर सामने आई है, जिस कारण से पहली बार सरकार ने हमारे पेशे पर टेड़ी नजर डाली है.
सबसे दर्दनाक बात जो सामने आई वह है कि मौजूदा सरकार ने सीए को देश बनाने में भागीदार न मानकर राजस्व कम होने का कारण माना है और इसीलिए संस्थान पर से विश्वास हटाकर एक नई एजेंसी के गठन पर बल दिया जो सदस्यों पर नजर रखेगी. यह एक अविश्वास भरा प्रस्ताव है कि हम पर सरकारी नौकरशाह नजर रखेंगे और संसद में सीए एक्ट का संशोधित बिल अगले सत्र में प्रस्तावित हैं.
आखिर ऐसी स्थिति में हम क्यों पहुंचे?
क्यों सरकार का विश्वास हम पर कम हुआ?
क्यों हमारे प्रतिनिधि सरकार को खुश करने में और उनकी हां में हां मिलाने में लगे रहें?
क्यों हमारे प्रतिनिधि अंतरराष्ट्रीय मापदंडों में हमें तोलते रहे और जमीनी स्तर की सच्चाई एवं प्रोप्रिएटरी फर्मों से दूर रहें?
क्यों छोटे व्यापारियों की समस्याएं और अनुपालन की यथास्थिति सरकार के समक्ष सही तरीके से नहीं रख पाए?
क्यों नीति निर्धारण, अनुपालन और कानूनों के गठन पर प्रखर और मुखर रुप से अपनी बात रखने की बजाय हां में हां मिलाते रहें?
राजस्व बढ़ौतरी के उचित, वाजिब और व्यापारिक आसानी के उपाय बताने की बजाय सरकारी नौकरशाहों की लल्लोचप्पो में वक़्त बिताया?
क्यों नहीं हम सरकार को यह समझा पाए कि सीए और उसके द्वारा किए जा रहे आडिट के कारण ही सरकार को राजस्व मिल पा रहा है?
क्यों नही सरकार को बता पाए कि 1984 में आडिट होने के बाद ही राजस्व में 12 गुना बढ़ौतरी संभव हो पाई?
लेकिन ज्यादातर प्रतिनिधि ज्ञान बांटने और सेमिनार/ वेभिनार करने में समय बिताते, लेख शेयर करते, केस बताते, वाट्सएप और गूगल ग्रुप बनाते, देशी प्रैक्टिस और सच्चाई को छोड़कर अंतर्राष्ट्रीय मापदंड की बात करते रहे.
ऐसे करने में कोई बुराई नहीं है, समाज और सदस्यों की सेवा और मदद करना अच्छी बात है लेकिन हमें अकादमिक उपयोग वाले प्रतिनिधि नहीं बल्कि प्रशासनिक योग्यता वाले प्रतिनिधि चाहिए जो प्रखर और मुखर रुप से हमारी बातें सरकार और वैश्विक संस्थानों के समक्ष रख सकें.
*प्रतिनिधि ऐसे है जो-*
70 प्रतिशत प्रोपराइटर फर्म की जरूरत को समझें,
उन्हें जमीनी स्तर पर व्यापारिक गतिविधियों का ज्ञान हो जिससे उचित और कम से कम एकाउंटिंग स्टेंडर्ड एवं अनुपालन पर काम हो सकें,
सरकार के समक्ष जो मुखरता से बात रखें कि इन उपायों से ही राजस्व बढ़ेगा नहीं तो सीए संस्थान या सदस्यों की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी,
ऐसा प्रतिनिधि जो सरकार को आइना दिखा सकें और
बता सकें कि संस्थान किस तरह अपने सदस्यों को ट्रैनिंग देती है जिससे वह वित्तीय क्षेत्र में एक भरोसेमंद और विश्वसनीय नाम और इस पर शक की कोई गुंजाइश नहीं हो सकती.
उम्मीद है हमारे सीए सदस्य इस 25 वें सैन्ट्रल कांउसिल और 24 वें रीजनल काउंसिल में सीए संस्थान के प्रतिनिधियों का चुनाव सोच समझकर करेंगे ताकि हम हमारे पेशे की गरिमा वापस लाने वाले सदस्यों और प्रतिनिधियों को उस जगह पहुंचा सकें जो हमारी अपेक्षाओं पर खरे उतरें और राजा की चापलूसी करने की बजाय चाणक्य के भांति राजा को सही दिशा और नीति निर्धारण में मदद करें.