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सांख्यिकी एवं क्रियान्वयन मंत्रालय जो १५० करोड़ रुपए के ऊपर की सरकारी परियोजनाओं पर नजर रखता है, उसकी अक्टूबर २२ की रिपोर्ट के अनुसार इन परियोजनाओं में देरी के कारणों में:

१. भूमि अधिग्रहण में विलंब

२. पर्यावरण और वन विभाग की मंजूरियां मिलने में देरी

३. बुनियादी संरचना की कमी

४. परियोजना का वित्तपोषण

५. विस्तृत अभियांत्रिकी को मूर्त रूप दिये जाने में विलंब

६. परियोजना की संभावनाओं में बदलाव

७. निविदा प्रक्रिया में देरी

८. ठेके देने व उपकरण मंगाने में देरी

९. कानूनी व अन्य दिक्कतें

१०. अप्रत्याशित भू-परिवर्तन आदि की वजह से भी विलंब हुआ है

उपरोक्त कारणों से बुनियादी ढांचा क्षेत्र की 150 करोड़ रुपये या इससे अधिक के खर्च वाली 380 परियोजनाओं की लागत तय अनुमान से 4.58 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा बढ़ गई है।

मंत्रालय की अक्टूबर, 2022 की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह की 1,521 परियोजनाओं में से 380 की लागत बढ़ गई है जबकि 642 परियोजनाएं देरी से चल रही हैं।

इन 1,521 परियोजनाओं के क्रियान्वयन की मूल लागत 21,18,597.26 करोड़ रुपये थी, लेकिन अब इसके बढ़कर 25,76,797.62 करोड़ रुपये हो जाने का अनुमान है।

इससे पता चलता है कि इन परियोजनाओं की लागत 21.63 प्रतिशत यानी 4,58,200.36 करोड़ रुपये बढ़ गई है।’

रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर, 2022 तक इन परियोजनाओं पर 13,90,065.75 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, जो कुल अनुमानित लागत का 53.95 प्रतिशत है।

इस रिपोर्ट में 620 परियोजनाओं के चालू होने के साल के बारे में जानकारी नहीं दी गई है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि देरी से चल रही 642 परियोजनाओं में से 136 परियोजनाएं एक महीने से 12 महीने, 120 परियोजनाएं 13 से 24 महीने की, 260 परियोजनाएं 25 से 60 महीने की और 126 परियोजनाएं 61 महीने या अधिक की देरी से चल रही हैं।

इन 642 परियोजनाओं में हो रहे विलंब का औसत 42 महीने है।

इससे यह तो साफ है कि सरकार द्वारा निष्क्रिय प्रबंधन का परिणाम यह है कि जनता के पैसे की होली खेली जा रही है. एक तरफ जनता मंहगाई, बेरोज़गारी और टैक्स की मार सहन कर रही है तो दूसरी ओर लगभग ५ लाख करोड़ रुपए बरबाद किए जा रहे हैं.

कारण यदि समझेंगे तो हम पाएंगे कि परियोजनाएं बिना किसी होमवर्क या स्टडी के लांच कर दी जाती है.

१. क्या यह पता नहीं होता कि भूमि अधिग्रहण कितनी और किस प्रक्रिया के तहत होगी?

२. क्या पर्यावरण और वन विभाग की मंजूरी परियोजना शुरू करने से पहले नहीं ली जा सकती?

३. क्या बुनियादी संरचना और वित्त की व्यवस्था पहले से नहीं की जा सकती?

४. क्या प्रशासनिक एवं क्रियान्वयन के साथ जरुरी मानव एवं उपकरण के संसाधन नहीं जुटाए जा सकतें?

५. क्या कानूनी प्रक्रिया की एनओसी पहले से नहीं ली जा सकती?

साफ है गैर जिम्मेदाराना और गैर जवाबदेही प्रबंधन एवं निष्क्रियता की भेंट कई परियोजनाओं पर भारी पड़ रही है और जनता की गाढ़ी कमाई का टैक्स का पैसा बरबाद किया जा रहा है.

अब सरकार बताए या न्यायालय बताए की इस बरबादी का आखिर कौन है जवाबदार?

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