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बजट- 2023 में कहा गया,’सूक्ष्म और लघु उद्यमों– स्माल एवं माइक्रो इंटरप्राइजेज को समय पर भुगतान को बढ़ावा देने के लिए, अधिनियम की धारा 43 बी के दायरे में ऐसे उद्यमों को किए गए भुगतान को शामिल करने का प्रस्ताव है। इन खरीद और खर्चों की अनुमति किसी वित्तीय वर्ष में  व्यापारिक आधार अर्थात मर्केंटाइल आधार पर तभी दी जाएगी जब भुगतान MSMED-2006 (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम-2006) के तहत अनिवार्य समय सीमा  के भीतर होगा। यदि ऐसा नहीं होता है तो ऐसे भुगतानों के लिए कटौती की अनुमति तभी दी जाएगी जब वास्तव में भुगतान किया गया हो। यह ध्यान रखें कि यह प्रावधान सूक्ष्म और लघु उद्यमों– स्माल एवं माइक्रो इंटरप्राइजेज के सम्बन्ध में ही है और मध्यम उद्यम- Medium Enterprises को इस प्रावधान के प्रभाव से बाहर रखा गया है .

Also Read: Income Tax- What is New Provision of 43B For Micro & Small Enterprises

आइये देखें कि क्या है यह प्रस्तावित प्रावधान और क्या होंगे इसके प्रभाव जो की जब 1 अप्रेल 2023 से होने वाले खर्चों पर यह प्रावधान लागू हो जाएगा . आइये सबसे पहले तो देखें कि  सूक्ष्म और लघु उद्यम– Micro and Small Enterprises क्या है ?

इंटरप्राइजेज  का प्रकार

प्लांट, मशीनरी एवं उपकरण में निवेश टर्नओवर
सूक्ष्म निर्माण और सेवा इकाई रु. 1 करोड़ रु. 5 करोड़
लघु निर्माण और सेवा इकाई रु.10 करोड़ का निवेश रु.50 करोड़ का टर्नओवर

MSMED अधिनियम -2006 की धारा 15 सूक्ष्म और लघु उद्यमों को क्रेता और विक्रेता के मध्य लिखित समझौते के अनुसार तय समय के भीतर भुगतान करने का उल्ल्लेख करती है लेकिन यह तय अवधि भी कभी 45 दिनों से अधिक नहीं हो सकती है। इस प्रकार का अनुबंध होने पर भुगतान की अवधि 45 दिन तक हो सकती है . यदि क्रेता और विक्रेता के मध्य ऐसा कोई लिखित अनुबंध नहीं है, तो इस धारा के अनुसार 15 दिनों के भीतर भुगतान करना होता है ।

इस प्रकार, अधिनियम की धारा 43बी में प्रस्तावित संशोधन अब अवधि बीत जाने के बाद  केवल भुगतान के आधार पर कटौती  के रूप में छूट  की अनुमति देगा। इसकी अनुमति व्यापरिक या मर्केंटाइल आधार पर तभी दी जा सकती है जब भुगतान एमएसएमईडी अधिनियम- 2006 की धारा 15 के तहत अनिवार्य समय के भीतर हो और इसी धारा के अनुसार  यह समय किसी भी हालत में 45 दिन से अधिक नहीं हो सकता है।

आइये इसे एक काल्पनिक उदाहरण के जरिये समझने का प्रयास करें :-

देखिये इसे एक उदहारण के जरिये समझ लीजिये कि यदि किसी करदाता ने   माइक्रो या स्माल इंटरप्राइजेज से कोई माल 10 लाख रूपये में 1 फरवरी 2024 को खरीदा है तो 45 दिन के हिसाब से भी इसका भुगतान 17 मार्च 2024 को हो जाना चाहिए अब अगर इसका भुगतान 17 मार्च 2024 तक नहीं होता है तो अब यह खर्च व्यापारिक आधार पर नहीं मिलकर भुगतान के आधार पर मिलेगा. अब इसका भुगतान 31 मार्च 2024 तक भी हो जाता है तो भी भुगतान के आधार पर यह खर्च वित्तीय वर्ष 2023-24 में मिल जाएगा. लेकिन यदि इसका भुगतान 31 मार्च 2024 के बाद किया जाता है तो फिर वित्तीय वर्ष 2023-24 में इसकी छूट नहीं मिलेगी और इसकी छूट उस करदाता को तब मिलेगी जब इसका भुगतान कर दिया जाए.

आइये एक और स्तिथि देखें कि माल ही जब 25 फरवरी 2024 को खरीदा हो तब 10 अप्रैल 2024 तक भी यदि भुगतान कर दिया जाता है तो भी इस खर्च की छूट वित्तीय वर्ष 2023-24 में मिल जायेगी .

इन दोनों स्तिथियों में यह मान लिया गया है कि क्रेता और विक्रेता के मध्य भुगतान करने का 45 दिन का अनुबंध है और यदि ऐसा कोई अनुबंध नहीं है तो फिर यह अवधि 15 दिन ही होगी.

आइये एक और बात करे लें और वह यह है कि क्या साल भर की खरीद या खर्च  पर  भुगतान में देरी होने पर क्या यह व्यवहारिक रूप से प्रावधान लागू होगा ?

वैसे तो सूक्ष्म और छोटे उद्यम को भुगतान समय पर ही मिलना चाहिए और इसके अतिरिक्त भी सूक्ष्म और छोटे उद्यम को भी दूसरे सूक्ष्म और छोटे उद्यम को भी समय पर भुगतान कर देना चाहिए  लेकिन इस प्रावधान के द्वारा हमेशा ही सूक्ष्म और छोटे उद्यम को लाभ होगा ऐसा नहीं है आइये इसे भी एक उदहारण के जरिये समझने का प्रयास करें :-

यदि किसी करदाता ने   माइक्रो या स्माल इंटरप्राइजेज से कोई माल 10 लाख रूपये में 1 अप्रैल 2023 को खरीदा है तो 45 दिन के हिसाब से भी इसका भुगतान 15 मई 2023 को हो जाना चाहिए अब अगर इसका भुगतान 15 मई 2023 तक नहीं होता है तो अब यह खर्च व्यापारिक आधार पर नहीं मिलकर रोकड़ या भुगतान के आधार पर मिलेगा. अब इसका भुगतान 31 मार्च 2024 तक भी हो जाता है तो भी भुगतान के आधार पर यह खर्च वित्तीय वर्ष 2023-24 में मिल जाएगा.

इसलिए प्रभावी रूप से इस प्रावधान का व्यवहारिक प्रभाव तब ही देखा जा सकता है जब कि खरीद या खर्च वर्ष के आखिरी के महीनों में हुआ हो क्यों कि इस प्रावधान के तहत भुगतान का  31 मार्च तक का समय तो है ही.

आप यह सोच लीजिये कि यदि किसी वित्तीय वर्ष में किसी खरीद या खर्च की छूट नहीं मिले तो इसका असर यह होगा कि उतनी रकम से आपकी आय बढ़ जायेगी और इस बढ़ी हुई रकम पर आपको कर देना होगा और यह तो बहुत ही मुश्किल होगा तो फिर क्या किया जाए ?

इसका अब एकमात्र उपाय यह है कि अब सूक्ष्म और छोटे उद्यमों को भुगतान समय पर करने की आदत डालनी होगी और उन्हें इस सम्बन्ध में बनाये गए कानून MSMED-2006 में बताई अवधि में भुगतना कर देना चाहिए और अब कम से कम उस समय से पूर्व तो करना ही होगा जिसे करने से कम से कम यह प्रस्तावित धारा 43B लागू होने के कारण यह आय आपकी आय में नहीं जुड़े.

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One Comment

  1. Rajkumar Khandelwal says:

    क्या सूक्ष्म और लघु उद्योग की निर्माण इकाईयों को msme में रजिस्टर्ड होना आवश्यक है???

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