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आज जीएसटी कौंसिल की मीटिंग है- जीएसटी कौंसिल की 39 वीं मीटिंग – क्या उम्मीदें है उद्योग और व्यापार जगत को

जीएसटी को लेकर जो परेशानियां भारत के करदाता को बढ़ती जा रही है उनका निवारण करने का अधिकार जीएसटी कौंसिल को है और इसबार जीएसटी कौंसिल की 39वीं मीटिंग जो कि 14  मार्च 2020 को हो रही है और करदाता की परेशानी इतनी बढ़ चुकी है कि परेशान करदाता बहुत ही उम्मीद के साथ इस मीटिंग को देख रहा है. आइये देखें कि क्या अपेक्षाएं कर दाता की है जीएसटी कौंसिल की इस मीटिंग से और हम इस मीटिंग से क्या उम्मीदें कर सकते हैं.

जीएसटी कौंसिल भारत के संघीय ढांचे को ध्यान में रखते हुए बनाई गई एक राज्य और केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों की एक संस्था है जो कि सरकार को जीएसटी के मामलों में सलाह देती है और इस कौंसिल में केन्द्रीय वित् मंत्री के अलावा सभी राज्यों के वित्त मंत्री सदस्य हैं . जब यह कौंसिल बनाई गई थी तब यह माना गया था कि यह कौंसिल “यूरोपीयन यूनियन” की तरह ही शक्तिशाली होगी और इस कौंसिल के सभी फैसलों को माना है लेकिन कुछ फैसलों को व्यवहारिक रूप से  लागू करने में जो देरी की गई है उससे जीएसटी कौंसिल के फैसलों का महत्त्व कम हुआ है .

जीएसटी कौंसिल में केंद्र सरकार को एक तिहाई और राज्यों को दो तिहाई मताधिकार प्राप्त है और किसी भी फैसले को लेने के लिए तीन चौथाई बहुमत की जरुरत होती है और इस प्रकार इस कौंसिल में व्यवहारिक रूप से केंद्र सरकार को वीटो पॉवर हासिल है लेकिन अभी तक इस कौंसिल में किसी भी फैसले को लेकर कोई विवाद उत्पन्न नही हुआ है लेकिन समस्या है कि कुछ महत्वपूर्ण फैसलों को सरकार ने लागू करने में बहुत अधिक देरी की है.

इस समय जो सबसे बड़ी समस्या है वह है जीएसटी के दौरान ब्याज की समस्या और इस समय जो सकल कर पर ब्याज के नोटिस आ रहें है और करदाताओं को यह उम्मीद है कि  जीएसटी कौंसिल इस मसले पर कोई तार्किक निर्णय इस तरह से लेगी कि करदाताओं कि यह समस्या इस तरह से हल हो और उन्हें इस सम्बन्ध में नोटिस आना बंद हो जाए और ब्याज भी सकल कर की जगह शुद्ध कर की रकम पर ही लगे. इस सम्बन्ध में ध्यान रहे कि जीएसटी कौंसिल अपनी 31 वीं मीटिंग जो कि 22 दिसंबर 2018 में ही इस मामले पर अपना फैसला शुद्ध कर पर ब्याज लगाने का दे दिया लेकिन अभी भी करदाता परेशान है और लगातार नोटिस आ रहें है इसलिए जीएसटी कौंसिल को अब इसका त्वरित निर्णय निकालना चाहिए.

जीएसटी नेटवर्क जब से जीएसटी लगा है एक समस्या बना हुआ है और एक लम्बे समय तक तो सरकार यह मानने को ही तैयार नहीं थी कि जीएसटी नेटवर्क में कोई समस्या ही नहीं है लेकिन अब यह संकेत मिलने लगे हैं कि सरकार ने अब मान लिया है कि जीएसटी नेटवर्क पूरी तरह से सक्षम नहीं है लेकिन इस सबका दंड करदाता को मिला है जो कि मानसिक भी है और आर्थिक भी है . अब यहाँ जीएसटी कौंसिल को भी कोई सख्त निर्णय लेना होगा कि यदि अभी का जीएसटी नेटवर्क सेवा प्रादाता सक्षम नहीं है तो फिर सरकार को इस बारे में उचित निर्णय लेने का निर्देश दे . यह बहुत ही आश्चर्य की बात है कि सूचना प्रोद्योगिकी में उन्नत देश में पिछले 30 माह में जीएसटी नेटवर्क अपनी समस्याओं को हल नहीं कर पाया है और इसका खामियाजा पूरे देश के करदाताओं को भुगतना पड रहा है .

जीएसटी कौंसिल को धारा 16 (4) और धारा 36 (4) से जुडी इनपुट क्रेडिट की समस्याओं को इसलिए भी हल कर लेना चाहिए कि जीएसटी इस समय एक नया कानून हैं और प्रारम्भिक अवस्था में इस तरह की सख्तियों का कोई अर्थ नहीं है और ये केवल नकारात्मक परिणाम ही देती है . धारा 16(4) के अनुसार किसी भी डीलर की इनपुट क्रेडिट एक निश्चित तक क्लेम नहीं करने पर समाप्त हो जाती है और धारा 36 (4) इनपुट क्रेडिट के 10% के प्रतिबन्ध से सम्बन्धित है है .

जीएसटी कौंसिल को और भी बहुत ही महत्वपूर्ण निर्णय अब कर लेने चाहिए उनमें सबसे महत्वपूर्ण है जीएसटी के रिटर्न को रिवाइज करने की सुविधा देना और यह सुविधा यदि नहीं मिलती है तो जीएसटी के कर निर्धारण एक बड़ी समस्या खड़ी करने वाले हैं.

जीएसटी कौंसिल को अब लेट फीस की अधिकत्तम राशि पर भी कोई निर्णय एक बार फिर से ले लेना चाहिए क्यों कि इस मसले पर भी जीएसटी डीलर्स की बहुत प्रताडणा हो चुकी है . जीएसटी कौंसिल अपनी 23 वीं मीटिंग में दिनांक 10 नवंम्बर 2017 को यह फैसला कर चुकी है कि लेट फीस किसी भी डीलर के सकल कर से ज्यादा नहीं होगी लेकिन इस फैसले को सरकार ने अभी तक लागू नहीं किया है . जीएसटी कौंसिल के फैसलों को लागू करने में सरकार द्वारा की जा रही देरी का यह एक और उदाहरण है .

लेट फीस की माफ़ी , लेट फीस पुनः लौटाने, जीएसटीआर -10 और आईटीसी -04  जैसे निरर्थक रिटर्न्स पर लेट फीस समाप्त करने का फैसला भी अब जीएसटी कौंसिल को तुरंत ले लेना चाहिए.

जीएसटी का वार्षिक रिटर्न जो कि 2018-19 के लिए अब भरा जाना है उसकी तारीख तो बढनी ही है लेकिन जीएसटी कौंसिल को अब सरकार को इस सम्बन्ध में जो खामियां इसकी यूटिलिटी में बनी है की जांच के भी निर्देश देने चाहिए . जीएसटी के वार्षिक रिटर्न के संम्बंध में विशेष बात यह है कि सिस्टम की तकनीकी खामियों के करण 2017-18 में भी इसकी तारीख कई बार बढाई गई थी और 2018-19 में भी स्तिथी कोई बेहतर नहीं है.

जीएसटी में आरसीएम् (रिवर्स चार्ज ) एक समस्या है  और इस अब हटा लेने का फैसला जीएसटी कौंसिल को कर लेना चाहिए ताकि करदाताओं को एक अनावश्यक प्रक्रिया से मुक्ति मिले.

एक ही बास्केट से कर के भुगतान की मांग कब से चल रही है और जीएसटी कौंसिल इसके पक्ष में फैसला भी दे चुकी है लेकिन इसका कोई उपाय  सरकार द्वारा अभी तक नहीं किया गया है  और इसका अर्थ ही यही है कि जीएसटी कौंसिल के फैसलों को लागू करने में सरकार बहुत अधिक समय ले रही है और यह भी एक चिंता का विषय है जिसके बारे में जीएसटी कौंसिल को विचार करना चाहिए ताकि जीएसटी कौंसिल के फैसलों का लाभ कर दाताओं को समय पर मिल सकें.

जीएसटी कौंसिल की 39 वीं मीटिंग से आम करदाता और अर्थ जगत को बहुत उम्मीदें है और यदि इस बार की मीटिंग में कर दाताओं के लिए महत्वपूर्ण फैसले नहीं हुए तो इससे उत्पन्न होने वाली निराशा इस कर और भारतीय अर्थव्यवस्था को बहुत नुक्सान पहुचायेगी इसलिए जीएसटी कौंसिल को अब जीएसटी से जुडी समस्याओं का हल निकाल ही लेना चाहिए.

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3 Comments

  1. VIJAY KHATAWKAR says:

    मै वित्त मंत्री से अनुरोध करता हु की जीएसटी 3B कि लेट फी जो ऑक्टोबर २०१८ से आज तक या डिसेंबर २०१९ चालू ही उसे रोककर WAIVED कर दि जाये जीससे करदाता अपने छुटे हुवे विवरण पत्र कर साहित भरके आपके तिजोरी में भारी मात्रा से कर संकलन होकर आपके विवरण पत्र का आकडा भी बड जायगा और कोई विवरण भरणेसे वंचित नही होगा धन्यवाद

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