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रांची केस में सीए सुमन कुमार की गिरफ्तारी दर्शाता है कि न माया मिली न राम, बदनामी और जान के लाले पड़े सो अलग. हम सभी जानते हैं कि राजनेता, नौकरशाह और व्यापारी अपने धन और शक्ति बल से केस से बरी हो जाएगा लेकिन नुकसान होगा तो सिर्फ पैशेवर को. सिर्फ उसका व्यवसाय और केरियर खत्म होगा, तो ऐसे में आचार संहिता नियमों का पालन हर पैशेवर के लिए जरूरी हो जाता है.

क्यों जरूरी है आचार संहिता:

प्रोफेशनल व्यक्ति होने के नाते से सीए अंकेक्षक अपना दायित्व रखता है। उसकी सफलता के लिए उसे अपने नियोक्ता का विश्वास अर्जित करना चाहिए जिसके लिए उसे प्रयास करना चाहिए। उसके लिए जनविश्वास विशेष महत्व का है।

अपने नियोक्ता के विश्वास के साथ-साथ उसको उनका विश्वास भी प्राप्त करना चाहिए, जो व्यापार से किसी-न-किसी प्रकार सम्बन्ध रखते हैं।

वे लेनदार, विनियोजक, बैंकर, सरकारी व कराधान अधिकारी तथा अन्य बाहरी व्यक्ति हो सकते हैं।

उसकी रिपोर्ट पर सभी विश्वास करते हैं जिससे उससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह नैतिक आचरण, ईमानदारी तथा उच्चस्तरीय दक्षता का पोषक व्यक्ति होगा।

इस प्रकार की नैतिक आचरण-संहिता के परिपालन के लिए इन्स्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट्स ऑफ इण्डिया ने विशिष्ट नियम तथा निर्देश अपने सदस्यों के लिए बनाये हैं ताकि जनता का उनमें व लेखाकर्म व्यवसाय में विश्वास जाग्रत हो सके।

अतः अंकेक्षक का यह दायित्व हो जाता है कि जो कुछ सूचना वह अपनी रिपोर्ट में देता है, वह सही है। यदि यह ऐसा नहीं होता है और परिणामस्वरूप जनता को जिसमे लेनदार, विनियोजक, आदि को हानि हो जाती है तो वह उन हिसाबों पर अपना विश्वास नहीं करेगी जिनको अंकेक्षक ने सही प्रमाणित कर दिया है।

और इसीलिए रांची केस में सीए सुमन कुमार की हिरासत से सीए संस्थान द्वारा जारी चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट्स अधिनियम, 1949 की आचार संहिता एवं नियम कानून का पालन हर सीए के लिए जरूरी हो जाता है ताकि उसके गिरेबान पर हाथ डालने से पहले किसी भी आथिरटी को कई बार सोचना पड़े और विशिष्ट परिस्थिति में ही उसका बयान दर्ज हो और हिरासत में लिया जावे.

आखिर क्या किया सीए सुमन कुमार ने:

प्रवर्तन निदेशालय (इडी) ने पल्स अस्पताल के एमडी अभिषेक झा का बयान दर्ज किया. इसके बाद सीए सुमन कुमार से दोनों के संबंधों के बारे में आमने-सामने पूछताछ की.

सीए ने जब्त पैसों को अपना और अपने क्लाइंट का बताया. यह भी कहा कि क्लाइंट का नाम बताने पर उसकी जान काे खतरा है.

इससे पहले शनिवार को इडी ने छापेमारी समाप्त करने के बाद पल्स के एमडी अभिषेक झा को रविवार को अपने कार्यालय में हाजिर होने का निर्देश दिया था.

इडी ने उनकी व्यापारिक गतिविधियों और सीए सुमन कुमार से उनके संबंधों के बारे में पूछताछ की. साथ ही उनका बयान दर्ज किया.

इडी के अधिकारियों ने सीए सुमन कुमार को न्यायालय के में पांच दिनों की रिमांड पर लिया. आवश्यक प्रक्रिया पूरी करने के बाद पूछताछ के लिए सीए सुमन कुमार को जेल से इडी कार्यालय लाया गया. इस दौरान वह उसके घर से जब्त पैसों को अपना बताता रहा.

हालांकि पैसों का सही-सही स्रोत बताने में असमर्थ होने के बाद उसने पैसा अपने क्लाइंट (मुवक्किलों) का होने का दावा किया.

इडी के अधिकारियों द्वारा सभी क्लाइंट और उनके द्वारा दी गयी राशि का विस्तृत ब्योरा पूछे जाने पर सीए ने पहले आना-काना की. फिर कहने लगा कि वह क्लाइंट का नाम नहीं बता सकता है, क्योंकि इससे उसकी जान को खतरा हो सकता है.

उल्लेखनीय है कि इडी ने सीए काे कोर्ट में पेश करने के दौरान अदालत को यह जानकारी दी थी कि खूंटी मनरेगा घोटाले की जांच के दौरान तत्कालीन उपायुक्त की भूमिका प्रथमदृष्ट्या संदेहास्पद पायी गयी है.

जांच के दौरान इस बात की भी जानकारी मिली थी कि उनके पति अभिषेक झा का हिसाब-किताब भी सीए सुमन कुमार देखता है. इसी सूचना के आधार पर सीए के ठिकाने पर छापा मारा गया था.

वहां से इडी को 17.60 करोड़ रुपये नकद मिले. यह राशि किन किन लोगों की है. इसका पता लगाने के लिए आगे की जांच की जा रही है.

पैशेवर को क्या सावधानी बरतनी चाहिए:

उपरोक्त घटनाक्रम साफ दर्शाता है कि सीए पैशेवर द्वारा अपने क्लाइंट को गलत तरीके से तरहीज दी गई और ऐसा करके उसने अपनी व्यावसायिक स्वतंत्रता और सक्षमता को दांव पर लगाया.

यदि आपको दलाली या कमीशनखोरी करनी है तो एक सामान्य कनसलटेंट के रूप में कर सकते हैं, क्यों सीए के नाम और डिग्री करना. एक वकील, सीए या डाक्टर के गिरेबान पर कोई हाथ डालें, यह बरदाश्त नहीं किया जा सकता लेकिन इसके लिए जरूरी है कि पैशेवर भी आचार संहिता का कड़ाई से पालन करें.

एक सीए के लिए जरूरी है कि:

1. जिस क्लाइंट का वो खाता बही लिखता है या हिसाब किताब देखता है, उसका आडिट और टैक्स का काम किसी भी रुप में न करें.

2. क्लाइंट की खाताबही, रुपये पैसे, बैंक बुक, चेक बुक, शेयर, निवेश या अन्य प्रकार की कोई भी चल अचल संपत्ति अपने कब्जे में न रखें.

3. यदि क्लाइंट ने किसी काम के लिए पैसे दिए है तो बैंक के माध्यम से ही ले और यदि कैश दिया है तो उससे लिखवाकर लें एवं यदि व्यवस्था है तो उसे अपने आफिस में ही रखें वरना मना कर दें. किसी भी रूप में क्लाइंट के पैसे को घर पर न रखें.

4. आमतौर पर यह देखा जाता है कि सीए अपने क्लाइंट का निवेश कराते हैं और उसका उनको कमीशन प्राप्त होता है. कमीशन के प्रलोभन में वे क्लाइंट के कूछ कार्यों को ढिलाई से करते हैं जो बाद में बैंक फ्राड या एनपीए में बदल जाता है. साफ है जहाँ कमीशन पर काम करना है वहाँ पेशा नहीं किया जा सकता.

5. क्लाइंट के साथ सालों का साथ होने से उसके साथ सीए के पारिवारिक संबंध हो जाते हैं और सामान्यतः सीए उसके साथ व्यापार में साझेदारी करने से भी नहीं हिचकता. अपने पारिवारिक सदस्यों को क्लाइंट के साथ व्यापार में साझेदार बनाकर कई व्यवसाय भी करने लगता है, जिससे हर हाल में बचना चाहिए.

6. आप यदि पैशेवर है तो सिर्फ पैशा ही आपका कर्तव्य और धर्म होना चाहिए. इसके अलावा अन्य किसी भी रूप में अपने क्लाइंट से व्यवसायिक जुड़ाव नहीं होना चाहिए.

7. क्लाइंट के पैसे की कानूनी रूप से ही टैक्स प्लानिंग होनी चाहिए. कभी भी उसके पैसे की चिंता अपनी चिता का कारण नहीं बनना चाहिए.

8. फर्जी फर्मों और कंपनियों के बनाने की सलाह कभी नहीं देना चाहिए और न ही खुद बनाना चाहिए.

9. भूलकर भी क्लाइंट के खातिर अपने आफिस या घर का पता, अपनी इमेल, मोबाइल नंबर, आदि नहीं देना चाहिए.

10. सीए को यह भी ध्यान रखना होगा कि अपने साथ रह रहे पारिवारिक सदस्यों का भी व्यवसायिक जुड़ाव अपने क्लाइंट के साथ किसी भी तरह से न हो.

पैशे की स्वतंत्रता, सक्षमता, गोपनीयता और विश्वसनीयता के लिए जरूरी है कि हम पैशेवर सीए संस्थान द्वारा जारी आचार संहिता और नियमों का कड़ाई से पालन करें एवं हर हाल में कोशिश करें की अपने क्लाइंट की कोई भी चल अचल संपत्ति किसी भी रूप में हमारे पास नहीं हो.

Disclaimer: The contents of this article are for information purposes only and do not constitute an advice or a legal opinion and are personal views of the author. It is based upon relevant law and/or facts available at that point of time and prepared with due accuracy & reliability. Readers are requested to check and refer relevant provisions of statute, latest judicial pronouncements, circulars, clarifications etc before acting on the basis of the above write up.  The possibility of other views on the subject matter cannot be ruled out. By the use of the said information, you agree that Author / TaxGuru is not responsible or liable in any manner for the authenticity, accuracy, completeness, errors or any kind of omissions in this piece of information for any action taken thereof. This is not any kind of advertisement or solicitation of work by a professional.

*लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर 9826144965*

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