भारतीय सीए संस्थान ने २ नवंबर २०२२ को वर्ष २०२१-२२ में किए गए कंपनियों के आडिट रिपोर्ट के आधार पर अवलोकन रिपोर्ट जारी की है जिसमें आडिट फर्मों द्वारा किए जा रहे आडिट और इसकी रिपोर्टिंग में बरती जा रही खामियां उजागर की गई है ताकि भविष्य में आडिट क्वालिटी में बेहतरी आ सकें.
रिपोर्ट में बताई गई खामियां न केवल संगीन नजर आ रही है बल्कि आडिटर कम्यूनिटी की तरफ साफ इशारा कर रही है कि स्थिति गंभीर है. ऐसी रिपोर्ट जारी कर सीए संस्थान कहीं न कहीं अपने ट्रेनिंग और शिक्षण प्रणाली पर भी प्रश्न कर रही है.
ऐसा इस रिपोर्ट के बिन्दुओं को पढ़ने पर समझ आता है जो हमारा ध्यान इन विषयों पर आकर्षित करते हैं:
१. आडिट फर्मों द्वारा आडिट क्वालिटी का न नीति निर्धारण किया जाता है और न ही कोई प्रणाली बनाई जाती है.
२. डाक्यूमेंटेशन में खामियां आम बात है.
३. मानव संसाधन और स्टाफ की केपेबिलिटी और काम्पीटेंस का न मूल्यांकन किया जाता है और न ही कोई नीति की फलां स्टाफ आडिट करने योग्य है कि नहीं.
४. आडिट क्वालिटी का समय समय पर रिव्यू नहीं किया जाता और महत्वपूर्ण मुद्दों पर क्लाइंट से बिना चर्चा किए ही रिपोर्ट कर दिया जाता है.
५. गलत रिपोर्टिंग के रिस्क पेरामीटर पहले से तय नहीं किए जाते हैं.
६. एक्सटर्नल कंफर्मेशन नहीं लिए जाते हैं और न ही इसका क्या असर वित्तीय स्थिति पर पड़ेगा इस बारे में रिपोर्ट किया जाता है.
७. आडिट सेम्पल का क्या आधार हो, वह भी आडिट क्वालिटी पर प्रश्न चिन्ह लगाता है.
८. विवादित मुद्दों पर मेनेजमेंट से आडिट फाइनल करने से पहले लिखित रिप्रेजेंटेशन नहीं लिया जाता.
९. आंतरिक आडिटर एवं अन्य एक्सपर्ट की रिपोर्ट की उपयोगिता पर ध्यान नहीं दिया जाता.
१०. आडिट रिपोर्ट फार्मेटिंग खामियां तो है ही और साथ ही पिछले साल के आडिट रिपोर्ट में दर्शाए गए मुद्दे एवं पिछले साल के वित्तीय डाटा के साथ कंम्पेरीशन भी रिपोर्ट नहीं किया जाता.
११. व्यापार संबंधित अन्य सूचना जिसका असर वित्तीय पटल पर हो सकता है, रिपोर्ट नहीं किया जाता.
१२. एएस १ के अंतर्गत अकाउंटिंग पालिसी का जिक्र खासकर लीज़, इम्पेयरमेंट, दीर्घ कालिक निवेश, स्टेटमेंट बनाने का आधार एवं एस्टीमेट्स के उपयोग पर जिक्र ही नहीं होता.
१३. एएस ९ रेवेन्यू रिकागनीशन का आधार वित्तीय स्टेटमेंट में आमतौर पर सही नहीं होता.
१४. एएस ११ विदेशी करेंसी के रेट में उतार चढाव होने के कारण होने वाले लाभ हानि की रिपोर्टिंग में खामियां पाई गई है.
१५. एएस १५ के अंतर्गत कर्मचारियों को दिए जाने वाले रिटायरमेंट बैनिफिट की रिपोर्टिंग और मूल्यांकन सही ढंग से नहीं किया जाता.
१६. एएस २१ के अंतर्गत कन्सोलीडेटेड वित्तीय स्टेटमेंट पर सूचना सही ढंग से प्रदर्शित नहीं की जाती है.
१७. इसी तरह इंड एएस १०५, १०७, १०८, ११०, ११३, ११५, १, ७, १०, २४, २७, ३७ और ४० की रिपोर्टिंग में भी खामियां नजर आती है.
१८. प्रापर्टी, प्लांट और इक्युपमेंट को अभी भी फिक्सड असेट के नाम से दिखाया जाता है.
१९. इन्वेस्टमेंट प्रापर्टी और ओनरशिप प्रापर्टी में अंतर नहीं बताया जाता.
२०. कैश और कैश इक्यूवेलेंट को सही ढंग से नहीं दिखाया जाता.
२१. रिलेटेड पार्टी के लेनदेन दर्शाने में खामियां नजर आती है.
२२. वित्तीय स्टेटमेंट किसके द्वारा अनुमोदित किए जाते हैं, इसकी कोई जानकारी नहीं होती.
२३. अलग अलग व्यापार की सेगमेंट आधार पर रिपोर्टिंग नहीं की जाती.
२४. कानटिंजेंट लाइबिलिटी का मूल्यांकन सही ढंग से नहीं किया जाता और न ही रिपोर्ट किया जाता है.
२५. वित्तीय इंस्ट्रूमेंट लघुकालिक और दीर्घ कालिक में रिपोर्टिंग नहीं की जाती.
२६. संड्री पेबेल को एमएसएमई और अन्य में अलग करके नहीं दिखाया जाता.
२७. लोन पर ब्याज दरें और मूलधन चुकाने का समय के साथ उस पर आधारित सिक्योरिटी की रिपोर्टिंग सही तरीके से नहीं की जाती है.
२८. निवेश को सूचित और अनूसूचित हेड में नहीं प्रदर्शित किया जाता है.
२९. सीएसआर खर्च की रिपोर्टिंग में भी खामियां पाई जा रही है.
३०. नोट्स, बैलेंस शीट और वित्तीय पटल पर एक ही हेड को अलग अलग नाम से दर्शाया जाता है.
३१. पिछले वर्ष के डाटा का कंपेरिजन नहीं दर्शाया जाता और कई जगह फिगर करोड़ रुपए में दिखाया गया तो कहीं पूरा अमाउंट दिखाया गया.
३२. इंवेंटरी के अंतर्गत वर्क इन प्रोग्रेस को वर्क इन प्रोसेस आमतौर पर दिखाया जाता है जो कि गलत है.
३३. रिजर्व और सरप्लस हेड का डिटेल बाइफरकेशन नहीं बताया जाता.
३४. इस साल के टैक्स प्रावधान को पुराने सालों के इनकम टैक्स रिफंड से एडजस्ट करना गलत है.
३५. टर्नओवर को नेट आफ जीएसटी नहीं दिखाया जाता.
३६. निवेश की आय, डिविडेंड, ब्याज को अलग से नहीं दर्शाया जाता.
३७. कस्टूमर से मिले चार्ज को डायरेक्ट ख़र्च से नेट आफ कर दिया जाता है.
३८. अन्य खर्च का डिटेल आडिट रिपोर्ट में नहीं दिया जाता.
३९. कारो २०१६ के अंतर्गत फिक्सड असेट का भौतिक सत्यापन नहीं किया जाता और न ही यह सुनिश्चित किया जाता है कि क्लाइंट द्वारा भौतिक सत्यापन किया गया है कि नहीं.
४०. सभी अचल सम्पत्ति की टाइटल डीड्स का सत्यापन नहीं किया जाता और न ही रिपोर्ट किया जाता है. इसके अलावा सरकारी देनदारियों पर रिपोर्टिंग सही ढंग से नहीं की जाती है, जिसमें यह पता नहीं चल पाता कि किस सरकारी विभाग में कितनी देनदारी बची है, कितनी एडजस्ट हो सकीं है और किस फ़ोरम पर पेंडिंग हैं.
इसके अलावा संस्थान इन बातों पर जोर देती है कि:
१. आडिट फर्में अपने स्टाफ की ट्रेनिंग पर ध्यान देते हुए उन्हें डाटा एनालिटिक्स पर एक्सपर्ट बनाएं.
२. पुराने तौर तरीकों को छोड़ते हुए आडिट में आज ज्यादा से ज्यादा अनुभवी लोग होना जरूरी है न कि जुनियर स्टाफ.
३. आडिटर्स और अन्य विशेषज्ञों की आपूर्ति आडिट के दौरान बनी रहें, ये हमें सुनिश्चित करना पड़ेगा. इसके लिए न केवल आडिट फर्में बल्कि नियामक संस्था को भी साथ देना होगा.
४. इस ग्लोबल युग में नेटवर्किंग एक प्रमुख हथियार होगा जो आडिट क्वालिटी में बेहतरी लाएगा.
भारतीय सीए संस्थान द्वारा उपरोक्त खामियां और सलाह क्वालिटी रिपोर्ट के माध्यम से इंगित करती है कि आडिट फर्मों को अभी काफी दूरी तय करनी है. ये हाल यदि बड़ी आडिट फर्मों का है तो छोटी फर्मों पर कुछ भी कहना मुश्किल होगा.
साफ है यह एक दायित्व और चुनौती भारतीय सीए संस्थान के समक्ष है कि कैसे आडिट क्वालिटी में सदस्य बेहतरी लाए क्योंकि यदि संस्थान इतनी खामियां इंगित करती है तो फिर अन्य संस्थानों द्वारा उंगली उठाना जायज है और यही सही समय है कि हम अपनी सीए संस्थान की सुनकर बेहतरी की ओर ध्यान दें तभी दूसरा हम पर उंगली नहीं उठाएगा.
सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर ९८२६१४४९६५
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THIS WAS BURIED UNDER THE CARPET SINCE LONG = NOW IT IS IN THE OPEN = COMING OUT FROM THE HORSES MOUTH = NONE OTHER THAN THE ICAI NEW DELHI INDIA = ITSELF / THANKS